बिना शीर्षक / कामतानाथ / पृष्ठ 3

Gadya Kosh से
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तभी उसकी टैक्सी एक ट्रक से टकरा गई। मुसाफिरों को तो कोई चोट नहीं आई लेकिन मेरे बेटे की दुर्घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। यह लगभग वही स्थान था जहाँ पहली बार बस दुर्घटना के समय मैं पेड़ की डाल से लटकता हुआ पाया गया था। उस समय मेरे बेटे की उमर थी तेइस साल ग्यारह महीने और तेरह दिन।"

"बहुत अफसोस हुआ मुझे सुनकर" मैंने कहा। "मुझे भी बहुत सदमा पहुँचा। मैंने अपने दूसरे बेटे को समझाया कि वह ट्रक चलाना छोड़ दे। लेकिन उसकी बात तो दूर रही मेरा तीसरा बेटा जिद करने लगा कि मैं दुर्घटनाग्रस्त टैक्सी को जल्दी से ठीक करा दूँ ताकि वह उसको चला सके।"

"इस बीच जूली के माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी। उसे भी अपने बड़े बेटे की मृत्यु का बहुत सदमा था लेकिन वह मेरी तरह अंधविश्वासी नहीं थी और उसने सबसे छोटे को टैक्सी ठीक कराने के लिए उपयुक्त धन दे दिया। अब मंझला बेटा ट्रक और छोटा बेटा टैक्सी चलाने लगा। तभी दूसरी दुर्घटना घटी।"

मैंने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

"हुआ यह कि मेरा मंझला बेटा खाली ट्रक लेकर मंगलौर से पणजी आ रहा था। तभी लगभग उसी स्थान पर जहाँ बड़े बेटे की मृत्यु हुई थी उसका ट्रक सड़क पर फिसला और नीचे खड्डे में जा गिरा। क्लीनर को बस मामूली चोटें आइंर् लेकिन मेरे बेटे ने वहीं दम तोड़ दिया।" वह एक क्षण रूका तब बोला, "जानते हैं उस समय मेरे बेटे की उम्र क्या थी?" "क्या?" मैंने पूछा। "तेइस साल ग्यारह महीने और तेरह दिन।" उसने कहा।

एक क्षण हम दोनों ही खामोश रहे। तब उसने आगे कहना शुरू किया, "इसके बाद तो मेरा दिमाग ही खराब हो गया। जूली भी बहुत पछताई कि उसने मेरी बात क्यों नहीं मानी और इसी गम में वह पागल हो गई। मुझे उसे पागलों के अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। साथ ही तीसरे बेटे को लेकर मेरे मन में आशंकाएँ उभरने लगीं कि यह कौन सी शैतानी शक्ति थी जो इतनी निर्दयता से मेरे बेटों को मुझसे छीन रही थी। मैंने तय किया कि कुछ भी हो अब मैं माइकेल को टैक्सी नहीं चलाने दूँगा। जी हाँ, माइकेल मेरे सबसे छोटे बेटे का नाम है। मैंने उसे बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माना। आखिर एक दिन मैंने उसे जबरदस्ती कमरे में बंद कर दिया और तब तक बंद रखा जब तक टैक्सी मैंने बेच नहीं दी। इसके बाद मैंने उसे कमरे से बाहर निकाला और उसे अपने पास बिठाकर समझाया कि टैक्सी मैंने बेच दी है अब इन पैसों से जो भी धंधा वह करना चाहे करे। वह कुछ नहीं बोला और पैसे मुझसे लेकर जेब में रखकर घर से बाहर चला गया।" "मैं समझता था वह चार-छह घंटों में लौट आएगा लेकिन एक दिन गुजरा, दो दिन गुजरे और फिर सप्ताह और महीने गुजरने लगे मगर वह लौटकर नहीं आया। आज तक नहीं आया।"

"आज तक नहीं आया?" "हाँ। मैं बराबर उसकी तलाश में हूँ। आज सत्रह तारीख है न।" "हाँ।" मैंने कहा। "आज वह अपनी जिंदगी के तेइस साल ग्यारह महीने और आठ दिन पूरे करेगा। पाँच दिनों में वह इधर जरूर आएगा। चार दिन बाद मैं उस स्थान पहुँच जाऊँगा जहाँ पहली दुर्घटनाएँ घट चुकी हैं। हर गाड़ी को रोकूँगा मैं। जैसे भी हो उसे तलाश करूँगा। मुझे भरोसा है मैं उसे बचा लूँगा।" "आपका ख्याल है वह अपनी आयु के तेईस वर्ष ग्यारह महीने और तेरहवें दिन वहाँ जरूर पहुँचेगा।" "मेरा मन कहता है और मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा उसे बचाने की।" "आपकी पत्नी?" "उसे दुबारा पागल खाने में भर्ती कराना पड़ा। वह भी दिन गिन रही है। उसे डर है कि माइकेल बचेगा नहीं लेकिन मैं उससे वायदा करके आया हूँ कि मैं उसे बचाऊँगा। जैसे भी हो लीजिए आपकी बस आ रही है।"

मैंने देखा सड़क पर दो बड़ी-बडी बत्तियाँ चमक रही थीं। गाड़ी निकट आने पर उसने सड़क पर खड़े होकर हाथ हिलाना शुरू कर दिया "एक्सप्रेस बस हाथ हिलाने से ही यहाँ रूकती है।" उसने कहा।

बस आकर जोरों के ब्रेक के साथ रूक गई। "आइए।" उसने कहा। मैं अटैची लेकर बस पर चढ़ गया। "नमस्कार।" उसने कहा।

बस चली तो वह देर तक हवा में हाथ हिलाता रहा।

उसने ठीक ही कहा था। पहले वाली बस मुझे रास्ते में एक जगह खड़ी मिली। अगर मैं उसे पकड़ता तो अटक ही जाता। इस बस ने मुझे समय से पहुँचा दिया और मुझे पणजी वाली बस आराम से मिल गई। पणजी जाते समय जब हमारी बस उस स्थान से गुजरी तो मैंने देखा वह उसी चबूतरे पर बैठा था। अकेला।

रास्ते भर मैं उसके बारे में सोचता रहा। अगर उसने मुझसे कुछ रूपए आदि माँगे होते तो एक बार मुझे यह भी लगता कि वह कहानी गढ़ रहा था। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था।

पणजी पहुँचकर मैं घूमने-फिरने में लग गया। एक प्रकार से मैं उसके बारे में सब कुछ भूल ही गया था। तभी जिस दिन मुझे वहाँ से लौटना था और मैं अपने होटल के लाउंज में बैठा पणजी की अंतिम चाय पी रहा था, अचानक मेरी निगाह अखबार में प्रकाशित एक समाचार पर पड़ी "ट्रक दुर्घटना में ड्राइवर की मृत्यु।"

मैंने अखबार उठा लिया। हेडिंग के नीचे लिखा था "कल मंगलौर से पणजी आते हुए लगभग आधे रास्ते पर बीच सड़क पर खड़े एक बूढ़े व्यक्ति को बचाने के प्रयास में एक ट्रक खड्डे में जा गिरा। क्लीनर को मामूली चोटें आईं लेकिन ड्राइवर की दुर्घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। ड्राइवर का नाम माइकेल डिसूजा था। उसकी आयु लगभग चौबीस वर्ष थी।"

मैं सकते में आ गया। तो क्या उसे बचाने के चक्कर में उसने ही उसके प्राण ले लिए।

मै पूरी तौर से नास्तिक हूँ। किसी देवी शक्ति में मेरा कोई विश्वास नहीं हैं। तब इसे क्या कहूँ? संयोग? या नियति या आप ही बताएँ।


१६ मार्च २००२