बीते शहर से फिर गुज़रना / तरूण भटनागर / पृष्ठ 4
समय: एलार्मिंग डाग या शिकारी
ट्रेन कुछ धीमी हो गई थी। अब छायाओं को पकडने और छोडने के काम में मन नहीं था। वह बेमन का काम था। गुजरते समय की मजबूरी। क्योंकि घडी रुकती नहीं। क्योंकि अकेलापन हाड मांस बन गया है। क्योंकि हम कभी खाली नहीं होते। क्योंकि निर्वात(वैक्यूम) मरने से पहले सिर्फ एक कमरा भर हवा के लिए तडपाता है। ऐसे बहुत से ´क्योंकि´ मैंने ढूंढें हैं,जो इस ´बेमन´ के पीछे उसे धकियाते से पडे हैं।
केबिन में ऊपर की बर्थ पर सोया बूढ़ा जाग गया है।वह बूढ़ा मुझे ताक रहा था।उसकी आ¡खें मेरे देह पर पडी थीं।वे मेरे भीतर झांकने की ताक में थीं।मैं कुछ असहज सा हो गया।बूढ़ी आ¡खों का भीतर झांकना सकुचा देता है,जैसे कोई अनुभवहीन आदमी जब किसी वैष्या के सामने नंगा होता है तब एक ´हिच´ उसके भीतर की दीवारों को नोचता रहता है। उस बूढ़े की आ¡खों से खुद को छिपाना कठिन था।क्या पता ट्रेन की खिडकी के कांच से चिपका अंधेरे देखता आदमी उन बूढ़ी आ¡खों के करोडों खांचों में से किसी खांचे में फिक्स हो जाय।मैं क्षण भर को ऐसा प्रदर्षित करने लगा जैसे मैं कुछ भी तो नहीं कर रहा हूं...बस मुझे नींद नहीं आ रही थी,सो कांच से चिपक गया... पर अब नींद आ रही है...मुझे जम्हाई आ रही है,जिसका मतलब है कि मैं जल्दी ही सो जाऊंगा... उन आँखों का मुझे ताकना बेमानी है...मैं प्रदर्शित करता रहा, जैसे चाइनीस-चेकर की गोटी एक सोच के तहत एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे पर कूदती रहती है।
कितना विचित्र है,उस दिन हमें लगा ही नहीं था,कि हेज होनी चाहिए।किसी ओट का खयाल ही नहीं आया था और आज मैं एक निरीह बूढी आंख से सकुचा रहा था।समय कितना कुछ बदल देता है।वह नष्ट भी करता है।शिकारी जानवर की तरह किसी जीवन को चबाकर नष्ट कर देता है।
पर वे आँखें मुझे ताकती रहीं। मैंने क्षण भर को उन आँखों को देखा। पता नहीं क्यूं मुझे लगा कि मैं गलत हूं। मेरा अनुमान मुझे गलत खींच रहा है।वे आ¡खें मेरे घर के दरवाजे पर भिखारी की तरह खडी हैं,पर वे कुछ मांग नहीं रही हैं।उन आ¡खों का टटोलना चुप्पी में बैठे-बैठे पैरों को हिलाने जैसा है।उसके पीछे कोई नीयत नहीं है।ऐसा सोचकर मैं नििष्चंत हो गया और फिर से खिडकी के का¡च से चिपक गया।
मुझे फिर से उसकी आखें दिख गईं-डेट आनली डेट।उसने एक लिमिट बनाई थी।शुरु में हम दोनों मानते थे-डेटण्ण्ण्आनली डेट।पर फिर लगा ही नहीं कि कब यह डेट,डेट नहीं रही।बात समय गुजारने भर की नहीं थी।हमने सोचा था,थोडी सी मौज-मस्ती और फिर सबकुछ दफन।हमेशा आसान लगा था,समय को इस तरह गुजारकर दफन कर देना।कितना आसान है,कोई झंझट नहीं।हम समय को अपनी तरह से गुजारना चाहते थे।हमने जाना था,कि समय हमारी मुठ्ठी में बंद है।वह उन पामेरियन,तिब्बती लासाप्सा या सिल्की सिडनी सरीखे पालतू कुत्तों की तरह है,जिन्हें उनके मालिक शाम को घुमाने के लिए ले जाते हैं और वे हगने-मूतने के लिए भी अपने मालिक की दया पर होते हैं।जब रात को कोई अजनबी आ जाता है,तब दूर से ही भौंकते हैं और फिर भीतर घुस जाते हैं।एलार्मिंग डाग्सण्ण्ण्समय भी ऐसा ही लगता था।जब हम नये-नये जवान होते हैं,तब पहली बार समय हमारे सामने इसी रुप में आता है।एक मजबूर एलार्मिंग डाग की तरह।ण्ण्ण्ण्पर डेट,फिर आगे डेट नहीं रही।हम गलत सिद्ध हुए थे।और इस तरह गलत होना हमें अच्छा लगा था।हमने इस बारे में संजीदगी से बात भी नहीं की।हम एक दूसरे पर हंसते हुए कहते थे-डेट आनली डेटण्ण्ण्ण्ण्व्हाट ए फनण्ण्ण्यू वर लुकिंग सिली सेइंग डेट आनली डेटण्ण्ण्ण्ण्मुंह में स्ट्रा दबाये हुए,लिपििस्टक पुते चेहरे को अजीब तरह से घुमाते हुएण्ण्ण्डेट आनली डेट।कभी-कभी वह चिढ जाती।पर यही वह बात थी,जिससे मैंने जाना कि समय पामेरियन डाग की तरह अलार्मिंग डाग ही नहीं है,वह शिकार भी कर सकता है।उसने हमारी डेट्स का इस तरह शिकार किया था,कि हमें पता भी नहीं चला।फिर यह भी कि आप तय करके किसी के साथ नहीं चल सकते।अगर किसी के साथ चलना है,तो कई चीजों को समय के हवाले करना पडता है।जैसे समय ने हमारे प्यार को तय कर दिया था,जबकी हमने सोचा था,कि हम आगे नहीं बढेंगे।