बेघर आँखें. (पृष्ठ-1) / तेजेन्द्र शर्मा

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भयभीत आंखें! सहमा हुआ चेहरा! शब्दों से बेखबर! वह रसोई के दरवाजे पर आ खड़ी हुई है. उसका कोई न कोई नाम तो अवश्य होगा. इस परेशानी के वातावरण में भी वह क्या सोचने बैठ गया है. पुरुषोत्तम नायर वही नाटक दोहरा रहा है जो कि वह पिछले वर्ष भर से करता रहा है।

"मैं आपका घर ले के भागने वाला नहीं जी हमारे साथ कब्बी बी ऐसा नहीं हुआ जी कि अपुन के साथ कोई झोंपड़ पट्टी वाले की माफ़िक बात करे.

मैं फिर से विचलित हो जाता हूं. पचास वर्षीय नायर की तीसरी पत्नी, नई नवेली दुल्हन की ओर देखता हूं. नायर त्रिवेन्द्रम से नया विवाह करके कल ही लौटा है. क्या मैं ठीक कर रहा हूं? सूरी साहब को गुस्सा आ गया है, शुक्ला जी, तुसी पागल ना बणो. बस तुसी हुण पास्से हो जाओ। ए मादर... पिछले तीन महीने से तूने यह क्या नाटक लगा रखा है. भाड़े क़ी बात करो, तो आज देता, कल देता.

"सूरी साहब मना कौन करता जी, मेरा डिपॉजिट है न आपके पास!

तेरी मां का.. . अब्बी कुल मिला कर छह महीने का भाड़ा हो गया साठ हजार रूपया और तेरा डिपॉजिट है पचास हजार. और उसमें से भी पांच हजार तेरे दलाल ने रख लिया था. उसमें बचा पैंतालीस बाकि पन्द्रह हज़ार तेरा बाप देगा?

क्या क्या सपने दिखा कर बम्बई लाया होगा अपनी तीसरी पत्नी को. मायावी नगरी बम्बई पहले ही दिन उसे क्या क्या जलवे दिखा रही है. वह शायद थोड़ी ही देर पहले नहा कर गुसलख़ाने से बाहर निकली है. उसके बाल गीले हैं उसने एक प्यारा सा छोटा सा कुत्ता गोद में उठा रखा है. सूरी साहब की घुड़की सुन कर कुत्ते को महसूस हुआ कि उस पर दबाव थोड़ा बढ ग़या है वह घबरा कर अपनी मालकिन की ओर देखने लगा है. मालकिन हिन्दी न जानते हुए भी घटनाक्रम को समझने का प्रयास कर रही है.


महेश से अब सहन नहीं हो पा रहा है. सवा छह फुट लम्बे महेश के गठे हुए शरीर की मछलियां उसकी काली टी शर्ट से बाहर फिसलने लगी हैं. उसने सीधे नायर का गिरेबान ही पकड़ लिया है. ठेठ मराठी लहजे में शुरु हो गया है, ठॉव हायका तुला, पाटिल मणयातल मला.

मिस्टर शुक्ला, ये क्या बिहेवियर है जी. मिस्टर मेरा गिरेबान छोड़ो जी. नायर पूरी तरह से गड़बड़ा चुका था.

ऐकायेबी आईकायच नाहीं माला, समंद सामान अन तला फेकून देईन खाली.

मैं घबरा कर महेश को अलग करने का प्रयास करता हूं. महेश मुझ पर नाराज़ होने का नाटक करता है, भाई साब, अब्बी बीच में नहीं बोलने का. मां कसम, इसने अगर अब्बी का अब्बी फ़्लैट खाली नहीं किया तो इसका सारा सामान चौथे माले से नीचे फेंक दूंगा. नायर ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. उसके दिमाग में तो यही योजना उड़ान भर रही थी कि किस प्रकार फ़्लैट को हड़प लिया जाये. फ़्लैट का मालिक तो लन्दन में रहता है, भला उसके पास समय कहां है कि बम्बई आकर लफड़े में पड़े. उसे पूरी पूरी उम्मीद थी कि वह फ्लैट हथिया लेगा. किन्तु यहां तो पूरा मामला ही पलट गया था.

शुक्ला जी, आप जैंटलमेन आदमी हैं जी. आई रेसपेक्ट यू. अब यह गुण्डा मवाली की माफ़िक बात करेगा तो ठीक नहीं जी. नायर का सांस उखड़ने लगा था, चेहरे पर बदहवासी छा रही थी. और मैं स्वयं महसूस कर रहा था कि नायर की स्थिति कई स्तरों पर पतली हो रही थी.

मुझे अपने स्वर की शालीनता पर स्वयं ही आश्चर्य हो रहा था. देखिये मिस्टर नायर, पिछले दो सालों से आप हमें तंग कर रहे हैं. अगर पहले से ही आप हमारी बात मान लेते, तो यह हालात हम सब को नहीं देखने पड़ते. मैं शायद नायर की कही हुई बात से प्रभावित होकर जैंटलमेन बनने का प्रयास कर रहा था.

शुक्ला जी, हमको आपके घर में रहने का भी नहीं जी. सच बोलेगा तो, इस घर में कोई है जी, कोई रहता है बहुत तंग करता है जी. हमने कितनी पूजा करवाई जी, मगर कोई फायदा नहीं. रात को जब बेडरूम में सोता जी तो जैसे कोई मेरा गला दबाता जी. हमको ईदर रहने का कोई शौक नहीं जी. इस घर में भूत जी. नायर ने बेडरूम की तरफ इशारा करते हुए कहा.

अरे नायर, जब तुम उस भूत के पति को इतना परेशान करोगे, तो वो भूत तुमको छोडेग़ा क्या? ना जाने यह बात अचानक मेरे मुंह से कैसे निकल गई. लेकिन उसके बाद एक पल भी मेरा व्यक्तित्व वहां मौजूद नहीं रह पाया. रसोई के दरवाजे के निकट भीगी बिल्ली की गोद में डरा सहमा कुत्ता मुझे परेशान करने लगा.

चांदनी भी तो कई बार गुसलख़ाने से नहा कर यूं ही ठीक उसी स्थान पर खड़ी होकर मुझे आवाज़ लगाया करती थी. मैं चाहे कितना भी व्यस्त क्यों न होऊं, उस आवाज़ क़ो एक बार सुन लेने के बाद काम छोड़ देना विवशता हो जाती थी. चांदनी मेरे जीवन में वास्तविकता की ख़ुश्बू भरने वाली चांदनी मुझ जैसे बेवकूफ़ इंसान के जीवन में अक्ल का दिया जलाने वाली चांदनी. उस सिंह राशि वाली अप्रतिम सुन्दरी को कर्क रोग ने जकड़ लिया था. ठीक उसी जगह मेरी गोद में चांदनी ने मौत की हिचकी ली थी, जहां रात को नायर के अनुसार उसका गला एक अज्ञात शक्ति घोंटने लगती है. वही अज्ञात शक्ति कभी मेरे जीवन की सम्पूर्ण शक्ति थी.

पांच वर्षों तक कैन्सर से जूझती चांदनी अपने अंतिम दिनों में बस इसी कमरे में कैद हो कर रह गई थी. अस्पताल से उसके लिये एडजस्टेबल बेड ले लिया था. वह अस्पताल में नहीं मरना चाहती थी. घर में ही ऑक्सीजन, मॉरफ़ीन और अकेलापन _ वह सारा समय दीवार पर लगी काले रंग की घड़ी क़ो देखती रहती थी. उस घड़ी क़े डायल में मकड़ी क़ा जाला बना था और सैकण्ड के कांटे पर मकड़ी बनी थी. उसी मकड़जाल में गुम रहती चांदनी. शायद उसे अहसास हो चला था कि वह किसी भी घड़ी हमारा साथ छोड क़र जाने वाली है.

एक दिन वही चांदनी तस्वीर बन कर दीवार घड़ी क़े स्थान पर विराजमान हो गई. क्या वही नायर को यहां चैन से नहीं जीने दे रही थी ?

अरे, कितनी पूजा करवाई. केरल से पुजारी पण्डित बुलवाये, मगर वो तो जाने का नाम नहीं लेती, अक्खे घर में चलती फिरती दिखाई देती है.

तो घर खाली क्यों नहीं कर देते? पूजा पाठ के चक्करों में क्यों पड़े हो?

पूजा पाठ से चिन्तित सूरी साहब का फ़ोन लन्दन भी आया था, ओ शुक्ला जी, ओ हरामी बड़ा परेशान कर रिहा है. टैम ते किराया नहीं देंदा जे, ते चक्कर ते चक्कर लगवा रिहा है.मादर... ने लिविंग रूम दे विच छ: बाई छ: दा इक मन्दिर बनवा लिया जे. रोज पूजा ते पूजा करी जांदा है.

मैं परेशान, अपनी यादों के ताजमहल से दूर लंदन में बैठा. वहां की सर्दी में भी पसीना आ गया. अगर उसने अठ्ठारह बाई दस के कमरे में छ: बाई छ: का मन्दिर खड़ा कर दिया तो मेरा लिविंग रूम लग कैसा रहा होगा? लेकिन मन्दिर तो मैं ने रसोई में बनवा रखा था, एक छोटा सा लकड़ी क़ा मंदिर जनार्दन से बनवाया था. उसमें शंकर भगवान से लेकर ईसा मसीह तक को प्रतिष्ठित कर रखा था. फिर नायर को इतना बडा ढांचा लिविंग रूम में बनवाने की क्या जरूरत आन पडी थी?

सुनेत्रा मेरी वर्तमान पत्नी, तो घर किराये पर देने के शुरू से ही विरुध्द थी. वो बरस पडी, आप ना बस, अपने आप को ही अक्लमंद समझते हैं. वो चन्द्रकान्त आपका सगा हो गया वह है तो दलाल ही ना. पूरे अस्सी हज़ार खा गया हमारे. एक अनजाने आदमी के हवाले किराया लेने की ज़िम्मेदारी डाल आये. हमें तो पूरे एक लाख का फटका लग गया न. सोसायटी चार्ज दो हज़ार महीना जेब से गये और अस्सी हज़ार ऊपर से. जब मेरे लिये कोई चीज़ ख़रीदनी होती है तो बजट याद आ जाता है.

चन्द्रकान्त! वो अचानक अनजान व्यक्ति कैसे बन गया! जब चांदनी जीवित थी तो भाभी भाभी कहता थकता नहीं था. उसकी पत्नी मेघा तो मुझे राखी बांधने लगी थी. अपने लोग कितनी आसानी से धोखा देकर बेगाने हो सकते हैं. यह फ़्लैट भी तो उसी ने ख़रीदवाया था. कितना अपना सा बन गया था. सूरी साहब उस समय बिल्डिंग के सेक्रेटरी थे. चन्द्रकान्त ही उनसे मिलवाने ले गया था. कितनी बार तो भोजन भी हमारे साथ ही किया करता था. अरे पूरियां तो भाभी जी बनाती हैं, बस. और उस पर कद्दू की सब्जी. कमाल करती हैं भाभी. चन्द्रकान्त खाता भी जाता था और चांदनी की तारीफ़ भी करता जाता था. सूरी साहब हमेशा कहा करते थे, शुक्ला जी, दलालां नूं एन्नां ज्यादा मुंह ना लाया करो. दलाल पहले दलाल ते फेर कुझ होर.

और मैं सूरी साहब को खिसका हुआ माना करता था. चन्द्रकान्त मेरे कहे अनुसार नायर से पैसे तो वसूलता रहा लेकिन उसे मेरे बैंक के खाते में न डाल कर अपने खाते में जमा करवाता रहा. मैं जब भी लन्दन से फोन करके पूछता, तो जवाब मिलता, चिन्ता नको, भाई साहिब भाड़ा मैं ले आया था.

झूठ भी तो नहीं बोलता था. किराया तो ले आता था, लेकिन खा जाता था. बंबई के प्रति मेरे सारे भ्रम उसने तोड़ दिये थे. मैं तो घर किराये पर देना ही नहीं चाहता था, बस चन्द्रकान्त ने ही फंसा दिया था. भाई साहब आप भी कमाल करते हैं. सुना नहीं खाली घर भूत का वास. घर खाली रखेंगे तो दीवारें तक खराब हो जायेंगी. किराये पर दे देते हैं. भाड़ा हर महीने मैं कलैक्ट करता रहूंगा और आपके बैंक में जमा करवाता रहूंगा. कम से कम सोसायटी का तो खर्चा निकलता रहेगा.


काश! यह हो पाता. सुनेत्रा हमेशा कहती है, आपको बेवकूफ़ बनाना तो बहुत ही आसान है बस कोई आपकी थोड़ी सी तारीफ़ करदे कि आप कितने अच्छे हैं, कितनी अच्छी कहानियां लिखते हैं, बस हो गये आप उस पर फिदा! वो पांच हज़ार मांगे तो बस पकड़ा देंगे.

क्या बिना विश्वास यह जीवन की गाड़ी पटरी पर चल सकती है? जीवन में कहीं न कहीं, किसी न किसी पर तो विश्वास करना ही पड़ता है. किसी विश्वास के तहत ही तो हम अपने बच्चों को उनके स्कूल के अध्यापकों के हवाले कर देते हैं. यह भी तो एक विश्वास ही है कि पति पत्नी एक दूसरे को ज़हर देकर मारने का प्रयास नहीं करेंगे. हां जब विश्वास को ठेस पहुंचती है तो दर्द बहुत होता है न!

आज तो आलोक भी यही कह रहा है, आप भी कमाल करते हैं. मुझे क्यों नहीं सौंपी यह जिम्मेदारी.मुझसे कहा होता तो कम से कम यह दिन नहीं देखना पडता. आलोक चन्द्रकान्त नहीं बन जायेगा, यह भी तो विश्वास की ही बात है न. इस मामले में विश्वास तो करना ही पड़ता है. किन्तु विश्वास निभाया तो सूरी साहब ने. छड़े छांट अकेले रहते हैं. मजाल है किसी का अहसान रख लें. रिटायर्ड जीवन बिता रहे हैं. घर में बस एक नौकरानी है. किसी के जीवन में दखल नहीं देते. अपने काम से काम रखते हैं. आंख कान खुले रखते हैं. सब कुछ जानते हुए भी मस्त मौला बने रहते हैं.उनके साथ पहली मुलाक़ात की यादें बहुत कड़वी हैं. न जाने कब वे मित्र अन्तत: घर के सदस्य ही बन गये. चांदनी की बीमारी में अस्पताल ले जाने से भी पीछे नहीं हटते थे. सही आन बान वाले ठेठ पंजाबी. दिल के राजा. उनकी कड़वी बातों में भी एक सच्चाई होती है. उनका भी यही कहना था कि जब बम्बई छोड़ क़र लन्दन बसने जा रहे हो तो घर बेच कर जाओ. उस समय मुझे सूरी साहब पर संदेह हुआ था. क्योंकि फ़्लैटों की दलाली ही तो उनकी आय का मुख्य स्त्रोत है. शायद दलाली बनाने के चक्कर में हैं. उस समय चन्द्रकान्त बहुत अपना लग रहा था. उसका मीठा अपनापन सूरी साहब के कड़वे सच्चे अपनेपन पर विजयी हो गया. और पुरुषोत्तम नायर आ बैठा मेरे घर, जी, मेरी वाईफ़ है, दो बच्चे हैं. फिल्मों के लिये एक्स्ट्रा सप्लाई करने की एजेंसी है मेरी.


फ़िल्मी लोगों को तो फ़्लैट किराये पर देने के मैं शुरु से ही विरुध्द था. लेकिन चन्द्रकान्त अपनी लच्छेदार भाषा में मुझे समझा गया. बम्बई से विदा के समय वह अपनी मारुति वैन भी लाया था. सुबह साढ़े चार बजे एयरपोर्ट पहुंचना था. वह रात तीन बजे ही घर पहुंच गया.

चिन्ता तो करने का ही नहीं भाई साहब मैं हूं ना!