बंद कमरा / भाग 21 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

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उसे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा। उसके लिए अनिकेत के बिना अकेले रहना बहुत दुखदायी था? अन्यथा, उसके भीतर इतनी अस्थिरता क्यों रहती? जब वह एक सप्ताह तो क्या एक दिन के लिए भी घर से बाहर रहता था तो कूकी को घर में खाना बनाने की इच्छा नहीं होती थी। इधर-उधर करके थोड़ा बहुत खाना बना लेती थी। बच्चें भी आक्षेप लगाने लगते थे कि घर में पापा नहीं है इसलिए मम्मी उनका पूरा ध्यान नहीं रखती है। यहाँ तक कि कूकी अपना श्रृंगार भी अनिकेत को खुश रखने के लिए करती थी। उसने कभी अपने पिताजी को गर्व के साथ कहते हुए सुना था, देखो, मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि मेरा दामाद एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में काम करता हैं।कूकी भी अपने पिताजी को खुश देखकर फूली नहीं समाती थी।

भले ही, इस घर की चारदीवारी में दोनों के बीच में अच्छा तालमेल नहीं हो पा रहा था। कूकी को दिल खोलकर बात करने का अवसर नहीं मिल पा रहा था। उसे फिर भी लगता था कि अनिकेत की वजह से घर में सब-कुछ ठीक ठाक चल रहा है। जब वह एक साल के लिए ह घर से बाहर चला जाएगा तो क्या वह घर की देखभाल करने में समर्थ होगी? वह अपने आपको एक अबोध शिशु की तरह अनुभव कर रही थी तथा इस दुनिया को निर्वाक होकर आश्चर्य के साथ टुकर-टुकर देख रही थी। एक नए कैदी के लिए कैदखाने से उड़ जाने के लिए चिल्लाना या छटपटाना तो एक स्वाभाविक बात है मगर कैदखाने का दरवाजा खुल जाने के बाद इतने विशाल आकाश में सही दिशा खोज पाना बहुत ही कष्ट का काम है।

कूकी को मन ही मन बहुत डर लग रहा था मगर वह उस डर के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बता पा रही थी। वह ठीक उसी तरह रोमांचित हो रही थी जैसे वह शफीक के इंटरव्यू में सफल होने के बाद हुई थी।

उस समय शफीक ने पूछा था, "रुखसाना, तुम आखिरी समय में मेरे साथ जाने के लिए मना तो नहीं कर दोगी?" कूकी पता नहीं शफीक के साथ जाने में कितना सफल होती, मगर वह शफीक का प्रेम पाकर इतनी शक्तिशाली हो गई थी कि वह उसका हाथ पकड़कर बिना किसी डर के उसके साथ दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती थी।

यद्यपि अनिकेत को छोड़कर चले जाने तथा अनिकेत द्वारा उसको छोड़कर जाने के कारणों में रात-दिन का फर्क था। उसे फिर भी ऐसा लग रहा था कि उन दोनों में से कोई भी एक दूसरे को छोड़कर अगर चला जाए तो उसकी दुनिया उजड़ जाएगी।

अनिकेत ने शाम के समय उसको उसकी अनुपस्थिति में घर चलाने के सारे दायित्वों के बारे में समझा दिया था। उसकी अनुपस्थिति में उसे क्या-क्या काम करने चाहिए? उसने पूरी तरह से कूकी को समझा दिया था। एक छोटी-सी डायरी में उन सारे कामों का लेखा-जोखा लिख दिया था और कूकी को वह डायरी देते हुए यह भी कहा था, "मैने इसमें सब कुछ लिख दिया है।तुम इसे एक बार अच्छी तरह से पढ़ लो वरना मेरे जाने के बाद बुरी तरह से परेशान हो जाओगी। मेरे कितना भी समझाने की कोशिश करने के बाद भी तुमने कभी भी कोई काम करना नहीं चाहा। कम से कम बैंकों का काम सीख लेती तो मेरे मन को तसल्ली रहती। खैर, गुजरी हुई बातों को करने से क्या फायदा? अच्छा सुनो, मैंने कम्प्यूटर की एक फाइल में सारी बातें लिखकर रख दी है। अगर कभी कम्प्यूटर में कुछ प्रॉब्लम हो और वे फाइलें नहीं खुल सके तो यह डायरी तुम्हारे काम आएँगी।"

कूकी मन ही मन अनिकेत की प्रशंसा कर रही थी।वह कितनी सावधानी के साथ ये सारे काम कर लेता था। अनिकेत ने कहा था, "यह देख लो, आई.सी.आई.सी बैंक में पांच हजार रुपए का हमारा एक आर.डी. खाता खोला हुआ है।उस खाते में हर महीने याद करके पाँच हजार रुपए जमा करा देना। मार्च महीना खत्म होने से पहले- पहले एल.आई.सी. के दोनो प्रीमियम जमा करवाने के लिए दस हजार का चेक उनके ऑफिस में भेज देना। देखो,डायरी में इस जगह पर पालिसी नम्बर और प्रीमियम की राशि लिख दी है। हाउसिंग लोन की किश्त कंपनी मेरी तनख्वाह में से अपने आप काट लेगी। तुम्हें उसके लिए चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। इस साल तीन सेविंग सर्टिफिकेट मेच्योर होंगे, मैंने जिनके कागज पत्र तैयार कर लिए हैं। केवल एजेन्ट को फोन कर देना वह अपने आप उन्हें भुनाकर तुम्हें पैसे दे देगा।मैंने ट्रैवल एजेंसी से भी बातचीत कर ली है, तुम्हें जब भी किसी गाड़ी की जरुरत पड़े, तो उन्हें फोन कर देना वह ड्राइवर भेज देंगे। जहाँ भी जाना होगा, आराम से चली जाना। याद रखना, खुद ड्राइविंग कभी मत करना।"

कूकी को ऐसे लग रहा था जैसे कि अनिकेत उसे किसी अलग राज्य की बागडोर देकर जा रहा है। वह तो यह भी नहीं जानती, कि अनिकेत के बैंक में कितना बैलेंस है और कितना लोन चुकाना बाकी है। बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ ये सारे काम अनिकेत ही करता आ रहा था। एक के चले जाने के बाद दूसरे के महत्व का आकलन होता है। जाओ, अनिकेत, जाओ। तुम्हारी अनुपस्थिति में तुम्हारी परछाई तुम्हारे कद से भी लंबी हो जाएगी।

क्या शफीक के बिना तबस्सुम भी इतनी दिक्कतें झेल रही होगी? शायद बिल्कुल नहीं।शफीक ने एक बार यहाँ तक कहा था कि वह दुनियादारी चलाने में असमर्थ है। तबस्सुम ही उसकी दुनिया की सारी देख रेख करती है। कूकी का स्वभाव तबस्सुम के विपरीत है। वह जरुर ये सारे काम कर लेती होगी।

अनिकेत ने मेडिकल की एक फाइल लाकर कूकी को थमा दी और कहने लगा, "ये सब तुम्हारी दवाइयों की पर्चियाँ है। अगर कभी तबीयत ज्यादा खराब हो जाए तो डॉक्टर मेहता से कन्सल्ट कर लेना।उन्हें पास्ट हिस्ट्री देखकर इलाज करने में सुविधा होगी।"

पता नहीं क्यों, उस समय कूकी बिलख-बिलखकर रोने लगी। अनिकेत के दिल के किसी कोने में उसके प्रति थोडा-बहुत प्रेम अभी भी जिंदा है।कूकी ने तो अभी तक उसका रुखापन ही देखा था। अनिकेत, तुम ऐसे क्यों हो गए हो?तुम दो शब्द मीठे बोलने में भी इतनी कंजूसी क्यों करते हो? कभी वह भी एक गुजरा हुआ जमाना था, जब हम एक दूसरे को खूब प्यार करते थे और एक दूसरे पर मर मिटने के लिए तैयार रहते थे। तुमने चाँद के ऊपर पाँव तो जरुर रखा मगर उसकी उबड़ खाबड़ सतह के सिवाय कुछ नहीं देख सके। जानते हो, "बेबी" जैसे छोटे से संबोधन में भी एक विशाल समुन्दर की तरह प्यार भरा हुआ है। एक बार तो कभी प्यार से उस तरह संबोधित करते। कम से कम एक बार तो प्यार की चट्टान तोड़कर मेरे लिए झरना बहा देते ताकि मैं उसके ठंडे पानी में भीगकर अपने को धन्य समझती।

कूकी की आँखों में आँसू भर आए थे। नाक काँपने लगी थी। वह अपने आपको एक दम असहाय अनुभव कर रही थी।

"अरे, इतनी जोर-जोर से रो क्यों रही हो?" अनिकेत ने पूछा।

"अगर तुम इस तरह से बिलख-बिलखकर रोओगी तो बच्चों को किस तरह सँभाल पाओगी। बड़ी मुश्किल की बात है। मुझे तो किसी भी हालत में जाना ही पड़ेगा।"अनिकेत कुछ उपाय सूझता न देख दाँतों से नाखून काटने लगा।उसकी भी मन ही मन रोने की इच्छा हो रही थी, मगर वह जान बूझकर रो नहीं पा रहा था। उसे डर था कि कहीं ऐसा नहीं हो उसका मन दुर्बल हो जाए।

"तुम देहाती औरतों की भाँति रो क्यों रही हो? तुम्हारी खास सहेली रेणु फिलहाल अकेली अमेरिका में जाकर बस गई है। अच्छा अब रोना-धोना बंद करो। ये लो यूनियन बैंक का पासबुक अपने पास रखो।तुम्हे बड़े बेटे के लिए तो कोई चिंता करने की जरुरत नहीं है, मगर छोटे बेटे की स्कूल में ट्यूशन फीस जमा कराने के समय इस चेक को साइन करके दे देना। उनके स्कूल में चेक से फीस जमा होती है। यह हमारा ज्वाइंट पास-बुक है। किसी तरह डरने की कोई बात नहीं है। और अगर कुछ शेष रह गया हो तो बताओ?"

"तुम तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे मुझे हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर जा रहे हो।"

"उस बात का कोई पता चलता है? हो सकता है कल प्लेन क्रेश हो जाए? या कोई मुझे किडनेप कर ले? या फिर कोई बम ब्लास्ट हो जाए?" अनिकेत ने कहा।

कूकी गुस्से से कहने लगी, "ओह! और आगे मत बोलो, प्लीज। क्या तुम्हारे मुँह से कभी कोई अच्छी बातें नहीं निकलती?"

"इंसान के जीवन का क्या ठिकाना? यह तो बुलबुले की तरह है। कब फट जाएगा, पता भी नहीं चलेगा।"

"ठीक कह रहे हो, अनिकेत।" कूकी मन ही मन सोच रही थी।

कल तक शफीक शराब और शबाब के साथ जीवन बिता रहा था। अपने जीवन को अच्छी तरह भोग रहा था। कूकी के साथ भी कल्पना लोक में विचरण कर रहा था, मगर अभी एक अभिशप्त गंधर्व की भाँति धरती पर ऐसा गिरा कि आज वह अपना अस्तित्व भी नहीं खोज पा रहा है।

अनिकेत अपने सारे कागजात ठीक कर रहा था। फिर लगभग एक घंटे तक कम्प्यूटर के सामने बैठकर अपनी सारी फाइलें चेक करता रहा। रात का खाना खाने के बाद अनिकेत टी.वी देखने के बजाय सीधे बिस्तर पर जाकर सो गया। बच्चें भी जल्दी सो गए थे। कूकी की आँखों में आज भी नींद का नामोनिशान नहीं था।अनिकेत को बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई। ऑफिस में चार्ज हेंड ओवर करने का काम, फिर घर के ढेर सारे छोटे-मोटे काम करते-करते अनिकेत बुरी तरह से थक गया था। कूकी की इच्छा हो रही थी कि वह अनिकेत की ललाट पर एक चुम्बन कस दे। मगर उसे डर लग रहा था कि कहीं वह यह न कह दे, "क्या नाटक कर रही हो? देख नहीं रही हो मैं बुरी तरह थक गया हूँ। मुझे सोने दो" तब कूकी बुरी तरह से अपमानित हो जाएगी।

कूकी यह सोचकर चुपचाप दबे पाँवों बिस्तर से उठ गई तथा फिर से अपनी बुकशेल्फ से एक डायरी निकाली जिसमें उसने शफीक की कविताएँ लिखी थी।वह डायरी के पन्ने पलटते-पलटते एक कविता पर आकर रुक गई। उस कविता में शफीक ने लिखा था

"किसी भ्रम में खोकर, आत्म-विभोर होकर
मैने अपने सपनों और इच्छाओं का सम्बंध जोडा
स्वप्नावस्था केवल एक फेंटेंसी है
मगर इच्छा का दायरा उससे भी बहुत लंबा और गहरा है
हो सकता है सपने सही हो
मगर इच्छा कोई जरुरी नहीं पूरी हो।
इच्छा का संवेग साधारण है
कुछ पाने के प्रयास को जोडने का
फिर भी मैं क्यों भ्रमित हूँ
मुझे कुछ पता नहीं
क्योंकि तुम मेरी आखिरी इच्छा हो
वर्तमान में एक प्यारा सपना
यथार्थ के कठोर धरातल पर
तुम मेरे लिए एक सुंदर-सी फेंटेंसी हो।
मुझे चाहत है केवल तुम्हारे प्यार की
और उसके इंतजार में तमाम करना चाहता हूँ
मैं अपना सारा जीवन।"

कूकी को अचानक ऐसा लगा जैसे अनिकेत नींद से जाग गया हो और उसे आवाज दे रहा हो।वह डायरी को अपनी जगह पर रखकर भागकर सोने वाले कमरे में चली गई। उसने देखा कि अनिकेत बीच वाले तकिये पर अपने पैर रखकर सोया हुआ है।कूकी भी बिना आवाज किए धीरे-धीरे बिस्तर पर सो गई।

क्या शफीक उसके लिए एक फेंटेसी था, जिसकी कल्पना में खोकर वह अपना जीवन बिता रही थी? जिस तरह ध्रुव तारा देखकर समुद्र में मार्ग भूला हुआ नाविक अपनी सही दिशा की तलाश कर लेता है। शफीक तो था ही ऐसा। उसके गले की आवाज सुनते ही उसके शरीर में एक अद्भुत सिहरन पैदा हो जाती थी। हाथ की पहुँच में न होते हुए भी वह नजदीक लगने लगता था, मगर अनिकेत पास होते हुए भी पास नहीं था। हे भगवान! कोई चीज नहीं मिलने पर दिल इतना बेचैन क्यों होता है? उसे ऐसा क्यों लगता है उसका जीवन बरबाद हो गया?

क्या अप्राप्ति की यह भावना हमेशा के लिए उसे टिसती रहेगी? क्या शफीक दूर क्षितिज में एक छोटा सा तारा बनकर रह जाएगा ? जिसको छूने की वह जितनी भी कोशिश करले, पर उसे छू नहीं पाएगी। क्या अभी शफीक जेल के भीतर पाँव मरोडकर सोया होगा? या मच्छर काटने के कारण छटपटाते हुए रुखसाना को याद करता होगा?या यह भी हो सकता है कि वह स्टडी रुम में बैठकर कूकी की तारीफ में कविताएँ लिख रहा होगा, मगर उनके सैनिक प्रशासन के डर से उसको ई-मेल नहीं कर पा रहा होगा या फिर उसने किसी की परवाह किए बगैर इस दौरान ई-मेल कर भी दिया होगा।

कूकी के मन में इस छोटी-सी आशा की किरण ने उजाला कर दिया था। उसको पाने के लिए मन और छटपटाने लगा। पता नहीं,शफीक ने उधर से कब से ई-मेल भेजा होगा और कूकी इधर अनिकेत के पास इस तरह सोई पड़ी है।वह फिर से चुपचाप उठकर अपने स्टडीरुम में आ गई और कम्प्यूटर ऑन करने लगी। इससे पहले अनिकेत की उपस्थिति में उसने कम्प्यूटर खोलने का कभी भी दुस्साहस नहीं किया था। किसी को यह पता तक नहीं था कि उसका भी कम्प्यूटर में कभी काम पड़ता है और उसने अपने प्रेम को उस डिब्बे के अंदर सहेज कर रखा है।

कम्प्यूटर ऑन करते ही एक जानी पहचानी आवाज ने घर की संपूर्ण नीरवता को भंग कर दिया। डर के मारे कूकी का दिल धड़कने लगा। उसे ऐसा लग रहा था मानो वह किसी मंझधार में फंस गई है। उसे दोनों तरफ के किनारे नजर आ रहे हैं, जिस किनारे की तरफ जाए, उस तरफ आफत ही आफत। अगर वह कम्प्यूटर बंद करती है तब भी आवाज होगी और अगर वह उसे चालू रहने देती है तो पकड़े जाने का डर है। अपने स्वभाव की तरह उस आवाज को रोकना उसके बस की बात नहीं थी।

उसने कम्प्यूटर को चालू रखा और इंटरनेट लगाने लगी। मानीटर पर स्क्रीन सेवर में स्क्रीनें बदलती जा रही थी। तभी पीछे से अनिकेत के गरजने की आवाज आई।

"यह आधी रात को तुम्हें क्या हो गया है?"

"नींद नहीं आ रही थी इसलिए सोच रही थी नेट में पेपर पढ लूँ।"

अनिकेत ने उसकी बात पूरी भी नहीं सुनी और बीच में चिल्ला उठा "तुम्हें आधी रात का समय मिला है अखबार पढ़ने के लिए? ना तो रातभर खुद सोती हो और ना ही किसी को चैन की नींद सोने देती हो। अच्छी औरत हो? भूतनी की तरह रातभर इधर-उधर घूमती रहती हो। कल सुबह उठकर कहोगी, मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ गया है और मैं तुम्हारे लिए डॉक्टरों के पीछे भागता फिरुँगा।"

"ओह, हेल!" दाँत दबाकर कूकी अपना अपमान सहन करने का प्रयास करने लगी। अनिकेत ही तो वह आदमी है जिसने जबरदस्ती से कूकी के नाम एक ई-मेल आई.डी खोला था तथा कहने लगा था, "जानती नहीं हो, दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई है और तुम अभी तक यहीं पड़ी हुई हो। आओ, तुम्हें दिखाता हूँ, जैसे ही तुम ब्राउज करोगी, वैसे ही तुम्हें पता चलेगा दुनिया सिमटकर बहुत छोटी हो गई है।" और अब वही अनिकेत है जो कूकी को भूतनी कहकर अपमानित कर रहा है।

कूकी कम्प्यूटर बंद करके चुपचाप उठकर चली गई। अनिकेत की बातों का मुँहतोड़ जवाब दिए बिना बिस्तर पर जाकर अपनी जगह पर करवट लेते हुए सो गई और कितने दिन? कितने दिन सहन करना पड़ेगा इस आतंकवाद को? उसे पता नहीं।