बेघर आँखें. (पृष्ठ-2) / तेजेन्द्र शर्मा
मुझे किसी काम के सिलसिले में सात महीने पश्चात लन्दन से वापस बम्बई आना पडा. पहला झटका लगा जब बैंक गया. चन्द्रकान्त ने बैंक में एक भी रूपया जमा नहीं करवाया था. उससे सम्पर्क किया, फोन उसकी पत्नी ने उठाया, अरे! भाई साहब, कैसे हैं आप? अरे,भाई साहब क्या बतायें धन्धे में ऐसी प्रॉब्लम आ गई थी कि आपके पैसे घर में ही खर्च हो गये. अपनी छोटी बहन समझ कर माफ़ कर दीजिये. बस एक डील फाइनल होने वाली है, सबसे पहले आपके ही पैसे वापस करेंगे. मैं आज तक समझ नहीं पाया कि उस अनदेखे चेहरे की आवाज़ पर न चाहते हुए भी कैसे विश्वास कर पाया. वैसे यह भी तो सच है कि मेरे पास और चारा भी क्या था? ग्यारह महीने पूरे होने में अभी चार महीने बाकी थे. या तो चार महीने का किराया भुला कर किसी और पर विश्वास करता. फिर यह भी तो परेशानी थी कि जिस किसी को बताऊंगा, वही मज़ाक उड़ाएगा. चन्द्रकान्त को बुला कर पास बिठाया और उसे समझाने की बेकार सी कोशिश करने लगा. जिन बातों पर स्वयं अपने आपको विश्वास नहीं था वो भला चन्द्रकान्त को कैसे समझा पाता?
लन्दन में रहने के कारण मेरी सोच में थोड़ा अन्तर तो आ ही गया था. चन्द्रकान्त से कहा कि भाई हमें अपना घर तो देख लेने दो. जरा पुरुषोत्तम नायर से अपॉइन्टमेन्ट तो पक्की कर लो.
लो आप भी कैसी बातें करते हैं भाई साहब. घर आपका है साला नायर जास्ती चूं चपड़ क़रेगा तो जूते लगा कर घर के बाहर करुंगा साले को.
फिर भी मैं नहीं माना. पुरुषोत्तम नायर को फ़ोन किया और चार बजे का अपॉइन्टमेन्ट लेकर ही घर की हालत देखने पहुंचा. घर के बाहर अभी भी चिरपरिचत सुरक्षा द्वार लगा था. दरवाजे पर स्वागत नायर के कुत्ते ने किया था. चांदनी भी तो हमेशा अपने कुत्ते शेरा की बातें किया करती थी. जब बचपन कानपुर में बिता रही थी, उन दिनों घर का एक सदस्य शेरा भी था. एक मामले में वो कुत्ता था बहुत समझदार. पूरे परिवार में वह चांदनी और उसके पिता से ही सबसे अधिक जुडा था. चांदनी के नेत्र सदा ही शेरा को याद करते हुए सजल हो उठते थे. शेरा, जिसे चांदनी गोद में बिठा लिया करती थी, कुछ ही दिनों में इतना बड़ा हो गया था कि चांदनी को अपनी पीठ पर बिठा कर पूरे घर में घुमा सकता था. एलसेशियन कुत्ता था - पूरी तरह से स्वामीभक्त.
किन्तु यह कुत्ता तो विचित्र ही था. बस घर में अपने होने भर का अहसास करवा रहा था. पूरे शरीर पर इतने बाल कि चेहरे और पूंछ का अंतर ही समाप्त हो गया था. अन्जान चेहरे और गंध की उपस्थिति को महसूस कर भौंकना ही उसका काम था.
दरवाजा एक युवती ने खोला था. भरे शरीर वाली केरल की सुन्दरता. बडी बडी आंखें, खिला रंग. अवश्य ही नायर की बेटी होगी. हैलो अंकल, आइए, आइए अंकल अन्दर आ जाइए. घर के अन्दर घुसते ही एक अजीब सी गंध नथुनों में घुस गई. अंकल शब्द सुन कर थोड़ा सा झटका लगा. मैं अपने व्यक्तित्व को संभाल कर रखता हूं. किन्तु अंकल! नायर भी घर में ही था. यह लडक़ी पहले तो नायर के साथ कभी दिखाई नहीं दी. शायद उसकी बेटी होगी. जानकी. हमारा भाई का छोकरी. नायर ने शायद मेरी नजरों की भाषा पढ ली थी. अबी छुट्टी मनाने को ईदर आई है.
इतने में एक काला कलूटा सा लडक़ा बेडरूम से बाहर आया. उसने एक बच्ची को गोद में उठा रखा था. एक औरत शायद उसकी पत्नी. एक बूढी औरत एक नौकर एक ड्राईवर यह नायर किस किस को हमारे घर ले आया है. जानकी की आंखों में अजब खिलन्दड़ापन मौजूद था. उसने लो कट ब्लाउज और पेटीकोट पहन रखा था. वह चाय का कप रखने के लिये थोड़ा झुकी तो अपना कुछ सामान मेरी आंखों में छोड़ ग़ई. भरा पूरा सामान.चाय का कप पकड़ाते हुए भी उसने प्लेट के नीचे से मेरे हाथ को छू लिया था. उस छूने में भी एक विचित्र सी शरारत मेरे पूरे जिस्म में गुदगुदी कर गई.
शुक्ला जी, यह फ्लैट को पेन्ट करवाना पड़ेगा जी. बहुत गन्दा दिखता जी. नायर मुझे स्वप्नलोक से धरती पर ले आया.
पुरुषोत्तम जी, अभी दस महीने पहले तो पेन्ट करवाया था. अब घर में कुत्ता हो, इतने सारे लोग रहें और देखभाल न हो, तो पेन्टिंग का खर्चा आपको ही करना पड़ेगा. मुझे स्वयं अपनी भाषा पर विश्वास नहीं हो रहा था. मुझ जैसा आम आदमी का समर्थक अचानक पूंजीवादी भाषा बोलने लगा था.
शुक्ला जी, रात का खाना ईदर ही खाने का. साऊथ इण्डियन खाना खाते ना?
क्यों नहीं,क्यों नहीं, जरूर खायेंगे पुरुषोत्तम भाई . मगर आज नहीं. आज तो कुछ कागज़ात निकालने हैं. अगर आपकी इजाज़त हो तो अपने कमरे का ताला खोल कर....
अरे, कैसी बात करते हैं शुक्ला जी, जभी मर्जी आवे, जो चाहने का लेकर जाइए न. चन्द्रकान्त ने मेरी ओर विजयी मुस्कान फेंकी - देखा मैं न कहता था. उसकी आंखें यही सन्देश प्रेषित कर रही थीं. फ्लैट भाड़े पर देते समय चन्द्रकान्त से मैं ने शर्त रखी थी कि एक बेडरूम में हमारा सामान रहेगा, और उसमें ताला लगा रहेगा. एक बेडरूम और एक लिविंगरूम ही भाड़े पर देंगे. हुआ भी यही.अपने कमरे तक जाते जाते मैं पैसेज में रुक कर बाथरूम का मुआयना करने लगा सीलन और पीलेपन की ऊबकाई वाली महक आ रही थी टॉयलेट फ्लश जैसे सदियों से साफ़ नहीं की गई थी. वाशबेसिन भी गंदा. बाथरूम की टाईलों पर भी गंद जमा था. जानकी मेरे पीछे चली आई थी. पीछे से छू कर बोली, अंकल, कबी बी आने का होये, तो आ जाया करो. उदर लन्दन में बहुत ठण्डी होती क्या?
सिहरन सी दौड ग़ई बदन में. न मालूम होंठों में क्या बुदबुदा कर रह गया. फिर से बाथरूम की ओर देखा.जब चांदनी जीवित थी तो उस बाथरूम में से चंदन की खुश्बू महका करती थी. चांदनी केवल चंदन वाला साबुन ही प्रयोग करती थी. जब गीले बाल लिये चन्दन की महक बिखेरती,बाथरूम से बाहर निकलती, तो लगता जन्नत धार्मिक किताबों से बाहर निकल कर आंखों के सामने जीवित हो उठी हो!
अपना बेडरूम खोला तो सात महीने की सीलन और घुटन ने मेरा स्वागत किया. मैं ने तुरन्त ही सभी खिडक़ियां खोल दीं, परदे हटा दिये. सूरज की रोशनी ने कमरे में प्रवेश किया तो जैसे कमरे में रखी वस्तुओं को नये जीवन का आभास हुआ. मुड क़र देखा तो जानकी अब भी शरारती आंखों से देख कर मुस्कुरा रही थी. आगे बढ क़र, मुझसे लगभग सट कर खडी हो गई., अंकल, अंदर सबी ठीक है न? यह कैसी परीक्षा ले रही है जानकी और क्यों? कहीं यह नायर की चाल तो नहीं?
मैं ने राशनकार्ड और अन्य कागज़ निकाले, नायर को नमस्कार किया. जानकी की आंखों को बता दिया कि वह मुझे अच्छी लगी थी. किचन, बाथरूम की चिक्कट गन्दगी को भुलाता हुआ पड़ोस के रोशन अग्रवाल के दरवाजे पर दस्तक देने लगा. वह आजकल सोसायटी का चेयरमेन है.
यार शुक्ला जी, आप भी कमाल के आदमी हैं. कैसे लोगों को फ़्लैट भाड़े पर दे दिया. सोसायटी तो आपके खिलाफ रिजोल्यूशन पास करने वाली थी वो मैं ने किसी तरह रोक लिया आपके साथ पुरानी दोस्ती है.
साला पाखण्डी. मुझे बेवकूफ बनाने पर तुला था. परन्तु मैं तो गलत साबित हो ही चुका था. चन्द्रकान्त और नायर मुझे गधा साबित कर ही चुके थे. सुनेत्रा से जब सामना होगा तो बातों के ऐसे तीर मारेगी जो असह्य हो जायेंगे. प्रकट में मुस्कुराने के सिवा मेरे पास कोई चारा भी तो नहीं था.
क्यों रोशन भाई क्या हो गया?
अरे धन्धे वालों को फ़्लैट भाड़े पर दे दिया आपने.
तो क्या बेकार लोगों को देता? यार भाड़ा देने वाले कोई न कोई तो धन्धा करेंगे ही न? उस कठिन परिस्थिति में भी मैं चुहल करने से नहीं चूका.
आप भी कमाल करते हैं साहब. यह जो नायर के घर रहती है न जानकी, साली धंधा करती है. एक दिन तो मुझ से ही रात का सौदा करने बैठ गई थी जानती नहीं कि हम शादी-शुदा शरीफ़ लोग हैं.
आखिरी बात उसने अपनी पत्नी को देख कर कही थी. अग्रवाल की पत्नी भी मुझे अंकल कहती है. अब देखिये न अंकल, शरीफ़ों का तो बिल्डिंग में रहना ही मुश्किल हो गया है. और मैं अवाक् उस औरत को देखे जा रहा था जो कि अग्रवाल के साथ घर से भाग आई थी. और आज शराफ़त का ढिंढोरा पीटे जा रही थी. मैं शायद उसकी बात समझने का प्रयास भी करता, किन्तु अंकल सुनने के पश्चात तो गुस्से पर काबू रख पाना भी मुश्किल हो रहा था.
चौथे माले से नीचे उतरते समय चन्द्रकान्त अपनी ढफली बजा रहा था. भाई साहब, अगर आप नायर से नाराज हैं तो साले को निकाल बाहर करते हैं, और दूसरा किरायेदार रख लेते हैं. आप तो जानते हैं कि अपना काम तो एकदम पक्का रहता है. हरामी! किराया तो साला खुद खा गया है, अब डिपॉजिट पचास हजार कहां से वापस करेगा? लन्दन वापस चलने से पहले धडक़ते दिल से सूरी साहब से बात कर ही ली, ओ यार शुक्ला जी, तुसी वी कमाल करदे हो. मैंनू दसना सी. मैं मायहवे दे गल विचों हथ पाके पैसे कढवा लैंदा.
बस तय पाया कि सूरी साहब हर महीने पुरुषोत्तम नायर से पैसे लेकर मेरे बैंक के खाते में जमा करवाते रहेंगे. सूरी साहब की कड़वी मगर सच्ची बात कान में पड़ी _ देखो शुक्ला जी, अज दे जमाने विच कोई वी काम मुफ़्त विच नहीं हौंदा है. साढा हिसाब एह रहेगा कि मैं तुहाडे घर दा पूरा ख्याल रखांगा, किराया क्लैक्ट कर के बैंक विच जमा करावांगा तो ओस दे बदले पंज सौ रूपया महीने मैं चार्ज करांगा.
सूरी साहब की स्पष्टवादिता बहुत पसन्द आई. उनसे हाथ मिलाया और वापिस लन्दन चला आया. अबकी बार न तो चन्द्रकान्त की पत्नी ने मेरे नाम कोइ सन्देश भेजा और न ही चन्द्रकान्त रात को अपनी मारुति वैन में मुझे एयरपोर्ट तक विदा करने आया. आलोक आज भी आशा लगाये बैठा था कि मैं घर का उत्तरदायित्व उस पर छोड़ क़र जाऊंगा. किन्तु वह इस काम का ज़िम्मा स्वयं आगे बढ़ कर नहीं उठाना चाहता था. मैं तो भाड़े क़ा जिम्मा सूरी साहब के सिर लगा कर लन्दन वापस चला गया. किन्तु अब परेशानी शुरु हुई पुरुषोत्तम नायर के लिये. सूरी साहब बिना झिझक हर पहली किराया वसूलने पहुंच जाते नायर के पास. वह उनसे बचता फिरता, बहाने खोजता, किन्तु सूरी साहब ने जिस बात की ठान ली सो ठान ली. पहले दो तीन महीने तो एकाध सप्ताह के विलम्ब से पैसे आते भी रहे. उसके बाद तो सूरी साहब जैसा दबंग व्यक्ति भी परेशानी महसूस करने लगा. उनका माथ ठनका जब वे किराये के सिलसिले में घर पहुंचे और वहां उन्होंने लिविंग रूम में छ: बाई छ: फुट का एक नया ढांचा खड़ा देखा. सूरी साहब हक्के बक्के रह गये सोच रहे थे कि क्या जवाब देंगे शुक्ला को. भला एक विवादित ढांचा घर के अन्दर कैसे?
सूरी साहब, ईदर घर में भूत प्रेत बहुत होने का जी. खास केरल से पंडित जी को बुलवाया जी. एक महीना तलक पूजा चलेगा. ईदर तो रहना भी मुश्किल हो गया जी.
तेरी मां का..... नायर. पूजा के लिये घर में यह तोड़ फ़ोड़ का क्या मतलब है? इस साले को अभी का अभी तोड़ ..... नहीं मांगता है यह लफड़ा इधर.
अरे सूरी साहब, घर आपका, शुक्ला जी का, हम तो बस ईदर पूजा करता जी. कोई रण्डीबाजी तो नहीं करता न जी.
सूरी साहब परेशान. उल्लू का पट्ठा नायर, पूजा पण्डितों पर तो ख़र्च कर सकता है. मगर भाड़ा देते समय साले की मां मर जाती है. पूजा के उठते धुएं से कमरे की छत काली पड़ ग़ई है. जाले लटकने लगे हैं. किचन के प्लेटफार्म पर मैल जमने लगा है.सफेद मार्बल पीला और काला पड़ने लगा है. अलमारी का सनमाईका जगह जगह से उधड़ने लगा है, बाथरूम का पेंट गलाज़त की अलग कहानी सुना रहा है. सूरी साहब प्रतीक्षा में हैं कि शुक्ला का फ़ोन कब आता है. अब तो फ़्लैट खाली करवाना ही पड़ेग़ा.
लंदन से किसी को भी फोन करने से पहले मेरा दिल धक धक करने लगता था _ तो वे थे सूरी साहब. डर लगता था कि न जाने फ़्लैट के बारे में क्या अशुभ समाचार सुनने को मिलेगा. लिविंग रूम में मंदिर के बारे में सुनने के बाद तो सुनेत्रा के लिये और अधिक बरदाश्त कर पाना असंभव था. उसने मुझे ऐसी हिकारत भरी निगाह से देखा कि मेरे लिये बम्बई का टिकट कटवाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचा.
सूरी साहब ने अन्तत: नायर को फ़्लैट खाली करने का नोटिस दे डाला.
काये का खाली करने का जी. तुम अपना कीम्मत बोलो जी.मैं यह फ़्लैट खरीद लेंगा. अबी तो मैं केरला जाता. उदर शादी है. सूरी साहब चुप. यह भी नहीं पूछ पाये कि आखिर शादी है किसकी? बेटे की या फिर बेटी की.
मेरी फ़्लाईट रात के साढ़े बारह बजे छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट पहुंची. प्रकाश और उसकी पत्नी दोनों मुझे लिवाने हवाई-अड्डे पहुंचे थे. प्रकाश और हनी जैसे मित्र अपने जीवन की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धियों में से एक मानता हूं. प्रकाश जैसा प्रतिबध्द मित्र अंग्रेज़ी में कहा जाये तो एक एन्डेंजर्ड स्पीशी है. ऐसे लोग दुनिया में बहुत ही कम बचे होंगे. प्रकाश ने देखते ही हांक लगाई _ ओए कालियां मुच्छां ते चिट्टे बाल, वेखो लन्दन दे कुक्कड़ ख़ान वाले पंडत दा हाल!
वह मुझे अपने घर ले गया. उसके घर रहने का एक निजी लाभ यह भी था कि सुबह छ: बजे उठ कर भी नायर के घर पर धावा बोला जा सकता था. हनी ने सुबह सुबह उठ कर चाय बना दी थी. प्रकाश तो रात वाले कुर्ते पजामे में ही साथ हो लिया. पहले हम सूरी साहब के घर पहुंचे. कोई औपचारिकता नहीं बस साथ हो लिये. मैं अपने धडक़ते दिल को नियंत्रण में रखने का प्रयास कर रहा था. चौथे माले के अपने आठवें फ्लैट में दस्तक दी. दरवाज़ा जानकी ने ही खोला. आज वह मुझे देख कर अदा से मुस्कुराई नहीं. फिर भी चेहरे पर असफल हंसी लाते हुए बोली, अंकल, नायर तो इद्दर नहीं है. शादी बनाने को केरला में गया है. दो दिन के बाद आने वाला है.
यानि कि जानकी को भी ख़बर है कि मैं लन्दन से ख़ास तौर पर घर ख़ाली करवाने के लिये आया हूं।
अब शुरु हुआ नाटक का पहला भाग. हम लोग घर के अन्दर घुसे और घुसते ही सूरी साहब ने शुरुआत की, देखो शुक्ला जी, मांयावे ने पयो वाला मंदिर खड़ा कर ता है. मैं कहना, पहले तां कारपेन्टर बुलवाओ, ते एह मंदिर तुड़वाओ. सूरी साहब अपनी नौकरानी भामा को साथ लाये थे,
शुक्ला जी, नाल जनानी होणी जरूरी होन्दी है. ओथे जे असी सारे जेन्ट्स ही होवांगे, ते किसे वी तरह दा ब्लेम लग सकदा है. वहीं से हनी को भी फोन कर दिया था. वह भी साथ हो ली थी. कारपेन्टर आया. पन्द्रह बीस मिनट में मंदिर का अस्तित्व समाप्त हो चुका था. मन में कहीं अपराधबोध भी था कि मंदिर टूट गया. कैसे कभी मस्जिद टूटती है तो कभी मंदिर. होते दोनों ही विवादित हैं. किन्तु सचमुच आश्चर्यचकित करने वाली यह बात थी कि जानकी या फिर नायर के ड्रायवर ने इस मुहिम में कोई भी समस्या नहीं खड़ी क़ी.
जानकी नायर तुम्हारा क्या लगता है. मैं पूछे बिना न रह सका.
मेरे बाप का दूर का भाई लगता है. जानकी का दो टूक जवाब हाजिर था. अंकल, इस आदमी का अक्कल ही मारा गया है. इतना पैसा पुजारी लोगों पर खर्च किया. रात भर पूजा चलता था. दारू, मटण! न मालूम क्या करता है. अबी अपनी सादी बनाने गया है.
क्या भैनचो अपणी शादी बनाने गया है? अब सूरी साहब के हैरान होने की बारी थी.
अंकल! जानकी की आंखों में पहली बार विचित्र सी सच्चाई दिखाई दी. बस दो दिन की ही तो बात है. हम को अबी घर से नहीं निकालो. नायर जैसे ही वापिस आता, हम तबी का तबी चला जायेंगा. वैसे मैं तो कल ही चली जाने वाली है.
मैं ने सूरी साहब की तरफ देखा. इससे पहले कि वे कुछ बोल पाते, प्रकाश बोल उठा, ठीक है लडक़ी, तुम जैसे भी हो, नायर को फोन कर दो कि अगर दो दिन में केरल से वापस नहीं आया तो हम सारा सामान उठा कर बाहर फेंक देंगे.