प्रेरक प्रसंग-3 / विनोबा भावे
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आचार्य विनोबा भावे रेलगाड़ी से वर्धा जा रहे थे। अचानक ट्रेन के डिब्बे में एक वृद्ध फकीर चढ़ा। फकीर ने भक्ति भाव वाला गीत गाना शुरू किया। उसके मधुर आवाज़ एवं गीतों के भावों को सुन कर बिनोवाजी भावविभोर हो उठे।
डिब्बे में अन्य यात्री भी फकीर के गायन के जादू से मंत्रमुग्ध हो रहे थे। उसी डब्बे में एक धनाढ्य जमींदार भी बैठा था। उसने अपने जेब से पाँच रुपये का नोट निकाला और बोला- "एक-एक पैसा ईकठा करने में भला क्या मिलेगा? मैं रुपये देता हूँ, शर्त यह है कि भजन की जगह फिल्मी गीत गाओ।"
फकीर ने जबाब दिया - "मैंने नियम बना रखा है कि परमात्मा के अलावा वाणी से किसी की प्रशंसा नहीं करूंगा।"
अब जमींदार ने सौ का नोट निकाला तथा कहा- "नियम-वियम को रखो ताक पर। यह सौ रुपये लो और फिल्मी गीत सुनाओ।"
तब फकीर बोला- "आप एक लाख रुपये देंगे तब भी मैं भगवान् की स्तुति के अलावा किसी के गीत न गाऊंगा।"
फकीर के ये शब्द सुनकर आचार्य बिनोबा भावे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने उठ कर उसे गले से लगा लिया और बोले - "आज पता चला है सूरदास, तुलसीदास व मीराबाई की परम्परा के सच्चे भक्त अभी भी इस पृथ्वी पर हैं। जिसे लालच न प्रभावित कर सके वही सच्चा भक्त है।"