भाग 13 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

Gadya Kosh से
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जब लोरिस-मेलीकोव ने बैठक में प्रवेश किया, हाजी मुराद ने चेहरे से प्रसन्नता प्रकट की।

“हाँ, मुझे जारी रखना होगा?” सोफे पर बैठते हुए वह बोला।

“हाँ, किसी तरह” लोरिस-मेलीकोव ने कहा, “मैंने अभी आपके आदमियों से भेंट की और उनके साथ गपशप कर रहा था। उनमें से एक जिन्दादिल रसिया है। ”

“हाँ, खान-महोमा --- एक ही बदमाश है” हाजी मुराद बोला।

“मुझे खूबसूरत नौजवान पसंद आया।”

“ओह, एल्दार। वह युवा है, लेकिन दृढ़ और लौह इच्छा-शक्तिवाला है।”

वे चुप रहे।

“हमें शुरू करना होगा?”

“निश्चय ही। ”

“मैनें आपको बताया था कि किस प्रकार उन्होनें खान बन्धुओं की हत्या की थी। उनकी हत्या करने के पश्चात् हमज़ा ने हन्ज़ख में प्रवेश किया था और खान के महल में रहने लगा था” हाज़ी मुराद ने प्रारंभ किया।” उनकी माँ, खान्शा वहीं थीं। हमज़ा ने उसे बुला भेजा। उसने हमज़ा को धिक्कारना शुरू किया। उसने अपने अनुचर असेल्दर को ऑंख से इशारा किया, जिसने उस पर पीछे से वार किया था और उसकी हत्या कर दी थी।

“उसने उसकी हत्या क्यों की होगी?” लोरिस-मेलीकोव ने पूछा।

“और किस लिए ...............पैसों के लिए .............पाउण्ड के लिए। उसने पूरे वंश को नष्ट कर दिया। उन्होनें उन्हें पूरी तरह समाप्त कर दिया था। शमील ने छोटे की हत्या की थी। उसने उसे खड़ी चट्टान से फेंक दिया था।”

“सम्पर्ण अवारिया ने हमज़ा के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया था। केवल मैं और मेरे भाई ने आत्म-समर्पण करने से इंकार कर दिया था। हम खान भाइयों के लिए उसे मारना चाहते थे। हमने दब जाने का अभिनय किया था, लेकिन पूरे समय हम सोचते रहते थे कि किस प्रकार उसकी हत्या की जाये। हमने अपने दादा से सलाह ली, और निर्णय किया कि हमें उसके महल से बाहर आने तक प्रतीक्षा करनी है और फिर घात लगाकर मारना है। किसी ने छुपकर हमारी बातें सुन ली थीं और हमज़ा से कह दिया था। उसने मेरे दादा को बुलाया था और कहा था, “हार्क, यदि यह सच है कि आपके पोते मेरे विरुद्ध बुरे विचार रखते है, तो आपको उसी फांसी के तख्ते पर लटका दिया जायेगा जिसमें उन्हें लटकाया जायेगा। मैं खुदा की इच्छा का पालन कर रहा हूं और उसमें रुकावट नहीं होगी। जाओ, और जो मैंने कहा उसे याद रखो। “

“दादा घर आए और उन्होनें हमें यह बताया। तब हमने इंतजार करने और मस्जिद में त्यौहार के पहले दिन उसे नाफ़िज (कार्यान्वित) करने का निश्चय किया। हमारे साथियों ने इंकार कर दिया। केवल मैं और मेरा भाई ही रह गये थे।“

“हमने दो पिस्तौलें लीं, अपने लबादे पहने और मस्जिद में गये। हमज़ा ने तीस मुरीदों के साथ वहाँ प्रवेश किया। वे सभी म्यान से बाहर निकली अपनी तलवारें लिए हुए थे। हमज़ा के बगल में उसका विश्वसनीय मुरीद, असेल्दर, जिसने खान्शा का सिर काटा था, चल रहा था। हमें देखकर, वह हम पर हमारे लबादे उतारने के लिए चीखा, और हमारे निकट आया। मेरी कटार मेरे हाथ में थी, और मैनें उसे मार दिया और हमज़ा पर झपटा। लेकिन मेरे भाई उस्मान ने उसे पहले ही गोली मार दी थी। वह तब भी जीवित था और उसने कटार से मेरे भाई पर हमला किया, लेकिन मैनें उसके सिर पर वार कर उसे खत्म कर दिया था। वहाँ उसके तीस मुसाहिब थे और हम केवल दो थे। उन्होंनें मेरे भाई उस्मान को मार दिया, लेकिन मैनें अंत तक उनके साथ जद्दोज़हद की थी और फिर एक खिड़की से बाहर कूद गया था।

“जब लोगों को पता चला कि हमज़ा मारा जा चुका है सभी उठ खड़े हुए और मुरीद भाग गये थे। जो भाग नहीं पाये थे, जिबह कर दिये गये थे।“

हाजी मुराद चुप हो गया और उसने दीर्घ निश्वास ली।

“सब ठीक-ठाक चल रहा था” उसने कहना जारी रखा, “फिर सब कुछ उलट गया। शमील ने हमज़ा का स्थान ग्रहण कर लिया था। उसने मेरे पास दूत भेजकर युद्ध में रूसियों के विरुद्ध अपने साथ शामिल होने का मुझे आदेश दिया। मेरे अस्वीकार करने पर, उसने हन्ज़ख को मिटा देने की धमकी दी थी। मैनें कहा कि मैं उसका साथ नहीं दूंगा और अपने रहते हन्ज़ख में उसे प्रवेश न करने दूंगा। ”

“आप उसके साथ शामिल क्यों नहीं हुए?” लोरिस-मेलीकोव ने पूछा।

हाजी मुराद ने त्योरियां चढ़ाईं और तुरंत उत्तर नहीं दिया।

“मैं नहीं कर सका। शमील मेरे भाई उस्मान और अबू-नुसल खाँ का हत्यारा था। मैं उसके साथ शामिल नहीं हुआ। जनरल रोजेन ने मुझे एक अधिकारी का पद दिया था और मुझे अवारिया का प्रधान नियुक्त किया था। सब ठीक ही रहा होता, लेकिन रोजेन ने पहले से ही एक काज़ी-कुमिक खाँ, मोहमद -मिर्जा, और फिर अहमद खाँ, जो मुझसे घृणा करता था को अवारिया भेजा हुआ था। वह अपने बेटे के लिए, खान्शा की बेटी, सुल्ताना, का हाथ चाहता था। उसे अस्वीकार कर दिया गया। उसने सोचा, इसके लिए मैं जवाबदेह था, और इसीलिए, मुझसे घृणा करने लगा। मुझे मारने के लिए उसने अपना अगंरक्षक भेजा, लेकिन मैं उससे बच निकला। तब उसने जनरल क्लूगेनाऊ से मेरी झूठी शिकायत की कि मैनें अवारों को सैनिकों को जलाने के लिए ईंधन देने से रोका था। उसने उससे यह भी कहा कि मैं पगड़ी पहनता था ..........'यह' ----हाजी मुराद ने फर-कैप के ऊपर पहनी पगड़ी की ओर इशारा किया....'और कहा कि इसका अर्थ था कि मैं शमील की ओर चला गया था।’ जनरल ने उस पर विश्वास नहीं किया और मुझे अनछुआ छोड़ दिया था। लेकिन जब जनरल तिफ्लिस के लिए रवाना हो गया, अहमद खाँ ने मामले अपने निजी हाथ में ले लिये थे। सैनिकों की एक कम्पनी ने मुझे पकड़ लिया। मुझे बेड़ियों में जकड़ दिया गया और एक तोप से मुझे बांध दिया था।

छ: दिन-रात मैं इसी तरह बना रहा था। सातवें दिन मुझे छोड़ा गया और तमीर खाँ शूरा के पास ले जाया गया था। चालीस सैनिक लोड की हुई राइफलों सहित मुझे लेकर चले थे। मेरे हाथ बंघे हुए थे और उन्हें आदेश थे कि यदि मैं बच निकलने का प्रयास करूं तो मुझे मार दिया जाये। मैं यह जानता था। जब हम मोक्सोक आ रहे थे रास्ता संकरा था। दाहिनी ओर तीन सौ फुट ऊंची चट्टान थी। सैनिकों के दाहिनी ओर क्रासकर मैं चट्टान की चोटी पर पहुंच गया। एक सैनिक ने मुझे रोकने का प्रयत्न किया, लेकिन मैनें चट्टान के ऊपर से छलांग लगा दी थी और अपने साथ उसे भी घसीट लिया था। चोट लगने से उसकी मृत्यु हो गयी थी, लेकिन मैं जीवित बचा रहा था। मेरी पसलियाँ, सिर, भुजाएं और पैर ---सभी टूट गये थे। मैंनें घिसटने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रहा था। मेरा सिर चकरा रहा था, और मैं सो गया था। मैं जगा तो खून में भीगा हुआ था। एक गड़रिये ने मुझे देखा था। उसने गाँव से सहायता मंगवाई थी और मुझे गाँव ले गया था। मेरी पसलियाँ और सिर स्वस्थ हो गये थे। मेरा पैर भी स्वस्थ हो गया था, लेकिन वह छोटा हो गया था।

और हाजी मुराद ने अपना टेढ़ा पैर बाहर खींचा।

“यह अच्छी प्रकार काम करता है” वह बोला, ”लोगों ने इस विषय में सुना और उन्होनें मुझसे मिलने आना प्रारंभ कर दिया। मैं स्वस्थ हो गया था और जेलमस चला गया था। अवारों ने अपने ऊपर फिर हुकूमत करने के लिए मुझे आमंत्रित किया था” हाजी मुराद शांत, तशफ्फी फख़र के साथ बोला, “और मैनें स्वीकार कर लिया था।”

हाजी मुराद तेजी से उठा। अपने पिट्ठू बैग से एक फोल्डर निकालकर, उसने पुराने होने के कारण पीले पड़ चुके दो पत्र बाहर निकाले और उन्हें लोरिस-मेलीकोव को दिया। पत्र जनरल क्लूगेनाऊ की ओर से थे। लोरिस-मेलीकोव ने उन्हें पढ़ा। पहला पत्र इस प्रकार था :

“ए' नसाइन (फौज- पुरानी ब्रिटिश) में एक कनिष्ठ अधिकारी) हाजी मुराद, आपने मेरे अधीन सेवा की थी -----मैं संतुष्ट था और आपको एक अच्छा आदमी समझता था। मेजर जनरल अहमद-खां ने हाल में सूचित किया कि आप एक देशद्रोही थे, कि आप एक पगड़ी पहनते थे, कि आपके संबन्ध शमील से थे, कि आपने लोगों को कहा था कि वे रूसी आदेशों का पालन न करें। मैनें आपको गिरफ्तार करने और मेरे पास लाने के आदेश दिए थे। आप बच निकले थे। मैं नहीं जानता कि यह भले के लिए था या बुरे के लिए ; क्योंकि मैं नहीं जानता कि आप दोषी हैं या नहीं। अब मेरी बात सुनें। यदि आपका अंत:करण महान ज़ार की ओर से साफ है, यदि आप निर्दोष हैं, तो मेरे सामने आएं। किसी से भयभीत न हों ----मैं आपका समर्थक हूं। खान कुछ नहीं कर पायेगा। वह मेरी कमान के अधीन है, इसलिए आपके भय का कोई कारण नहीं है।”

क्लूगेनाऊ यह कहना चाहता था कि वह सदैव अपने शब्दों का पालन करने वाला और न्यायपूर्ण व्यक्ति था, और हाजी मुराद को अपने पास आने के लिए पुन: प्रेरित कर रहा था।

जब लोरिस मेलीकोव ने पहला पत्र समाप्त कर लिया, हाजी मुराद ने दूसरा पत्र निकाला, लेकिन लोरिस मेलीकोव को उसे देने से पहले यह बताने लगा कि उसने उस पत्र का किस प्रकार उत्तर दिया था।

“मैनें लिखा कि मैं शमील के लिए पगड़ी नहीं पहनता, बल्कि अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए पहनता हँ ; कि मैं शमील की ओर कभी नहीं जाऊंगा और न ही जा सकता हूं, क्योंकि मेरे पिता, भाइयों और रिश्तेदारों की मृत्यु का कारण वही था। लेकिन मैं रूसियों की ओर भी नहीं जा सकता, क्योंकि उन्होंनें मेरा असम्मान किया था। हन्ज़ख में, मैं जब बंधक था, एक कुत्ते ने मुझे गाली दी थी। मैं तब तक आपके पास नहीं आ सकता जब तक वह व्यक्ति मार नहीं दिया जाता। सबसे ऊपर, मैं विश्वासघाती अहमद खाँ से भयभीत था।”

लोरिस मेलीकोव को पीले कागज का दूसरा टुकड़ा पकड़ाते हुए हाजी मुराद ने आगे कहा, “तब जनरल ने मुझे यह पत्र भेजा था।”

“आपने मेरे पत्र का उत्तर दिया, और आपको मेरा धन्यवाद” लोरिस मेलीकोव ने पढ़ा, “आपने लिखा है कि आपको लौटने से भय नहीं हैं, लेकिन एक काफ़िर से अपमानित होने से आपको जो कष्ट पंहुचा, वह आपको रोक रहा है। लेकिन मैं आपको आश्वस्त करता हँ कि रूसी कानून न्यायपूर्ण है और आप स्वयं अपनी ऑंखों से उसे दण्डित होते देखेगें जिसने आपको अपमानित करने का दुस्साहस किया था ---मैंनें पहले ही इसकी जांच-पड़ताल करने के लिए कह दिया है। सुनिये, हाजी मुराद ! मुझे आप पर क्रोध करने का अधिकार है ; क्योंकि आपने मुझ पर विश्वास नहीं किया और न ही मेरा आदर किया। लेकिन मैं सभी पर्वतीय लोगों के स्वभाव की विश्वास न करने की प्रकृति को जानते हुए आपको क्षमा करता हूं। यदि आपकी अतंरात्मा साफ है, यदि आप केवल अपनी आत्मा की मुक्ति मे लिए पगड़ी पहनते है तब आप सही हैं, और आप रूसी सरकार और मेरी आंखों में अपने को भयमुक्त होकर देख सकते हैं। जहाँ तक उस व्यक्ति की बात है जिसने आपको अपमानित किया था, मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि उसे दण्डित किया जायेगा, आपकी सम्पत्ति आपको लौटा दी जायेगी और तब आप रूसी न्याय को देखेगें और उसके अर्थ को समझेगें। इसके अतिरिक्त, रूसी लोग चीजों को अलग ढंग से देखते हैं। किसी सुअर ने आपका अपमान किया था इसलिए उनकी दृष्टि में आपकी प्रतिष्ठा नष्ट नहीं हुई है। मैनें स्वयं गिमिरियनों को पगड़ी पहनने की अनुमति दी थी और उनकी गतिविधियाँ संतोषजनक देखता रहा हूं। इसलिए, मैं दोहराता हूं, कि आपको भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। जो व्यक्ति अब मैं आपके पास भेज रहा हूं आप उसके साथ मेरे पास आ जाइये। यह मेरा विश्वस्त व्यक्ति है। यह आपके शत्रुओं का दास नहीं है, बल्कि उस व्यक्ति के लिए मित्र की भाँति है जिसे सरकार का विशेष आदर प्राप्त है। ”

क्लूगेनाऊ ने पुन: हाजी मुराद से अपने पास आने का आग्रह किया था।

“मैनें उस पर विश्वास नहीं किया” जब लोरिस मेलीकोव ने उसका पत्र समाप्त कर लिया, हाज़ी मुराद बोला, “और मैं क्लूगेनाऊ के पास नहीं गया था। मेरी मुख्य चिन्ता अहमद खां से इंतकाम लेना था, और वह मैं रूसियों के माध्यम से नहीं कर सकता था। उसके बाद अहमद खाँ ने जेलमेस को घेर लिया था और मुझे पकड़ने या मारने का प्रयास किया था। मेरे पास पर्याप्त आदमी नहीं थे, और मैं उसे रोक नहीं सकता था। ठीक उसी समय शमील का एक दूत एक पत्र लेकर मेरे पास पंहुचा था। उसने अहमद खाँ से लड़ने और उसे मारने में मेरी सहायता करने का वचन दिया था और मुझे सम्पूर्ण अवारिया देने का प्रस्ताव किया था। मैनें लंबे समय तक विचार किया था, और तब शमील के पास गया था। तब से रूसियों के साथ मेरा संघर्ष समाप्त नहीं हुआ।“

यहाँ हाजी मुराद ने अपनी सभी सैनिक कार्यवाइयों के विषय में बाताया। वे बहुत अधिक थीं और कुछ के विषय में लोरिस मेलीकोव जानता था। उसके युद्ध और सभी धावे अद्भुत होते थे, जो निरपवादरूप से उसकी युद्ध करने की असाधारण गति, उसके आक्रमणों की निर्भीकता, और सफलता से परिपूर्ण थे।

“मेरे और शमील के बीच कभी कोई मित्रता नहीं रही” हाजी मुराद ने अपनी कहानी समाप्त की, “लेकिन वह मुझसे भयभीत था और उसे मेरी आवश्यकता भी थी। लेकिन फिर यह संयोग ही था कि किसीने मुझसे पूछा था कि शमील के बाद इमाम कौन होगा। मैनें कहा था कि जो तलवार का शदीद धनी होगा वही अगला इमाम बनेगा। उसने यह बात शमील से कह दी थी, और उसने मुझसे मुक्ति पाने का निर्णय किया था। उसने मुझे दबासरन भेज दिया था. मैं गया था और एक हजार भेड़ें और तीन सौ घोड़े लेकर आया था। लेकिन उसने कहा कि मैनें उसके आदेश का पालन नहीं किया था। उसने मुझे लेफ्टीनेण्ट पद से हटा दिया था और आदेश दिया था कि मैं अपना सारा धन उसे भेज दूं। मैनें एक हजार सोने की मोहरें भेजीं। उसने अपने मुरीद भेजकर मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति छीन ली थी। फिर उसने मुझे बुला भेजा। मैं जानता था कि वह मेरी हत्या करना चाहता है, और नहीं गया था। उसने मुझे पकड़ने के लिए आदमी भेजे। मैं उनसे लड़ा और वोरोन्त्सोव के पास आ गया। केवल अपना परिवार मैं नहीं ला पाया। मेरी माँ, पत्नी ओर बेटा उसकी गिरफ्त में हैं। सरदार से कहें -- जब तक मेरा परिवार वहाँ है, मैं कुछ नहीं कर सकता। ”

“मैं उनसे कहूंगा,” लोरिस मेलीकोव ने कहा।

“भरसक कोशिश करें, जितना आप कर सकते हैं। जो मेरा है वह आपका है, आप केवल प्रिन्स से मेरी सहायता करवायें। मैं बंधा हुआ हूं, और रस्सी का सिरा शमील के हाथ में है। ”

इन शब्दों के साथ हाजी मुराद ने लोरिस मेलीकोव से अपनी कहानी समाप्त की।