प्रवासी पक्षियों की सैरगाह हैं अरब सागर की खाड़ियाँ / संतोष श्रीवास्तव
जनवरी लगते ही मुम्बई का आकाश और खाड़ियों के किनारे खूबसूरत गुलाबीपंखों वाले समुद्री पक्षी फ्लेमिंगो से भर जाता है। मुम्बई में खारे समुद्री पानी की कई खाड़ियाँ हैं। पश्चिम में माहिम की खाड़ी, बाँद्रा की खाड़ी, मालाड की खाड़ी है। पूर्व में भी कई खाड़ियाँ हैं। मुम्बई से जुड़े उपनगरों और गाँवों उरण, करनाला, पनवेल, शिवड़ी में खाड़ियाँ मेंग्रोव्ज़ से घिरी हैं। मइन्हींमेंग्रोव्ज़ की सघनता में बर्फीले देशों जैसे साइबेरिया आदि से आये ये प्रवासी पक्षी प्रजनन करते हैं। इनके अंडों के लिए मेंग्रोव्ज़ की घनी चादर मानो सुरक्षा कवच है। ट्रांस हार्बर लिंक यानी शिवड़ी, न्हावा, शेवा का समुद्री मार्ग फ्लेमिंगो की पसंदीदा जगह है। शिवड़ी की खाड़ी में 1000 से अधिक फ्लेमिंगो आते हैं। बॉम्बे, नैचरल हिस्ट्री सोसाइटी प्रकृति और प्रकृति चरों से प्रेम का संदेश देती है और इन पक्षियों की देखभाल करती है। खाड़ी के किनारे मेंग्रोव्ज़ मुम्बई को प्रदूषण
मुक्त करते हैं...हवा, पानी, तूफान, बाढ़ तथा अन्य कारणों से होने वाले ज़मीन के कटाव को रोकने का काम करते हैं साथ ही सैंकड़ों किस्म की समुद्री मछलियों, कोरल रीफ, समुद्री घास के उत्पादन में मदद कर मछलियों, शंखों और अन्य जीव जंतुओं और हज़ारों लाखों किस्म की माइक्रो लाइफ के जीवों का संरक्षण भी करते हैं। मुम्बई का समुद्री तट वन्य जीव अभ्यारण्य ही नहीं बल्कि दुर्लभ माइग्रेटरी बर्ड्स और फ्लेमिंगो का ठिकाना भी है। महाराष्ट्र सरकार ने मुम्बई, ठाणे और नवी मुम्बई में ऐसे 6135 हेक्टेयर इलाके को रिज़र्व फॉरेस्ट घोषित कर दिया है।
मुम्बई में बारिश के पानी और प्राकृतिक स्रोत से लबालब पवई, तुलसी, विहार तमसा और वैतरणा झीलें पूरे साल शहर की जलपूर्ति का माध्यम हैं। ठाणे में असंख्य छोटे तालाब और झीलें हैं। मुम्बई का मशहूर भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान पवई झील के किनारे है।
ओशिवाड़ा और दहीसार नदी नेशनल पार्क से शुरू होकर अरब सागर में मिल जाती है। मीठी नदी पवई झील से निकली है। वसई और ठाणे की खाड़ियाँ उल्हास नदी के मुहाने हैं।
मुम्बई एक ऐसा महानगर है जहाँ कायनात ने अपनी सारी खूबसूरती और विविधताएँ खुले हाथों लुटाई हैं। मुम्बई को तीन ओर से घेरे ठाठें मारता अरब सागर है इसलिए यहाँ अन्य महानगरों जैसा प्रदूषण नहीं है क्योंकि समुद्री हवाएँ सारा प्रदूषण बहाले जाती हैं। इसे पूर्णरूप से प्रदूषण मुक्त करने के लिए जानी-मानी प्रदूण आंदोलनकारी सुमैरा अब्दुलाली कमर कसे हैं। मुम्बई कर भी जागृत हुए हैं। ध्वनिप्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आगे आ रहे हैं। बढ़ी जागरूकता के कारण त्योहारों के दौरान 'पीकनॉइसलेवल' दिन-ब-दिन घट रहा है। सरकार भी 'नॉइसमैपिंग' योजनाओं को लागू करने के लिए 'नॉइसबैरियर्स' लगा रहे हैं। अब नवरात्रि में गरबा भी12 बजे रात के बाद नहीं खेलाजाता, दीपावली में बिना पटाख़ों के खुशियाँ मनाने का चलन जारी है। सुमैरा अब्दुलाली का कहना है कि" कुछ दशक पहले लंदन में प्रदूषण की वजह से रहना दुश्वार था। टेम्सनदी का पानी बेहद गंदा हो चुका था। आज वही लंदन प्रदूषण मुक्त शहरों के लिए मिसाल माना जाता है। टेम्स का पानी भी स्वच्छ हो चुका है। और इसकी वजह सरकार के साथ-साथ जनता की जागरूकता भी है।
मुम्बई में जहाँ सह्याद्री पर्वत शृंखला है तो तीन नदियाँ भी बहती हैं। इतने सालों से मुम्बई में रहते हुए कभी जाना ही नहीं इन नदियों के बारे में। वह तो 2005 में 26 जुलाई की बाढ़ के बाद मीठी नदी महत्त्वपूर्ण हो उठी है।
मुम्बई में कई राष्ट्रीय पक्षी विहार हैं। नेरल, करनाला तो विदेशी ओरियोल पक्षियों की आश्रम स्थली है। करनाला कर्जत से पहले आता है। राष्ट्रीय पक्षी उद्यान 446 स्क्वेयर किलोमीटर में फैला है। उद्यान पर्यटकों के लिए सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। पर्यटकों के लिए बर्डव्यूटॉवर भी है जहाँ से इन रंगबिरंगे पक्षियों को हरेभरे दरख़्तों पर कलरव करते देखा जा सकता है। कुछ तो बेहद दुर्लभ पक्षी भी हैं यहाँ। जाड़े के मौसम में विदेशी पक्षी भी यहाँ आते हैं। उस समय पर्यटकों की संख्या भी बढ़ जाती है। यहाँ पर्यटकों के ठहरने के लिए होटल, गेस्टहाउ सभी हैं। महाराष्ट्र स्टेट फॉरेस्ट डिपार्टमेंट उद्यान का संरक्षक है। यहीं पर करनाला किला है जो 445मीटर ऊँचा है। इसका निर्माण 12वीं सदी में किया गया था। करनाला पक्षी उद्यान में प्रवेश करते ही झरने, घने दरख़्त, मकड़ियों के बड़े-बड़े जाले, कीड़े, मकोड़े से मुलाकात करते हुए जब रंग बिरंगे पक्षी दिख जाते हैं तो लगता है एक अलग ही दुनिया में आ गये हैं। इस मोहक जंगल से गुज़रना मानो किसी तिलिस्म से गुज़रने जैसा है।
बोरीवली में संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान सह्याद्री की घाटी में बसा ऐसा वन्य प्रदेश है जहाँ सभी प्रकार के जंगली जानवर जाली की ऊँची-ऊँची बाड़ लगाकर खुले में रखे गये हैं। लायन सफ़ारी में किसी भी वक़्त शेरों के झुंड देखे जा सकते हैं। उद्यान के बीचों बीच शीशे-सी चमकती झील पर पक्षियों के झुंड मँडराते हैं। टॉयट्रेन जंगल की सैर कराती है जो बड़ा ही रोमाँचक है। ट्रेनसेजंगल में प्रवेश करते ही पूरी वाइल्ड लाइफ़ नज़रों के सामने से गुज़रती है। कहीं सफेद शेर तो कहीं घने अयाल वाला बाघ तो कहीं चितकबरा तेंदुआ, रंग बिरंगे पक्षी पेड़ों पर चहचहाकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते नज़र आते हैं। पेड़ों पर मचान भी बने हैं जिनसे जंगल का खूबसूरत नज़ारा देखा जा सकता है। एक सौ चार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान नेशनल पार्क के नाम से भी जाना जाता है। गेट के उद्यान में प्रवेश करते ही हरी घास की ढलान पर संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान लिखा हुआ दिख जाता है। जंगल के अंदर ही कान्हेरी की गुफ़ाएँ हैं जो पश्चिमी भारत में बौद्ध गुफ़ाओं का सबसे बड़ा समूह है। कान्हेरी शब्द संस्कृत के कृष्णागिरी का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है काले रंग का पर्वत। काली बेसाल्टिक चट्टानों से बनी ये गुफ़ाएँ पहली शताब्दी से नौवीं शताब्दी तक के बौद्ध धर्म के उत्थान पतनको दर्शाती हैं। यह जगह मौर्य और कुशाण वंश के काल में बड़ा शिक्षा का केन्द्र थी। ये गुफ़ाएँ ऐसी टाइम मशीन हैं जिसमें पहुँचकर शताब्दियों पूर्व भारत की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बनते देर नहीं लगती। 86 फुट लम्बी, 40 फुट चौड़ी, 50 फुट ऊँची इन गुफ़ाओं में 34 स्तंभ है। इसकी गणना पश्चिमी भारत के प्रधान बौद्ध दरी मंदिरों में की जाती है।
मुम्बई के अँधेरी पश्चिम में महाकाली की गुफ़ाएँ बौद्ध मठ के पास स्थित हैं। इन गुफ़ाओं के कारण इस पूरे क्षेत्र का नाम महाकाली पड़ गया है। एक ही पर्वत के अंदर 19 चट्टानों में 19 गुफ़ाएँ बनी हैं जिनका निर्माण पहली से छठी शताब्दी के मध्य आँका गया है। बीच में 8 फुट ऊँचा शिवमंदिर है। मंदिर के परिसर की दीवार पर कुछ देवी देवताओं के चित्र बने हैं। नौवीं गुफ़ा सबसे बड़ी है। जिसमें बुद्ध की पौराणिक कथा और उनके सात भित्तिचित्र हैं। 1988 में सरकार ने इसे संरक्षक स्मारक और राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया।
भायखला में वीरमाता जीजाबाई भोंसले उद्यान है। पहले यह विक्टोरिया गार्डन के नाम से जाना जाता था। यह उद्यान चिड़ियाघर, संग्रहालय और वनस्पति और प्राणी विज्ञान से सम्बन्धित है। इस उद्यान में दुर्लभ और रोचक वनस्पतियों का संग्रह है। हरे भरे खुले परिसर में कई किस्म के जानवर हैं। प्रवेश द्वार मानो किसी ऐतिहासिक किले का गेट लगता है जहाँ बहुत अधिक संख्या में पत्थर से बने बेहद खूबसूरत हाथी हैं। उद्यान में जीजामाता की वात्सल्य पूर्ण मूर्ति से लगे खड़े हैं बालक शिवाजी. सफेद मोर इस उद्यान की शान हैं जो पर्यटकों को देखते ही पंख पसारकर नाचने लगते हैं।
बोरीवली पश्चिम में गोराई खाड़ी स्थित ग्लोबल विपश्यना पगोडा विशाल क्षेत्र को घेरे एक अद्भुत शांति खूबसूरतीऔर पवित्रता का एहसास कराता है। गोराई जेट्टी फिश मार्केट से फेरी की ओर जाते हुए भयानक बदबू पर्यटकों के क़दम आगे बढ़ने से रोकती है पर जाने कैसा सम्मोहन है कि पंद्रह मिनट की फेरी द्वारा समुद्री यात्रा चित्त शांत कर देती है और हवा पावन हो उठती है। गोराई जेट्टी पर ही फेरी का रिटर्न टिकट मिलता है। खाड़ी का पानी तीन ओर सघन मेंग्रोव्ज़ से घिरा है। फेरी से उतरते ही कड़ी धूप के बावजूद ठंडी हवा ने मुझे छू लिया। करीब दस मिनट के चढ़ाई वाले रास्ते को पार कर हम पगोडा पहुँच गये। रास्ता सुंदर उद्यानों से घिरा है। बिल्कुल बाँध जैसा दिखता विशाल जल जमाव स्थल है जो पॉलीथीन की बड़ी-बड़ी शीट से मढ़ा है। गहराई दस मीटर है। कुछ काली सफेद बत्तख़ें वहाँ झुंड बनाये बैठी थीं।
पूरे पगोडा को पत्थरों की बाड़ से घेरा है जिस पर स्टील की जाली बँधी है। पगोडा का प्रवेश द्वार विशाल द्वारपालों की पहरेदारी में मानो सुनहले जगमगाते भव्य पगोडा को सुरक्षा प्रदान करता है। इसे बनाने में हज़ारों ट्रक पत्थर हज़ारों मील दूर की खदानों से लाये गये और सैंकड़ो मज़दूरों ने दिन रात श्रम करके और कुशल कारीगरों के साथ मिलकर इसे स्थापत्य में ढाला। यह स्थापत्य बर्मी स्थापत्य कहलाता है। सफेद और सुनहले (कहीं कहीं लाल और लौकी का रंग भी) रंगों से सजे इस पगोडा का गुंबद 97 मीटर ऊँचा है और बिना किसी स्तंभ के सहारे के यह सालों से इसी तरह खड़ा है। पगोडा के विशाल केंद्रीय गुंबद 5के शिखर पर भगवान बुद्ध के शरीर धातु अवशेष प्रतिष्ठापित हैं जो सुनहले गोलाकार चक्र में अलग ही दिखलाई पड़ते हैं। नीचे विशाल हॉल है जिसमें आठ हज़ार साधक एक साथ ध्यान कर सकते हैं। पर्यटकों के लिए अलग काँच से मढ़ी गैलरी है जिसमें से वे हॉल और साधकों को देख सकते हैं।
पूरे आठ वर्ष में बनकर तैयार हुए इस खूबसूरत भव्य, आलीशान पगोडा का उद्घाटन 8 फरवरी 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ने किया था और तभी से पर्यटकों का आवागमन शुरू हुआ। यह पगोडा अपने बेहतरीन बेजोड़ शिल्प और पावन ध्यान केन्द्र की वजह से मानो भव्य भूतकाल के लिए स्मरणांजलि है। पगोडा के आठ गेट हैं प्रत्येक गेट में तीन दरवाज़े हैं... हर एक दरवाज़े पर सुरक्षा हेतु कर्मचारी मौजूद रहते हैं। गौतम बुद्ध की इस धरोहर के प्रतिनिधि सयाजी ऊबा खिन हैं।
गुंबदीय गोल हॉल में साया जी गोयनका ने 2009 (फरवरी) में पहला धम्म प्रवचन दिया तब से लाखों बौद्ध धर्मावलम्बी प्रतिवर्ष विपश्यना करते हैं। हॉल के सामने ध्यान कक्ष है। यहध्यान कक्ष उनके लिए है जिन्होंने दीक्षा नहीं ली है। मैंने भी वहाँ नीले रंग के चौकोर आसन पर बैठकर दस मिनट ध्यान किया। माइक पर गुरु की आवाज़ में ध्यान करने का तरीका बताया जाता रहा।
बुद्धकी इस चैत्य भूमि में पुस्तकालय है। एक चलचित्र गृह भी है जहाँ नींव खुदने से लेकर अब तक की कहानी की फ़िल्म दिखाई जाती है। चित्र प्रदर्शनी भी है जहाँ 18 गैलरियों में आमने सामने गौतम बुद्ध के जीवन की कथा बड़े-बड़े चित्रों में प्रदर्शित की गई है। चित्रकार ने कुल 122 चित्रों में गज़ब के चित्र उकेरे हैं। रंगों और भावों का ऐसा कमाल कि चित्र बोलते प्रतीत होते हैं।
यह पगोडा पूर्णतया स्वैच्छिक दान से चलता है और यहाँ कोई प्रवेश शुल्क नहीं देना पड़ता। रिफ्रेशमेंट के लिए एक कैंटीन है और फूड प्लाज़ा है। जगह-जगह फिल्टर्ड पानी के कूलर लगे हैं। स्वच्छता, शांति और सौन्दर्य के एक साथ दर्शन कराता है यह पगोडा. दूर फेरी से ही मेंग्रोव्ज़ की सघन हरियाली में सुनहले रंग वाला पगोडा किसी इन्द्रपुरी से कम नहीं लगता।