बिगड़ैल बच्चे / भाग 5 / मनीषा कुलश्रेष्ठ
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`लीव ना कीथ। होते हैं, आन्टी सैल्फिश लोग भी। हमको हमारा मम्मी बोला इन्सान का सेवा ही यीशू का सेवा है। आप बताओ न, आपकी जगह हम होते तो! आप नहीं रुकते क्या हमारे लिये?'
मैं सोच में पड़ गई थी! मैं क्या करती? मैं उतरती किसी घायल के लिये? इस उमर, सूजे हुए पैरों के साथ में किसी घायल के लिये मैं क्या कर सकती थी? ये तो जवान हैं। प्रौढ़ावस्था का बहाना खड़ा हो जाता।
प्रश्न वही था... बचपन में पढ़ी कहानी `मनुष्य, भेड़ और भेड़िया' में से मैं क्या बनती? भेड़िया तो नहीं, इन्सान बनने की हिम्मत जुटा पाती या कि शायद... उस डॉक्टर की तरह जल्दी गंतव्य पर पहुंचने की चाह में आंखें मूंद भेड़ बनकर आगे बढ़ जाती!
लड़की बिलकुल मेरे करीब थी, उसका खून से सना शर्ट उसके हाथों में था। बड़ा लड़का आगे डॉक्टर के पास बैठा जयपुर जाने वाली ट्रेन के बारे में बतिया रहा था।
`नो वी वोन्ट लीव हर अलोन।'
`... ...।'
`प्लीज कम्पलीट ऑल फार्मेलिटीज़ एण्ड गिव हर प्रॉपर मेडिकेशन। वी हैव टू लीव दिस प्लेस टुडे ऑनली। डोन्ट वरी... वी विल टेक केयर ऑफ हर।'
`... ...।'
`नो... नो। वी वान्ट टू लीव फॉर जयपुर एज अर्लीी एज पॉसिबल। डे आफ्टर वी हैव फर्दर रिजर्वेशन्स आल्सो।'
`... ...'
`थैंक्स डॉक्टर।'
हम रेलवे के अस्पताल पहुंच गये थे। डॉक्टर रशीद ने... (उनका यह नाम मैंने उनके कोट पर लगे नेमटैब पर पढ़ा था। क्या करूं यह उत्सुकता जन्मजात है।) मरहम-पट्टी कर दी थी। दो एक्स-रे भी हुए... पर डॉ. रशीद के अनुसार खुदा के फज़ल से सब कुछ ठीक था। अब हम तीन बजे की ट्रेन पकड़ सकते थे।
उन युवा और नेक फरिश्तों ने मुझे पूरी तरह से संभाल रखा था। उन्हें अपने आगे के कार्यक्रमों से ज्यादा मेरी चिन्ता थी। तीनों के कपड़े मेरी वजह से खून से सन गये थे। उन्होंने अपने सामान के साथ-साथ मेरा सामान संभाल रखा था। मैंने पास पड़ी मेज़ पर देखा... वहां मेरे पर्स के पास दोनों मिठाई के डिब्बे रखे थे। तन ताज़ा-ताज़ा साफ करके पट्टी किये गये चार-पांच बड़े और कई छोटे टीसते ज़ख्मों और मन आपस में उलझते तरह-तरह के विचारों से थक गया था। मैंने अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे आंखें बन्द कर लीं। वे तीनों डॉक्टर के पीछे-पीछे अपने कपड़े बदलने चले गये थे।
दुपहर तीन बजे की ट्रेन में हम चारों फिर से बैठे थे। स्टेशन मास्टर ने हम पर एक अहसान किया था... इस ट्रेन में ए. सी. कम्पार्टमेंट में कूपे दिलवा दिया था। डॉक्टर रशीद घर से बिरयानी का लंच पैक करवाकर पकड़ा गये थे, `अपना ख्याल रखियेगा बहनजी।' जुमले के साथ।
`वाउ... दिस इज़ माय फर्स्ट चान्स ह्वेन आय एम सिटिंग इन ए.सी. कम्पार्टमेंट।' छुटका बहुत खुश था। उसने अपना वॉकमैन निकाला और लो वॉल्यूम में शकीरा सुनने लगा।
`कीथ प्लीज रेज़ द वॉल्यूम, लेट मी आल्सो लिसन!' यह मैं थी।
वे दोनों युवा प्रणयी फिर एक दूसरे में मगन थे। लीज़ा रोज़र की उंगलियों को गिटार पर फिसलते देख रही थी।
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