प्रेम का भोजन-3 / ओशो
प्रवचनमाला
मैंने कभी नहीं कहा है कि प्रेम विवाह से नष्ट होता है। विवाह प्रेम को कैसे नष्ट कर सकता है ? हां, यह विवाह में नष्ट अवश्य हो जाता है, लेकिन इसे तुम नष्ट करते हो, विवाह नहीं। यह दोनों साथियों द्वारा नष्ट हो जाता है। विवाह प्रेम को कैसे नष्ट कर सकता है ? इसे तुम नष्ट करते हो क्योंकि तुम नहीं जानते कि प्रेम क्या होता है। तुम सिर्फ दिखावा करते हो कि तुम जानते हो, तुम सिर्फ आशा करते हो कि तुम्हें पता है, तुम्हारा सपना होता है कि तुम जानते हो, लेकिन तुम नहीं जानते कि प्रेम क्या है। प्रेम को सीखना होता है, यह सबसे बड़ी कला है जो सीखी जा सकती है।
यदि लोग नाच रहे होते हैं और कोई तुम्हें पूछता है, "आओ और नृत्य करो," तुम कहते हो, "मैं नहीं जानता कि कैसे करना। तुम सिर्फ कूदना और नाचना शुरू नहीं करते ताकि सबको लगे कि तुम एक महान नर्तक हो। तुम बस अपने आपको एक विदूषक साबित करोगे। तुम अपने को एक नर्तक साबित नहीं करोगे। इसे सीखना होगा, इसकी सुघड़ता, इसके पदन्यास––तुम्हें इसके लिए शरीर को प्रशिक्षित करना होगा।
प्रेम का पहला सबक है: प्रेम को मांगो मत, सिर्फ दो। एक दाता बनो।
लोग ठीक विपरीत कर रहे हैं। यहां तक कि जब वे देते हैं, तो इस ख्याल से देते हैं कि प्रेम को वापस आना चाहिए। यह एक सौदा है। वे बांटते नहीं हैं, वे खुलकर बांटते नहीं। वे एक शर्त के साथ बांटते हैं। वे अपनी आंखों के कोने से देखते रहते हैं, वापस आ रहा है या नहीं। बहुत गरीब लोग हैं! वे प्रेम के प्राकृतिक तरीके को नहीं जानते। तुम बस उंडेलो, वह आ जाएगा।
और अगर यह नहीं आ रहा है, तो चिंता की बात नहीं है क्योंकि एक प्रेमी जानता है कि प्रेम करने का अर्थ है खुश होना। यदि वह आता है, बहुत अच्छा, तो फिर खुशी बढ़ती है। लेकिन फिर भी अगर यह कभी नहीं आता है तो प्रेम करने से ही तुम इतने खुश हो जाते हो, मस्ती से भर जाते हो, कि किसे फिक्र वह आता है या नहीं ।
प्रेम का अपना आंतरिक आनंद है। यह तब होता है जब तुम प्रेम करते हो। परिणाम के लिए प्रतीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बस प्रेम करना शुरू करो। धीरे-धीरे तुम देखोगे कि बहुत ज्यादा प्रेम वापस तुम्हारे पास आ रहा है। व्यक्ति प्रेम करता है और प्रेम करके ही जानता है कि प्रेम क्या है। जैसा कि तैराकी तैरने से ही आती है, प्रेम प्रेम के द्वारा ही सीखा जाता है।
लोग बहुत कंजूस होते हैं। वे किसी महान प्रेमिका के लिए इंतजार कर रहे हैं, तो ही वे प्रेम करेंगे। वे बंद रहते हैं, वे सिकुड़ जाते हैं। वे सिर्फ इंतज़ार करते हैं। कहीं से कोई क्लियोपेट्रा आएगी और फिर वे अपना दिल खोल देंगे, लेकिन उस समय तक वे पूरी तरह भूल जाएंगे कि इसे कैसे खोला जाए।
तुम बस जाकर चित्र बनाना शुरू नहीं करते सिर्फ इसलिए कि कैनवास उपलब्ध है और ब्रश है और रंग है। तुम पेंटिंग शुरू नहीं करते। तुम नहीं कहते "सभी आवश्यक चीजें यहां हैं, तो मैं पेंट कर सकता हूं।" तुम पेंट कर सकते हो लेकिन इस तरह तुम एक चित्रकार नहीं बनोगे।
तुम एक स्त्री से मिलते हो - कैनवास वहां है। तुम तुरंत एक प्रेमी हो जाते हो, तुम पेंटिंग शुरू कर देते हो। और वह तुम पर पेंटिंग करना शुरू करती है। बेशक तुम दोनों मूर्ख साबित होते हो - चित्रित मूर्ख - और देर-सबेर तुम समझते हो कि क्या हो रहा है। लेकिन तुमने कभी नहीं सोचा था कि प्रेम एक कला है। कला तुम्हारे जन्म के साथ पैदा नहीं होती, तुम्हारे जन्म के साथ इसका कोई लेना-देना नहीं है। तुम्हें इसे सीखना होता है। यह सबसे सूक्ष्म कला है।
तुम एक क्षमता के साथ ही पैदा होते होगे। बेशक, तुम एक शरीर के साथ पैदा होते हो, तुम एक नर्तक हो सकते हो क्योंकि तुम्हारे पास शरीर है। तुम अपने शरीर को हिला सकते हो और तुम एक नर्तक हो सकते हो लेकिन नृत्य को सीखना पड़ेगा। नृत्य सीखने के लिए बहुत प्रयास करना जरूरी है। और नाच बहुत मुश्किल नहीं है क्योंकि तुम अकेले इसमें शामिल हो।
प्रेम अधिक कठिन है। यह किसी और के साथ नाच है। दूसरे के लिए भी जानने की जरूरत है कि नृत्य क्या है। किसी के साथ तालमेल बिठाना एक महान कला है। दो लोगों के बीच एक सामंजस्य बनाना … दो लोगों का मतलब दो अलग दुनियाएं। जब दो दुनियाएं करीब आती हैं, संघर्ष अनिवार्य है। तुम नहीं जानते कि कैसे सामंजस्य बनाना। प्रेम समस्वरितता है। और खुशी, स्वास्थ्य, समस्वरितता, सब कुछ प्रेम से उपजता है। जारी-----
(सौजन्य से- आोशो न्यूज लैटर)