फ़ॉकनर का कथादेश / बावरा बटोही / सुशोभित

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फ़ॉकनर का कथादेश
सुशोभित


विलियम फ़ॉकनर का कथादेश इतना डिटेल्‍ड है कि 1936 में जब उसने 'एब्‍सैलम एब्‍सैलम' लिखा तो उसे महसूस हुआ कि अब तो उसे अपने काल्‍पनिक भूगोल का एक नक्‍़शा भी बनाना पड़ेगा।

फ़ॉकनर की कहानियाँ एक काल्‍पनिक 'योकनापटॉफ़ा काउंटी' में घटित होती हैं, जो कि मिसिसिपी (अमरीका के दक्षिणी प्रांत) में बसी है। लिहाज़ा फ़ॉकनर ने 'एब्‍सैलम एब्‍सैलम' के अंत में बाक़ायदा एक नक्‍़शा खींचकर उसे उसमें शामिल किया, जिसमें ब्‍योरेवार यह दर्ज किया कि इस नॉवल और इससे पहले के नॉवल्‍स की घटनाएं कहाँ-कहाँ घटित होती हैं। और उस नक्‍़शे के नीचे उसने लिखा : 'विलियम फ़ॉकनर इज़ द सोल ऑनर एंड प्रोप्राइटर ऑफ़ दिस काउंटी।'

इससे भी मन ना भरा तो 1946 में उसने कॉम्‍पसन परिवार ('द साउंड एंड द फ़्यूरी' की केंद्रीय धुरी) का एक क्रोनोलॉजिकल जीवनवृत्‍त लिख डाला। 'द साउंड एंड द फ़्यूरी' की घटनाएं 1898 से 1928 के दौरान घटित होती हैं, लेकिन कॉम्‍पसन परिवार के काल्‍पनिक तिथिवृत्‍त में 1699 से लेकर 1945 तक की घटनाओं को सिलसिलेवार दर्ज किया गया है।

बात यहाँ भी ख़त्‍म नहीं होती, 'द साउंड एंड द फ़्यूरी' का क्‍वेंटीन कॉम्‍पसन कभी 'एब्‍सैलम एब्‍सैलम' में नमूदार होता है तो कभी 'अ जस्टिस' नामक शॉर्ट स्‍टोरी में। स्‍नोप्‍स परिवार की दास्‍तान 'द हैमलेट' से शुरू होती है तो 'द टाउन' और 'द मैंशन' तक चलती रहती है और अंत में फ़ॉकनर को उसे 'द स्‍नोप्‍स ट्रायलॉजी' शीर्षक से बाक़ायदा एक जिल्‍द में प्रकाशित कराना पड़ता है। यह रोमांचक लगता है कि जिस शहर में हम रह रहे हों, उसका एक समांतर शहर अपने भीतर रच दें, और किसी को कानोंकान ख़बर ना हो। कि जिन लोगों के बीच हम रहते हों, उनकी अनगिनत प्रेतछायाओं को अपने भीतर जगह दें और मुल्‍क के मुस्‍तैद ख़ुफिया महक़मे को भनक तक न लग सके। और अगर इससे भी हमारा काम न चलें तो शहर ही नहीं, एक पूरे का पूरा सूबा ही अपने भीतर रच दें, बाक़ायदा उसका नक्‍़शा खींचें, उसमें रहने वालों का इतिहास लिखें, उसी में डूबे रहें सांझ-सकारे।

ईश्‍वर ने यह दुनिया रची, रचनाकार अपनी एक अलग दुनिया रचता है। मुझे नहीं लगता वह ईश्‍वर से स्‍पर्द्धा करना चाहता है, हाँ लेकिन वह ईश्‍वर की वेदना का सहभागी ज़रूर होना चाहता है। वह एक व्‍यक्ति से एक आबादी और एक जगह से एक शहर बन जाना चाहता है। एक प्रतिसंसार। एक समांतर जीवन। शीशे की दीवारों के पीछे बसा एक और अहाता, प्रतिबिम्‍बों से भरा, लेकिन कहीं अधिक चमकदार, कहीं अधिक मायावी, कहीं अधिक संपूर्ण। यह छलना, यह माया रोमांच से भर देती है। दुनिया वही नहीं है, नक्‍़शे वही नहीं हैं, जो वे हमें नज़र आते हैं। उनके भीतर और और तहें हैं, तहख़ाने हैं : इतालो कल्‍वीनो के अदृश्‍य शहरों की तरह : और अनुपस्थित का यह जनपद भी अपने में मुकम्‍मल एक देश है, जहाँ पर चिट्ठियाँ भेजी जा सकती हैं।

जबकि जो पोस्‍टल एड्रेस हमारे प्रमाण-पत्रों पर दर्ज होते हैं, मैं कहना चाहूंगा, वे महज़ एक 'एक्‍सक्‍यूज़' हैं। महज़ एक 'एक्‍सक्‍यूज़।' इससे ज्‍़यादह कुछ नहीं। वहाँ कोई नहीं रहता, बस खिड़कियों से हवा कमरों के भीतर दाखिल होती रहती है।