प्रेम का भोजन-4 / ओशो

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प्रवचनमाला

प्रेम करना सीखो। विवाह की जल्दी मत करो, प्रेम करना सीखो। सबसे पहले एक महान प्रेमी बन जाओ।

और आवश्यकता क्या है? आवश्यकता यह है कि एक महान प्रेमी हमेशा प्रेम देने के लिए तैयार है और इसकी परवाह नहीं करता कि वह लौटता है या नहीं। यह हमेशा वापस मिलता है, यह चीजों की प्रकृति में है। यह ऐसा ही है जैसे तुम पहाड़ों के पास जाओ और एक गीत गाओ, और घाटियां जवाब देती हैं। क्या तुमने पहाड़ों में, पहाड़ियों में, इको प्वाइंट को देखा है? तुम चिल्लाओ और घाटियां चिल्लाती हैं, या तुम गाते हो तो घाटियां गाती हैं। हर दिल एक घाटी है। यदि तुम इसमें प्रेम उंडेलो, यह जवाब देगा।

प्रेम का कोई भी अवसर मत खोओ। यहां तक कि एक गली में से गुजरते हुए तुम प्रेमपूर्ण हो सकते हो। यहां तक कि तुम भिखारी के साथ भी प्रेमपूर्ण हो सकते हो। कोई जरूरत नहीं है कि तुम्हें उसे कुछ देना है, तुम कम से कम मुसकुरा सकते हो। इसमें कुछ खर्च नहीं होता लेकिन तुम्हारी मुस्कान तुम्हारे दिल को खोलती है, तुम्हारे दिल को अधिक जीवित बनाती है। किसी का हाथ पकड़ो––चाहे दोस्त हो या अजनबी। इंतजार मत करो कि जब सही व्यक्ति होगा केवल तभी तुम प्रेम करोगे। तो फिर सही व्यक्ति कभी नहीं होगा। प्रेम किए जाओ। जितना अधिक तुम प्रेम करोगे, उतना सही व्यक्ति के आने की संभावना है क्योंकि तुम्हारा हृदय खिलना शुरू होता है। खिलता हुआ हृदय कई मधुमक्खियों, कई प्रेमियों को आकर्षित करता है।

तुम्हें एक बहुत ही गलत तरीके से प्रशिक्षित किया गया है। सबसे पहले, लोग एक गलत धारणा में जीते हैं कि सब लोग पहले से ही प्रेमी हैं। सिर्फ पैदा होने से तुम सोचते हो कि तुम एक प्रेमी हो। यह इतना आसान नहीं है। हां, एक संभावना है, लेकिन संभावना को प्रशिक्षित करना जरूरी है, अनुशासित करना जरूरी है। एक बीज मौजूद है, लेकिन उसका फूल बनना जरूरी है। तुम अपना बीज सम्हाले रहो, कोई मधुमक्खी नहीं आएगी। क्या तुमने कभी मधुमक्खियों को बीज के लिए आते देखा है ? क्या वे नहीं जानतीं कि बीज फूल बन सकता है? लेकिन वे तभी आती हैं, जब बीज फूल बन जाते हैं। एक फूल बनो, बीज मत रहो।

दो लोग, जो अलग-अलग दुखी हैं, एक-दूसरे के लिए अधिक दुख पैदा करते हैं जब वे एक साथ होते हैं। यही गणितीय है। तुम दुखी थे, तुम्हारी पत्नी दुखी थी, और तुम दोनों को उम्मीद है कि एक साथ होने पर तुम दोनों खुश हो जाओगे? यह इतना सरल गणित है जैसे दो और दो चार। इतना सरल है। यह किसी उच्चतर गणित का हिस्सा नहीं है, यह बहुत आम है, तुम इसे अपनी उंगलियों पर गिन सकते हो। तुम दोनों दुखी हो जाओगे।

प्रणय निवेदन एक बात है। प्रणय निवेदन पर निर्भर मत रहो। वास्तव में इससे पहले कि तुम विवाह करो, प्रणय निवेदन से मुक्त हो जाओ। मेरा सुझाव है कि विवाह हनीमून के बाद हो, इससे पहले कभी नहीं होना चाहिए। अगर सब कुछ ठीक हो जाता है, तो ही विवाह होना चाहिए।

विवाह के बाद हनीमून बहुत खतरनाक है। जहां तक मुझे पता है, निन्यानबे प्रतिशत विवाह हनीमून के समय खत्म हो जाते हैं। लेकिन तब तुम फंस चुके होते हो, फिर तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं बचता। फिर तो पूरा समाज, कानून, कोर्ट––हर कोई तुम्हारे खिलाफ है अगर तुम पत्नी को छोड़ दो, या पत्नी तु्म्हें छोड़ दे। फिर सारी नैतिकता, धर्म, पुजारी, सब लोग तुम्हारे खिलाफ हैं। ऐसी व्यवस्था हो कि समाज विवाह के लिए हर तरह की बाधा खड़ी करे और तलाक के लिए कोई बाधा न बनाए। समाज लोगों को इतनी आसानी से विवाह करने की अनुमति न दे तो अच्छा होगा। अदालत को बाधाएं खड़ी करनी चाहिए - कम से कम दो साल के लिए महिला के साथ रहोगे तो ही अदालत तुम्हें विवाह करने के लिए अनुमति दे सकता है।

फिलहाल वे ठीक उल्टा कर रहे हैं। यदि तुम विवाह करना चाहते हो, कोई नहीं पूछता कि क्या तुम तैयार हो या यह सिर्फ एक मन की लहर है , सिर्फ इसलिए कि तुम स्त्री की नाक पसंद करते हो? हद मूर्खता है! कोई एक लंबी नाक के साथ नहीं रह सकता। दो दिनों के बाद नाक भुला दी जाएगी। कौन अपनी पत्नी की नाक को देखता है? पत्नी कभी सुंदर नहीं लगती, पति कभी खूबसूरत नहीं दिखता। एक बार जब तुम परिचित हो जाते हो तो सुंदरता गायब हो जाती है।

दो लोगों को एक साथ लंबे समय के लिए रहने की अनुमति दी जानी चाहिए, वे एक-दूसरे से परिचित हो जाएं, एक दूसरे की पहचान हो जाए। और अगर वे विवाह करना भी चाहते हैं, तो अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। फिर तलाक दुनिया से गायब हो जाएगी। तलाक मौजूद है, क्योंकि विवाह गलत हैं और जबरदस्ती से थोपे जाते हैं। तलाक मौजूद हैं, क्योंकि विवाह एक रोमांटिक मूड में किया जाता है। रोमांटिक मूड अच्छा है अगर तुम एक कवि हो । और कवियों को अच्छे पति या पत्नियां होते नहीं देखा गया हैं। वास्तव में कवि लगभग हमेशा अविवाहित रहते हैं । वे हर कहीं डोरे डालते हैं लेकिन वे कभी पकड़े नहीं जाते और इसलिए उनका रोमांस जिंदा रहता है। वे कविता लिखते हैं, सुंदर कविता लिखते हैं। किसी स्त्री से या पुरुष से काव्यात्मक मूड में विवाह नहीं करना चाहिए। गद्य भावदशा को आने दो और फिर बस जाओ। क्योंकि रोजमर्रा का जीवन गद्य जैसा अधिक है, कविता की तरह कम। व्यक्ति को भलीभांति परिपक्व हो जाना चाहिए।

परिपक्वता का मतलब है कि व्यक्ति एक रोमांटिक मूर्ख नहीं है। वह जीवन को समझता है, वह जीवन की जिम्मेदारी को समझता है, किसी व्यक्ति के साथ होने की समस्याओं को समझता है। उन सब कठिनाइयों का स्वीकार करता है और फिर भी उस व्यक्ति के साथ रहने का फैसला लेता है। ऐसी उम्मीद नहीं करता कि सिर्फ स्वर्ग ही होने जा रहा है, और गुलाब ही गुलाब होंगे। किसी बकवास की उम्मीद नहीं है; वह जानता है कि वास्तविकता कठोर है। वह ऊबड़-खाबड़ है। गुलाब तो हैं, लेकिन दूर हैं और बीच-बीच में थोड़े से हैं; कांटे कई हैं।

जब तुम इन समस्याओं के प्रति सचेत हो जाओगे और उसके बावजूद तुम तय करोगे कि किसी एक व्यक्ति के साथ रहने की जोखिम लेना सार्थक है बजाय अकेले रहने के, तो विवाह कर लो। तो फिर विवाह प्रेम को कभी नहीं मार सकता, क्योंकि यह प्रेम यथार्थवादी है। विवाह केवल रोमांटिक प्रेम को मार सकते हैं। और रोमांटिक प्रेम वह है जिसे लोग पपी लव, यानी अल्हड़ प्रेम कहते हैं। उस पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उसे पोषण नहीं मानना चाहिए। यह आइसक्रीम की तरह ही हो सकता है। तुम इसे कभी-कभी खा सकते हो, लेकिन उस पर निर्भर मत रहो। जीवन को अधिक यथार्थवादी, अधिक गद्य होना चाहिए।

विवाह अपने आपमें कभी कुछ नष्ट नहीं करता। विवाह सिर्फ उसको बाहर लाता है जो तुममें छिपा है, वह उसे उघाड़ता है। यदि प्रेम पीछे छुपा हुआ है, भीतर छिपा हुआ है, तो विवाह उसे बाहर लाता है। अगर प्रेम सिर्फ एक बहाना था, बस एक प्रलोभन, तो देर-अबेर वह गायब हो जाएगा। और फिर तुम्हारी सच्चाई, तुम्हारा कुरूप व्यक्तित्व प्रगट होता है। विवाह केवल एक अवसर है, इसलिए जो भी बाहर आ सकता है वह बाहर आ जाएगा।

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि प्रेम ने विवाह को नष्ट कर दिया है। जो लोग प्रेम करना नहीं जानते उनके द्वारा प्रेम नष्ट हो जाता है। प्रेम इसलिए नष्ट होता है क्योंकि पहले तो, प्रेम होता ही नहीं। तुम एक सपने में जी रहे थे। हकीकत वह सपना नष्ट कर देती है। वरना प्रेम अनंत है, अनंतता का हिस्सा है। यदि तुम विकसित होते हो, अगर तुम इस कला को जानते हो, और जीवन की वास्तविकताओं को स्वीकार करते हो, तो यह हर दिन बढ़ता चला जाता है। विवाह प्रेम में विकसित होने का एक जबरदस्त अवसर बन जाता है। प्रेम को कुछ नष्ट नहीं कर सकता। यदि यह है, तो बढ़ता चला जाता है। लेकिन मेरा मानना है कि प्रेम है ही नहीं। तुमने अपने को गलत समझा; कुछ और वहां था। शायद सेक्स था, सेक्स अपील था। तब तो यह नष्ट होगा ही, क्योंकि एक बार तुमने एक स्त्री को प्रेम किया तो सेक्स अपील गायब हो जाता है, क्योंकि सेक्स अपील अज्ञात के साथ ही होता है। एक बार जब तुम महिला या पुरुष के शरीर को भोग लेते हो है, तो सेक्स अपील गायब हो जाता है। यदि तुम्हारा प्रेम सिर्फ सेक्स अपील था तो यह गायब होगा ही। तो प्रेम को कभी कुछ और मत समझना। अगर प्रेम सच में प्रेम है ...

मेरा क्या मतलब है जब मैं कहता हूं "सच में प्रेम?" मेरा मतलब है कि सिर्फ किसी दूसरे की मौजूदगी में अचानक तुम्हें खुशी होती है, सिर्फ किसी के साथ होने से तुम पर मस्ती छा जाती है। किसी के साथ होने भर से तुम्हारे हृदय में गहरे कुछ परितुष्ट हो जाता है ... तुम्हारे हृदय में कुछ संगीत शुरू होता है, तब तुम्हारा सामंजस्य बनता हैं। दूसरे की उपस्थिति मात्र तुम्हें अधिक अखंड, अधिक केंद्रित बनात, तुम्हारी जड़ें जमीन में गहरी जाती हैं, तो यह प्रेम है।

प्रेम एक जुनून नहीं है, प्रेम एक भावना नहीं है। प्रेम एक बहुत गहरी समझ है कि कोई और किसी तरह तुम्हें पूरा करता है। कोई तुमको एक पूरा वर्तुल बनाता है। किसी अन्य की उपस्थिति तुम्हारी उपस्थिति को बढ़ाती है। प्रेम तुम्हें स्वयं होने की स्वतंत्रता देता है, यह स्वामित्व नहीं है।

तो देखो। सेक्स को कभी प्रेम मत समझना, अन्यथा तुम धोखा खाओगे।

सतर्क रहो, और जब तुम किसी की सिर्फ उपस्थिति, शुद्ध उपस्थिति के साथ महसूस करने लगते हो - और कुछ नहीं, और किसी बात की जरूरत नहीं है, तुम कुछ भी नहीं पूछते - बस उपस्थिति, वह दूसरा तुम्हें प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है। कुछ तुम्हारे भीतर मुछ खिलना शुरू होता है, हजारों कमल खिलने हैं, तो तुम प्रेम में हो। और फिर तुम सभी कठिनाइयों से गुज़र सकते हो जो कि वास्तविकता पैदा करती है । कई पीड़ाएं, कई चिंताएं - तुम उन सभी से गुज़र जाओगे। और तुम्हारा प्रेम को अधिक से अधिक खिलेगा क्योंकि वे सभी स्थितियां चुनौतियां हो जाएंगी। और तुम्हारा प्रेम, उन पर काबू पाने से, अधिक से अधिक मजबूत बन जाएगा। प्रेम अनंतता है। यदि वह है, तो यह बढ़ता चला जाता है, बढ़ता चला जाता है। प्रेम शुरुआत जानता है, लेकिन अंत नहीं जानता।

(सौजन्‍य से-ओशो न्‍यूज लेटर )