बचपन / अवधेश श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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पूरी सत्कार कालोनी में मरघट जैसा सन्नाटा छाया था। आज खन्ना साहब के खाली प्लॉट पर किसी तरह का शोर नहीं था। कल तक तो इस प्लॉट पर हर समय कालोनी के बच्चों की धमाचौकड़ी मची रहती थी। बच्चों के मां-बाप लाख समझाते, डांटते-डपटते, यहां तक कि पीटते भी, पर बच्चे यहां आना न छोड़ते। किसी न किसी बहाने इस प्लॉट पर पहुंच जाते। वे प्रतिदिन इस प्लॉट पर इस तरह पहुंचते मानो उनके लिए यह मंदिर-मस्जिरद-गुरुद्वारा हो।

वैसे भी इस कालोनी में हर समय कर्फ्यू जैसी स्थिति तब से ज्यादा रहने लगी, जब से फ्री गंज रोड के रास्ते पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से एप्रोच करके कालोनीवासियों ने एक गेट लगवाकर चौकीदार तैनात कर दिया। यूं तो कालोनीवासियों ने एक कमेटी का भी गठन किया है, पर उनकी मीटिंग भी दो-तीन महीनों में एक-दो बार किन्हीं समस्याओं को लेकर ही होती। हां, होली, दीपावली, नववर्ष पर खन्ना साहब के खाली प्लॉट पर कनातें व टेंट लगाकर भव्य कार्यक्रम जरूर होते। कालोनी-भर के पुरुष-महिलाएं, युवा-बच्चे एकत्रित होते। नाच-गाना व खाने-पीने के कार्यक्रम होते। कालोनी की हल्की-फुल्की समस्याओं पर गंभीरता से चर्चा होती। कमेटी के आगामी चुनावों पर भी कूटनीति की बातें होतीं। और अंत में भाव-भीनी मुस्कराहटों के साथ एक-दूसरे से समय निकालकर घर पर आने के रस्मी वायदे करके गुडनाइट किए जाते।

कालोनी कमेटी की बैठक में खन्ना साहब के इस खाली प्लॉट का जिक्र जरूर आता। हालांकि कालोनी में सिर्फ इस प्लॉट पर मकान न होने से यही बच्चों के लिए एकमात्र खेल का मैदान भी है। उसमें बड़े भी उनके साथ खेल का आनंद ले लेते। पर इस प्लॉट पर दूर-दराज से गधे भी आकर लोट लगाते। सुअरों का झुंड भी चहलकदमी करता। सांडों की अलमस्त टोली भी अपना खौफ दिखाते हुए आती। खन्ना साहब ने खुद तो एक कोठी सहयोग कालोनी में बना ली थी। इस प्लॉट का सौदा वहीं बैठकर करते रहते।

कालोनी के कई लोगों ने प्लॉट खरीदने की हिम्मत जुटाई थी। आखिरी बोली पंद्रह लाख रुपये तक लगा भी दी थी। पर खन्ना साहब के द्वारा यह कहने पर कि राशि तो कम है, कालोनी के निवासी लोमड़ी के लिए अंगूर खट्टे हैं की तरह प्लॉट लेने की बात छोड्घ्कर यह कहते कि यह प्लॉट कालोनी की खूबसूरती में एक बदनुमा दाग है। अब इस प्लॉट पर टीन के चादर का व्यापार करने वाले अग्रवाल साहब ने एक बाड़ा बनाकर टीन की चादरें रख दी थीं। गर्ग साहब की दुकान के बाहर रखी गेहूं निकालने की मशीनें जब थानेवाले श्अतिक्रमण हटाओ अभियान’ के तहत उठा ले गए, तो पुलिस की जेब गर्म करके उन्हें भी लाकर इस प्लॉट पर रखवा दिया।

इस प्लॉट का सबसे अच्छा उपयोग कालोनी के किशोरों ने किया। प्लॉट के समीप ही रहने वाले चौधरी वकील साहब के साथ मिलकर बच्चों ने कारसेवा की और मशीनों को खींच-खांचकर एक तरफ किनारे से लगा दियाय टीन की फैली चादर को एक साइड में लगाया और मैदान में तितर-बितर फैली घास को साफ करके खेलने का मैदान बना लिया। सुबह-शाम और छुट्घ्टियों में दोपहर में भी बच्चों का हुजूम यहां एकत्रित हो जाता। बच्चों ने वकील चौधरी साहब से दो सौ रुपये मांगे तथा खुद भी चंदा एकत्रित कर क्रिकेट का सामान खरीदा। कालोनी कमेटी को चंदा देने में हमेशा तुनकमिजाजी दिखाने वाले वकील साहब ने बच्चों को सहर्ष चंदा दिया।

‘‘अंकल, आज सोनकर अंकल से कहकर हमारा क्रिकेट का सामान उनके बरामदे में बनी कोठरी में रखवा दें।’’ बच्चों ने वकील साहब से अनुरोध किया- ‘‘उनकी कोठरी खाली ही रहती है।’’

‘‘अरे, मेरा तो पूरा घर खाली रहता है!’’ वकील साहब ने बच्चों को सुनाया।

‘‘आप तो अक्सर बाहर ही रहते हैं।’’ बच्चों ने अबोध आवाज बिखेरी, ‘‘सोनकर अंकल तो ऑफिस भी कम ही जाते हैं।‘‘

वकील साहब ने बरामदे में टहलते सोनकर साहब को कड़क स्वर में बुलाया।

सहमे-से सोनकर साहब ने वकील साहब की तरफ कदम बढ़ाए।

‘‘सोनकर साहब, अपनी खाली कोठरी में बच्चों को क्रिकेट का सामान रख लेने दो।’’ वकील साहब ने संयत स्वर में कहा- ‘‘बच्चों को प्यार करोगे, तो ईश्वर तुम्हें भी औलाद देगा।’’

‘‘अरे, क्यों नहीं! कालोनी के सारे बच्चे मेरे ही बच्चे हैं।’’ सोनकर साहब को वकील साहब का एक-एक वाक्य तीर की तरह चुभा। पर उन्होंने मुस्कराहट ओढ़ी- ‘‘इनका प्यार-दुलार तो मेरे जीवन की आस है।’’

सोनकर साहब की कोठरी पर बच्चों ने अपना अधिकार जमा लिया। बच्चे दिन-भर क्रिकेट खेलते और कालोनी के खामोश वातावरण में उल्लास भर देते। बच्चों के साथ किशोर भी शामिल होने लगे। कभी क्रिकेट, कभी बेडमिंटन खेलते तो कभी गप-शप ही करते। हालांकि बच्चों और किशोरों के इस कृत्य से कालोनीवासी खुश नहीं थे। कभी किसी के घर से नौकर बुलाने आ जाता, तो कभी किसी की मां ही आ धमकती।

‘‘क्यों दिन-भर खेल-खेलकर अपना समय बरबाद करते हो?’’ अपने बच्चों को हाथ पकड़कर ले जाती।

‘‘अभी तो होमवर्क पूरा करके आए हैं!’’ बच्चे भी चालू भाषा बोलते, ‘‘अपनी चाल तो पूरी कर लें।’’

पता नहीं चला, कब इस प्लॉट के पीछेवाले हिस्से में मशीनों की ओट में एक कुतिया ने छह पिल्लों को जन्म दे दिया। खेलते बच्चों ने कूं-कूं की आवाज सुनी तो झांककर देखा। अपने बच्चों को समेटे कुतिया गुर्राई। बच्चे सकपकाकर पीछे हट गए।

बच्चों ने खेल रोककर घरों की तरफ दौड़ लगाई। कोई बोरी लाया, तो दूसरा कोकाकोला की खाली बोतल में दूध ले आया। विकल्प अपने घर से कटोरा उठाया लाया। सहमे बच्चों ने दूध कटोरे में डालकर थोड़े फासले पर रख दिया और बोरी कुतिया की ओर फेंक दी।

बच्चों को संशय से भरी नजरों से देख रही कुतिया उठी। उसने दूध तो लपलपाकर पी लिया और बोरी को मुंह में दबाकर अपने पिल्लों के पास जाकर बैठ गई।

बच्चों ने खेलने का कार्यक्रम कुछ दिनों के लिए स्थगित कर कुतिया और उसके बच्चों पर ध्यान केंद्रित कर दिया। पिल्लों की आँखें खुल गईं। बच्चों और पिल्लों के बीच स्नेह का सूत्र बंध गया। कुतिया भी मूक सहमति के साथ बच्चों और पिल्लों के खेल देखती रहती। एक दिन आसमान पर बादल गहराते देखकर बच्चे सहम गए। बच्चों ने वकील अंकल को समस्या बताई। उन्होंने एक बहुत बड़ी पोलीथिन दी तथा स्वयं आकर वहां रखी मशीनों की सहायता से एक छत बना दी।

बच्चों ने राहत की सांस ली।

पानी तो ज्यादा बरसा नहीं, पर बच्चों की आँखें रात-भर नम रहीं। सुबह होते ही बच्चे एक-एक करके प्लॉट पर एकत्रित हो गए। पोलीथिन के बनाए घर में झांककर देखा तो सकते में आ गए-तीन पिल्लों को कोई चुरा ले गया था। कुतिया भी गमगीन निगाहों से उनकी ओर ताकती मानो पूछ रही थी-उसके तीन बच्चे कहां गए?

बच्चों ने तुरंत जाकर वकील अंकल को बताया। वकील अंकल प्लॉट पर आ गए। उन्होंने कुतिया की तरफ एक नजर डाली और उसके तीनों बच्चों को प्यार से उठाया। बोले, ‘‘बच्चो, तुम्हारे पास रानी और तीन राजकुमार तो हैं। अरे, वो तो राजकुमारियाँ थीं। उन्हें कोई भगाकर ले गया।‘‘

बच्चों को सब्र नहीं हुआ। सत्कार कालोनी में लगे आश्रम में पिल्लों को खोजने पहुंच गए। वहां के बच्चों ने झिड़का भी- ‘‘हम तुम्हारे पिल्ले क्यों चुराएंगे?’’

बच्चों ने रानी और तीनों राजकुमारों की चौकसी शुरू कर दी। बच्चे अपने घरों से बिस्कुट, फल, ब्रेड, दूध चुरा-चुराकर लाते और बड़े चाव से राजकुमारों को खिलाते। रानी दिन-भर आवारगी करने निकल जाती, बच्चे राजकुमारों को खिलाते रहते।

रानी के राजकुमारों में अब स्फूर्ति आ चुकी थी। पूरे फट पर धमाचौकड़ी मचाते रहते। बच्चों के पीछे-पीछे वे पूरी कालोनी में डोल आते।

अचानक एक दिन तेज रफ्तार से आ रहे युवक के स्कूटर ने एक पिल्ले को टक्कर मार दी। एक बच्चे ने दौड़कर उसे उठाया और औरों ने घेरकर स्कूटर सवार को रोक लिया। किशोरों ने उस युवक की ठुकाई कर दी।

‘‘एक कुत्ते के बच्चे को लेकर मुझे मारा है!’’ युवक ने स्कूटर में किक लगाई- ‘‘तुम सबको भुगत लूंगा!’’

कालोनी के युवकों ने फिर उसे पीटना शुरू कर दिया। इसी बीच रेलवे रोड पर स्थित देवी मंदिरवाले पंडितजी आ गए। उन्होंने बीच-बचाव किया- ‘‘जानवर में भी जीव होता है। मामला रफा-दफा करो।’’

पिटा हुआ युवक खिसियाई मुद्रा में कुछ दूर स्कूटर को पैदल ही लेकर चला, फिर उसे स्टार्ट कर तेज रफ्तार से भगा दिया।

विकल्प अपने घर से आयोडेक्स लेकर आया। उसने पिल्ले की टांगों पर मली और अपने घर से दूध लाकर उसे पिलाया। थोड़ी देर में वह सामान्य स्थिति में आकर फुदकने लगा।

कालोनी के बच्चों के साथ रानी और उसके तीन राजकुमारों के प्रेमालाप से कालोनीवासी चिंतित हो गए।

आनन-फानन में कालोनी के प्रधान सिरोही साहब की कोठी में मीटिंग रखी गई। मीटिंग में सबसे पहले खन्ना साहब की थुक्का-फजीहत उन लोगों ने की, जिनकी उनके प्लॉट पर निगाहें थीं।

‘‘यह तो कोई गंभीर मसला नहीं है। बच्चों को बच्चों से प्यार होता ही है। कुत्ता तो वफादार जानवर होता है। बच्चों ने कोई सांप के बच्चों से तो दोस्ती नहीं कर ली है।’’ सिरोही साहब ने कहा, ‘‘मैं तो समझ रहा था कि कालोनी में कोई बदमाश आ गया है, जिसके हाथ-पैर तोड़कर उसे धक्का दूं।’’

‘‘मामला गंभीर है। बच्चों को यह समय अपने कैरियर बनाने में लगाना चाहिए न कि कुत्तों के बच्चों के साथ बरबाद करने में!’’ माथुर साहब के माथे पर चिंता की सिलवटें बनीं- ‘‘लॉकल बॉडी को रिपोर्ट की जाए। वह अपनी ट्राली भेजें और इस बवाल को कहीं दूर छुड़वा दें!’’

‘‘यह काम तब किया जाए, जब बच्चे स्कूल जा चुके हों!’’ शुक्लाजी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की- ‘‘आजकल के बच्चों से ज्यादा छेड़छाड़ करना ठीक नहीं है।’’

‘‘जीवों पर दया करना हमारा धर्म है। ऐसा अन्याय और पाप न किया जाए!’’ रेलवेवाले मंदिर के पंडितजी ने प्रवचन दिया- ‘‘पिल्ले आत्मनिर्भर होकर स्वतरू ईश्वर की कृपा से विचरण कर जाएंगे। यह कोई ऐसी चिंता का विषय नहीं है।’’

‘‘परीक्षा सर पर खड़ी, है। बच्चों के लिए घर तो होटल हो गए हैं। वहां वे सिर्फ खाते-पीते और सोते हैं।’’ तिवारीजी ने हाथ हिलाकर कहा, ‘‘प्लॉट पर बच्चे दिन-भर मेला लगाए रहते हैं।’’

‘‘हां, हां, यह बात सच है।’’ सोनकर साहब ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘पर बच्चों के प्यार-भरे दिल को एकदम तोड़ना ठीक नहीं होगा।’’

‘‘यह आग तो सोनकर साहब की लगाई हुई है!’ ‘‘ार्माजी ने व्यंग्य कसा- ‘‘पहले तो बच्चों को सामान रखकर क्रिकेट के लिए उकसाया, अब जानवरों से प्रेमालाप कराया।’’

’ ‘‘शर्माजी, आप तो मेरे प्रमोशन से जल रहे हैं!’’ सोनकर साहब की आवाज तीखी हुई- ‘‘मैंने तो सब कुछ वकील साहब की वजह से किया।’’

मीटिंग में इस बात पर भी अफसोस प्रकट किया गया कि एक से एक अच्छे विदेशी नस्लों के कुत्तों के होने के बावजूद बच्चों ने इन सड़ियल देशी कुत्तों से दोस्ती गांठी।

पूर्व मीटिंग की तरह यह मीटिंग भी बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हो गई। मीटिंग का पूरा ब्योरा स्वयं सिरोही साहब के बेटे धीरज ने सब बच्चों को दे दिया।

बच्चों ने अपने-अपने घरों में अपनी-अपनी मम्मी से विरोध प्रकट किया। कालोनी में तनावपूर्ण शांति व्याप्त हो गई।

पर तीनों पिल्ले कालोनी के हर व्यक्ति के पीछे-पीछे लग जाते। पूरी कालोनी को वे अपनी जागीर समझते। बाहरी व्यक्ति का भूंक-भूंककर प्रतिवाद करते-इस बात से बेखबर कि कालोनी के कितने लोग उनसे जलते-भुनते हैं। कालोनी के बच्चों के चेहरों पर खामोशी छाने लगी। उनकी बेचौनी और उदासी देखकर उनकी माताएं चिंतित हुईं। ‘‘आज कुछ ज्यादा दूध बच गया है। तुम रानी और उसके राजकुमारों को पिला आओ।’’ निर्दोष की मां ने उसे प्यार से पुकारा, ‘‘अब तो तुमने फल भी चुराना बंद कर दिया!’’

‘‘वे अपनी मां का दूध पीते हैं।’’ निर्दोष ने तोतली जुबान में कहा, ‘‘आज तो कह रही हो कि दूध पिला आओ। कितनी बार इसी दूध को लेकर तुमने मुझे पीटा है!’’

निर्दोष की मां उसके अबोध चेहरे को निहारती रह गई थी।

आखिर निर्णय का दिन भी आ गया। माधुर साहब ने सिटी बोर्ड के एक्लीक्यूटिव ऑफिसर से अच्छे संबंधों के कारण तय कर लिया कि रात नौ बजे ट्राली आ जाएगी और सफाईकर्मी इस कुतिया और उसके पिल्लों को कहीं दूर छोडू आएंगे।

एक्वीक्यूटिव ऑफिसर के बेटे मुनीश ने कालोनी के लड़के विवेक को फोन पर बता दिया कि ट्राली द्वारा रानी और राजकुमारों को देशनिकाला दिया जाएगा! बच्चों के परिवारवालों ने योजना के तहत उनसे जल्दी सो जाने को कहा।

पर उनकी नींद उड़ चुकी थी। उनके अंदर आक्रोश पनप रहा था, पर वे विरोध करने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। बच्चे एक-एक करके प्लॉट पर एकत्रित हो गए।

निर्दोष के न सोने पर उसकी मां ने उसका चेहरा अपनी तरफ करते हुए बालों पर हाथ फेरा, ‘‘सो जाओ, निर्दोष।’’

‘‘मम्मी, प्लॉट पर चलो! एक बार राजकुमारों और रानी को देखूंगा।’’ निर्दोष को उसकी मम्मी ने बाहों में भर लिया। उसे लेकर वह छज्जे पर आ गई।

रेलवे रोड की तरफ से सिटी बोर्ड की ट्राली धड़धड़ाती हुई आई और प्लॉट के सामने खड़ी हो गई। कालोनी के लोग भी वहां आ गए।

‘‘अंकल, हम लोग प्लॉट पर कभी नहीं आएंगे। अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान भी देंगे।’’ दंभी बालक अभय के चेहरे पर प्रार्थना दिखाई दी- ‘‘आप लोग इन्हें कालोनी से न निकालिए।’’

सभी बच्चों ने नम आखों से हाथ जोड़ लिए।

इस बीच बोर्ड के कर्मचारियों ने तेजी से तीनों पिल्लों को उठा लिया। कुतिया भी पिल्लों के पीछे-पीछे हो ली। बच्चों के खाली बिस्तर देखकर कुछ महिलाएं भी घर से निकलकर प्लॉट पर आ गई थीं। महिलाओं को देखकर निर्दोष की मम्मी भी निर्दोष को लेकर उतर आई।

बच्चे एक कतार बनाकर ट्राली के सामने खड़े हो गए थे।

अचानक गश्ती पुलिस की जीप भी वहां आकर खड़ी हो गई थी- ‘‘क्या माजरा है?’’ कोतवाल ने जीप पर बैठे-बैठे ही रौबदार आवाज से पूछा- ‘‘पूरी कालोनी इतनी रात गए सड़क पर क्यों है?’’

सभी लोग सहम गए। एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे।

‘‘कोई खास बात नहीँ है।’’ माथुर साहब ने आगे बढ्घ्कर कोतवाल से हाथ मिलाया- ‘‘कालोनी से आवारा कुत्तों को निकालने के लिए बोर्ड से ट्राली मंगवाई है।’’

‘‘अच्छा! अच्छा! कुत्तों की विदाई-समारोह करके घरों में जाइए!’’ कोतवाल के चालक ने जीप स्टार्ट कर दी थी। भीड़ धीरे-धीरे रेलवे रोड के गेट की तरफ बढ़ी।

ट्राली निकलने के बाद चौकीदार ने फुर्ती से गेट बंद कर दिया था। ट्राली में बैठी बच्चों की रानी व राजकुमार टुकुर-टुकुर बच्चों को देख रहे थे। बच्चे भी फाटक की सलाखों से ट्राली को तब तक निहारते रहे, जब तक वह आखों से ओझल नहीं हो गई।

निर्दोष के टाटा करते हाथ को उसकी मम्मी ने धीरे-धीरे नीचे किया था।