भाग 12 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

Gadya Kosh से
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“इस समय इतना ही ! अब मुझे नमाज अदा करना है,” हाजी मुराद बोला। उसने वोरोन्त्सोव की दी हुई घड़ी अपनी टयूनिक की छाती के पास वाली जेब से निकाली, सावधानीपूर्वक स्प्रिंग को दबाया, और बच्चों जैसी मुस्कान को रोकने का प्रयास करता हुआ, सुनने के लिए सिर झुकाया। घड़ी ने सवा बारह बजाये थे।

“मित्र वोरोन्त्सोव की भेंट,” मुस्कराते हुए वह बोला।

“हाँ, वह बहुत अच्छे इंसान है” लोरिस-मेलीकोव बोला, “और यह बहुत सुन्दर घड़ी है। फिर आप नमाज अदा करें और मैं प्रतीक्षा करूंगा। ”

जब वह अकेला था, लोरिस-मेलीकोव ने नोटबुक में हाजी मुराद की कहानी की मुख्य विषेशताएं लिख लीं, फिर सिगरेट जलायी और कमरे में टहलने लगा। जब लोरिस-मेलीकोव बेडरूम के सामने वाले दरवाजे के पास आया उसने तातारी में बातचीत करते लोगों की ऊंची आवाजें सुनीं। उसने अनुमान लगाया कि ये हाजी मुराद के अंगरक्षक थे। उसने दरवाजा खोला और अंदर प्रविष्ट हो गया।

कमरे में विचित्र प्रकार की तीखी, कबीलाइयों से संबद्ध चमडे की तेज गंध भरी हुई थी। फर्श पर खिड़की के पास, एकाक्षी और लाल बालों वाला, फटे चिकट कपड़ों में, हमज़ालो लबादे पर बैठा हुआ, एक लगाम की सिलाई कर रहा था। वह उत्तेजनापूर्ण कर्कश स्वर में बातें कर रहा था, लेकिन लोरिस-मेलीकोव के प्रवेश करते ही वह तुरंत चुप हो गया और उसकी उपेक्षा करता हुआ अपना काम करता रहा। हाथी दांत जैसे सुन्दर अपने दांतों और बिना बरौनियों वाली अपनी काली आंखों को चमकाता हुआ प्रसन्न खान महोमा उसके सामने खड़ा लगातार एक ही बात दोहरा रहा था। खूबसूरत एल्दार अपनी बांहे ऊपर चढ़ाये खूंटी पर लटकती जीन की मोटाई घिस रहा था। प्रधान रसोइया और प्रबन्धक हनेफी कमरे में न था। वह रसोई में रात्रि का भोजन पका रहा था।

“आप लोग किस विषय पर बहस कर रहे थे?” खान महोमा को अभिवादन कर लोरिस-मेलीकोव ने पूछा।

“वह शमील की प्रशंसा करना बंद नहीं करेगा।” लोरिस-मेलीकोव की ओर हाथ बढ़ाते हुए खान महोमा ने कहा।” वह कहता है कि शमील अज़ीम (महान) है। वह काबिल, पाक और कामयाब घुड़सवार है। ”

“यदि वह अभी भी उसका प्रशंसक है, तब उसने उसे छोड़ क्यों दिया? “

“उसने उसे छोड़ दिया, लेकिन उसकी प्रशंसा भी करता है” खान महोमा ने स्पष्ट किया। उसके दाँत खुले हुए थे और आंखें चमक रही थीं।

“वास्तव में आप ऐसा सोचते हैं कि वह पवित्र है?” लोरिस-मेलीकोव ने पूछा।

“यदि वह पवित्र नहीं होता तो लोग उसकी आज्ञा का पालन नहीं करते।” हमज़ालो ने तुरंत उत्तर दिया।

“शमील नहीं, बल्कि मन्सूर एक पवित्र व्यक्ति था” खान महोमा बोला।” वह वास्तव में एक सूफी था। जब वह इमाम था लोग बिल्कुल भिन्न थे। वह गाँवों में जाता था। लोग उसके पास आते थे और उसके वस्त्र के किनारे को चूमते थे और अपने पापों पर पश्चाताप करते थे और कभी बुरा कार्य न करने की शपथ लेते थे। बुजुर्ग लोग कहा करते थे कि तब लोग सूफियों की तरह रहते थे ------ वे नश नहीं करते थे, शराब नहीं पीते थे, अपनी नमाज नहीं छोड़ते थे, एक-दूसरे का आदर करते थे और रक्तपात भी उन्होंने छोड़ दिया था। उन दिनों, जब उन्हें धन और स्वामित्व प्राप्त होता था वे उन्हें खम्भों से बांधकर सड़क पर खड़ा कर देते थे। तब अल्लाह ने देश को, हर क्षेत्र में समृद्धि प्रदान कर रखी थी। अब जैसी स्थिति नहीं थी।” खान महोमा बोला।

“पहाड़ों में अब भी कोई शराब नहीं पीता अथवा धूम्रपान नहीं करता।” हमज़ालो ने कहा।

“तुम्हारा शमील एक लैमर (गिद्ध) है” लोरिस-मेलीकोव को आंख मारते हुए खान महोमा ने कहा।

“लैमर एक कबाइली के लिए एक अपमानजनक नाम है। ”

“पहाड़ों का एक लैमर। पहाड़ों में चीलें भी होती हैं” हमज़ालो ने उत्तर दिया।

“अच्छा उत्तर दिया, मेरे मित्र” खान महोमा दांत दिखाते हुए और विरोधी के कुशल उत्तर का आनंद लेते हुए बोला।

लोरिस-मेलीकोव के हाथ में चाँदी का सिगरेट केस देखकर, उसने सिगरेट पीने की इच्छा जाहिर की। जब लोरिस-मेलीकोव ने कहा कि वह सोचता था कि धूम्रपान उनके लिए निसिद्ध है, तब उसने हाज़ी मुराद के बेडरूम की ओर सिर हिलाते हुए आंख दबायी और बोला कि जब तक वह नहीं देखते तब तक सब ठीक था। और उसने मुस्तैदी से पीना प्रारंभ कर दिया। धुंआ अंदर न खींचकर जब वह उसे बाहर छोड़ता तब भद्देपन से वह अपने लाल होठों को सिकोड़ लेता था।

“यह गलत है,” हमज़ालो बोला और कमरे से चला गया। खान महोमा ने उसकी दिशा में आंख मारी और सिगरेट पीता रहा। उसने लोरिस-मेलीकोव से पूछा कि सिल्क गाऊन और एक सफेद फर-कैप खरीदने के लिए अच्छी जगह कहाँ थी।

“हे भगवान ! उसके लिए आपके पास पर्याप्त पैसा है?”

“हाँ, उसके लिए पर्याप्त पैसा है।” आंख दबाते हुए खान महोमा बोला।

“उससे पूछो, उसका पैसा आया कहाँ से?” लोरिस-मेलीकोव की ओर अपना खूबसूरत चेहरा घुमाते हुए एल्दार बोला।

“मैनें उसे जीता था।” खान महोमा ने तेजी से उत्तर दिया।

और उसने बताया कि एक दिन पहले, जब वह तिफ्लिस की ओर सैर के लिए जा रहा था, वह रूसियों और आर्मेनियनों के एक दल के पास पहुंचा जो 'पिच एण्ड टॉस' खेल रहा था। वहाँ बड़ा धन था ----- तीन स्वर्ण रूबल और बड़ी मात्रा में चाँदी। खान महोमा ने तुरंत देखा खेल क्या था। उसने अपनी जेब में कांसे के सिक्के खनखनाये थे, घेरे में प्रवेश किया था और बोला था कि वह ढेर के लिए दांव लगायेगा।

“ढेर? क्या वह तुम्हें मिला था?” लोरिस-मेलीकोव ने पूछा।

“मेरे पास कुल बारह कोपेक थे” मुस्कराकर दांत दिखाते हुए खान महोमा बोला।

“फिर, हार जाते तो?”

खान महोमा ने पिस्टल की ओर इशारा किया।

“तुमने वह दे दिया था?”

“इसे क्यों देता? मैं भाग लेता, और जो भी मुझे रोकने का प्रयत्न करता उसे मार देता। और यह तैयार था।”

“तुम जीते?”

“ओह, हाँ। मैनें सब समेटा और चला आया।”

लोरिस-मेलीकोव ने खान महोमा और एल्दार को अच्छी तरह समझ लिया। खान महोमा एक जिन्दादिल बदमाश था, जो नहीं जानता था कि अपनी प्रचुर तेजस्विता का इस्तेमाल कैसे करे। वह सदैव हसंमुख, प्रसन्नचित्त, सदैव अपनी और दूसरों की जिन्दगी दांव पर लगाने वाला व्यक्ति था। वह रूसियों के पास केवल इसलिए आया था क्योंकि जिन्दगी एक जुआ थी, और उसी सहजता से कल को पुन: वह शमील के पास वापस जा सकता था। एल्दार भी पूरी तरह समझ में आने वाला व्यक्ति था। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो पूरी तरह अपने मालिक के प्रति समर्पित, शंत, मजबूत और दृढ़ था। लेकिन लाल बालोंवाला हमज़ालो लोरिस-मेलीकोव के लिए एक रहस्य था। उसने देखा कि वह न केवल शमील के प्रति समर्पित रहने वाला व्यक्ति था, बल्कि वह सभी रूसियों के प्रति जबरदस्त घृणा और विद्वेष अनुभव करता था। अत: लोरिस-मेलीकोव नहीं समझ सका कि वह रूसियों के पास क्यों आया था। उसे आश्चर्य होने लगा था, जैसा कि कुछ वरिष्ठ स्टॉफ-अफसरों को भी हो रहा था, कि हाज़ी मुराद की कायापलट और शमील से उसकी शत्रुता की कहानी कहीं एक बहाना तो नहीं थी। शायद वह रूसियों के कमजोर बिन्दुओं को जानने के लिए आया था, और फिर पहाड़ों पर पुन: भाग निकले और जहाँ रूसी सेना कम है वहाँ अपनी सेना तैनात करे। हमज़ालो ने अपने पूरे स्वभाव से इस अनुमान की पुष्टि कर दी थी। 'हाज़ी मुराद और दूसरे लोग' लोरिस-मेलीकोव ने सोचा, 'अपने इरादे छुपा सकते हैं, लेकिन अपनी अप्रकट घृणा से वह अपने को ही धोखा दे रहा है।'

लोरिस मेलीकोव ने उससे बात करने का प्रयास किया। उसने उससे पूछा कि क्या वह यहाँ ऊब महसूस करता था। अपना काम बिना रोके उसने अपनी एक आंख की कनखी से लोरिस मेलीकोव की ओर देखा और फटे स्वर और रूखे ढंग से बुदबुदाया :

“नहीं, ऊबा नहीं।”

उसने अन्य प्रश्नों के भी उसी प्रकार उत्तर दिए।

लोरिस-मेलीकोव जब अंगरक्षकों के कमरे में था, हाज़ी मुराद का चौथा मुरीद, अवार हनेफी ने वहाँ प्रवेश किया, जिसके चेहरे पर रोंये थे और गर्दन और भारी वक्षस्थल पर स्थूलता थी, जो ऐसा दिख रहे थे मानों वहाँ माँस की अतिवृद्धि हो गयी हो थी।

वह प्रथमत: और सर्वोत्तम रसोइया था। वह जिस काम को कर रहा होता था सदैव उसमें अंतर्लीन हो जाता था, और एल्दार की भाँति, बिना प्रश्न किये अपने मालिक की आज्ञा का पालन करता रहता था।

जब अपने सहयेगियों के कमरे में उसने चावल लेने के लिए प्रवेश किया, लोरिस-मेलीकोव ने उसे रोक लिया और उससे पूछा कि वह कहाँ से आया था और हाज़ी मुराद के साथ कब से था।

“पांच वर्षों से।” हनेफी ने उत्तर दिया, “मैं उसी गाँव से आया था जहाँ से वह। मेरे पिता ने उसके चाचा की हत्या कर दी थी, और उन्होने मुझे मारने का प्रयास किया था” लगभग बंद बरौनियों के नीचे से झांकतीं अपनी आंखों से शांतिपूर्वक देखते हुए उसने लोरिस- मकेलीकोव से कहा, “तब मैनें उससे कहा कि वह मुझे अपने भाई की भाँति स्वीकार कर ले।”

“भाई की भाँति ग्रहण करने से क्या आभिप्राय है?”

“दो महीनों तक मैनें सिर नहीं मुड़वाया था अथवा नाखून नहीं काटे थे और तब मैं उसके पास आया था। वे मुझे अपनी माँ फ़ातिमा के पास ले गये थे। फ़ातिमा ने मुझे स्तनपान कराया था, और इस प्रकार मैं उसका भाई बन गया था।”

बगल के कमरे में उन्हेनें हाज़ी मुराद की आवाज सुनी। एल्दार ने तुरंत अपने मालिक की बुलाहट पहचान ली। उसने अपने हाथ साफ किये और लम्बे डग भरता हुआ बैठक में पहुंच गया।

“उन्होंने आपको अंदर आने के लिए कहा है” पुन: वापस लौटते हुए उसने लोरिस - मेलीकोव से कहा। हंसमुख खान महोमा को दूसरी सिगरेट देकर, लोरिस मेलीकोव बैठक में चला गया।