बेघर आँखें. (पृष्ठ-3) / तेजेन्द्र शर्मा

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जानकी से अधिक हैरान तो मैं था कि किस प्रकार प्रकाश ने स्थिति की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी. मैं ने एक बार फिर अपने बेडरूम का ताला खोला, वहां दीवार पर लगी चांदनी की फ़ोटो को साफ़ किया, खिड़क़ियां खोलीं, कमरे को प्रकाश के कुछ घूंट पिलाये और यह भी पक्का कर लिया कि सामान से किसी प्रकार की छेड़छाड़ तो नहीं की गई है. सूरी साहब भी प्रकाश के तेज के सामने चुप्पी लगा गये थे.

सामने वाले घर से इमरान की शिकायत सबसे पहले सुनने को मिली, यह क्या अंकल, कैसे आदमी को घर भाड़े पर दे दिया. मालूम नहीं कैसी गन्दी पूजा करता है. चूहों का खून निकाल कर चढाता है. मैं शायद इमरान की कही बात को हिन्दु पूजा के विरुध्द आक्रोश मात्र मान लेता. किन्तु घर में भागते चूहे अपनी आंखों से देख कर आ रहा था.

अपुन तो आपकी रेसपेक्ट करता है, नहीं तो स्साले को टपका डालेगा एक दिन. बोल देना उसको. यह सुन कर मन में एक नीच विचार कुलबुलाया. अगर इमरान नायर को टपका दे तो अपना काम बन जायेगा फिर इमरान के तो अण्डरवर्ल्ड के साथ सम्बन्ध भी हैं. क्या इमरान सचमुच ऐसा कर सकता है? यह मध्यवर्गीय विचार जितनी तेजी से दिमाग़ में आया उससे भी अधिक द्रुतगति से बाहर भी हो गया. चौथे माले से उतरा तो धोबी, एसटीडी वाला, केबल वाला, दूध वाला सभी को मुझसे एक ही शिकायत थी कि कैसे आदमी को फ्लैट किराये पर दे गया. सभी के पैसे नायर पर बकाया थे. ऐ सेठ, उसको निकालने से पहले हमारे पैसे डिपाजिट में से जरूर काट लेना.

डिपॉज़िट माय फुट!

अब हमारी टोली चली सूरी साहब के घर. उनकी नौकरानी भामा चाय बना लाई. हमारा अगला कदम क्या होना चाहिये? अगर नायर वापिस नहीं लौटा, तब क्या होगा? आख़िर मैं छुट्टी और कितने दिन के लिये बढ़वा पाऊंगा? बहुत कठिनाई से तो दस दिन की छुट्टी मंज़ूर करवा पाया था. मां से मिलने जगरांव भी जाना था. क्या वहां का कार्यक्रम स्थगित कर दूं? सुनेत्रा तो बहुत नाराज़ होगी यदि मां से बिना मिले वापस चला गया. और फिर इतनी देर से भारत आकर मां से न मिलूं तो यह बदतमीज़ी ही होगी. सूरी साहब ने मशविरा दिया, देखो शुक्ला जी, पहले तां चलिये तुहाडे दलाल नूं मिलिये. ओसदा कम है घर खाली कराके देणा. दूजा, जे तुसी पुलिस दा मामला संभाल सकदे हो, ते मैं चार बंदे बुलाके सौरे दा सामान थल्ले सुट देन्ना.

नहा धोकर तैयार हुए. ...चन्द्रकान्त का ऑफिस.... वहां जाकर अपने भाग्य पर रोना आ गया. चन्द्रकान्त तो अपना काम धंधा बन्द करके मीरा रोड चला गया था. किसी को अपना नया पता तक नहीं दे कर गया था. यह विचार तो सपने में भी नहीं आ सकता था कि चन्द्रकान्त ऑफिस को ताला लगा कर सरक लेगा. आपके कितने अंटी कर गया है? सामने से प्रश्न सुन कर एक और झटका लगा. यहां तो जो भी उसे पूछने आ रहा है, किसी के दस ले गया है तो किसी के पन्द्रह. एक के तो चालीस गोल कर गया है. सामने वाले को क्या बताता कि मुझे अस्सी हज़ार की चपत लगा गया है.

मीनाक्षी की याद आ गई. उसकी पुलिस में अच्छी पहचान है. अब मीनाक्षी के साथ डी.एन. नगर पुलिस स्टेशन. मन में एक विचार यह भी आ रहा था कि नायर को वापिस आ लेने दूं. यह भी तो हो सकता है कि वह आकर स्वयं ही फ़्लैट खाली कर दे. उहापोह में मीनाक्षी से ढंग से बात भी नहीं कर पाया. वह मेरी स्थिति को भलीभांति समझ रही थी. वह तो सदा ही मेरी स्थिति समझती रही है. बिना किसी अपेक्षा के, सदा से ही मेरे सभी काम अपने जान करती रही है. कई बार सोचता हूं कि प्रकाश, हनी, मीनाक्षी, अरुण, कमल, विजय, करन कितने नाम हैं जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के मेरे कई काम किये हैं. क्या मैं भी उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरा होऊंगा? मेरी ही तरह वे भी तो ऐसे मित्र की चाह रखते होंगे जो बिना स्वार्थ के उनके काम आये. क्या मैं केवल आत्मकेन्द्रित व्यक्ति हूं?

इंस्पेक्टर शेंडे ने मीनाक्षी और मुझे बिना प्रतीक्षा करवाये अपने कमरे के भीतर बुलवा लिया है.

देखिये मि.शुक्ला, यह मामला है सिविल का. नायर ने आपका ताला तोड़ क़र उस पर कब्ज़ा तो नहीं किया है न! दूसरे आपके पास ऐसा कोई डॉक्यूमेन्ट भी तो नहीं जिससे पता चले कि आपने अपना फ़्लैट उसे लीव अण्ड लाईसेन्स पर दिया है. पिछले साल से इस बारे में भी नये कानून बन गये हैं. आपको पुलिस स्टेशन को भी सूचित करना होता है, लाईसेंसी की फ़ोटो जमा करवानी होती है और फ़ीस भी भरनी होती है. इस मामले में पुलिस आपकी कोई सहायता नहीं कर सकती.

मैं बेवकूफ़ की तरह कभी मीनाक्षी को तो कभी इंस्पेक्टर शेंडे को देखे जा रहा था. मीनाक्षी ने मराठी में इंस्पेक्टर शेंडे से कहा, तुम्हाला काहीतरी करायलाच लागेल, साहेब.

इंस्पेक्टर शेंडे ने सपाट स्वर में कह दिया, हां, हम ऑफ़ द रिकॉर्ड, एक मदद कर सकते हैं. आप जा कर उसका सामान घर से बाहर फेंक दीजिये. वो हमारे पास रिर्पोट लिखवाने आयेगा हम रिर्पोट नहीं लिखेंगे, उल्टा उसे कुछ देर थाने में बिठाये रखेंगे ताकि आपको अपना ऑपरेशन पूरा करने का मौका मिल जाये.इससे ज़्यादा की आप हमसे उम्मीद न करें.

मैं वापस सूरी साहब के घर! फिर विचार विमर्श, देखो शुक्ला जी, तुसी दो दिन वेट करो. नायर दी एबसेंस विच उसदा सामान सुटांगे, ते पंगा हो जायेगा. तुहाडे क़ोल इक कमरा तां हैंगा ही. असी दस बन्दे उत्थे बैठ जावांगे, ते ओसदी यही तही कर देवांगे. चल्लो तुहानू पाटिल कोल लै चलना. शिवसेना दा बंदा है, कम हो जायेगा.

मुंडे सिर वाला पाटिल मिल गया. देखने से ही विश्वास हो चला था कि यदि यह आदमी चाहे तो हमारा काम हो सकता है. कहने को तो विश्वास पाटिल फ़्लैटों की दलाली करता है, मगर अंदर खाते क्या चलता है राम जाने. अपुण कौण सी बिल्डिंग में रहने का?

गंगा भवन, पाटिल. अपनी ही बिल्डिंग में. सूरी साहब ने जवाब दिया.

कौन सा फ्लैट.

चार सौ तीन दूसरे विंग में है.

ओ, वो वाला. तुम्हारे फ़्लैट की तो अखी मार्केट में बहुत बदनामी हो रखी है सेठ. उसमें तो धंधा चलता है. पाटिल ने आंख दबा कर कहा.

धंधा यानि? मैं आश्चर्यचकित पाटिल की तरफ ताके जा रहा था.

धंधा नहीं समझता क्या सेठ? धंधा यानि कि धंधा.

पड़ोस के रोशन के शब्द एक बार फिर कानों में टेलीफोन की ग़लत कॉल की तरह बजने लगे थे.जानकी... धंधा... नायर... फिल्मों के लिये मॉडल... और एक्स्ट्रा सप्लायर! धंधा!

चांदनी के मंदिर जैसे घर का नाम धंधे से कैसे जुड़ गया? चांदनी के अंतिम क्षणों की कुछ खोजती आंखें मुझसे जवाब मांग रही थीं. उसके घर की पवित्रता को बदनाम करने का उत्तरदायी तो मैं ही था. चंदन के साबुन से नहाई गीले बालों वाली चांदनी की आंखों में अब भी वही प्रश्न टंगा है. ऐसा कैसे हो गया है?

सूरी साहब स्थिति की नज़ाकत भांप चुके थे, ओह, शुक्ला जी, घबरान दी कोई गल नहीं. लोकां दा की है? लोकी तां भौंकते रहंदे ने. तुसी सुणया नहीं.

मैं क्या सुनता? मेरा घर, जिसमें निमंत्रित होकर मित्र गौरवान्वित महसूस करते थे, आज वही घर धंधे के लिये बदनाम हो चुका है. जानकी की वो मुस्कुराहट आज बहुत ज़हरीली महसूस होने लगी थी.

बस तय हो गया, नायर के वापस आते ही, पहले तो नम्रता से उससे पेश आते हैं, अगर वो नहीं मानता, तो बस पाटिल के आदमी आकर उसका सामान उठा कर बाहर कर देंगे. हां, इंसपेक्टर शेंडे को अवश्य सूचित करना पड़ेग़ा. किन्तु नायर के लौटने में तो अभी दो दिन बाकी थे. सूरी साहब की बात दिल को जम गई कि यदि बम्बई में रहा तो परेशान ही रहूंगा, पंजाब जाकर मां से मिल आऊं. संभवत: मां का आर्शीवाद ही कोई चमत्कार दिखा दे.

मां को भी ख़ुश कहां कर पाया. उसे शिकायत थी कि यह आना भी कोई आना हुआ ? न मां के पास बैठे न ढंग से बातचीत की. बहन अलग नाराज़ मां - बहन को नाराज़ क़र दो दिन में ही बम्बई वापस भी लौट आया. सामने फिर जानकी थी. नायर को एक दिन बाद का टिकट मिला था. नायर रात को पहुंचेगा.एक एक पल बिताना कठिन हो रहा था. रात भर बिस्तर में करवटें बदलता रहा. प्रकाश मेरी परेशानी को सही ढंग से समझ रहा था. शायद इसलिये अपनी पत्नी के साथ बेडरूम में न सोकर, मेरी बगल में ही फ़र्श पर बिस्तर लगा कर लेट गया. हम दोनों बातें करते रहे. कई बार ऐसा भी हुआ कि प्रकाश की बात का उत्तर कमरे के अंधेरे में कहीं खो गया. मैं लेटा लेटा चांदनी के अंतिम दिनों के बारे में सोचता रह गया. प्रकाश ने मुझे बम्बई से विदा करते समय कहा था, पण्डित जी, यह चौथे माले का आठवां फ़्लैट न जाने कब और कैसे मेरा अपना बनता चला गया, यह तो याद नहीं पड़ता. उसकी बात की गूंज मुझे लन्दन में भी सुनाई देती रही.आज उसी चौथे माले के आठवें फ़्लैट पर बदनामी की मुहर लगा कर भी नायर वहीं जमा हुआ है.

सुबह को होना ही था और वह हो भी गई. हनी ने आज दफ्तर से अवकाश ले रखा है. सुबह सात बजे अपने ही घर की घंटी बेगानों की तरह बजाई. चार पांच घंटियों के बाद नायर की आवाज सुनाई दी. मन को तसल्ली मिली कि चलो लौट तो आया है. यदि केरल में बैठा रहता तो हमारे लिये कार्यवाही करना कितना मुश्किल हो जाता. दरवाज़ा खुला, शुक्ला जी! आइये, आइये. सूरी साहब ने मुझे बोलने का अवसर ही नहीं दिया, अब बोल भैन्चो, मुझे बोला दो दिन में फ़्लैट खाली करता हूं, और बिना बताये केरल चला गया.

ये कैसा लैंग्वेज यूज करता मिस्टर सूरी! आप तो कितना बार हमारा घर में आया. हम तो आपके साथ कितना डीसेन्ट बात करता जी.

शुक्ला जी, तुसी हुण ऐस कोलों पुच्छो कि मांयावा मैंनू झांसा देके ग़ायब किवें हो गया. सूरी साहब के नथुने फूल रहे थे.

मैं शर्मिंन्दगी से गड़ा जा रहा था. सूरी साब की ओर देखा, भरा जी, इक मिन्ट, मैं गल कर लवां? मिस्टर नायर, हमारी कुछ शिकायतें हैं.

बोलिये न, शुक्ला जी. आप एकदम जैंटलमेन आदमी हैं. मैं आपका बहुत रेसपेक्ट करता जी.

मिस्टर नायर, जब आपने हमारा घर किराये पर लिया था, उस समय आपने बताया था कि फ्लैट में आप, आपकी पत्नी और एक बेटी रहेगी. यहां तो आप पूरी बारात के साथ एक कुत्ता भी रखे हैं. इतने में कुत्ते ने कुनमुनाने और भौंकने के बीच की सी आवाज निकाली. शायद उसे कुत्ता कहा जाना अच्छा नहीं लगा था.

वो तो शुक्ला जी, अबी फैमिली होयेंगी तो गेश्ट लोग तो आयेंगे ना जी!

फिर आपने भाड़ा टाईम पर नहीं दिया कभी.

अरे साब, जबी चन्द्रकान्त आता था तो भाड़ा टाईम पर ही ले जाता था न जी.


मैं नायर की चाल को अच्छी तरह समझ रहा था. वो जानता था कि चन्द्रकान्त से मेरे सम्बन्ध बिगड़ चुके हैं. भूतनी के, चन्द्रकान्त की बात क्या करता है. मुझसे बात कर. मुझे नीचे देखता है तो मुंह फेर लेता है. घर में छुप कर बैठा रहता है, लेकिन मुझसे मिलने को साफ मना कर देता है. चूतिया समझ रखा है क्या हम सबको? सूरी साहब का बस चलता तो नायर के मुंह पर झापड़ मार देते.

जरा आहिस्ते बात करो न मिस्टर सूरी. मेरा नया वाईफ ऐसा बात सुनेगा, तो क्या इंप्रेशन पडेग़ा जी?

आप खुद शादी करके आये हैं मिस्टर नायर? मैंने अनजान बनते हुए आश्चर्य प्रकट किया.

शुक्ला जी, यही तो चक्कर हो गया जी. मुझे अचानक शादी बनाना पड़ गया जी.

शुक्ला जी, ऐस हरामी कोलों पुच्छो, अपणी मां वाला मंदर किस दे कोलों पुछ के बणवाया सी?

मिस्टर नायर, आपने हमारी परमिशन के बिना मंदिर कैसे बनवाया?

शुक्ला जी, तुसी बहस बन्द करो जी. नायर फ्लैट कभी खाली करता है? अब्बी का अब्बी बोल।

अबी आज तो सादी बनाके आया जी. मुझे थोड़ा टाईम तो चाहिये न इंतजाम के वास्ते.

मिस्टर नायर, कल शाम को चार बजे हमें फ़्लैट खाली चाहिये. प्रकाश अपना निर्णय सुना कर उठ खड़ा हुआ.

ऐसा कैसे होयंगा जी. बस एक दिन में . कुछ सोचते हुए नायर बोला, हमको एक हफ़्ता का टाईम और दे दो जी.

पहले टाईम दिया तो शादी बनाने चला गया. अब्बी टाईम मिलेगा तो बच्चा पैदा करने चला जायेगा. हमको कल शाम को चार बजे फ़्लैट खाली चाहिये. समझ गया न! सूरी साहब भी उठ खडे हुए.

मेरी नजरें अब भी जानकी को ढूंढ रही थीं.चौथे माले के आठवें फ्लैट पर बदनामी का टीका लगाने वाली जानकी.शायद वो हालात पहले ही भांप गई थी इसलिये नायर की अनुपस्थिति में ही चली गई. या फिर हो सकता है कि सो रही हो. किन्तु बेडरूम में तो नायर की नई पत्नी सो रही है. फिर जानकी! जा चुकी जानकी!

जाने को हम सब उठ खड़े हुए. कुछ फिल्मी दृश्य याद आ रहे थे तो कुछ कहानियां भी. मेरी सहानुभूति सदा ही किरायेदार के साथ रही है. मकान-मालिक तो हमेशा मेरे लिये पूंजीवाद का प्रतीक रहा है. आज पहली बार मकान-मालिक का दर्द समझ आ रहा था, महसूस हो रहा था. सच बहुत दर्द होता है. रातों की नौकरियां करके जोड़े पैसे से बनाये घर पर जब अनिश्चितता के बादल छाने लगते हैं तो बहुत दर्द होता है. मेरा छद्म- मार्क्सवाद आज अचानक कहीं उडन-छू हो गया था. इतने तनावपूर्ण माहौल में भी मैं मुस्कुराये बिना न रह पाया था, जब मेरे मार्क्सवादी मित्रों ने सलाह दे डाली,

यार किसी शिवसेना वाले को जानते हो. बम्बई में तो वही नैया पार लगवा सकते हैं.

शिव! शिव! करते हुए घड़ी क़ी सुई आगे खिसक रही थी. शिवसेना के नाम पर ही मिलिन्द और महेश की याद आई थी. मिलिन्द तो शाखा प्रमुख भी है. छ: फुट तीन इंच लम्बा महेश कभी हमारा पड़ोसी हुआ करता था. स्थानीय एम. एल. ए. परब का दायां हाथ. उसको फोन मिलाया तो मेरी अपेक्षा के एकदम विरुध्द एकदम साथ चलने का तैयार हो गया.

निर्धारित समय पर हमारी सेना नायर पर धावा बोलने के लिये सोसायटी में दाखिल हुई. सूरी साहब ने सेनापति का पद संभाला. महेश ने गांडीव उठाया. पड़ोसी राजू ने शंख बजाया. प्रकाश, हनी और मीनाक्षी सेना के थिंक टैंक बने खड़े थे. और विश्वास पाटिल के चार सैनिक आदेश की प्रतीक्षा में थे.

इस सब में मेरी भूमिका क्या थी?

हम थोड़ा ठिठके. नीचे कम्पाऊण्ड में ही एक लम्बा चौडा, काला, बड़ी बड़ी मूंछों वाला, काला चश्मा लगाये एक व्यक्ति दिखाई दिया. भाई साब साला पूरी तैयारी में है. महेश मेरे कान में फुसफुसाया. उस काले व्यक्ति ने अंग्रेजी में पूछा, डू यू रेकगनाईज मी, मिस्टर शुक्ला?

मेरे चेहरे पर अनिश्चितता के भाव देख कर वह व्यक्ति स्वयं ही बोला, लेकिन इस बार हिन्दी में, मैं कांबले. मेरा ऑफिस आपके एजेन्ट चन्द्रकान्त के एकदम बगल में ही था. आप उदर आते थे, तो मेरे साथ भी इन्ट्रोडक्शन हुआ था.

माफ कीजिये मैं ने आपको पहचाना नहीं. आप यहां कैसे?

कुछ नहीं, बस वो नायर के बारे में थोड़ा बात करने का था.

महेश हत्थे से उखड़ ग़या, काय झाला? तुम कोई गुण्डा मवाली है जो हमको अपने फ़्लैट में जाने से रोकेगा?

अरे, हम ऐसा किदर बोला. अपुन तो बस इन्सानियत की खातिर बोला कि उसको दूसरी जगह खोजने के लिये थोड़ा बखत दे दीजिये.

हमको लेक्चर नहीं मांगता. अपुन का नाम महेश दलवी. अक्खा अंधेरी में किसी को भी पूछ लेने का. समझा?

कांबले चुप खड़ा रह गया. एक बार काला चश्मा उतारा, उसे साफ़ किया, फिर से आंखों पर चढ़ा लिया. फिल्मी विलेन अजित के रॉबर्ट सरीखा दिखाई देने वाला कांबले, महेश की एक घुड़की के आगे सहम गया था. वह हमारी सेना के साथ चौथे माले के आठवें फ़्लैट की ओर चल दिया.

पहली बार नायर घबराया सा लगा, शुक्ला जी, अबी तो अरेन्जमेन्ट नहीं हुआ है जी. अमको एक हफ़्ता का टाईम और दे दो जी. जिदर आपके घर में इतना बखत रहा एक हफ़्ते में क्या फ़र्क पड़ना जी. मेरी आंखें सूरी साहब की तरफ मुड़ ग़ईं. सूरी साहब का गुस्सा संभाले नहीं संभल रहा था, मादर...! हमको क्या पागल समझ रखा है? यह तेरा नाटक अभी और चलने वाला नहीं. हमको फ़्लैट अभी का अभी खाली मांगता है.

शुक्ला जी आप जैंटलमेन आदमी हैं. आप सोचो जी, एकदम नई वाईफ़ को लेकर रोड साईड पर तो नहीं जा सकता है न जी! नायर का गिड़गिड़ाना उस गीले बालों वाली नई पत्नी की आंखों में भय की भावना को और गहरा बना रहा था. वह तय नहीं कर पा रही थी कि अगले कुछ पलों में क्या घटित होने वाला है.

नायर कुछ याद करके एक और फ़ोन मिलाता है. काफी देर तक घंटी बजने के बाद शायद किसी ने दूसरी ओर से फ़ोन उठाया है. बातचीत मलयालम में हो रही है. इसमें हमें कुछ समझ नहीं आ रहा. किन्तु भयभीत आंखों को अब स्थिति ठीक से समझ आ रही है. अचानक वो आंखें सीधी मेरी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखती हैं. चांदनी, मैं इन आंखों की बेबसी और नहीं सह पाऊंगा. जब तक नायर ने फोन रखा, गीले बालों वाली डरी हुई आंखें निराशा से पूरी तरह भर गईं. अब तो मैं मन ही मन प्रार्थना करने लगा था कि चमत्कार हो जाये और नायर को भाड़े पर दूसरा मकान एकदम से मिल जाये.

सूरी साहब ने अपने सैनिकों को आदेश दे दिया है. वो सामान उठाने लगे हैं. मेरी निगाह सोफ़े के फटे हुए कपड़े पर टिक जाती है. महेश से आतंकित नायर अब समझ चुका है कि स्थिति उसके बस से बाहर हो चुकी है. सोफा लिफ्ट के ज़रिये नीचे पहुंच चुका है. नायर हांफने लगा है. मैं उसकी पत्नी की ओर देखने का साहस नहीं कर पा रहा हूं. मैं महेश को एक कोने में ले जाकर कुछ समझाने का प्रयास करता हूं. किन्तु मेरे प्रयास में प्रतिबध्दता की कमी है. महेश की डांट खा कर चुप हो जाता हूं. नायर की आंखें आंसुओं को रोकने के प्रयास में लाल होती जा रही हैं. मैं अभी भी सोच रहा हूं कि नायर समय पर भाड़ा देता और तमीज़ से रहता तो हालात ऐसे कभी नहीं होते.

नायर मेरे निकट आ खड़ा हुआ है, मिस्टर शुक्ला, अपने आदमियों को रोकिये प्लीज़. मेरी बात सुनिये प्लीज़. थोड़ी देर रुकिये. मुझे बेइज्ज़त करके मत निकालिये मैं अपना सामान खुद उतरवाता हूं. प्लीज, मिस्टर शुक्ला.

मैं अचानक नींद से जागा हूं. सूरी साहब और महेश उसकी एक नहीं सुनते हैं. नायर अपने दिल पर हाथ रख कर ज़मीन पर बैठ गया है. वह अब सोडा मांग रहा है. मुझे चिन्ता है कहीं मर न जाये. उसकी पत्नी की आंखें मुझसे प्रश्न कर रही हैं. मुझसे जवाब मांग रही हैं. मैं अपनी बेवकूफ़ी को समझ नहीं पाता हूं. नायर के करीब पहुंच जाता हूं, नायर, तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी. नायर समझ नहीं पाता. मेरी ओर देख रहा है, बस ताके जा रहा है.

नायर तुम अपनी वाइफ़ से बोलो कि आज जो कुछ हो रहा है, उसमें मेरा कोई कसूर नहीं है.

शुक्ला जी, मैं ने बोला न कि आप तो जैण्टलमैन आदमी हैं.

नायर मुझे अपनी पत्नी के निकट ले गया है. उसकी पत्नी के काले घुंघराले गीले बाल, चन्दन के साबुन की महक!

चांदनी, मुझे माफ कर दो. मैं होंठों में ही बुदबुदाता हूं.

नायर मलयालम में अपनी पत्नी को कुछ कहे जा रहा है. मैं उसकी ओर नहीं देख पा रहा हूं. बस शब्दों की ध्वनियां ही सुनाई दे रही हैं. शब्द कहीं दूर जाकर खो गये हैं.

सामान टेम्पो पर लद चुका है. राजू, महेश और सूरी साहब खुशी मना रहे हैं. भामा को हिदायतें दी जा रहीं हैं कि कल घर अच्छी तरह से साफ करना है. मैं अपना पर्स जेब से निकालता हूं. पांच सौ के हिसाब से दो हज़ार सूरी साहब की मार्फ़त सैनिकों को देता हूं. महेश बियर की मांग कर रहा है, सूरी साहब और राजू स्कॉच की. मीनाक्षी गले मिल कर बधाई देती है. हनी बस नजरों को एक अलग से कोण पर झुका कर बधाई कहती है. प्रकाश शायद मेरी स्थिति को समझ रहा हो, बस मेरा हाथ दबा देता है. और मैं इस अपराधबोध से जूझ रहा हूं कि क्या मैंने चांदनी की कुछ खोजती हुई आंखों को एक बार फिर से बेघर कर दिया है?