बंद कमरा / भाग 7 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

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"उसका साथ दो, अकेला मत छोड़ो। तुम यही चाहती हो ना बेबी, मगर किसका साथ दूँ? तबस्सुम का या तुम्हारा? बेबी, आइ कुड नॉट बिलीव देट यू हेव नॉट बीन किस्ड बाय योर हसबेंड सिन्स लास्ट फोर्टीन इयर्स ? वेरी सेड। तुम्हारे इस ई-मेल को पढ़कर मुझे बहुत दुख हुआ।"

शफीक ने जवाब दिया था, "मुझे पता नहीं था कि तुम्हारा पति एक नपुंसक आदमी है। उसने चौदह साल से तुम्हें चूमा तक नहीं।क्या यह सम्भव है? मैं तुम्हारे दुख को समझ सकता हूँ। अब तुम और दुखी मत होना, अब मैं तुम्हारे जीवन में आ गया हूँ। अब मैं तुम्हें वे सारे महान सुख दूँगा। रुखसाना,मुझे तुम्हारे लिए बहुत अफसोस हो रहा है। तुमने आज तक ये सब क्यों नहीं बताया? कम टू माई आर्म बेबी, आई वान्ट टू हग यू।"

शफीक ने अपने लम्बे-चौड़े ई-मेल में केवल शारीरिक प्रेम के बारे में लिखा था। उसका ई-मेल संभोग की विभिन्न किस्मों और कलाओं से भरा हुआ था। उसका दम घुट रहा था। कूकी संभोग की बातों को पढ़कर परेशान हो रही थी। अगर उसका मूड़ ठीक होता तो शायद वह उनका आनंद ले पाती। मगर शफीक ने अनिकेत को नपुंसक कहकर पहले ही उसका मूड़ ख़राब कर दिया था ।

धीरे-धीरे कूकी गुस्से से लाल-पीली हो रही थी। क्या वह आदमी अनिकेत से ईर्ष्या करता है? कूकी पहले से ही महसूस करती आ रही थी कि अनिकेत के विषय में उस आदमी की बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है। आज तक कभी भी उसने यह नहीं पूछा था कि अनिकेत क्या काम करता है? दिखने में कैसा है, गोरा है या काला? लम्बा है या ठिगना? यहाँ तक कि अगर कूकी अनिकेत के गुण-अवगुण तथा स्वभाव के बारे में शफीक को कभी लिखती भी थी, तो भी वह अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करता था, जैसे कि कूकी के जीवन में अनिकेत नाम का कोई व्यक्तित्व ही नहीं है। वह तो उसके बारे में ऐसा सोच रहा था मानो कूकी अभी भी अविवाहित लड़की है। कई दिन पुरानी जान पहचान होने के बावजूद शायद पहली बार उसने अनिकेत के बारे में लिखा था। वह भी अनिकेत का नाम लेकर नहीं, बल्कि 'माइ काउंटरपार्ट' के संबोधन से।


कूकी ने उस मेल को बार-बार पढ़ा और हर बार नपुंसक शब्द को पढ़ते समय रुक जाती थी। बहुत ही बेकार आदमी है। नहीं, अब उसे और शफीक के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहिए। उसने मेरे पति को नपुंसक बोलने की जुर्रत कैसे की? क्या सोचता है शफीक? क्या अनिकेत से शारीरिक सुख नहीं मिलने के कारण मैंने उसके साथ संबंध जोड़ा है? उस आदमी के जीवन में शारीरिक सुख के अलावा और कोई भी सुख मायने नहीं रखता है? भगवान ना जाने, किस मिट्टी से बना हुआ है वह?

कूकी के गुस्से ने शफीक से इस बारे में जवाब तलब करने के लिए उसको बाध्य कर दिया।

"हाऊ कुड यू डेअर टू कॉल माइ हसबेंड एज एन इम्पोटेंट ? कितनी नीच भावना वाले हो, शफीक, तुम? तुमने अनिकेत को नपुंसक कह दिया? क्या तुम्हें अनिकेत से ईर्ष्या होती है? अगर हाँ तो क्यों? तुम्हारे इस शब्द ने मेरा दिल तोड़ दिया है। मैं मानती हूँ कि एक गृहस्थ जीवन ऊबाऊ और रुचिहीन होता है। मैं यह भी मानती हूँ कि गृहस्थ जीवन गुलामी तथा नीरसता से भरा हुआ मात्र एक समझौता होता है। मगर गृहस्थ जीवन की डोर को एक बार ढीला करके देखो, तुम्हारा सारा अस्तित्व एक ही पल में मटियामेट हो जाएगा। एक ही पल में तुम अपने आपको पूरी तरह असुरक्षित अनुभव करोगे।

शफीक, क्या तुम्हारी नजरों में शरीर ही सब कुछ है? आत्मा जैसी कोई चीज नहीं है इस दुनिया में? क्या सौन्दर्य-बोध, रुचि-बोध जैसे शब्द निरर्थक है इस दुनिया में? तुम खुद एक कलाकार हो। मैं तुम्हें क्या समझाऊँ आंतरिक सौन्दर्य की बातें? भावना और भावुकता की बातें? प्रेम की बातें? क्या तुम्हारे अंदर कोई कलाकार नहीं है?

शफीक, अगर तुम मुझे प्यार करना चाहते हो तो तुम्हें मेरी सुंदरता के साथ-साथ मेरी कुरुपता को भी प्यार करना होगा। मेरा भूत, मेरा वर्तमान, मेरे सगे-संबंधी, मेरा देश, मेरी विचार-धारा सभी को तुम्हें प्यार करना होगा। क्या ये सब बातें तुम्हें मंजूर हैं?" उस ई-मेल में कूकी ने प्रेम की एक भी बात नहीं लिखी। क्रोध में आकर उसने उस ई-मेल को भेज दिया। उसको भेजने के बाद कूकी को थोड़ी राहत मिली। मगर अगले ही पल एक दुश्चिंता उसे सताने लगी। कहीं उसका ई-मेल पढ़कर शफीक ने अपने आपको अपमानित महसूस कर लिया तो वह और ई-मेल नहीं करेगा? इतने दिनों के बने-बनाए संबधों पर एक ही मिनट में पानी फिर जाएगा।

एक बार फिर उसके दिल में सूनापन छा गया। वह नहीं समझ पा रही थी आखिरकर वह चाहती क्या है? क्या आशाएँ लगाए बैठी है शफीक से? अगर शफीक कहता है, मैं अपनी परवर्टेड़ दुनिया में ठीक हूँ। मुझे मेरी देहवादी दुनिया ही अच्छी लगती है। तुम तुम्हारी दुनिया में मस्त रहो। मुझे बार-बार अपमानित करने का अधिकार तुम्हें किसने दिया? मेरे निरंकुश जीवन में अंकुश लगाने के लिए तुम्हें किसने कहा? तुम्हारा कोई हक नहीं बनता है मेरी दुनिया में दखल देने का। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और तुम अपनी दुनिया में अनिकेत के साथ खुश रहो। तुम्हारी दुनिया और मेरी दुनिया का कोई ताल-मेल नहीं।

अगर शफीक कहता "तुम जिसे प्रेम कहती हो उसका दुनिया में कोई अस्तित्व नहीं है। तुम अपने शरीर से इतनी नफरत क्यों करती हो? जबकि यह शरीर ही किसी सत्ता के होने का परिचायक है। अगर यह शरीर नहीं होता तो क्या दो दिलों में आकर्षण होता? अगर पंच भूतों से बना शरीर नहीं होता तो प्रेम किसके आधार पर टिकता?"

कूकी के ई-मेल करने के एक घण्टे के अन्दर शफीक का जवाब आ गया था। इतनी जल्दी वह उत्तर देगा, कूकी ने सोचा भी नहीं था। उसने इस बार सोच लिया था कि निश्चित तौर पर उसके उस ई-मेल के बाद शफीक उसके साथ और कोई संबंध नहीं रखेगा? वह तो कूकी के साथ जरा-सा सुख पाने के लिए जुड़ा हुआ था, ना कि बार-बार अपमानित होने के लिए।

शफीक ने अपने जवाब में लिखा था, "तुम मुझे गलत क्यों समझती हो? मैं अपने काउंटरपार्ट से ईर्ष्या करूँगा? जिसने मेरी अनमोल धरोहर को अपनी हिफाजत में सही सलामत रखा है। बल्कि मुझे तो उसका आभार व्यक्त करना चाहिए। रुखसाना, मैने ऐसी क्या गलती कर दी कि तुम मुझ पर गुस्सा हो रही हो? तुमने ही तो लिखा था कि चौदह साल से मेरे काऊन्टरपार्ट ने तुम्हारा एक बार भी चुम्बन नहीं लिया है। तुम्हें किस तरह समझाऊं कि मैं तुम्हारे बाहरी सौन्दर्य को ही नहीं वरन् आंतरिक सौन्दर्य को भी उतना ही प्यार करता हूँ।

हाँ, तुम्हारी यह बात सच है। मुझे मालूम नहीं है कि प्रेम क्या चीज होती है? मैं तो अभी तक शरीर ही भोग रहा था मगर तुमने मुझे प्रेम करना सिखलाया है। मैं अपने अनुभवों को किस तरह पेश करूँ? हम अभी तक मिले नहीं हैं, मगर हर समय इस बात का अह्सास रहता है कि तुम मेरे साथ हो। रुखसाना, तुम मेरी जिंदगी हो। तुमने मुझे जिंदगी जीना सिखाया है। तुमने मुझे वे सारी बातें सिखाई है,जिसकी मुझे जरुरत थी। यू हेव टॉट मी लव विदाऊट होÏल्डग बेक।

जाने-अनजाने में अगर मैने तुम्हें दुख पहुँचाया हो तो माफी चाहता हूँ। मुझे गलत मत समझना। एकसेप्ट यू आई हेव नो एक्जिटेंस। तुम्हें क्या पता, तुम्हारे बारे में मैं दिन भर कितने सपनें देखता हूँ? अगर अल्लाह ने चाहा तो किसी दिन हम दोनों का अस्तित्व एक हो जाएगा। एवरीटाइम आइ आस्क टू अल्लाह फॉर यू बेबी। मैं आजकल अपनी पैराथीसिस लिखने में व्यस्त हूँ, इसलिए ज्यादा और कुछ नहीं लिखूँगा। मुझे फिलहाल वक्त नहीं मिल पा रहा है उस महान पेंटिंग के लिए। केवल डेढ़ महीने की बात है। फिर मैं वापस मेरी सर्वश्रेष्ठ कृति के पास लौट आऊँगा। दिसम्बर के अंत तक मुझे मेरी पैराथेसिस का काम पूरा करना होगा तथा जनवरी के पहले हफ्ते में मैं उसे जमा करवा दूँगा। जानती हो, तुम्हें पाने के लिए मात्र यही रास्ता बचा है। गिव यॉर ब्लेसिंग्स माइ मदर सो देट आई कुड कम्पलीट माइ पैराथीसिस।

कूकी को ऐसा लग रहा था मानो एक भयंकर आंधी-तूफान उसके सिर के ऊपर से होते हुए गुजर गया हो। और अपने साथ उसकी छाती पर जमी हुई गंदगी को उड़ाकर ले गया हो । अंदर ही अंदर वह टूटा हुआ अनुभव कर रही थी। कूकी ने धीरे-धीरे अपने मन को शांत किया। इन्हीं कुछ दिनों में कूकी को यह समझ में आ गया था कि ईश्वर के सामने देश, धर्म, जाति का विभेद कोई मायने नहीं रखता। ठीक उसी तरह मानवीय संवेदनाओं के सामने भी देश, धर्म, जाति आदि तुच्छ तथा निहायत झूठे हैं।

शफीक को व्यर्थ में गाली देने के कारण कूकी का मन पश्चाताप से भर उठा। उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। इतनी जल्दी वह क्यों क्रोधित हो जाती है? जबकि शफीक उसको दिल से प्यार करता है, उसकी इज्जत करता है। इसमें शफीक की क्या गलती थी? अनजान आदमी भी अगर इस ई-मेल को पढ़ता तो शायद वह भी यही सोचता।कूकी किस तरह शफीक को अपने उबाऊ गृहस्थ जीवन की कैमिस्ट्री के बारे में समझाती ? उसका गृहस्थ जीवन तो बहुत पहले ही कोमा में चला गया था। क्या कूकी इस तरह लिखती?, जानते हो शफीक, मेरे जीवन में तुम्हारे आने से पहले प्रेम की भाषा भूल गई थी। प्रेम के स्वाद और उसकी खुशबू के बारे में भी भूल गई थी। मैं अपने लिए एक पल का समय नहीं दे पा रही थी, यहाँ तक कि न तो आधी रात में और न ही भोर में। अनिकेत की मर्दानगी मेरे लिए कुछ काम की नहीं थी। हमेशा हम साथ-साथ सोते थे, मगर हमारे बीच कोई संपर्क नहीं रहता था। मानो किसी ने मेरे ऊपर काला जादू कर दिया हो और देखते-देखते मेरे जिस्म की सारी उत्तेजना मेरे स्तन, मेरी योनि और मेरे होठों से छू मंतर हो गई थी।

क्या कूकी लिख देती, "शफीक, तुम्हें कैसे पता चला? हम बिस्तर में आठ-घंटे एक साथ सोते हैं, पूरे आठ घंटे। तुम्हें कैसे पता चला, हमारे यहाँ केवल जिस्मानी खेल होता है, वह होना चाहिए इसलिए होता है । तुम्हें कैसे पता चला कि हम में सजीदंगी नहीं है। हम केवल समय के स्रोत मे बहते जा रहे हैं?"

छिः! ये सब लिखने से शफीक क्या सोचेगा? अपनी खुद की कमजोरी तथा अवगुण दूसरों के सामने जाहिर करने से क्या फायदा? अनिकेत तो नपुंसक नहीं है। वह तो केवल शुचिता - प्रिय आदमी है। अनिकेत को कभी-कभी खराब लगता है, जब कूकी की साँसें उसके चेहरे पर लगती है। वह ढंग से सो नहीं पाता है। सारी रात छटपटाता रहता है। वह तो सीधा भी नहीं सोता है, पीठ मोड़कर दूसरी तरफ सो जाता है। कहीं अनिकेत को उसकी साँसों का स्पर्श न हो जाए यह सोचकर वह दोनों के बीच में एक तकिया रख देती है। जैसे ही उनके बीच संभोग की क्रिया मशीनवत पूरी हो जाती थी, वैसे ही तकिए की दीवार फिर से खड़ी हो जाती थी। एक चुंबन मे छुपे प्यार की अनुभूति और सिहरन के बदले अनिकेत को उसकी लार में छिपे असंख्य जीवाणु दिखाई देते थे।

घर में सभी अलग-अलग गिलास प्रयोग में लाते थे। कोई भी किसी के गिलास को छू तक नहीं सकता था। कोई किसी का गमछा उपयोग में नहीं लाता था। सबके लिए अलग-अलग साबुन की व्यवस्था थी। बाथरूम में और बेसिन के पास डिटॉल की बोतलें रखी हुई थी। शफीक को इतनी सारी बातें कैसे समझाती?

कूकी की वह दुनिया बहुत पीछे छूट गई जिस दुनिया में कूकी अपनी बहन के साथ एक ही थाली में खाना खाती थी। एक दूसरे का जूठन भी खा लेती थी। वे एक ही साबुन से नहाती थी। पास ही एक रस्सी पर एक या दो गमछे टँगे हुए रहते थे। कोई भी उसका इस्तेमाल कर सकता था।

अब कूकी की आदत भी बदल गई थी और उसका जीवन के प्रति दृष्टिकोण भी बदल गया था । साथ ही साथ उसकी विचारधारा भी बदल गई थी। वह नौकरी करना चाहती थी। मगर अनिकेत को यह पसंद नहीं था। उसके हिसाब से यदि कोई औरत बाहर दस आदमियों के साथ मिलकर नौकरी करती है तो उसके भीतर के कोमल भाव, स्वच्छ विचार और नरम स्वभाव में कमी आ जाती है।

घर के अंदर घुटकर कभी-कभी कूकी छटपटाने लगती थी। खासकर जब उसे अनिकेत के क्रोध का सामना करना पड़ता था। उसकी इच्छा घर छोड़कर भाग जाने की होती थी। वह नौकरी करके भले ही अलग रह जाएगी मगर इस घर में नहीं रहेगी। अपने कॉलेज के सभी मटमैले प्रमाण-पत्र बाहर निकाल कर देखती थी, उन पर हाथ घुमाते हुए सोचती थी कि ये सारे कागज इस जन्म में कुछ काम नहीं आए।

कभी-कभी वह सोचती थी कि नौकरी करने के लिए अब उम्र नहीं बची है। बेहतर यही होगा समय पास करने के लिए एक एन.जी.ओ खोला जाए। क्या अनिकेत उसे बरदाश्त कर पाएगा? कभी-कभी उसके मन में ख्याल आता था कि वह एक नर्सरी-स्कूल खोल दे। मन ही मन वह सारी योजनाएँ भी बना लेती थी, स्कूल कहाँ बनेगा? कैसा बनेगा? इत्यादि। मगर कुछ दिनों के बाद ये सारे ख्यालात अपने आप लुप्त हो जाते थे।

अनिकेत अपने परिवार को खूब प्यार करता था। वह अपने परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित था। उसे इधर-उधर घूमना भी पसंद नहीं था। अपना काम पूरा होने के बाद वह सीधे घर लौटता था। बच्चों को होम-वर्क देने के बाद स्नान करके वह पूजा करने लगता था। जल्दी घर वापिस आने के कारण नए अधिकारी उसे बहुत समय के बाद पहचान पाते थे।

कूकी यहाँ तक जानती थी कि जरुरत पड़ने पर अनिकेत अपने परिवार की खातिर जान भी दे सकता है। उसका दोस्त चावला मजाक करते हुए कहता था, "अरे, भाई! बच्चों और परिवार को इस तरह ढोते रहोगे तो एक न एक दिन नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।"

कूकी अनिकेत की नस- नस से वाकिफ थी। भले ही बाहर से वह घमंडी व रुखा दिखाई देता था, मगर वह यह बात अच्छी तरह जानती थी कि अनिकेत भीतर से उतना ही कमजोर व भावुक प्रकृति का आदमी है। वह सोचता था उसे कोई प्यार नहीं करता। न माँ-बाप, न भाई-बहिन, न बेटा-बेटी, न कोई सहकर्मी और न ही पास-पड़ोसी। यहाँ तक कि कूकी भी उसको प्यार नहीं करती।

अगर उसे शफीक की वह बात पता चल जाती तो शायद वह गुस्से से पागल हो जाता। चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगता, तुम मेरी पीठ में चाकू घोंप रही हो। मैं पागल हूँ। मुझे पता तक नहीं। मुझे लोग नपुंसक बोलने लगे हैं? ये गुप्त बातें तुम्हारे अलावा और कौन बता सकता है? मुझे आज तक पता नहीं था कि मेरे आस्तीन में एक साँप छुपा हुआ है। कोई भी कितनी भी शांत प्रवृति तथा स्वतंत्र विचार-धारा का हो, अगर कोई उसे नपुंसक कहकर गाली दे तो क्या वह सहन कर पाएगा? तुरंत ही उसका खून खौल उठेगा?

जब वह पूरी तरह शांत हो जाता तो पश्चाताप की आग में जलते हुए कहता, इसमें किसी का दोष नहीं है। मेरा ही दोष है। मेरी किस्मत ही फूटी है। बचपन से लेकर आज तक मैने केवल दुख ही दुख देखे हैं। बचपन में मेरे माँ-बाप हमेशा छोटे भाई की तरफदारी करते थे। उसको प्यार करते थे। उसीको पैसा देते थे। कभी-कभार जब सिनेमा देखने की इच्छा होती थी, मुझे केवल उतना ही पैसा मिलता था जिससे एक टिकट खरीदा जा सके। एक बार बड़ी दीदी के ससुराल गया था। शाम को बाहर बाजार में घूमते-घूमते एक हलवाई के यहाँ मिठाई खाने की इच्छा हुई। मगर पैसे कहाँ? माँ ने तो बस किराए से एक फूटी कौड़ी भी ज्यादा नहीं दी थी। शाम को जब दीदी के घर पहुंचा तो दीदी ने पूछा, "बाजार गए थे, कुछ मिठाई खाई?" मैने सीधे शब्दों में उत्तर दे दिया "मेरे पास पैसे कहाँ हैं जो मिठाई खाता। माँ तो हिसाब करके पैसे देती हैं।"

यह सुनकर दीदी को बहुत दुख लगा था और उसने अपने पर्स में से पाँच रुपए निकाल कर मेरी हथेली पर रख दिए और कहा, "जाओ, इन पैसों से अपने पसंद की मिठाई खा लेना।"

छोटा भाई रमू सबका चहेता था। मेरे लिए कभी कोई परेशान नहीं हुआ। मेरी कोई परवाह नहीं करता था। कब घर आया,कब घर से चला गया किसी को कोई लेना-देना नहीं था।

अनिकेत के मन में यह बात भी टीस रही थी कि दोनो बच्चें उसकी तुलना में कूकी को ज्यादा प्यार करते थे जबकि वह बच्चों को कूकी की तुलना में ज्यादा समय देता था। अधिकांश समय तो कूकी बीमार रहती थी, इसलिए बच्चों की देखभाल से लेकर स्कूल की पढ़ाई तक सारा भार उसके कंधों पर था।

प्रतिस्पर्धा के इस जमाने में जहाँ लोग एक दूसरे से आगे निकलने के लिए भागदौड़ में व्यस्त रहते थे, वहाँ अनिकेत बच्चों का जीवन सँवारने के लिए उनका साथ देता था। मगर कूकी को इन चीजों से कोई लेना-देना नहीं था। बच्चों की हर शरारत को वह सहन करता था। मगर बच्चे फिर भी कूकी को ज्यादा प्यार करते थे। कभी-कभी उसके मन का दुख जुबान पर आ जाता था और वह बच्चों को डाँटने लगता था, "अभी तक तुम लोग बाप के महत्व को नहीं समझते हो। उसके प्यार को महसूस नहीं कर पाते हो। जब मैं मर जाऊँगा तब तुम लोगों को पता चलेगा, तुम्हारा बाप कैसा आदमी था?"

तब कूकी उसको समझाने का प्रयास करती थी, "छोटे बच्चों के साथ ऐसी उखड़ी-उखड़ी बातें क्यों करते हो? उनकी उम्र ही क्या है? कितनी समझ है उनमें? तुम व्यर्थ में उनकी छोटी-छोटी बातों को पकड़कर बैठ जाते हो, प्यार कोई दिखाने की चीज है, जो वे ढिंढोरा पीटेंगे?"

अनिकेत कहता था, "मैं अच्छी तरह जानता हूँ बच्चें तुम पर गए हैं।"

उसका यह तर्क सुनकर कूकी चिढ़ जाती थी। वह कहने लगती थी, "बच्चे माँ को प्यार करते हैं इसमें बड़ी बात क्या हो गई? क्या बच्चों का अपनी माँ से प्यार करना उचित नहीं है? दुनिया का हर बच्चा सबसे पहले अपनी माँ को प्यार करता है फिर दूसरे लोगों को।" बच्चें भी अनिकेत के संदेह को दूर करने का प्रयास करते थे मगर अनिकेत कहाँ समझता था, उल्टा उनको गाली देना शुरु कर देता था।

कूकी भी अनिकेत को समझाती थी, "तुम्हारा यह क्रोध ही तुम्हें अपने बच्चों से दूर ले जा रहा है। सब तो कूकी नहीं हैं जो तुम्हें समझ पाएँगे।"

अनिकेत लंबी साँस लेते हुए कहने लगता था, "किसी-किसी की तकदीर ही खराब होती है।" कहते-कहते अनिकेत अपनी अंगुलियों के नाखून दाँत से काटने लगता था। उसको नाखून काटता देख कूकी को गुस्सा आने लगता था।

"व्यर्थ में क्यों अपनी किस्मत को कोस रहे हो? क्यों जान बुझकर अपने दुर्भाग्य को न्यौता दे रहे हो? क्या तुम्हें मालूम नहीं है दाँतों से नाखून काटना बहुत बुरी आदत है। इतना क्या सोच रहे हो? किस बात की इतनी चिंता करते हो?"

अन्यमनस्क होकर अनिकेत कहने लगता था, "इस बार मुखर्जी दादा और दास ने न्यूयार्क और शिकागो जाने की बाजी मार ली हैं। साले, चमचे लोग चमचागिरी करके तीन-चार बार फायदा उठा लिए हैं। इस बार तो सपरिवार विदेश गए हैं।"

अनिकेत को उसकी कंपनी ने सिर्फ एक ही बार अमेरिका भेजा था, वह भी बहुत पापड़ बेलने के बाद। उसे हमेशा यह डर सताए रहता था कि उसकी जगह कोई दूसरा आदमी न चला जाए। उस समय अनिकेत की नजरों में विदेश यात्रा की इतनी अहमियत थी कि उसने मन ही मन यह संकल्प लिया था कि अगर उसे विदेश यात्रा का अवसर मिला तो वह जगन्नाथ पुरी में भीख माँगकर भगवान को प्रसाद चढ़ाएगा। और वास्तव में विदेश यात्रा से लौटकर अनिकेत ने जगन्नाथ पुरी में भगवान को भीख मांगकर प्रसाद चढ़ाया था।

इस बार पता नहीं अनिकेत के मन में क्या आया, उसने छह महीने पहले ही कूकी और बच्चों का पासपोर्ट बनवा दिया था। वह कहता था, हर साल कंपनी अपने अधिकारियों को विदेश भेज रही है। अगर कभी मौका मिला तो हम लोग भी विदेश-यात्रा कर लेंगे।

कूकी ने कभी भी अपना पासपोर्ट बनवाने के लिए इतनी उत्सुकता जाहिर नहीं की थी। उसके लिए विदेश यात्रा कोई मायने नहीं रखती थी। लेकिन उसे इस बात की कहाँ जानकारी थी, एक दिन उसके जीवन में कोई आएगा और उससे कहेगा "मैं तुम्हें पैरिस ले जाऊँगा। वहाँ हम लॉवरे में घूमेंगे। सभी के सामने मैं तुम्हारा किस करते हुए हुए कहूँगा, "मीट माइ वाईफ"।"