बंद कमरा / भाग 23 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

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मगर कुछ दिन पहले तो वह केवल प्रेम के आधार पर ही अपनी जिंदगी गुजार रही थी। अभी भी प्रेम है मगर नगण्य। उसको शफीक का फोन आने के बाद ऐसा ही लग रहा था।वह जब सवेरे-सवेरे नहाने जा रही थी तभी शफीक का फोन आया था। उस समय बच्चे स्कूल चले गए थे। कूकी ने यह सोचकर कि अनिकेत उड़ीसा अपने गाँव पहुँच गया होगा, दौड़कर फोन उठाया। मगर वह फोन अनिकेत का नहीं था। उस तरफ से शफीक की आवाज आ रही थी।कूकी को शफीक की आवाज सुनकर आश्चर्य होने लगा। अगले ही पल में उसका आश्चर्य खुशी में तब्दील हो गया।उसकी आँखें एक लंबे अर्से के बाद रुखसाना संबोधन सुनकर भर आई थी। शफीक की आवाज सुने शायद तीन-चार महीने बीत चुके थे। आवाज में अभी भी वही सम्मोहन शक्ति थी। शांत स्वर में वह कहने लगा था, "रुखसाना, कैसी हो बेबी?"

"शफीक, माई गॉड। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है।" कूकी का गला भर आया था। उसका पूरा शरीर एर अद्भुत सी उत्तेजना में काँप रहा था।

"बेबी, तुमने मेल चेक किया? मेरा ई-मेल मिला?"

"तुमने ई-मेल किया था? मुझे तो अभी तक नहीं मिला। वैसे मैने कई दिनों से ई-मेल चेक नहीं किए हैं।"

"अच्छा, अभी चेक कर लेना। मैने उस ई-मेल में सब-कुछ लिख दिया है। रुखसाना, एक बात पूछूँ सही-सही बताओगी न?"

"पूछो।"

"बेबी, तुम मुझे अभी भी प्यार करती हो ना पहले की तरह?"

"हाँ।"

"मेरे बारे में कहीं तुम्हारी धारणा बदल तो नहीं गई?"

"नहीं।" कूकी ने कहा।

"बेबी, मैं तुमको बाहर से फोन कर रहा हूँ। मेरे फोन और ई-मेलों की जाँच होने की संभावना है। रुखसाना, मैं दो दिन के लिए पेरोल पर छूटकर आया हूँ। आई मिस यू, आई लव यू।" धीरे से शफीक ने रिसीवर पर चुंबन ले लिया। "बेबी, फोन रख रहा हूँ। बाकी तुम मेल में पढ़ लेना।"

कूकी कहीं सपना तो नहीं देख रही थी? या उसने वास्तव में अभी-अभी शफीक के साथ फोन पर बातचीत की। फिर से एक बार चारों तरफ चमेली के फूल खिलने लगे और उसका जीवन सुवासित होने लगा। उसके दिल के अंदर फिर से कोई कविता गाने लगा। प्रेम की कविता। ओह, सुनने में कितना मधुर और कितना स्पष्ट उच्चारण!

कूकी नहाने जाने से पहले कम्प्यूटर की तरफ दौड़ गई। इंटरनेट का कनेक्शन बार-बार कट रहा था। यह देखकर कूकी अधीर हो रही थी। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे ही इंटरनेट की खिड़की खुलेगी, वह शफीक को अपने सामने देख पाएगी और शफीक कूकी को देखते ही अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाते हुए कहेगा, "आओ, बेबी, आओ, मेरी बाँहों में समा जाओ।"

इंटरनेट कनेक्ट होने के बाद उसने देखा, वास्तव में एक ई-मेल उसके इनबॉक्स में पडा हुआ था। मगर उसको भेजने वाले का नाम था स्टीफेन। कौन है यह स्टीफेन? शफीक का तो कोई ई-मेल नहीं था। यह देखकर कूकी दुखी होने लगी। फिर शफीक का ई-मेल कहाँ चला गया? उसे डर लगने लगा। कहीं वह किसी दिक्कत में तो नहीं पड़ गया है?

स्टीफेन कौन हो सकता है? कहीं वह उसके साथ चेटिंग करना तो नहीं चाहता। कूकी ने कभी भी चेटिंग नहीं की थी। उसे इस तरह के आलतू-फालतू सम्बंध रखना पसंद नहीं था।वह इसलिए आज तक इन झूठे सम्बंधों को टालते आ रही थी। उसने अनिकेत को कई बार चेटिंग करते हुए देखा था। बड़ा बेटा अनिकेत के डर से घर मे चेटिंग न करके बाहर साइबर-केफे में जाकर चेटिंग करता था। कूकी ने कई बार उसको परोक्ष रुप से चेटिंग करने के लिए मना किया था।

कूकी पहले- पहल समझ नहीं पा रही थी कि ई-मेल को खोला जाए अथवा नहीं। फिर वह सोचने लगी ई-मेल खोल देने से भी उसका उत्तर देने के लिए वह बाध्य तो नहीं है। ई-मेल खोलने के बाद उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रही। उसमें शफीक वाले संबोधन का इस्तेमाल हुआ था। "माई स्वीट एंजिल रुखसाना।"

ऐसे छद्म नाम से उसने ई-मेल क्यों किया?या तो शायद वह अपने आपको पाकिस्तान के सैनिक प्रशासन के चुंगल से बचाने की कोशिश कर रहा हो या फिर वह यह सोच रहा होगा कि कहीं उसके कारण कूकी किसी दिक्कत में न फँस जाए।"

शफीक ने लिखा था "कैसे शुरु करुँ, समझ नहीं पा रहा हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे यहीं से हमारे सम्बंध के अंत की शुरुआत है। मैं अपने आपको भाग्यशाली मानूँगा जिस दिन तुम्हें पाने के सपने को असली रुप दे सकूँ।मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा। तब भी मुझे आज यह खतरा उठाना ही पड़ेगा क्योंकि अगर आज नहीं तो फिर मैं कभी भी तुम्हारे सामने खड़े होने का साहस जुटा नहीं पाऊँगा और यह भी नहीं कह पाऊँगा कि मेरी बदकिस्मती ने मेरे साथ एक खतरनाक खेल खेला है। फिलहाल मैं ज्यूडिशियरी कस्टडी में एक विचाराधीन कैदी हूँ। हालाँकि अभी तक मेरे खिलाफ कोई चार्ज फ्रेम नहीं किया जा सका है। मैं सोच रहा हूँ इसके खिलाफ मुझे सुप्रीम कोर्ट में रिट-पीटिशन दाखिल करनी चाहिए कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दोषी करार देना कानूनी जुर्म है। तुम जानती हो, रुखसाना, जब पूरा देश किसी एक व्यक्ति का दुश्मन बन जाता है तो उस व्यक्ति के पास अपने बचाव का कोई उपाय नहीं बचता है। काफका के "द ट्राइल" में "के" को देखो। मैं भी अपने आपको वह "के" मानता हूँ। एक राष्ट्र की क्या परिभाषा है? मेरा यह मानना है कि कभी भी एक राष्ट्र एक व्यक्ति से बढकर नहीं हो सकता है। व्यक्ति के मूड और मर्जी पर सारे राष्ट्र का परिचालन होता है। जो भी शासक है, आखिरकर वह एक व्यक्ति ही है ना? अमेरिका दुनिया का एक शक्तिशाली राष्ट्र होकर तो कुछ कर रहा है, क्या वह सब जार्ज बुश की मर्जी के अनुरुप नहीं हो रहा है? इसी तरह पाकिस्तान क्या मुशर्रफ की मर्जी का गुलाम नहीं है? क्या किसी एक व्यक्ति को किसी राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करना चाहिए? सारे दंगे-फसाद, सारी समस्याएँ असल में व्यक्ति-व्यक्ति के बीच की लडाई का ही परिणाम है। अभी मैं इस ज्यूडिशियरी कस्टडी में रहकर समझ पाया हूँ कि किस्मत भी कोई चीज होती है और कितना भी चाहने से बदकिस्मती को बदला नहीं जा सकता है।"

ई-मेल का यह अंश पढ़कर कूकी एक दम चुप होकर बैठ गई। और आगे की पंक्तियाँ पढ़ने की उसमें हिम्मत नहीं थी। नौकरानी घर का काम खत्म करके जाने का इंतजार कर रही थी। वह पूछने लगी "मैडम, आप तो नहाने जा रही थी?" कूकी ने उसके सवाल का कोई जवाब न देकर उसे वहाँ से चले जाने का ईशारा कर दिया और चुपचाप ऐसे ही बैठी रही।शफीक ने ई-मेल के नीचे अपनी कविता भेजी थी, मगर उसे पढ़ने की इच्छा नहीं हो रही थी। उसकी इच्छा हो रही थी कि वह उसी क्षण दौड़कर शफीक के पास चली जाए।

वह शफीक से कहती "आओ, शफीक, आओ। हम दोनों समुद्र के किसी टापू पर अपना घर बसाएँगे। जहाँ किसी तरह का कोई कानून नहीं होगा।"

कूकी के गाल के ऊपर से आँसू बह रहे थे? नहीं तो, इतनी भावुकता क्यों?

उससे आगे शफीक ने लिखा था, "फिलहाल मेरा परिवार सकुशल है। कुछ दिन पहले सारे परिजन बुरी तरह से परेशान हो गए थे। धीरे-धीरे कर यह सभी की आदत में शुमार हो गया है। मेरे वहाँ नहीं होने से उनके कार्य में कोई रुकावट पैदा नहीं हुई, पहले की भाँति तबस्सुम अपने डेटिंग में व्यस्त हो गई, मैं फिर भी उसका बहुत आभारी हूँ। इतना व्यस्त रहने के बाद भी मुझे रोजाना मिलने आती थी। उसीने मेरे लिए एक अच्छा वकील भी खोजा। रुखसाना, मेरा इंतजार करोगी? इंतजार करोगी केवल कुछ दिनों तक? उस दिन तक जिस दिन मुझे कानूनी दाँवपेचों से मुक्ति मिल जाएगी। तुम मेरी सब कुछ हो। मुझे छोड़कर कहीं चली मत जाना।

मेरे लिए खौफनाक है तुम्हें खोना
तुम्हारे बिना मेरा तन्हा रहना
जिंदा-लाश हूँ मैं केवल यह जानने के लिए
तकदीर ने मुझे अकेला क्यों छोडा?
एक खतरनाक दर्द झेलने के लिए
इधर बेशकीमती चीज खोने का गम
उधर एक टूटे दिल का गम
तुमने मेरे घावों पर मल्हम लगाया
मुझे अंबर में चमकीला तारा बनाया
अब तुम मुझे छोड़ना चाहती हो?
मेरा घायल दिल अभी भी इस बात की
गवाही देता है कि तुम यहाँ हो
तुम मुझे अपने दिल में दिखाई देती हो
फिर भी मैं तन्हाँ हूँ
किसे अपना गम बताऊँ?
मुझे मेरे प्यार की पहचान है
तुम्हें पता नहीं
तुम मेरी क्या लगती हो?
तुम मेरा प्यार हो,
तुम मेरी अंतरात्मा को छूती हो
अपने प्यार से मेरे गमों को दूर करती हो
तुम मुझे अपनी बाहों में ले लो
तुम्हारे प्यार की ठंडक की इस वक्त मुझे सख्त जरुरत है
तुम्हारे प्यार का अह्सास मेरी तन्हाई को दूर करता है
मैने तुम्हें दिल से प्यार किया
तकदीर ने तुम्हें मुझसे छीना
मगर अभी भी मेरे दिल में तुम्हारा प्यार जिंदा है
प्यार की ये कसमें, ये वादें कभी पुराने नहीं होते
खास प्यार जो तुमने मुझे दिया था
आज भी अपने दिल में सँभाल कर रखा हूँ
भले ही हम कभी मिले ही नहीं
मगर हमारा प्यार कभी घटा ही नहीं
जब मैं तन्हा होता हूँ
तुम्हारे प्यार की कमी मुझे खलने लगती है
तुम्हारा वही प्यार तुम्हें मेरा बनाता है
केवल मेरा
भले ही हम कभी मिले ही नहीं
हमारा प्यार कभी घटा ही नहीं।"

कविता पढ़ते-पढ़ते कूकी के गाल के ऊपर आँसुओं की धारा बहने लगी। वह आजीवन इंतजार करेगी शफीक के लिए उसके प्रेम के लिए, उसके बाल सफेद होने तक, उसकी त्वचा झूलने तक, आँखें कमजोर होने तक। वह शफीक का इंतजार करेगी।

सरोजिनी साहू कृत और दिनेश कुमार माली द्वारा हिन्दी में अनूदित उपन्यास "बंद कमरा" समाप्त