बिगड़ैल बच्चे / भाग 4 / मनीषा कुलश्रेष्ठ

Gadya Kosh से
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कहीं उसने कह दिया यू नटी ओल्डी...व्हाट फकिन कन्सर्न डू यू हैव विद अस? उसे क्या? भाड़ में जाये यह और उसकी बहन। कमबख़्त कैसे सटकर उस जवान-जहान लड़के से चिपकी पड़ी है।

छुटके ने उत्साह से कहा कि कोई स्टेशन आ रहा है। इक्का-दुक्का नज़र आने लगे थे। कुछ कारखाने...और ट्रेन की पटरी का एक और जोड़ा हमारी ट्रेन के साथ दौड़ने लगा था। मैंने मन ही मन कहा, अलवर! हाय! जल्दी में मिठाई लेना भूल गई थी दिल्ली से...कमबख्त निशि ने भी तो अचानक फोन किया था कि मम्मी, मुझे सास ने कह दिया है जा हो आ मायके, तुम कल ही भैया को भेज दो।

`भैया कैसे आयेगा निशि, उसके एक्ज़ाम हैं।'

`तो मां...।' बेचारी रुंआसी हो गयी थी।

`तू खुद चली आ न। जयपुर से तो कई सीधी रेल हैं दिल्ली की। करा ले रिज़र्वेशन।'

`मम्मी, तुम तो जानती हो, दो छोटी बच्चियों के साथ ये अकेले नहीं भेजेंगे मुझे। इन्हें फुर्सत नहीं.. फिर बताओ न...मैं भी कैसे आ जाऊं, कितनी दिक्कत होगी, दोनों तो गोदी चढ़ती हैं। हाय, मम्मी कितनी मुश्किल से सास का मुंह सीधा हुआ है मेरे मायके जाने के नाम पर।'

`अच्छा-अच्छा ...मैं ही...'

`कल ही चल दो न मां। कितना तरस रही हूं मैं।'

`देखती हूं।'

बस फिर सुबह-सुबह ट्रेन में बैठती कि मिठाई लेती! अलवर से ही दो किलो मिल्ककेक ले चलती हूं। वहां जयपुर में तो स्टेशन पर दामाद लेने आयेंगे, उनके सामने मिठाई लेती भला अच्छी लगूंगी? मैंने अलवर आता देख पर्स संभाला। छुटके से कहा कि सामान का ख्याल रखे। डॉक्टर दम्पति ऊपर की खाली बर्थो पर जाकर लेट गये थे। लड़की कुनमुना कर लड़के से अलग हो उठकर खड़ी हो गयी थी। उठते ही चॉकलेट निकालकर खाने लगी।

ट्रेन रुक गई थी। डिब्बा सच में बहुत पीछे था। मिल्ककेक की दुकान दूर थी। स्टेशन पर काफी भीड़ थी। सारी भीड़ पिंकसिटी में ही समायेगी क्या, यह सोच मैं जल्दी-जल्दी ट्रेन से उतरी और लोगों से टकराते हुए... बड़े-बड़े डग भरते हुए दुकान पर हांफती हुई पहुंची। दो-दो डिब्बे मिठाई और पर्स सम्भालती हुई ...मैं अपने गंतव्य से आधी दूरी पर ही थी कि ट्रेन ने सीटी दे दी... मेरे तो हाथ-पांव फूल गये। भीड़ को चीरती हुई मैं आगे बढ़ रही और मुझे दूरदर्शन का एक विज्ञापन याद आ रहा था कि भारत में स्टेशनों पर यात्रा करने वाले कम और उन्हें छोड़ने आने वाले ज्य़ादा होते हैं। उस क्षणांश में ही मुझे लग रहा था कि मैं चल ही नहीं पा रही... अपना डिब्बा मुझे दिखाई नहीं दे रहा... कि अचानक छोटे लड़के की चीख ने ध्यान दिलाया कि मैं डिब्बे के एकदम पास हूं- `आन्टी।'

दरवाजे के पास भीड़ थी... मेरे पीछे भीड़ थी... मैंने किसी तरह दरवाजे का हैण्डल पकड़ा और पैर बढ़ाया ही था कि ट्रेन थोड़ा तेज़ रेंगने लगी, मैं बुरी तरह से प्लेटफार्म पर गिर पड़ी। पैर ज्य़ादा बढ़ गया होता तो दरवाजे पर पटरियों के बीच घिसट रही होती। गिरते-गिरते मुझे छोटे लड़के की चीख सुनाई दी थी। उसके बाद मुझ पर झुकी भीड़ एक भंवर की तरह घूमती नज़र आई और फिर कुछ कहीं ग़़ड़ब से डूब गया।

ठंडे पानी की तेज़ छपाक से मैंने अपने चेतन का छोर ढूंढा और अवचेतन की सीढ़ियां फांदती... होश में आने की जल्दी में मैं उस आघात की पारदर्शी झिल्ली के नीचे से मुटिठयां बांध-बांधकर चीख रही थी... जो कि अस्पष्ट गों गों में बदलती जा रही थी।

आखिरकार मेरे प्रहारों से वह झिल्ली फटी.. गर्मी और उमस से भरे रेलवे के रिटायरिंग रूम में मैं बदहवास सी चारों तरफ देख रही थी। `आन्टी, आर यू ओके!' डॉक, शी ओपन्ड हर आइज़।' छोटा लड़का मेरे चेहरे से सटा फर्श पर हड़बड़ाया सा बैठा था। उसकी आवाज़ में एक नेह भरी ऊष्मा की थरथराहट थी।

`कैसी हैं आप?' एक अजनबी रेलवे के डॉक्टर ने झुककर पूछा, `चिंता की कोई बात नहीं... ये यंग्स्टर्स नहीं होते तो...! इनका और खुदा का शुक्रिया अदा करें। गनीमत है कि कोई सीरियस इंजरी नहीं हुई। पुराना खाया पिया काम आ गया।' ज्ञ्हंसकर डॉक्टर ने मेरे हवास दुरुस्त करने की कोशिश की।

`बस अभी एम्बुलेंस आती होगी।'

मैंने थोड़ा उठना चाहा तो... वह लड़की आगे आ गई... अपनी बांह का सहारा लिये। मैंने देखा उसकी शर्ट का बड़ा हिस्सा खून से तर था। मैंने दाइंर् भौंह की तरफ पीड़ा महसूस की। छुआ तो वहां एक गीला स्कार्फ बंधा था, यह बड़े लड़के का था। दोनों घुटनों पर दो रूमाल बंधे थे।

इतने में बड़ा लड़का पसीने में तर-ब-तर हाथ में दवाआें, पटि्टयों का बण्डल लेकर आ पहुंचा।

`डोन्ट गेटअप, यू आर स्टिल ब्लीडिंग।' बड़े लड़के ने मेरी चोट पर स्कार्फ दबाते हुए कहा, `डॉक फर्स्ट गिव हर टिटनेस इंजैक्शन।'

`यंग मैन, डोन्ट टीच मी माय ड्यूटीज़'। डॉक्टर ने हंसकर कहा और इंजैक्शन तैयार करने लगा। मैंने देखा, डॉक्टर छोटे कद का, काला सा, अनगढ़ नकूश वाला व्यक्ति था। शायद मुसलमान। इसीलिये... बार-बार खुदा के लिये... खुदा का शुक्र... किये जा रहा था। एम्बुलेंस में मैंने हिम्मत करके लड़की से पूछ ही लिया।

`ओह गॉड आन्टी दैट सीन वाज़ हॉरीबल... एक घण्टा भी नहीं हुआ है अब्भी तो... आप तो बहूत बूरा गिरा था प्लेटफार्म पर। हाथ छूट गया हैण्डल से वरना ट्रेन के साथ... लटकता जाता। वो जो मेरा फियान्सी है न, रोज़र... उसने चेन पुल किया... फिर हम तीनों सब बैग लेकर उतरा... आपके पास पहुंच ही नइंर् सकने का था... सब आदमी लोगों ने कवर कर रखा था, तब मेरा भाई चिल्लाकर सबको दूर भगाया और आपको रिटायरिंग रूम में लाया। रोज़र स्टेशन मास्टर के रूम में रश करके भागा। तब डॉक्टर आया और...।'

`तुम तीनों ने मेरे लिये ट्रेन छोड़ दी!'

`हां! वही तो ज़रूरी था न। आपको उन स्टूपिड लोगों के बीच छोड़ना नहीं था न! तमाशा करके रखा था न आपका। कोई उठा नहीं रहा था...'

`वो डॉक्टर जो ट्रेन में था...।'

`वोह। ब्लडी सेल्फिश फैलो।' यह छुटका था, `हिज वाइफ स्कोल्ड हिम नॉट टू कम विद अस एण्ड ही स्टेड बैक। वी लिटरली प्रेड टू हिम! बट ही टोल्ड आय कान्ट... गेट डाउन... आय हैव टू रीच टुडे।'