प्रेम और विवाह / पवित्र पाप / सुशोभित
सुशोभित
स्त्री और पुरुष के बीच तीन तरह के प्रेम-सम्बंध होते हैं-
1. प्लैटोनिक
2. रोमैंटिक
3. एरोटिक
1. प्लैटोनिक रिश्तों का आधार है मनुष्य के भीतर मौजूद अपार्थिव की वह ललक, जिसे उसकी क्षमता से कम आँका जाता है। जबकि वास्तव में मनुष्य की आत्मा अपार्थिव, अनश्वर, अभौतिक के लिए भूखी है और मनुष्य को नित्यप्रति नाना वायवी-यात्राओं पर लिए जाती है।
2. रोमैंस शब्द प्रेम के वशीभूत होने वाली चेष्टाओं का सीधा-सीधा पर्याय है। यह आज लव शब्द का समानार्थी भी बन गया है। यह अत्यंत व्यापक और सर्वव्यापी भावना है। कोमलता, सुंदरता, रोमांच के आशय इससे व्यक्त होते हैं। दुनिया में प्रेम के लिए जितना भी कला-साहित्य-दर्शन रचा गया, उसके मूल में चाहे एरोटिक-प्रेम की एक झीनी अंतर्धारा हो, किंतु उसका शिल्प रोमैंटिक-प्रेम से ही निर्मित है।
3. एरोटिसिज़्म आदमी और औरत के हर ताल्लुक़ (यहाँ ताल्लुक़ शब्द को रोमैंटिक-रिलेशनशिप ही समझें, यह अकारण नहीं है कि आज रिलेशनशिप शब्द प्रेम-सम्बंध का पर्याय बन चुका है) की जड़ में पैठी हुई है। यह वह आदिम ऊर्जा है, जो समस्त स्त्री-पुरुष समीकरणों को गतिमान बनाती है। यह मनुष्य को भयभीत भी करती है, लज्जित भी करती है, ग्लानि से भी भरती है और रोमांच से बारम्बार पुकारती भी है। यह चाहना प्रेम का मूलाधार है।
कह लीजिये- अपनी अन्विति में प्लैटोनिक रिश्ते अगर वाष्प की तरह वायवी और ऊर्ध्वगामी हैं, रोमैंटिक रिश्ते जल की तरह तरल और सजल, तो एरोटिक रिश्तों में हिमवत-शिलाओं सरीखा सुठोसपन-बनैलापन है।
बहुतेरे पुरुष इन तीन तरह के रिश्तों के लिए तीन भिन्न तरह की स्त्रियों की तलाश करते हैं।
बहुतेरी स्त्रियाँ इन तीन तरह के रिश्तों का निर्वाह एक ही पुरुष के साथ करने का स्वप्न देखती हैं।
इस त्रिकोणमिति के विभिन्न समीकरणों से ही स्त्री-पुरुष के बीच निर्मित होने वाले अनेक टकरावों और कलह-प्रणय के चित्र साकार होते हैं।
सामाजिक-उपयोगितावाद के सिद्धांत के वशीभूत होकर मनुष्यों ने एक चौथे प्रकार के सम्बंध का आविष्कार भी कर लिया है, जो कि विवाह-सम्बंध है। यह प्रेम और यौनेच्छा का संस्थानीकरण है। इसमें प्रेम का प्लैटोनिक या रोमैंटिक होना अनिवार्य नहीं- अलबत्ता बहुतेरे विवाह-सम्बंधों में वह भावना अंततोगत्वा चली आती है। और भले यह अनुबंध एरोटिक-संतुष्टि का वायदा आपसे करता हो, इसमें वैसा हो ही, यह भी ज़रूरी नहीं है। किंतु अपनी उपयोगिता के कारण आज यह स्त्री-पुरुषों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय सम्बंध बन गया है।
जो उपयोगी है, वह सुंदर भी हो, ज़रूरी नहीं। वास्तव में उपयोगिता तो बहुधा सुंदरता की क्षति के साथ ही सम्भव हो पाती है। यह अकारण नहीं है कि विवाह-व्यवस्था के आधार पर चल रहा संसार ऊपर से एक व्यवस्था बनाए रखने में सफल मालूम होता है, किंतु भीतर ही भीतर वह विषाद से भर गया है- इस विषाद का निवारण मनुष्य की प्लैटोनिक, रोमैंटिक और एरोटिक ज़रूरतों की पूर्ति बिना नहीं हो सकता- यह जितना जल्दी समझ लिया जाए, उतना ही बेहतर है।