भाग 14 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

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बीस दिसम्बर को वोरोन्त्सोव ने युद्ध मंत्री चेर्नीशोव को निम्नलिखित पत्र लिखा। पत्र फ्रांसीसी भाषा में था।

“प्रिय प्रिन्स, मैं आपको पिछली डाक से पत्र नहीं भेज पाया था, क्योंकि मैं पहले यह निर्णय कर लेना चाहता था कि हमें हाजी मुराद के साथ में क्या करना चाहिए। पिछले दो या तीन दिनों से मैं बहुत अच्छा अनुभव कर रहा था। अपने पिछले पत्र में मैनें हाजी मुराद के यहाँ पहुंचने के विषय में लिखा था। आठ को वह तिफ्लिस पहुंचा था। अगले दिन मैनें उससे मुलाकात की थी, और आठ या नौ दिनों तक मैं उससे बातें करता रहा था और सोचता रहा था कि समय आने पर वह हमारे लिए क्या कर सकता है। विषेश रूप से मैं यह सोचता रहा था कि इस समय उसके साथ क्या करना है, क्योंकि वह अपने परिवार के भविष्य के विषय में बहुत अधिक चिन्तित है और पूरी ईमानदारी के प्रत्येक लक्षण सहित, वह कहता है, कि जब तक उसका परिवार शमील की कैद में है वह हमारी सेवा करने अथवा सहृदय सत्कार और क्षमा के लिए जो उसे प्रदान की गई है, अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने में अषक्त और लाचार है। उसे जो सर्वाधिक प्रिय हैं उनको लेकर वह अपने को जिस अनिश्चतता की स्थिति में पा रहा है, वह उसमें विह्वलता उत्पन्न कर रही है। उसके साथ रहने के लिए मेरे द्वारा नियुक्त किये गये लोगों ने मुझे यह बताया है कि वह रात में सोता नहीं है, बमुश्किल कुछ खाता है, लगातार प्रार्थना करता रहता है और कुछ कज्जाकों के साथ केवल घुड़सवारी की अनुमति चाहता है ------एकमात्र मनोरंजन और व्यायाम का साधन जिसे वह पा सकता है, और जो वर्षों पुरानी आदत की दृष्टि से उसके लिए अपरिहार्य है। वह प्रतिदिन मेरे पास यह जानने के लिए आता है कि मुझे उसके परिवार का कोई समाचार तो प्राप्त नहीं हुआ, और मुझसे कहता है कि विभिन्न मोर्चों के सभी युद्ध बन्दियों को मैं अपनी व्यवस्था में एकत्रित करूं और उसके परिवार के बदले में शमील को उन्हें भेंट करूं, जिसमें वह कुछ धनराशि मिलायेगा। कुछ लोग हैं जो इस उद्देश्य के लिए उसे धन देगें। हर बार उसने एक ही बात दोहराई -- “मेरे परिवार को बचा लें, और फिर मुझे अपनी सेवा का अवसर दें (उसकी राय में विशेषरूप से लेग्जियन मोर्चे पर) और, महीने के अंत तक यदि मैं आपको महत्वपूर्ण सेवा प्रस्तुत नहीं करता, तब जैसा उचित समझें दण्ड दें। ”

“मैनें उत्तर दिया कि यह सब मुझे बहुत संतोषजनक प्रतीत हो रहा है, और यह कि हमारे अनेक लोग हैं जो उस पर तब तक विश्वास नहीं करेगें जब तक उसका परिवार पहाड़ों पर बना हुआ था और हमारे पास जमानत के रूप में नहीं था ; कि अपनी सरहदों से बंन्दियों को एकत्र करने के लिए मैं जो कर सकता हँ वह सब करूंगा, और कि फिरौती के लिए जो धन उसने एकत्र किया था, हमारे नियमों के अनुसार उसमें कुछ भी धन देकर वृद्धि करने के लिए मैं अधिकृत नहीं था। उसकी सहायता के लिए मै कोई अन्य मार्ग खोजने का प्रयास करूंगा। उसके पश्चात् मैनें उसे अपनी निष्पक्ष राय दी थी कि शमील उसके परिवार को किसी भी हालत कें छोड़ने को तैयार नहीं होगा। उचित यही होगा कि वह सीधे उसी से बात करे। शमील उसके पूर्व कार्यों को ध्यान में रखकर उसे पूर्ण क्षमा का वायदा कर सकता था। और यदि वह वापस नहीं लौटेगा तो शमील उसकी माँ, पत्नी और छ: बच्चों को समाप्त करने की धमकी भी दे सकता था। ” मैनें उससे पूछा था कि वह ईमानदारी से बतायेगा कि यदि वह शमील से ऐसी घोषणा प्राप्त करता है तब वह क्या करेगा ! हाजी मुराद ने अपनी ऑंखें और अपने हाथ आकाश की ओर उठाए थे और बोला था कि सब कुछ खुदा के हाथों में था, लेकिन वह शत्रु के समक्ष कभी अपना आत्म-समर्पण नहीं करेगा, क्योंकि उसे पूर्णरूप से विश्वास था कि शमील उसे क्षमा नहीं करेगा। इस स्थिति में वह अधिक समय तक जीवित नहीं रह पायेगा। जहाँ तक उसके परिवार के विनास की बात थी, वह नहीं सोचता कि शमील ऐसा मूर्खतापूर्ण व्यवहार करेगा। पहली बात, वह उसे और अधिक खतरनाक और घोर शत्रु नहीं बनाना चाहेगा, और दूसरे दागेस्तान में अनेक ऐसे लोग थे, उनमें कुछ बहुत प्रभावशाली लोग थे, जो उसे ऐसा करने से रोकेगें। अंतत: उसने अनेक बार मुझसे दोहराया था कि, भविष्य के लिए खुदा की जो भी इच्छा होगी, लेकिन इस समय मात्र एक विचार ने उसे घेरा हुआ था, और वह था उसके परिवार की फिरौती का विचार, और उसने खुदा के नाम पर, मुझसे प्रार्थना की थी, कि मैं चेचेन्या के पड़ोस में उसके लौटने में उसकी सहायता करूं और उसे अवसर दूं, जहाँ, मेरे कमाण्डरों के साधन और अनुमति से, वह अपने परिवार से सम्बन्ध बना सके, उसकी वास्तविक स्थिति के सतत समाचार पा सके और उसे छुड़ाने के उपाय कर सके। उसने कहा था कि शत्रु देश के उस क्षेत्र में अनेक लोग थे, जिनमें कुछ प्रधान भी थे जो अधिक या कम उससे जुड़े हुए थे। यहाँ की पूरी जनसंख्या, जो या तो रूसियों द्वारा पहले से ही विजित थी अथवा तटस्थ थी। वह, हमारी सहायता से, सहजता से उनसे संबन्ध स्थापित कर सकता है, जो उस लक्ष्य की सफलता के लिए बहुत उपयोगी होगा, जो रात-दिन उसे उत्पीड़ित किए हुए था। जिसकी पूर्ति उसे राहत देगी और उसे इस योग्य बनायेगी कि वह हमारे लाभ के लिए कार्य करे और हमारा विष्वास प्राप्त करे। उसने कहा कि बीस अथवा तीस कज्जाकों के अनुरक्षण में उसे पुन: जार्जिया भेज दिया जाये, जो उसके शत्रु के विरुद्ध उसकी रक्षा करेगें ---- और हमारे लिए उसके घोषित इरादे की सत्यता की गारण्टी होंगें। ”

“प्रिय प्रिन्स, आप स्पष्ट अनुभव करेगें, कि इस सबने मुझे परेशान कर दिया था, क्योंकि, एक रूप में अथवा दूसरे, एक बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर है। उस पर पूर्ण रूप से विष्वास करना उच्च कोटि की जल्दबाजी होगी, लेकिन, यदि हम उसे भाग निकलने के उपाय से रोकना चाहते हैं, तो उसे हमें कैद कर लेना उचित है। और तब मेरे विचार में, दोनों ही अन्यायपूर्ण और अवैधानिक होगें। इस प्रकार की कार्यवाई का समाचार शीघ्र पूरे दागेस्तान में फैल जायेगा, जों हमें बड़ी हानि पहुंचायेगा, क्योकि यह बहुत से उन तत्वों को हतोत्साहित करेगा जो अधिक या कम खुलकर शमील के विरुद्ध कार्यवाई करने को तैयार हैं और जो इमाम के अति बहादुर और सर्वाधिक साहसी सहायकों की यहाँ की स्थिति में इस प्रकार रुचि लेते हैं, जो हमारे हाथों में अपने को आत्म-समर्पण के लिए विवश पा रहा है। यदि एक बार हमने हाजी मुराद के साथ कैदी जैसा व्यवहार किया, तो शमील के प्रति उसके विश्वासघात के सभी अनुकूल परिणाम हमारे लिए समाप्त हो जायेगें। ”

“इस प्रकार मैं सोचता हँ कि जैसा व्यवहार मैंने किया उसकी अपेक्षा दूसरे ढंग से व्यवहार नहीं कर सकता था, लेकिन यदि हाजी मुराद ने पुन: हमें छोड़ने का निर्णय किया तो उस बड़ी भूल के लिए मुझे ही दोश दिया जायेगा। कर्तव्य परायणता और इस प्रकार की जटिल समस्या में यह कठिन है, असंभव न कहें, कि जोखिम उठाने की त्रुटि और किसी दायित्व को स्वीकार किये बिना एक सीधा मार्ग पकड़ना ठीक है। लेकिन एक बार मार्ग सीधा प्रतीत होने पर, व्यक्ति को उसी पर चलना चाहिए, चाहे कुछ भी आये। ”

“मेरे प्रिय प्रिन्स, मैं आपसे निवेदन करना चाहता हँ, कि इसे महामहिम सम्राट के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत करें, और यदि हमारे ज्योतिर्मय सम्राट मेरी कार्यवाई को कृपापूर्वक स्वीकार कर लेते हैं तो मुझे प्रसन्नता होगी। जो सब मैंने ऊपर आपको लिखा है, वह मैनें जनरल जावदोन्स्की और कोज्लाव्स्की को भी, कोज्लाव्स्की के हाजी मुराद के साथ सीधे संबन्धों के कारण, लिखा है, जिन्हें मैनें चेतावनी दी है कि उनकी मंजूरी के बिना वह कुछ नहीं कर सकता और न ही कहीं जा सकता है। मैनें हाजी मुराद से कहा था कि हमारे लिए यह अच्छा ही होगा कि वह हमारे अनुरक्षको के साथ घुड़सवारी के लिए जाये, अन्यथा शमील यह अफवाह फैला देगा कि हमने उसको पकड़कर जेल में डाल दिया है। लेकिन मैनें उससे वायदा लिया था कि वह वोज्द्वीजेन्स्क कभी नहीं जायेगा, क्योंकि मेरा पुत्र, जिसके समक्ष उसने सर्वप्रथम आत्म-समर्पण किया था और जिसे वह 'कुनक' अथवा 'मित्र' के रूप में सम्मान देता है, उस स्थान का कमाण्डर नहीं है, और वहाँ शायद गलत-फ़हमी पैदा हो जायेगी। इसके अतिरिक्त, वोज्द्वीजेन्स्क बहु-संख्यक शत्रु बस्ती के अत्यधिक निकट है, जबकि अपने एजेण्टों के साथ वह जो संबन्ध स्थापित करना चाहता है, उसके लिए ग्रोज्नी हर दृष्टि से उपयुक्त है।

“बीस सर्वोत्कृष्ट कज्जाक, जिनके लिए हाजी मुराद ने स्वयं अनुरोध किया था कि वे उससे एक कदम भी दूर नहीं रहेंगें, के अतिरिक्त उसके साथ एक योग्य, प्रख्यात और बहुत प्रबुद्ध अधिकारी जो तातारी बोल लेता है, उससे भलीभाँति परिचित है, और जिस पर वह पूर्ण विश्वास करता है, कैप्टेन लोरिस मेलीकोव को नियुक्त किया है। हाजी मुराद ने जो दस दिन यहाँ व्यतीत किये थे, संयोगत: वह उस मकान में रहा था, जिसमें शुशी जिले के कमाण्डर लेफ्टीनेण्ट कर्नल तर्खानोव रहते थे, जो सरकारी काम से यहाँ आए हुए थे। वह पूर्णरूप से विश्वसनीय व्यक्ति हैं ; और मुझे उन पर पूरा विश्वास है। उन्होंनें भी हाजी मुराद का विश्वास जीत लिया था, क्योंकि वह बहुत सुन्दर तातारी बोल लेते हैं, और अकेले उन्हीं के माध्यम से हमने बहुत ही नाजुक और गोपनीय विषयों पर चर्चा की थी। ”

“मैंनें हाजी मुराद के विशय में तर्खानोव के साथ विचार-विमर्श किया था, और वह पूर्ण रूप से मुझसे सहमत थे कि कोई भी व्यक्ति वही कार्यवाई करता जैसी कि मैनें की है। या तो हाजी मुराद को जेल में बंद कर देता और पहरे के कठोरतम संभव उपाय करता ---क्योंकि एक बार उसके साथ कठोर व्यवहार किये जाने के बाद उसे पकड़ रखना कठिन होता,---- या उसे देश से बाहर निकाल देता। लेकिन अंतिम दोनों उपाय हाजी मुराद और शमील के मध्य होने वाले झगड़ों से हमें प्राप्त होने वाले लाभ को न केवल समाप्त कर देगें, बल्कि शमील की शक्ति के विरुद्ध कबीलाइयों के असंतोष को बढ़ाने और उसके विरुद्ध उनके उठ खड़े होने की संभावना पर अवश्यभांवी रूप से विराम लगा देगें। प्रिन्स तर्खानोव ने मुझसे कहा था कि वह हाजी मुराद की ईमानदारी के कायल हैं ; और कि हाजी मुराद को विश्वास है, कि शमील उसे कभी माफ नहीं करेगा और क्षमा करने के वायदे के बावजूद उसकी हत्या का आदेष देगा। हाजी मुराद के साथ अपने संबन्धों में तर्खानोव को एक ही बात परेशान करती रही थी। वह थी हाजी मुराद का अपने धर्म के प्रति लगाव, और वह इस बात को छुपाता नहीं है कि उस उपाय से शमील उसे प्रभावित करने में समर्थ हो सकता है। लेकिन, जैसा कि मैनें ऊपर कहा, कि शमील ने कभी हाजी मुराद का संदेह दूर नहीं किया कि वह उसके लौटने के तुरंत बाद अथवा कुछ समय पश्चात् उसकी जान नहीं लेगा। ”

“प्रिय प्रिन्स, अपने स्थानीय मामलों के इस प्रसंग पर, मैं बस इतना ही, कहना चाहता हँ।”