प्रणयिनी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल / पृष्ठ 4
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‘देवगुरू का अभिशाप’
‘देवगुरू का अभिशाप’ नामक एकांकी में देवगुरू, गुरूपत्नी (तारा), सोम, शनि, मंगल, और देवकुमार , पात्र हैं ।
छह दृष्यों के इस एकांकी का एक गद्य चित्र-
गुरू पत्नी - (लंबी सांस भरकर)
हे भगवान! ये मेरे पति हैं। इतने दिन हो गये, मैं इतनी रूग्ण हूं, लेकिन कभी में सिरहाने बैठकर, मेरे माथे पर हाथ रखकर इन्होंने यह नहीं पूछा- अब कैसी हो। मैं रात भर तडफती रही, प्यास- प्यास करती रही पर से निश्चिन्त सोये रहे। जैसे मै थी ही नहीं हे ईश्वर! मुझे क्या सुख मिला ? (रोती है)
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