बीते शहर से फिर गुज़रना / तरूण भटनागर / पृष्ठ 3
खुले आकाश के नीचे बिना हेज के...
जब हम मिले थे, तब नहीं सोचा था कि हम इस तरह अलग होंगे। हमने सोचा था, सब कुछ थोडा दिन चलेगा और फिर खत्म हो जायेगा। कॉलेज के दूसरे लड़के-लड़कियों की तरह जो बस कुछ ही दिनों में अपने फ्रैण्डस बदल लेते हैं। बस, कुछ दिन का घूमना-फिरना, मौज-मस्ती और फिर सब खत्म...। हमने इसे एक नाम दिया था-- लव फॉर फ़न। कितनी उल्टी चीज़ है, लव और फन। हमारे कॉलेज में यह खूब था।पर लगा जैसे कोई एक ही चीज होती थी-लव या फन।आज सोचता हूं तो लगता है दोनों कभी भी साथ नहीं था।किसी से संबंध के लिए लव जरुरी था।यह था।लोग बीते समय को जल्दी भूल नहीं पाते थे।उसे बेददीZ से झटकारना पडता था,जैसे शरीर पर चिपकी जोंक पर नमक डालकर चिमटे से खींचकर अलग करना पडता है।
कुछ दिन हमारी यादों में उन पोस्टरों की भांति चिपक जाते हैं,जिन्हें हम बेददीZ से फाडकर अलग तो कर देते हैं,पर उनके कुछ निशान रह जाते हैं।कुछ टुकडे पोस्टर के चिपके रह जाते हैं।मुझे ऐसा ही चिपका टुकडा याद आया।
हम दोनों कालेज के कैिण्टन में थे।वह मुझसे किसी बात का आश्वासन चाहती थी।
´डेट। ऑनली डेट।´
उसने ´ऑनली´ थोडा वजनदारी से कहा।कहते समय उसकी आंख मेरी आंख में घुसी जा रही थीं।
या...ऑनली डेट। नथिंग एल्स।´
मेरे चेहरे के सामने से उसकी ब्राउन आंखें हट गईं।उसके चेहरे पर एक बेपरवाही तैर गई।वह बिल्कुल रिलैक्स हो गई।
उसको मैंने पहले भी देखा था।पर आज वह कुछ अलग लग रही थी।वह वैसी ही थी,जैसी हमेशा दिखती थी।धंसे हुए गाल,उभरी चीक बोन,दुबला-पतला लंबा सा चेहरा जिस पर अब भी थोडा बचकानापन रह गया था।कंधे पर झूलते सर्पिलाकार बालों की लटें जो बार-बार उसके चेहरे के सामने आ जातीं और वह उन्हें इकठ्ठा कर अपने कानों के पीछे खोंस देती।उसके होठों में स्ट्रॉ फंसी थी,जिसमें से ऊपर चढता कोल्ड िड्रंक दिख रहा था।बीच-बीच में वह अपने दातों से स्ट्रॉ को दबा देती और तब उसके गुलाबी लिपििस्टक पुते होंठ अजीब से दिखने लगते।
उसकी चिन पर एक तिल है।मैंने उस तिल को छुआ है।मैंने सोचा है,आज मैं उस तिल को अपने होठों में दबा लुंगा।
उस दिन हम दोनों ग्लोबस माल के मार्केट में घूमते रहे।मैं उससे जिद करता रहा कि हम वहां नहीं जायेंगे,पर वह ले गई।उसे एक बुक खरीदनी थी।फिर हम दोनों ग्रीन पैसेज गये।ग्रीन पैसेज हमारे कॉलेज के पास ही है।वहां अक्सर कॉलेज के लडके-लडकियां जाते हैं।अक्सर और पूरे दिन वे वहां मिल जाते हैं।यह जगह उन्हें इतनी अच्छी लगती है,कि उन्होंने उसका नाम ही बदल दिया है।वे उसे एमरैल्ड पैसेज कहते हैं।वह एमरैल्ड लगता भी है।पूरे पार्क में ताड के पेड लगे हैं और स्क्वेयर कट वाली हेज लगी है।वहां गजब की शांति है। उस जगह पहुंचकर लगता है,जैसे हम इस भीड-भाड वाले शहर में ना हों।मानो यह पार्क इस शहर में ना हो।सुना है चांद में एक जगह है,जिसे हम नहीं देख पाते हैं।अंधेरे में खोई हुई गजब की शांति वहां है।उसे नाम दिया गया है-ओशेन ऑव ट्रेंक्वेलिटी।बस वैसा ही है ग्रीन पैसेज।लगता जैसे बरसों से कोई यहां ना आया हो।
पहले मैं अकेले यहां आता था।तब अक्सर इक्का दुक्का लडके-लडकियां वहां दिख जाते थे।घास के छोटे-छोटे लॉन में दुनिया से बेखबर वे एक दूसरे में डूबे रहते। लॉन के किनारों पर जहां हेज मुडती है,वहां कोई ना कोई लडके-लडकी का जोडा दिख ही जाता था।जब मैं उनके पास से गुजरता तो अक्सर उन्हें पता ही नहीं चलता था।फिर अगर कहीं वे मुझे देख लेते तो खुद को और सुरक्षित करते हुए हेज के और भीतर घुस जाते। कुछ परवाह नहीं करते थे।पर कभी-कभी जब किसी जोडे पर नजर पडती और वह सकुचाकर किसी दूसरी सुरक्षित जगह पर चला जाता तो मुझे एक तरह का अपराध बोध होता।जब कोई मुझे देखकर सकुचा जाता तो एक अजीब सा गिल्ट,एक संकोच सा होता जिसे बता पाना मुश्किल है।पर एक मुश्किल भी थी।उस पार्क में लडके-लडकियों से बचकर चलना मुश्किल सा था।कोइ्र ना कोई दिख ही जाता ।सच बचकर चलना कठिन ही था।फिर ज्यादातर लडके-लडकियां जो वहां दिखते वे हमारे कॉलेज के ही होते थे।इक्का-दुक्का बाहरी चेहरे भी दिख जाते थे।जब किसी अपने कालेज वाले जोडे से मेरी नजर मिलती,हम दोनेां क्षण भर को एक दूसरे को ऐसे देखते जैसे हम एक दूसरे से अजनबी हों।हम एक दूसरे को इस तरह देखते जैसे पहली बार देख रहे हों। कॉलेज में साथ-साथ मटरगस्ती करने वाले लडके-लडकियां इस पार्क में अजनबी और पराये से लगते।फिर जब उनमें से कोई मुझे देखकर सकुचाता तो मेरा गिल्ट और बढ जात जैसे मैं अपने केा बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं।उस पार्क में सच्ची शंति थी।चांद के अदेखे अंधेरे वाले भाग ´ओशन ऑव ट्रेंक्वेलिटी´ से भी ज्यादा शांति।इतनी शांति कि वहां पहुंचकर अजनबी और पराया बना जा सकता था।एक अण्डरस्टैंडिग कि हम मटरगिश्त करने वाले यार दोस्त होकर भी कितने अनजान हो सकते हैं।उस पार्क का प्रभाव विरक्ति पैदा करता था,वह भी बिना किसी दबाव के स्वभाविक तरीके से।
मैं और वह ग्रीन पैसेज के एक कोने में लकडी की पार्क चेयर पर बैठ गये।चेयर के ऊपर कचनार का एक पुराना पेड था।जिसकी पत्तियां चारों ओर बिखरी थीं।मेरा ध्यान उसके बैग पर गया।उसमें से वह बुक झांक रही थी,जो उसने अभी खरीदी थी।मैंने उस बुक को निकाल लिया।थॉमस हाडीZ की ´टैस ऑव द डरबर विलेज´।
´कोर्स बुक।आई हेट लिट्रेचर।´--उसने कहा।
´बट आई डोंट।´
हाउ यू बी सो अनरोमैंटिक।´
´मुझे यह अच्छा लगता है।´
मैंने उसके चिन पर बने तिल पर उंगली रखते हुए कहा।
´व्हाट।´
उसके माथे के बीच बनावटी से बल पड गये।मैंने अपना चेहरा उसकी ओर बढाया।मैं उस तिल को अपने होठों में दबा लेना चाहता था।वह कुछ सकपकाकर पीछे हट गई।मेरे और उसके बीच एक खाली जगह बन गई।एक छोटी सी खाली जगह जो लम्बी सी खाली जगह महसूस हो रही थी।उस खाली जगह में पार्क चेयर के लकडी के बत्ते थे।हम दोनों अपने-अपने में बैठे थे।मैं उस खाली जगह को भरना चाहता था। मैंने उसका हाथ अपने हाथ में खींच लिया।वह खाली जगह भर गई।अब वहां उसका हाथ था।मेरी हथेली में दबा उसका हाथ।उसके बढे हुए नाखून मेरी हथेली में चुभ रहे थे।पास ही एक स्क्वैयर कट हेज थी।वह हेज हल्की सी हिली।हम दोनों उस हेज को देखने लगे।फिर वह मुझे देखने लगी।पता नहीं उस समय वह क्या सोच रही थी? तभी हेज जोर से हिली।मैं उसकी ओर देखकर मुस्करा दिया और वह मुझे देखकर अपना मुंह अपने हाथों से दबाकर हंस पडी।शायद उसकी हंसी हेज में दबे लोगों ने सुन ली।हेज शांत हो गई।मुझे हमेशा की तरह गिल्ट महसूस हुआ।
मेरा बैग अभी तक मेरे कंधे पर था। मैंने उसे उतारकर चेयर के नीचे घास पर रख दिया।मुझे उस पर थोडा गुस्सा भी आ रहा था।वह उसी किताब को देख रही थी,जिसके लिए उसने कहा था ´आई हेट´।मैं उसे अपने और पास बुलान चाहता था।पर फिर लगा मैं ही क्यों?
-- व्हाय यू लीव्ड निशा? तुम दोनों ज्यादा दिन साथ नहीं रहे।´--उसने अचानक पूछा।
-- वी वर नॉट इंट्रेस्टेड लांगर।शी ए ट्रेडिशनल...यू नो आई हेट सच थिंग्स। बट इट्स ऑब्वियस। इट कैन हैपेन। तुम्हें पता है, व्हॉट इज द बेस्ट थिंग एबाउट ए डेट?´
उसने ना कि मुद्रा में अपना सिर हिला दिया।
-- इट्स द बेस्ट वे ऑव लिर्नंग रिलेशंस। यू कैन नो द सीक्रेट ऑव रिलेशन्स।´
-- आई डोंट थिंक। ये कोई रिलेशन नहीं है। यह सिर्फ डेट है। डेट। ऑनली डेट।´
मैं उससे बहस नहीं करना चाहता था।मैंने अपने बैग से एक मैगजीन निकाली और उसे उलटने-पलटने लगा।मैं उसे दिखाना चाहता था,आई डोंट केयर।जैसा की वह मेरे साथ कर रही थी।फिर वह भी उस मैगजीन को देखने लगी।मेरे कंधे पर उसकी चिन थी और वह मेरी तरह से उस मैग्जीन को देख रही थी।मैग्जीन के बीच ग्लेज्ड पेपर पर दो पोस्टर बने थे।पोस्टर में जो मॉडल थी,वह नेकेड थी।मैंनेे उस फोटो को उसे दिखाते हुए उसके कान में कुछ कहा।उसने मेरे बाल पकडकर हल्के से िझंझोड दिये और अपना चेहरा मेरे कंधे से ऊपर उठाकर हंसने लगी।उसके चेहरे पर कचनार के पेड से छनकर आती घूप-छांव अपना खेल दिखाने लगी।मैंने धीरे से उसके चिन पर बने तिल पर अपने होंठ रख दिये।अचानक उसके हाथ मेरे कंधे और पीठ पर आ गये।मेरे चेहरे के दोनों ओर उसके सर्पिलाकार बाल थे और मेरे सामने उसकी ब्राउन आंखें थीं।मैं उन आंखों को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता था।वहां कोई हेज नहीं थी।पार्क की कुर्सी के चारों ओर खुली हवा और ऊपर कचनार की जाली से झांकता आकाश था।लगा ही नहीं कि हेज होनी चाहिए।खयाल ही नहीं आया।