बिगड़ैल बच्चे / भाग 1 / मनीषा कुलश्रेष्ठ

Gadya Kosh से
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वे तीन युवा पिंक सिटी ट्रेन से सुबह-सुबह छ: बजे मेरे बाद चढ़े थे। रेल के इस सबसे पीछे वाले, सुनसान पड़े डिब्बे की मानों रुकी हुई सांसें एकाएक चल पड़ी हों... तेज़ स्वर में बातचीत, छेड़छाड़ करते हुए तीनों सामान स्वयं लादे, विदेशी पर्यटकों की नकल में ये पर्यटक साफ-साफ देसी नज़र आ रहे थे। बात-बात में... फकिन... फकअप... फकऑल...! मुझे बहुत नागवार गुज़र रहा था।

आते ही धम्म से उन्होंने सारा सामान सामने की सीट पर पटक दिया था। एक खुल्लम-खुल्ला सी, मध्यवर्गीय मगर आधुनिक किस्म की लापरवाही उनकी हर बात से झलक रही थी, चाहे वह बातचीत का लहजा, सामान फेंकने का ढंग, चाल-ढाल या कि बाल हों, चप्पलें हों, चाहे बिना मोजों वाले जूते हों या... फेडेड जीन्स हो। वे जो कर रहे थे उनकी नज़र में फैशन था, आधुनिकता थी। इस आधुनिकता में उनका मध्यवर्गीय अभाव कुछ ढंक रहा था तो कुछ उघड़ रहा था।

पिंक सिटी दिल्ली के सरायरोहिल्ला स्टेशन से सीधे छ: बजे चलती है और दोपहर तीन बजे जयपुर पहुंचती है, सो सुबह साढ़े पांच बजे ही मुझे मेरा बेटा ट्रेन में बिठाकर, सामान व्यवस्थित कर, एक कप एस्प्रेसो कॉफी सामने के स्टाल से लाकर मुझे पकड़ाकर चला गया था।

पहले से बैठा... बल्कि खाली बैठा भारतीय यात्री... उस पर महिला यात्री... और फिर मेरे जैसा कल्पनाशील यात्री, हर नये चढ़ने वाले यात्री के वेशभूषा, शक्ल, बातचीत के लहजे, नामों के चलन के अनुसार उसका प्रदेश-परिवेश भांपने का प्रयास करता है, यकीन मानिए बस वैसा ही कुछ मैं भी कर रही थी। अजीब किस्म का शौक है ना... दूसरों के मामले में नाक घुसाने का नितान्त भारतीय शौक!

निश्चित रूप से तीनों गोआ के निवासी लग रहे थे, केवल शक्लो-सूरत से ही मैंने यह निश्र्चय नहीं किया था... क्योंकि लड़की ने जो टी-शर्ट पहनी थी उस पर सामने ही लिखा था, `माय गोआ, द हैवन ऑन द अर्थ।' गले में काले धागे में चांदी का बड़ा-सा क्रॉस लटका हुआ था। यही नहीं वे कभी अंग्रेजी में और कभी कोंकणी भाषा में बात कर रहे थे। अपना गिटार, कैमरा, वॉकमैन के अलावा तीन पुराने से बैग, ढेर सारे चिप्स और कोल्ड ड्रिंक की बॉटल्स और कुछ पत्रिकाएं लेकर वे तीनों चढ़े थे... और अब वे मेरे एक दम सामने वाली सीटों पर अस्त-व्यस्त से जम गये। एक लड़की तो थी ही, बाकी दो लड़के थे। एक छोटा, एक बड़ा।

तीनों उत्तर भारत के टूरिस्ट मैप पर सर से सर जोड़कर नज़र गड़ाकर कुछ कार्यक्रम बना रहे थे... कोंकणी में। लापरवाही से उनका कैमरा सीट के कोने में रखा था, मैं मन ही मन कुनमुनायीज्ञ् लगता हैै इन्हें उत्तर भारत... खासतौर पर दिल्ली के जेबकतरों-उठाईगीरों का कोई अनुभव ही नहीं है या कभी कुछ सुना भी नहीं। मैंने सोचा आगाह करूं... पर मेरी तरफ डाली गयी उनकी उदासीन दृष्टि अब तक मुझे चिढ़ा गई थी सो मैंने सोचा, `हं मुझे ही क्या पड़ी है!'

मैप देखने के बाद तीनों अपनी-अपनी जगह पर खिसक गये। बैग ऊपर वाली बर्थ पर लापरवाही से फेंक दिये गये थे। गिटार बड़े वाले लड़के ने अपने पास गोद में बहुत प्यार से रख लिया, जैसे कोई पालतू जानवर हो। वॉकमैन छोटे से ने कान पर लगा लिया, खाने-पीने का सामान लड़की ने अपने पास के बैग में डाल लिया था।

लड़की सांवली होने के बावजूद आकर्षक थी। दरम्याने कद की, पतली और प्यारी सी। हां बाल बेढंगे से थे... घुंघराले काले कालों में, कत्थई और सुनहरे रंग की कई लटें रंगा रखी थीं। ऐसा लग रहा था कि सफेद बालों को घर पर मेंहदी लगाकर छुपाने की कोशिश हो। मुझे अपने कॉलेज की मिसेज बतरा याद आ गइंर्, वो अपने खिचड़ी बालों में मेंहदी लगाकर ऐसी ही लगा करती थी, पर यह फैशन है आजकल का, बेढंगा फैशन! मेरे अन्दर की प्रौढ़ होती महिला किचकिचाई!

लड़कों में से छोटा लड़का चेहरे-मोहरे से उसका भाई लग रहा था, (हां भई... उसकी नाक और होंठों कीी बनावट बिलकुल लड़की जैसी ही थी... वह लड़की ज़रा लुनाई लिये हुए सांवली थी और यह बिलकुल काला) वही... जिसने कानों में अब वॉकमैन के इयर प्लग लगा रखे थे और पैर हिलाते हुए गुनगुनाता जा रहा था...। कभी-कभी वह आस-पास के वातावरण से बेखबर ज़रा ऊंची आवाज़ में गाने लगता था... तब लड़की उसे कोहनी मार देती थी।

बड़े लड़के के हाथ गिटार के तारों को हल्के-हल्के सहला रहे थे, वह कोई अंग्रेजी गीत गुनगुना रहा था और मीठी नज़रों से लड़की को देख रहा था, लड़की ने मुस्कुराकर नज़रें खिड़की के बाहर दौड़ा दीं। स्टेशन पर चहल-पहल बढ़ गई थी। जिस खिड़की के पास वह लड़की बैठी थी... वहां दो-चार सड़क छाप मनचले मंडराने लगे थे। ठेठ सड़कछाप हिन्दी के कुछ गन्दे फिकरे कसे गये जो लड़की को समझ नहीं आये पर वह लड़की होने की छठी इन्द्री से समझ गई कि उसके कपड़ों पर कुछ कहा गया है।

उसने आधी खुली पीठ वाला, छोटा सा, बड़े गले का नाभिदर्शना टॉप पहना हुआ था। नाभि में चांदी की बाली पहनी हुई थी। बड़ा लड़का उसका असमंजस तुरन्त समझ गया, आवेश की हल्की परछाइंर् उसके चेहरे पर आई। उसने उसे बैग में से निकालकर एक लम्बी बांह की शर्ट पकड़ा दी थी। फिर छोटे लड़के को खिसकाकर खिड़की के पास बिठा दिया था। लड़की को बीच में बिठाकर वह उसके एकदम करीब उसके कंधों पर अपनी बांह का सहारा देकर बैठ गया। लड़की ने लापरवाही से उसकी दी हुई शर्ट को पहन लिया था, लेकिन बिना बटन लगाये।

अब तक ट्रेन ने सीटी दे दी थी। जिन्हें इस ट्रेन में चढ़ना था... चढ़ गये थे और अपनी-अपनी जगह खोजने लगे थे। यह एक सेकेण्ड क्लास का डब्बा था। मेरे बगल में एक अधेड़ सज्जन आ बैठे थे... और उनकी पत्नी भी। छोटा लड़का अब एकदम मेरे सामने था... उसने हरा बरमूडा और फूलों की छींट वाली पीली शर्ट पहन रखी थी। सामने के कुछ खड़े बाल सुनहरे होने की हद तक ब्लीच किये हुए थे। ट्रेन चलते ही इस छोटे लड़के ने वॉकमैन की आवाज़ बढ़ा दी थी। इतनी कि मैं तक सुन पा रही थी। एक घना शोर और बीच-बीच में किसी पॉप गायिका की आवाज़। एक मिनट बाद जब मुझसे शोर सहन नहीं हुआ तो मैंने उसके पास थोड़ा झुककर पूछ ही लिया, `मैडोना है ना!' मैंने सोचा वह बात में छिपे व्यंग्य को समझेगा और आवाज़ धीमी कर देगा।

`हह...।' उसने कहा।

लड़की ने सर हिलाया, बुरा सा मुंह बनाया और कहा, `शी इज़ नॉट फोर अवर जेनरेशन... ही लाइक्स शकीरा एण्ड ब्रिटनी।'