भाई की सिलाई मशीन / प्रीति
नीलम आज बहुत खुश थी। वह सिलाई सेंटर से निकली तो जैसे उसे आज सब नया नया लग रहा था। आज मार्केट का शोर उसे चुभ नहीं रहा था। रास्ते में आसपास को देखते हुये जा रही थी। दुकानों के बाहर टंगे नए नए सूट और पुतलों को पहनाए गए झबले उसे मोह रहे थे। उसे भी आज एक झबला सिलने के लिए बोला गया था। साथ ही यह भी बोला गया था की घर से सिलकर लाना है। वह यही सोच-सोच कर खुश हो रही थी कि आज उसे घर पर भी झबले को बनाने का मौका मिलेगा। नहीं तो पूरी शाम घर के कामों में कैसे बीत जाती है उसका उसे बिलकुल भी एहसास भी नहीं होता।
वह अपनी पक्की सहेली प्रीति से बोली, “सुन, मेरे पास एक गुलाबी रंग का रूबिया ब्लाउज़ का कपड़ा पड़ा है। उसी में काले रंग की लेस लगाकर मैं झबला बना लूँगी।”
यह बताते हुए उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। एक तरफ मार्केट को देखती तो दूसरी तरफ घर में यह काम कैसे करेगी यही सोचे जा रही थी। दोनों पक्की सहेलिया बातें करती करती अपने अपने घर पर जा पहुँची। इन सबके बीच में नीलम ने अपने दिमाग में पहले से एक खाका तैयार कर लिया था कि उसे झबला कैसे बनाना है।
घर में घुसते ही माँ बोली, “आ गई तू, चल आ खाना खा ले।“
मगर अपनी बात को नीलम पहले ही बता देना चाह रही थी। उसने माँ से कहा, “मम्मी पता है आज सिलाई सेंटर में क्या हुआ?”
माँ ने बिना सुने ही कह दिया कि पहले खाना खा ले, उसके बाद बात करियो।
नीलम कुछ कह नहीं पाई। लेकिन मुँह धोते-धोते उसने अपनी मम्मी को सेंटर में हुई सारी बातें बता दी और कहा, “मम्मी मैं पहले झबला बना लूँ, उसके बाद खाना खा लूँगी।” इतना कहकर अंदर कमरे में चली गई जहाँ अलमारी के बगल में लगे बेड के साथ में टेक लगाते हुये उसने एक ब्राउन सा डिब्बा निकाला और इत्मिनान से बैठते हुये अपने काम में लग गई। नीलम की मम्मी भी वहीं खाने की प्लेट लेकर आ गई। “पहले खाना खा ले उसके बाद में कर लियो काम।” और मम्मी ने बेड पर ही प्लेट को रख दिया। नीलम ने प्लेट को नीचे रखा और पहले खाना खाने लगी। वह आज खाना ऐसे खा रही थी जैसे खाने को ठूंस रही हो। बहुत जल्दी में लग रही थी। माँ उसकी इस जल्दी को पहचानती थी कि उसकी इस जल्दबाज़ी में कुछ छिपा है। यह बाहर सिलाई करती है, अगर घर में पता चल गया तो क्या होगा? पिताजी तो कुछ नहीं कहेंगे लेकिन इसका बड़ा भाई तो घर में शोर ही मचा देगा। माँ उसे देखती रही और बोली, “खाना धीरे-धीरे खा अभी तो, बहुत टाइम है। सिलाई आराम से कर लेना। अभी तो आठ ही बजे हैं।”
अभी मम्मी ने बात को खत्म भी नहीं किया था की नीलम ने खाना खाकर प्लेट को एक तरफ खिसका दिया और झट से पलंग पर जाकर बैठ गई। जहाँ पर पहले से सुई, धागा और कपड़ा बिखरा पड़ा था। सिलाई मशीन तो उसके पास में थी नहीं इसीलिए यहाँ सिर्फ कटिंग ही कर सकती थी और हाथो से ही उसकी तुरपाई करके उसे एक शेप में ला सकती थी। बाकी का काम तो उसे सेंटर में ही जा कर करना था। वह कटिंग करने में लग गई। कटिंग करते-करते उसे एक घंटा बीत चुका था। वो कटिंग पूरी करके जब मम्मी को दिखाने के लिए उनके पास में गई तो मम्मी सो गई थी। उसने मम्मी को उठाया और कटिंग को देखने के लिए कहा। मम्मी नीलम की बेचेनी के आगे कुछ नहीं कर पाती थी। वह उठी और झबले के कटिंग वाले कपड़े को उलट-पलट कर देखने लगी। और नीलम को देखने लगी। फिर बोली, “बेटा तुझे तो अब कटिंग करनी बहुत अच्छे से आ गई है”।
इतना सुनकर नीलम बहुत खुश हुई। अब उसे कल का इंतज़ार था। बाकी काम वहीं पर जाकर करेगी।
उसने फिर से अलमारी खोल झबला निकालकर देखा ही था कि कमरे में दाखिल होते हुए उसके बड़े भाई ने पूछा, “ये किसने बनाया है?” खुशी से उछलती हुई वह फटाक से बोली, “मैंने!” उसने इतना कहा ही था कि भाई की नज़रें उसके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी। वह फिर बोले, “तूने कहाँ से सीखा?”
भाई ने इतना पूछा ही था कि रसोई से निकलती हुई माँ नीलम के पास आ खड़ी हुई। माँ ने नीलम को देखा और नीलम ने माँ को। दोनों एक-दूसरे को देखे ही जा रही थी तभी भाई ने कहा, “ये क्या चक्कर है! मैं कुछ पूछ रहा हूँ!”
माँ ने सहमते हुए कहा, “ये सिलाई सेंटर जाती है!”
“कब से जा रही है?” आगे बढ़ते हुए भाई ने कहा।
“बस कुछ दिनों से!” कहकर माँ चुप ही हुई थी कि भाई गुस्से से खिसियाता हुआ बोला, “ये सिलाई-विलाई से कुछ नहीं होगा, पढ़ाई कर। इतना ही बहुत है। ये अब नहीं जाएगी।”
माँ ने कहा, “अरे जाने दे, ये कौन सा अकेली जाती है। साथ में इसकी सहेलियाँ भी तो जाती हैं”।
“नहीं माँ, ये नहीं जाएगी! तुमको नहीं मालूम कि यहाँ का माहौल कितना खराब है”। इतना सुनते ही नीलम अपने कमरे में आकर रोने लगी। उसके रोने से किसी को कोई मतलब ही नहीं था। भाई के आगे किसी की भी नहीं चलने वाली थी। माँ भी कुछ नहीं कह सकती थी। रोते-रोते उसकी रात बीत गई।
नीलम रोज की तरह सुबह छः बजे उठकर सबके लिए नाश्ता बना खुद खाकर स्कूल चली गई। आज वो इतनी खामोश थी कि उसके दुःख को उसकी आँखें भी बयां कर रही थीं। नीलम की उदासी को देखते हुए सामने से आती आरती ने पूछा, “क्या हुआ नीलम? आज चुप क्यों है? मम्मी ने भूखा भगा दिया क्या?” और तेजी से ठहाका मारकर हँसने लगी। नीलम कुछ पल की खामोशी के बाद बोली, “मैं आज से सिलाई सेंटर नहीं आऊँगी!”
“क्या?” चौंकते हुए सभी सहेलियाँ एक साथ बोल पड़ी। वह सभी को वहीं खड़ा छोड़ क्लास में जा पहुँची। आज वह पूरा दिन पीछे की सीट पर बैठी अपने में ही खोई रही। पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लग रहा था। पूरा दिन क्या हुआ, कैसा बिता, उसे कुछ भी नहीं मालूम हो रहा था। बस खामोश वो बैठी रही। स्कूल की छुट्टी होने के बाद भी वह अपनी सीट पर जमी बैठी थी। आरती ने उसे हिलाते हुए कहा, “हाँ यही बैठी रहेगी क्या?” इतना सुन उसने बस्ता उठाया और घर की तरफ़ चल दी।
घर पहुँचकर सोफे पर बस्ता रखा ही था कि देखा सामने गुलाबी रंग के कपड़े से कुछ ढका रखा है। नीलम को कुछ नहीं पता था। जैसे ही उसने कपड़ा हटाकर देखा तो वो सिलाई मशीन थी। ये देख नीलम फूली न समाई। तभी कमरे से बाहर निकलते हुए भाई ने कहा, “कैसा लगा मेरा सरप्राइज़?” “बहुत अच्छा भइया!” कहती हुई नीलम जल्दी से उस सूट को ले आई जिसमें अभी बाजू लगाना बाकी रह गया था। और आव देखा न ताव बस अपने सूट को सिलने में मग्न हो गई। दोपहर दो बजे से लेकर साढ़े नौ बजे तक वह और उसकी सिलाई मशीन ही पूरे घर में गूंज रही थी। काफी देर के बाद में उसका सूट तैयार हो चुका था। नीलम ने खाना खाया और सो गई।
सुबह उठी और रोज़ की तरह सबका नाश्ता तैयार कर, खुद खाकर स्कूल चली गई। आज वो बहुत खुश थी। वह समय से पहले स्कूल के गेट पर जा खड़ी हुई। बार-बार वह सड़क की ओर देखे जा रही थी कि तभी दूर से आती आरती बोली, “क्या बात है आज तो बहुत खुश है। कल मुँह लटका हुआ था!”
“पता है मेरा भाई मेरे लिए सिलाई मशीन लाया है। मेरे भैया बहुत अच्छे हैं। बहुत अच्छी मशीन है। पता है ऐसी मक्खन की तरह चलती है कि क्या बताऊँ, मज़ा आ गया कल उस पर सिलाई करने में। अब तो मेरे घर में ही सिलाई मशीन आ गई है तो मैं सिलाई सेंटर नहीं आया करूँगी!” नीलम की सारी सहेलियाँ उसकी बातें सुन रही थीं। नीलम की खुशी को देखकर वो भी खुश होने लगी। लेकिन कुछ देर के बाद में आरती हँसते बोली, “अगर ऐसी बात है तो भाई से कह कर स्कूल भी घर में खुलवा ले!” और वे हँसते हुये क्लास में चली गयीं।
लेकिन नीलम वहीं खड़ी सोचती रही कि आरती हँसी क्यों?