बाबर की ममता / द्वितीय दृश्य / देवेंद्रनाथ शर्मा
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[स्थान : पूर्वोक्तक]
[बाबर कमजोर और सुस्त एक पलंग पर पड़ा है। कभी-कभी दर्द से कराह उठता है पर चेहरे पर से अफसोस के बदले खुशी जाहिर हो रही है जैसे इस बीमारी की उसे कोई चिन्ता न हो। पलंग के एक बगल में एक तिपाई पर हकीम और दूसरी पर अबू बका बैठे हैं। दूसरे बगल में माहम और हुमायूँ चिन्तित भाव से चुपचाप खड़े हैं।]
अबू बका: जहाँपनाह की तबीयत कैसी है?
बाबर: [धीमी आवाज में] तबीयत? अब तो कूच की तैयारी है। जितनी देर तक साँस चल रही है, वही बहुत है। पसलियों में बेहद दर्द है, साँस नहीं ली जाती। अल्लाचहताला बुला रहा है।
अबू बका: आलमपनाह ऐसा न फरमाएँ।
बाबर: हमारे कहने या न कहने से क्या होता है? खैर, मौलाना! आपका हम पर बहुत बड़ा एहसान है। [जोर से साँस लेता है] हमारी जिन्दसगी के सबसे बड़े इम्तिहाँ में आपने हमारी मदद की है। उसके लिए हम आपके शुक्रगुजार हैं। अगर आप की कोई ख्वादहिश हो तो उसे पूरा कर हमको खुशी होगी। [साँस लेता है।]
अबू बका: [दुख भरी आवाज में] जहाँपनाह की सेहत से बढ़कर अबू बका की कोई दूसरी ख्वा हिश नहीं है। अल्लालह मेरी ख्वारहिश पूरी करे।
बाबर: हम आपके दिल की परेशानी और रंज समझ रहे हैं। आप ने उस रोज जो कुछ कहा उसके लिए आपको अफसोस है। लेकिन सोचिए तो कि हुमायूँ की जिन्द गी के लिए क्याक हम खुद वही तरीका अख्तियार नहीं करते जो आपने बताया? खुदा की इबादत के अलावा और चारा ही क्याव था। [साँस लेकर] हाँ, आपके कहने पर हमें उस पर और भी ज्यारदा भरोसा हुआ। [खाँसता है।]
हकीम: आलमपनाह अभी आराम करें।
बाबर: आराम? हकीम साहब! हमने जिन्दंगी में कभी आराम किया है? आराम करते हैं बुजदिल, कमजोर और वे जिनमें कुछ करने का मद्दा नहीं होता। आखिरी वक्ति में चुप रहने से और भी दम घुटने लगेगा। अब कितनी देर जीना ही है। [खाँसता है] मौत के पहले ही उसका समाँ बँधने देना हमें गवारा नहीं। हमें हँसते-बोलते मरने दीजिए।
अबू बका: जहाँपनाह ऐसी बदसगुन बात न कहें।
बाबर: यह बात बदसगुन हो या खुशसगुन, लेकिन है सच्चीत। इसे आप भी जानते हैं। हम पूरी खुशी से जा रहे हैं।
माहम: जहाँपनाह बार-बार यह क्याह दुहरा रहे हैं?
बाबर: मलका! सचाई का सामना हिम्मसत से करना चाहिए। जो बात आगे होने वाली है उसे पहले से जान रखना हमेशा अच्छाप होता है। सचाई जानते हुए भी अपने को धोखे में रखने से बढ़कर और क्यार बेवकूफी होगी? [हुमायूँ की ओर देखकर] बेटा! वक्तब करीब आ रहा है। कहीं भूल न जाएँ। मियाँ अबू बका को पन्द्रवह गाँव लाखिराज पुश्त -दर-पुश्त के लिए बख्श दो। [खाँसता है।]
अबू बका: जहाँपनाह माफी फरमाएँ। ताबेदार को कुछ न चाहिए। जहाँपनाह का दिया ऐसे ही कुछ कम नहीं है।
बाबर: [अनसुनी कर गम्भीीर स्वबर में] बेटा! हम अपने हुक्मब को तुरन्तू तामील देखना चाहते हैं। हुक्महनामे पर हमारा दस्तमखत करा लो।
हुमायूँ: अब्बाा जान का हुक्म तामील होता है।
[हुमायूँ दूसरे कमरे में जाता है। एक कागज पर कुछ लिखकर तुरन्त आता है। बाबर उस पर दस्तहखत कर देता है। हुक्मैनामा अबू बका के हाथ में दे दिया जाता है। अबू बका उदासी से उठकर सलाम करता है, फिर बैठ जाता है।]
बाबर: आज हमें एक ही बात का अफसोस है। जिसकी सारी उम्र लड़ाई के मैदान में कटी उसकी मौत बिस्तकर पर हो रही है। [खाँसता है] हम लड़ते-लड़ते मरने के ख्वाकहिशमंद थे। खुशकिस्मतती से एक ऐसे मुल्कक में पहुँच भी गए थे जहाँ बहादुरों की कमी नहीं थी — लेकिन वह अरमान... [खाँसता है।]
हकीम: आलमपनाह को बोलने में तकलीफ हो रही है। मैं फिर अर्ज करूँगा कि थोड़ी देर आराम किया जाए।
बाबर: आराम के लिए न घबराइए, हकीम साहब! हम कभी खत्मड न होने वाले आराम की नींद सोने जा रहे हैं। अब आखिरी वक्ति में तमाम जिन्दहगी की तस्वीहर एक-एक कर आँखों के सामने गुजर रही है। [खाँसता है] हिन्दुतस्ताीन बड़ा बुलन्दक मुल्कआ है। यहाँ के राजपूतों के लिए हमारे दिल में बड़ी इज्जतत है। वे दरसअल दिलेर और बहादुर हैं। मरना या मारना किसी को इनसे सीखना चाहिए। [हिचकी आती है।]
हकीम: लेकिन जहाँपनाह के सामने तो हमेशा हारते ही रहे।
बाबर: आप नहीं जानते। हार-जीत दूसरी चीज है और बहादुरी दूसरी। हार-जीत पर किसी दूसरे का अख्तियार है, बहादुरी पर अपना। हम भी तो बार-बार हारते रहे हैं तो क्याि हम अपने को बहादुर न समझें? [हिचकी आती है]
हकीम: आलमपनाह, दवा का वक्तत हो गया है।
बाबर: हकीम साहब! अब दवा न दीजिए। यह हिचकी है या खुदा का पैगाम है। [फिर हिचकी आती है]
माहम: [करुण स्व!र में] या खुदा, यह कैसा इम्तिहान है? एक ओर लख्तेकजिगर को जिन्द गी बख्शीत तो दूसरी ओर सरताज को इतनी तकलीफ दे रहा है।
बाबर: मलका! परवरदिगार के शुक्र के बदले शिकवा? अल्लासहताला का हजार-हजार शुक्र है कि उसने हमारी इल्तरजा सुन ली, हमारी उम्मीकद और अरमानों के चमन को सरसब्जत रहने दिया, हमारी आँखों की मिटती हुई रोशनी लौटा दी। तभी तो हम आज शहजादे को भला-चंगा देख रहे हैं।
माहम: मगर जहाँपनाह, आपकी यह तकलीफ...?
बाबर: [बात काटकर] हमारी फिक्र छोड़ो, मलका! हमने तो खुद यह तकलीफ माँगी है। हमें बहुत बड़ा फख्र है कि हमारे मालिक ने अपने ऐसे नाचीज बंदे की अदना-सी भेंट कबूल फर्मा ली। [दर्द से करवट बदलता है] बेटा!
हुमायूँ: अब्बाेजान!
बाबर: और करीब आ जाओ बेटा! जाते-जाते अपने लख्तेसजिगर को जी भर कर देख तो लूँ।
हुमायूँ: [आँखों में आँसू भरकर] अब्बाी!
बाबर: घबराओ मत बेटा! बहादुर आप के दिलेर फर्जन्दट को यों मचलना जेब नहीं देता। हमें तुमसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं; हमें हिन्दुआस्ता न के होने वाले बादशाह से कुछ अर्ज करना है।
माहम: [रोती हुई] मेरे सरताज!
बाबर: सब्र और हिम्म त से काम लो, मलका! जो सारी जिन्देगी मौत को चुनौती देता रहा हो उसकी बेगम को मौत से नहीं घबराना चाहिए। हमें चैन से जाने दो। [खाँसता है] बेटा!
हुमायूँ: अब्बााजान! हकीम साहब की राय में आपका ज्या दा गुफ्तगू करना सेहत के लिए अच्छार नहीं है।
बाबर: सेहत! बेचारे हकीम साहब! बेटा! हमने हिन्दुास्तारन को फतह किया, हकूमत की बुनियाद भी डाली मगर सल्त नत की ऊँची इमारत तैयार करने के पहले ही हमें जाना पड़ रहा है। अब उस इमारत को पूरा करना और कायम रखना तुम्हाइरा काम है। [हिचकी आती है।] जंग के मैदान में हमारी तलवार के वार कभी ओछे नहीं पड़े और अमन के जमाने में हमारी दानिशमंदी ने कोई गलत रवैया भी अख्तियार नहीं किया। बादशाहत के लिए दोनों चीजें एकसाँ जरूरी हैं। [दर्द से करवट बदलता है।] आह, सिर फटा जा रहा है।
माहम: मेरे सरताज!
बाबर: मलका! हम माँ-बेटे को एक-दूसरे को सुपुर्द करते हैं। [माहम सिसक-सिसककर रोने लगती है] बेटा, सिपहसालार को बुलाओ। [एक आदमी बाहर जाता है] और सुनो। इधर नजदीक आओ। [आवाज पहले से धीमी पड़ जाती है] आज से इस सल्तमनत के तुम मालिक हो। [खाँसता है] तुम नेक और आजादखयाल हो। अपने भाइयों और बहनों को मुहब्बसत की नजर से देखना। उनसे कोई गलती भी हो तो माफ करना। [हिचकी आती है] आह! साँस लेने में बड़ी तकलीफ है। [जोर से साँस लेता है] सिपहसालार आए?
सिपहसालार: ताबेदार हाजिर है!
बाबर: हम कूच कर रहे हैं। हमारे बाद शाहजादा हुमायूँ हिन्दुनस्ता न के बादशाह होंगे। [खाँसता है] आप सबों से उन्हेंप उसी तरह मदद मिलनी चाहिए जिस तरह हमें मिलती है। आह! बेटा! पानी! [हुमायूँ मुँह में पानी देता है] बेटा, यहाँ जितने हैं सबों का हाथ पकड़ो। [हिचकी आती है] सबों की परवरिश करना। [जोर से साँस लेता है] या खुदा! और हाँ, हमारी आखिरी ख्वाीहिश... [हिचकी आती है] हमें यहाँ न दफना कर काबुल की मिट्टी में दफनाना। यह हमारा आखिरी हुक्मऔ... और... ख्वाहिश है। [हिचकी] तुम सब... आबाद रहो [जोर की हिचकी] अल...विदा। अल्लाखहो...अ...क...ब...र... [हिचकी के साथ शांत हो जाता है।]
[पटाक्षेप]
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