भाग 15 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

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यह रिपोर्ट तिफ्लिस से 24 दिसम्बर को भेजी गई। दर्जनों घोड़ों को थकाते हुए और रक्त बहने की स्थिति तक दर्जनभर कोचवानों को पीटते हुए नववर्ष की पूर्व संध्या को पहुंचकर एक दूत ने वह रिपोर्ट तत्कालीन युद्ध मंत्री, प्रिन्स चेर्नीशोव, के हाथों में सौंपी थी, और प्रिन्स चेर्नीशोव अन्य मामलों के साथ, वोरोन्त्सोव की उस रिपौर्ट को, 1 जनवरी, 1852 को सम्राट निकोलस के पास लेकर गया था।

चेर्नीशोव वोरोन्त्सोव को पसंद नहीं करता था, क्योंकि वोरोन्त्सोव सार्वजनिक सम्मान का उपभोग कर रहा था, क्योंकि उसके पास विपुल सम्पत्ति थी, क्योंकि वोरोन्त्सोव वास्तविक अभिजात वर्ग से था जबकि चेर्नीशोव कल का नवाब था, और सबसे बड़ी बात यह कि वोरोन्त्सोव के प्रति सम्राट का विशेष अनुराग था। और इस प्रकार चेर्नीशोव वोरोन्त्सोव को क्षति पहुंचाने का हर संभव अवसर हाथ से जाने नहीं देता था। काकेशियन मामले से संबन्धित पिछली रिपोर्ट में चेर्नीशोव वोरोन्त्सोव के विरुद्ध सम्राट निकोलस की अप्रसन्नता को भड़काने में सफल रहा था क्योंकि नेतृत्व की लापरवाही के कारण एक छोटी काकेशियन सैन्य टुकड़ी कबालिइयों द्वारा लगभग पूरी तरह नष्ट कर दी गई थी। अब उसका आभिप्राय हाजी मुराद के विषय में वोरोन्त्सोव के निर्णय को असंतोषजनक प्रदर्शित करने का था। वह ज़ार को संकेत में कहना चाहता था कि वोरोन्त्सोव सदैव रूसियों की क्षति के लिए स्थानीय लोगों के प्रति संरक्षण और पक्षपात प्रकट करता था, और हाजी मुराद को कोकेशस में छोड़कर उसने मूर्खतापूर्ण व्यवहार किया था। पूरी संभावना यही है कि हाजी मुराद हमारी रक्षा व्यवस्था का जायजा लेने आया था, और इसलिए यह उचित होगा कि हाजी मुराद को मध्य रूस की ओर भेज दिया जाये और जब उसका परिवार पहाड़ों से मुक्त हो जाये उसका उपयोग किया जाये और तभी वे उसकी वफ़ादारी के प्रति हम आश्वस्त हो सकते हैं।

लेकिन चेर्नीशोव की यह योजना सफल नहीं रही; क्योंकि 1 जनवरी को निकोलस विशेषशरूप से खराब मन: स्थिति में था और विशेष परेशान होने के कारण किसी की कोई सलाह नहीं मान रहा था। वह चेर्नीशोव की एक भी सलाह स्वीकार करने का इच्छुक नहीं था। चेर्नीशोव को वह केवल इसलिए बर्दाश्त कर रहा था, क्योंकि वह उसे अस्थाई रूप से अप्रतिस्थापनीय मानता था। दिसम्बर-वादियों*** के मुकदमे में जखार चेर्नीशोव को अपराधी ठहराने के उसके प्रयास को वह जानता था। उसकी सम्पत्ति को हथियाने के उसके प्रयत्न को भी वह जानता था, और उसे पूरी तरह से बदमाश समझता था। अत:, निकोलस की खराब मन: स्थिति को धन्यवाद, जिसके कारण हाजी मुराद काकेशस में ही बना रहा, और उसका भाग्य नहीं बदला जैसा कि उस स्थिति में हो सकता था, यदि चेर्नीशोव अपनी रिपोर्ट किसी अन्य समय प्रस्तुत करता।


(***दिसम्बरवादी (1825) - दिसम्बरवादी एक राजनैतिक पार्टी थी जो प्रारंभिक-स्तर पर सैनिक अधिकारियों द्वारा बनायी गयी थी जिन्होनें पश्चिमी देशों में सेवायें की थीं। एक संवैधनिक राज्यतंत्र की मांग करते हुए उन्होंनें 1825 में अपना एक राजनैतिक आन्दोलन प्रारंभ किया था। अब वे सरकार में और अधिक अधिकार चाहते थे। उनमें से अनेकों ने फ्रांस में भी सैन्य सेवा करते हुए लंबा समय व्यतीत किया था जहाँ उन्होंने अधिकारों के लिए उठ खडे होने की प्रेरणा प्राप्त की थी।

दिसम्बरवादी सैनिकों ने और अधिक अधिकारों के लिए सेण्ट पीटर्सबर्ग में विरोध प्रदर्शन किया था। परिणामस्वरूप पाँच कमाण्डिगं अफसरों को फांसी पर लटका दिया गया था और अनेकों अधिकारियों को देश से निकाल दिया गया था।

__ अनुवादक)


शून्य से बीस डिग्री नीचे तापमान वाली कोहरायुक्त सुबह के साढ़े नौ बजे का समय था जब चेर्नीशोव का मोटा, दढ़ियल कोचवान, नोकदार सिरेवाली नीली मखमली टोपी पहने, छोटी स्लेज के बॉक्स पर उसी तरह से बैठा हुआ, जैसे निकोलस पाव्लोविच बैठता था, शीतमहल के छोटे प्रवेश द्वार तक चलकर आया और अपने मित्र, प्रिन्स दोग्लोरुकी के कोचवान को मैत्रीपूर्ण ढंग से सिर हिलाकर अभिवादन किया, जो अपने मालिक को बहुत पहले लेकर आया था और महल के प्रवेश द्वार पर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था, और अपनी लगाम मोटी गद्दी के नीचे समेटकर रख, वह अपने ठण्डे हाथों को रगड़ रहा था।

चेर्नीशोव रोंयेदार भूरे उदबिलाव की खाल के कॉलर वाला ग्रेट कोट और लड़ाकू मुर्गे के पंखोवाला तिकोना हैट पहने हुए था, जिसे वह अपनी यूनीफार्म के हिस्से के रूप में पहनता था (ज़ारकालीन रूस में असैनिक और सैनिक अधिकारियों द्वारा पहनी जानेवाली यूनीफार्म) भालू की खाल वाला कंबल फेंकते हुए, उसने सावधानीपूर्वक बर्फ की भाँति ठण्डे अपने पैरों को स्लेज से बाहर निकाला ( वह ऊंचे जूते नहीं पहनता था, और इस पर गर्व करता था )। वह कार्पेट पर प्रफुल्लतापूर्वक चहल-कदमी करता हुआ, अपने खांगों को खनकाता, दरबान द्वारा सम्मानपूर्वक अपने लिए खोले गए दरवाजे की ओर बढ़ा। अपना ओवर कोट हाँल में दौड़कर आए बूढ़े नौकर की ओर लापरवाही से उछालते हुए, चेर्नीशोव शीशे के पास पहुंचा और अपने सुपरिस्कृत घुंघराले विग पर से सावधनीपूर्वक अपनी हैट को उतारा। शीशे में अपने को निहारते हुए, उसने यंत्रवत अपने बूढ़े हाथों से अपने घुंघराले बालों और टाई की 'टॉप-नॉट' को 'टि्वस्ट' किया और क्रॉस, शोल्डर ब्रेड और मोनोग्राम सहित बड़े सैनिक बैजों को दुरस्त किया और, लड़खड़ाते अनुशासनहीन अपने बूढ़े पैरों को, कार्पेट पर घसीटते हुए सावधानीपूर्वक सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।

दरवाजे के पास पूरी ड्र्रेस में खड़े दरबान के पास से गुजरते हुए, जिसने आज्ञाकारी-भाव से झुककर उसका अभिवादन किया था, चेर्नीशोव ने प्रतीक्षाकक्ष में प्रवेश किया। ड्यूटी अफसर, जो एक नवनियुक्त अश्वपाल था, ने सम्मनपूर्वक उसका स्वागत किया, जिसकी नई यूनीफार्म चमकदार थी। वह बैज और “शोल्डर ब्रेड' पहने हुए था और उसका चेहरा अभी तक ताजा और गुलाबी था। उसकी मूंछे काली थीं और उसके संवरे हुए झब्बेदार बाल बिल्कुल निकोलस पाव्लोविच की भाँति ऑंखों पर लटक रहे थे। युद्ध-मंत्री का सहयोगी, प्रिन्स वसीली दोल्गोरुकी, अपने भाव-शून्य चेहरे पर क्लांत दिखाई दे रहा था। वह निकोलस की भाँति अपनी गलमुच्छे संवारे हुए था और उसने अंगूठियां पहन रखी थीं। चेर्नीशोव से मिलने के लिए वह उठ खड़ा हुआ और उसने उसका स्वागत किया।

“सम्राट?” सम्राट की स्टडी के दरवाजे की ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखते हुए चेर्नीशोव ने अश्वपाल से पूछा।

“महामहिम अभी-अभी लौटे हैं। ” अपनी स्वयं की आवाज को स्पष्ट रूप से पसंद करते हुए, अश्वपाल ने कहा, और हल्के कदम रखता हुआ, इतने शांत कि सिर के ऊपर स्थित पानी भरा गिलास चिटख न जाये, और अपने प्रत्येक रन्ध्र से उस स्थान की ओर जहाँ वह प्रवेश कर रहा था सम्मान टपकाता हुआ, वह दरवाजे के पास पहँचा, और दरवाजे के पीछे गायब हो गया, जिसे बिना आवाज किये उसने खोला था। दोल्गोरुकी ने, इस बीच, अपना पोर्ट-फोलियो खोल लिया था और उसमें कागजातों की जाँच करने लगा था। चेर्नीशोव त्योरियाँ चढ़ाये, चहल-कदमी करता हुआ, अपने पैर रगड़ रहा था और सम्राट को रिपोर्ट करने वाली प्रत्येक बात का स्मरण कर रहा था। चेर्नीशोव स्टडी के दरवाजे के पास ही था जब वह पुन: खुला और पहले से अधिक लक-दक और श्रद्धा से परिपूर्ण अश्वपाल प्रकट हुआ। उसने युद्धमंत्री और उसके सहयोगी को सम्राट के पास जाने के लिए इशारे से बुलाया।

अग्निकाण्ड के बाद शीतमहल का पुर्निर्माण किया गया था, और निकोलस अभी भी ऊपरी मंजिल में रहता था। स्टडी, जहाँ वह अपने मंत्रियों और अधिकारियों से मिलता था, चार बड़ी खिड़कियोंवाला ऊंचा कमरा था। मुख्य दीवार पर सम्राट अलेक्जेण्डर प्रथम का चित्र लटका हुआ था। खिड़कियों के मध्य दो मेजें पड़ी हुई थीं। दीवारों के साथ अनेकों कुर्सियाँ रखी हुई थीं। कमरे के बीच लिखने की एक विशाल मेज थी और मेज के सामने निकोलस की बांहदार कुर्सी थी और आगन्तुकों के लिए कुर्सियाँ रखी हुई थीं। कंधों पर छोटे फीते और बिना सैनिक बैज वाले काले सूट में, अपने असामान्य बड़े शरीर को दबाते हुए और, अत्यधिक बढ़े हुए अपने पेट को फीते से कसकर बांधे हुए निकोलस मेज पर बैठा हुआ था। उसके गंजे सिर पर कुशलतापूर्वक रखे हुए विग से बाहर निकले हुए चिकने बाल पीछे की ओर झुके हुए उसके बड़े ललाट पर भौंहों तक लटके हुए थे। उसका लंबा गोरा चेहरा आज विशेष रूप से ठण्डा और संवेगहीन था। सदैव उदास रहने वाली उसकी आंखें, अपेक्षतया अधिक उदास थीं, और ऊपर को उठी हुई मूंछों के नीचे उसके होंठ कसकर भिंचे हुए थे। ऊपर उठे कॉलरों से ढके हुए मोटे, सफाचट गालों वाले उसके चेहरे से अप्रसन्नता, यहाँ तक कि क्रोध का भाव प्रकट हो रहा था। उसकी उस मन: स्थिति कारण थकान थी, और उसकी थकान का कारण गत रात मुखौटा बाल नृत्य में उसकी उपस्थिति थी। वहाँ वह घुड़सवारी के अपने सैनिक हेल्मेट में विजेता के-से भाव से लोगों पर विहगंम दृष्टि डालता हुआ टहलता-सा निकला था। लोग उसके मार्ग में भीड़ लगाये हुए थे। भीड़ उसके विशाल, आत्मविश्वासी शरीर को कातरभाव से रास्ता दे रही थी। वहाँ वह एक बार पुन: उस महिला से मिला था, जिसे उसने पिछले नकाबपोश नृत्य समारोह में देखा था, जिसने अपनी गोरी त्वचा, अपने सुन्दर रूप और कोमल स्वर द्वारा उसकी वृद्ध इच्छाओं को जागृत कर दिया था। उस समय वह उससे अगले नकाबपोश नृत्य समारोह में मिलने का वायदा करके, उसकी दृष्टि से ओझल हो गयी थी। पिछली रात वह उसके पास आयी थी, और निकोलस ने उसे जाने नहीं दिया था। वह उसे विशेषरूप से तैयार एक बॉक्स की ओर मार्ग दिखाता हुआ ले गया था, जहाँ वह किसी महिला के साथ अकेला रह सकता था। खोमोशी के साथ बॉक्स के दरवाजे पर पहुंचकर, निकोलस ने सहायक के लिए चारों ओर दृष्टि डाली थी, लेकिन वह वहाँ नहीं था। निकोलस ने त्योरियाँ चढ़ाईं थीं और धकियाकर बॉक्स के दरवाजे को खोला था। महिला को अपने आगे करके वह उसे अंदर ले गया था।

“यहाँ कोई है?” उसे रोकते हुए कोई मुखौटा बोला था। बॉक्स वास्तव में घिरा हुआ था। मखमली सोफे पर एक अश्वारोही सेनाधिकारी और मुर्गे के पंख वाला टोप पहने, अपना मुखौटा उतारे घुंघराले बालों वाली एक चित्ताकर्षक खूबसूरत युवती अगल-बगल बैठे हुए थे। क्रोध से पूरी तरह तने हुए निकोलस के क्रुद्ध रूप को देख, सुनहले बालों वाली लेडी ने जल्दी से अपना मुखौटा पहन लिया था, और भय से संत्रस्त, घुड़सवार सेनाधिकारी, सोफे से बिना उठे, निर्निमेष निकोलस को देखता रहा था।

निकोलस लोगों में भय जाग्रत करने में अभ्यस्त था। यह भय सदैव उसके आनंद का एक श्रोत होता था और कभी-कभी जब लोग भय-त्रस्त होते थे वह उन्हें अपने सुपरिचित चोटीले ढंग से संबोधित करके उनकी घबड़ाहट से आनंदित होता था।

“अच्छा, अच्छा, आप मुझसे अधिक युवा हैं, मेरे मित्र,” उसने अधिकारी से कहा था, जो भय से स्थिर बैठा हुआ था, “आप मेरे लिए रास्ता बना सकते हैं। ”

अधिकारी गर्म और ठण्डी गहरी सांस छोड़ता हुआ उछलकर खड़ा हुआ था, और मुखौटे में अपना चेहरा छुपाये हडबड़ाता हुआ खोमोश बाहर निकल गया था, और निकोलस, उस युवती के साथ अकेला रह गया था।

मुखौटाधारी बीस वर्षीया सुन्दर युवती, एक स्वीडिश गवर्नेश की पुत्री थी। इस लड़की ने निकोलस को बताया कि बचपन से ही वह उसका चित्र देखकर उसके प्यार में पड़ गयी थी। वह उसकी आराधना करने लगी थी और उसने निर्णय किया था कि उसकी कीमत भले ही जो भी हो वह उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में अवश्य सफल होगी। “और अब उसने उसमें सफलता पा ली थी, अब उसे और अधिक कुछ नहीं चाहिए था “युवती ने कहा था। लड़की को वह उस स्थान में ले गया था जहाँ निकोलस प्राय: औरतों से एकांत में मिला करता था, और उसने उसके साथ एक घण्टा से अधिक समय व्यतीत किया था।

जब वह उस रात अपने कमरे में वापस लौटा और पतले कठोर बिस्तर पर, जिस पर उसे गर्व था, चादर से अपने को ढककर, जिसको वह उतना ही प्रसिद्ध मानता था जितना नेपोलियन की हैट थी, वह लेटा, वह बहुत देर तक सो नहीं सका था। पहले उसने लड़की के गोरे चेहरे पर आये आतंक और उल्लसित भावाकृति के विषय में, फिर अपनी नियमित रखैल, नेलीदोवा, के मजबूत कंधों के विषय में सोचा था, और फिर दोनों की तुलना करता रहा था। “एक विवाहित व्यक्ति के लिए व्यभिचार अनुचित था”, यह विचार उसके मस्तिष्क में कभी प्रविष्ट नहीं हुआ था, और यदि किसी ने इसके लिए उसकी आलोचना की तो उसके लिए उसे बहुत आश्चर्य हुआ। यद्यपि वह आश्वस्त था कि उसने सही ढंग से व्यवहार किया था, फिर भी कुछ अप्रिय बातों के लिए उसे अभी तक अनुताप था। उस विचार को रोककर उसने उस विषय में सोचना शुरू कर दिया जो सदैव उसे शांति प्रदान किया करता था ---- कि “वह कितना महान व्यक्ति था। ”

यद्यपि वह रात में विलंब से सोया था, फिर भी वह सात बजे के तुरंत बाद उठ गया था। उसने प्रथानुसार स्नान किया था, और अपने लंबे-चौड़े, परितृप्त शरीर को बर्फ से रगड़ा था। फिर प्रार्थना की थी ( वह सामान्यत: वही प्रार्थना गाता था, जिसे वह बचपन से दोहराता आ रहा था ---” पवित्र माँ, मैं विश्वास करता हूं, ' हमारे पिता' ----- अपने द्वारा उच्चरित शब्दों के अर्थ वह स्वयं नहीं समझता था )। इसके बाद ग्रेट कोट और कैप पहन वह बांध तक छोटी सैर करने करने के लिए चला गया था। बाँध के बीच रास्ते में उसे यूनीफार्म और हैट में 'इस्टीटयूट ऑफ लॉ ' का एक छात्र मिला था, जो उसीकी भाँति विशाल कद-काठी का था। इंस्टीटयूट की यूनीफार्म देखकर, जिसे वह पसंद नहीं करता था ; क्योकि उसकी दृष्टि में वह स्वतंत्र सोच की प्रेरणा देती थी, निकोलस पाव्लोविच ने भौंहे चढ़ाईं थीं, लेकिन ऊंचे कद वाले छात्र ने शिष्टाचारपूर्वक सावधनी से खड़े होकर और कोहनी मोड़कर जिस प्रकार अतिरंजित ढंग से सैल्यूट कर उसे आदर दिया था, उससे उसका क्रोध कुछ कम हो गया था।

“तुम्हारा नाम क्या है? ” उसने पूछा था।

“महामहिम, स्ट्रिपर,।”

“अच्छा नाम है, साथी। ”

छात्र अभी तक अपना हाथ अपनी हैट तक उठाए हुए खड़ा था।

“क्या तुम सैन्य सेवा में जाना चाहते हो? ”

“नहीं, महामहिम। ”

“मूर्ख। ” निकोलस पलटा। वह आगे बढ़ता गया और जो पहला शब्द उसके दिमाग में आया, ऊंचे स्वर में उसने उसका उच्चारण करना प्रारंभ कर दिया था। “कोपरवीन, कोपरवीन,” उसने अनेक बार इसे दोहराया -- यह पिछली शामवाली लड़की का नाम था। “घिनावना, अश्लील। “वह नहीं सोच पाया कि वह क्या कह रहा था, बल्कि शब्दों की ओर ध्यान दिये बिना वह अपने विचारों में ही डूबा रहा। “हाँ, मेरे बिना रूस कहाँ होगा? “पुन: अपनी मन:-स्थिति को क्रोधपूर्ण अनुभव करता हुआ, उसने स्वयं से ही यह कहा। वह प्रशिया के राजा, अपने साले की कमजोरियों और मूर्खताओं के विषय में सोचता और सिर हिलाता रहा था।

दरवाजे की ओर लौटते हुए, उसने हेलेन पावलोव्ना के कोचवान को देखा, जो लालवर्दी पहने हुए एक नौकर के साथ साल्तीकोव प्रवेशद्वार की ओर जा रहा था। हेलेन पावलोव्ना उन धूर्त लोगों का आदर्ष थी जो केवल विज्ञान और कविता पर ही चर्चा नहीं करते थे, बल्कि सरकार पर भी यह मानकर चर्चा करते थे, कि निकोलस ने, उन पर जैसा शासन किया था, अपने पर वे उससे बेहतर शासन कर सकते थे। वह जानता था कि यद्यपि उसने उन लोगों को बहुत अधिक दबाया था, फिर भी वे लगातार ऊपर आ जाते थे। और उसे हाल ही में दिवंगत हुए अपने भाई, माईकेल पॉव्लोविच की याद हो आयी। दुख और उदासीन विचारों ने उसे आ घेरा। उसने विषण्ण्तापूर्वक त्योरियाँ चढ़ाई और पुन: यों ही शब्दों को बुदबुदाने लगा। जब उसने महल में प्रवेश किया तभी बुदबुदाना बंद किया। कमरे में प्रवेश करके उसने दाढ़ी ठीक की, और दर्पण के सामने कनपटी पर बालों और सिर पर विग को ठीक किया, मूंछों को उमेठा और सीधे स्टडी में चला गया जहाँ वह लोगों से मिला करता था।

वह पहले चेर्नीषोव से मिला। चेर्नीशोव ने निकोलस के चेहरे, विशेषकर ऑंखों से अनुमान लगा लिया कि उस दिन वह विशेषरूप से खराब मन: स्थिति में है, और, पिछली शाम की चुलबुल लड़की के विषय में सोचकर उसने उसका कारण समझ लिया। ठण्डे ढंग से उसका स्वागत करने और कुर्सी की ओर इशारा करने के बाद, निकोलस ने चेर्नीशोव पर अपनी निस्तेज ऑंखें गड़ा दीं।

चेर्नीशोव की रपट में पहला आइटम कमसरियत ( रसद विभाग ) अधिकारियों के चोरी से संबधित था ; फिर प्रशियन सरहद पर सेना की पुन: तैनाती का मामला था; फिर नववर्ष के अवसर पर सम्मान स्वरूप पुरस्कार देने की पहली सूची में छूट गये कुछ लोगों का मामला था; फिर हाज़ी मुराद के आत्म-समर्पण पर वोरोन्त्सोव की रिपोर्ट, और अंत में 'एकेडेमी ऑफ सर्जरी' के एक छात्र का अप्रीतिकर मामला आया जिसने अपने प्रोफेसर को मार डालने का प्रयास किया था।

निकोलस ने जैसे ही चोरी के विषय में रपट सुनी, चेर्नीशोव के माथे और टाई के 'टॉप नॉट' पर दृष्टि केन्द्रित करते हुए खामोशी से अपने होंठ भींचे, और तर्जनी पर पहनी हुई एक मात्र सोने की अंगूठी वाला अपना लंबा गोरा हाथ कागजों के पुलिन्दे पर दे पटका।

निकोलस इस बात से सहमत था कि सभी चोर हैं। वह जानता था कि उसे उन कमसरियत अधिकारियों को दण्डित करना चाहिए और उसने उन सभी को अनिवार्य रूप से सेना में भर्ती किये जाने का निर्णय किया, लेकिन वह यह भी जानता था कि यह दण्ड उनके उत्तरवर्तियों को वह सब करने से नहीं रोक पायेगा। चोरी करना अधिकारियों के स्वभाव में था, और उन्हें दण्डित करना उसका कर्तव्य था, और उस सबसे क्लांत वह फिर भी बड़ी ईमानदारी से इस कर्तव्य का निर्वाह कर रहा था।

“मैं समझता हँ, रूस में केवल एक ही व्यक्ति ईमानदार है, ” वह बोला।

चेर्नीशोव तुरंत समझ गया कि रूस में एक ईमानदार व्यक्ति स्वयं निकोलस था, और इसके समर्थन में वह मुस्कराया।

“सचमुच ऐसा ही है, महामहिम,” वह बोला।

“इस बात को छोड़ो, मैं अपना फैसला खुद करूंगा।” एक कागज लेकर और उसे मेज के बायीं ओर खिसकाते हुए निकोलस बोला।

इसके पश्चात चेर्नीशोव ने पुरस्कारों और सेना की पुनर्नियुक्ति के विषय में बात करना शुरू किया। निकोलस ने सूची पर दृष्टि दौड़ाई, कुछ नामों को काट दिया और फिर दो डिवीजन सेना प्रशियन सरहद पर स्थानांतरित करने का अकस्मात और निर्णायक ढंग से आदेश दिया।

निकोलस प्रशा के राजा को उसके द्वारा 1848 के पश्चात स्वीकृत किये गये संविधान के लिए क्षमा नहीं कर सका था, और इसलिए, अपने पत्रों और अपने शब्दों में अपने साले के लिए अत्यधिक मित्रतापूर्ण विचार प्रकट करते समय, वह यह स्पष्ट करता रहता था कि प्रशियन सरहद पर ऐहतियाती कारणों से सेना की तैनाती की आवश्यकता थी। वह उसे स्पष्ट करता कि सेना की आवश्यकता, प्रशा में सार्वजनिक विद्रोह के समय भी होगी ( किकोलस सर्वत्र क्रान्ति के लिए तैयार रहना चाहता था)। अपने साले की संप्रभुता की रक्षा के लिए वह सेना को उसी प्रकार आगे बढ़ाना चाहता था जैसा उसने आस्ट्रिया की रक्षार्थ हंगरी के विरुद्ध किया था। सीमा पर इन सेनाओं की तैनाती प्रशा के शासक के लिए उसकी सलाहों को महत्तर प्रभावी और सार्थकता प्रदान करने के लिए भी आवश्यक थी।

“हाँ, लेकिन मेरे लिए, अब रूस कहाँ होगा? ” उसने पुन: सोचा।

“अच्छा, इसके अतिरिक्त? ” वह बोला।

“कोकेशस से एक संदेशवाहक आया था,” चेर्नीशोव ने कहा और वोरोन्त्सोव ने हाज़ी मुराद के आत्म-समर्पण के विषय में जो कुछ लिखा था बतलाना प्रारंभ कर दिया।

“अच्छा, अच्छा। ” निकोलस बोला, “एक अच्छी शुरूआत। ”

“स्पष्टतया... महामहिम द्वारा कल्पित योजना फलीभूत होनी प्रारंभ हो गयी है।, ” चेर्नीशोव बोला।

उसकी युद्धनीतिक निपुणतावाली यह प्रशंसा निकोलस को विषेश रूप से सुखद लगी। यद्यपि, निकोलस अपनी युद्धनीतिक कुशलताओं की शेखी बघारता रहता था, तथापि अपने हृदय की गहराई में वह जानता था कि उसमें वह योग्यता नहीं थी। और इस समय वह व्यापकरूप से अपनी प्रशंसा चाह रहा था।

“तुम्हारा आभिप्राय क्या है? ” उसने पूछा।

“मेरा आभिप्राय है कि यदि हम महामहिम की मूल योजना को अपनाते--- क्रमशः आगे बढ़ते, भले ही धीरे-धीरे, जंगल काटते और सप्लाई नष्ट करते, तब काकेशस को बहुत पहले ही जीत चुके होते। हाजी मुराद के आत्म-समर्पण का श्रेय पूर्ण रूप से मैं इसी योजना को देना चाहता हूं। उसने समझ लिया था कि वे लंबे समय तक टिके नहीं रह सकते थे। ”

“यह सच है,” निकोलस बोला।

शत्रु प्रदेश में वनों को काटकर गिराते हुए और रसद आपूर्ति नष्ट करते हुए धीमी गति से आगे बढ़ने की योजना जिस प्रकार घटित हुई थी, वह एर्मोलोव और वेलियामिनोव की योजना थी, जो निकोलस के विचार के बिल्कुल विपरीत थी। उस योजना के अनुसार वे तुरंत ही शमील के निवास पर अधिकार कर लेना चाहते थे और उस लुटेरे के नीड़ को नष्ट कर देना चाहते थे। यह एक ऐसी योजना थी जो 1845 में दार्गो अभियान, के लिए जिम्मेवार थी, जिसमें मानव जीवन की भयंकर क्षति हुई थी। फिर भी, व्यवस्थित ढंग से वनों को काटने और आपूर्ति नष्ट करने की योजना की मंद गति के लिए निकोलस ने अब तक अपने को ही श्रेय दिया था। ऐसा प्रतीत होता था, जो विश्वसनीय भी लगता था कि, जंगलों की कटाई, और आपूर्ति नष्ट करने वाली धीमी गति की योजना उसी की थी। वह इस वास्तविकता को छुपाना चाहता रहा होगा कि 1845 की सैनिक कार्यवाई के लिए उसीने बल दिया था, जो प्रकृति में विरोधाभासी थी। फिर भी वह उसे छुपा नहीं पाया था, और दोनों योजनाओं---1845 के सैन्य अभियान और धीमी गति से आगे बढ़ने के लिए गर्व करने लगा था। हालांकि ये दोनों योजनाएं परस्पर घोर रूप से एक-दूसरे के विरोधी थीं। वास्तव में एकनिष्ठ, निर्लज्ज, चाटुकारों ने निकोसल को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया था जहाँ वह अपने विरोधाभासों, अपनी कार्यवाइयों और अपने शब्दों की वास्तविकता, विवेक अथवा सुस्पष्ट सामान्य बोध को माप नहीं पाता था, बल्कि वह इस बात से आश्वस्त था कि उसके सभी आदेश न्यायपूर्ण और सुसंगत थे क्योंकि केवल उसने उन्हें दिया था, भले ही किसी भी तरह वे मूर्खतापूर्ण, किसी भी तरह अन्यायपूर्ण अथवा असंगत रहे हों।

काकेशस की रिपोर्ट के बाद चेर्नीशोव के अगले मामले, 'एकेडेमी ऑफ सर्जरी' के विद्यार्थी के विषय में उसका निर्णय, एक और उदाहरण था।

यह एक नौजवान का मामला था जो अपनी परीक्षा में दो बार अनुत्तीर्ण रहा था और तीसरी बार सम्मिलित हुआ था। जब परीक्षक ने उसे पुन: अनुत्तीर्ण कर दिया, तब स्नायु-रोगी छात्र ने, इसे एक अन्यायपूर्ण निर्णय समझा था और मेज से एक चाकू खींचकर उन्माद के आवेग में उसने प्रोफेसर पर आक्रमण कर दिया था जिससे उसके कुछ हल्के घाव हो गये थे।

“उसका नाम क्या है? ” निकोलस ने पूछा।

“जेजोव्स्की। ”

“एक पोल? ” (पोलैण्डवासी)

“हाँ, मूलत:, और एक कैथोलिक। ” चेर्नीशोव ने उत्तर दिया।

निकोलस ने त्योरियां चढ़ाईं।

पोलैण्ड-वासियों को उसने बहुत कष्ट पहुंचाए थे। इन कष्टों को न्यायसंगत ठहराने के लिए उसका मानना था कि सभी पोलैण्डवाले निकम्म थे। और चूंकि निकोलस उन्हें निकम्मा समझता था इसलिए जिस अनुपात में वह उनसे घृणा करता था उसी अनुपात में उन्हें कष्ट देता था।

“एक क्षण ठहरो। ” वह बोला और अपनी ऑंखें बंद कर उसने अपना सिर झुका लिया।

चेर्नीशोव जानता था, जैसा कि अनेक बार निकोलस ने उसे बताया था, कि जब ज़ार को किसी महत्वपूर्ण मामले पर निर्णय करना होता था, वह कुछ क्षणों के लिए एकाग्र हो जाता था। तब उसे अंत: प्रेरणा प्राप्त होता थी, और अधिकांश अमोघ निर्णय स्वयं आकार ग्रहण कर लिया करते थे, मानो अंतर्ध्वनि उससे कहती थी कि क्या करना है। इस समय वह सोच रहा था कि पोलैण्ड वालों के विरुद्ध अपने क्रुद्ध-भाव को, जो उस विद्यार्थी की कहानी से उसमें उत्पन्न हुआ था किस प्रकार बेहतर ढंग से अभिव्यक्त करे, और अंतर्ध्वनि ने उसे निम्न निर्णय देने के लिए तत्पर कर दिया था। उसने रिपोर्ट ली थी और उसके किनारे पर अपनी बड़ी हैण्ड राइटिगं में लिखा था, “मृत्युदण्ड के योग्य। लेकिन, ईश्वर को धन्यवाद, कि हमारे यहाँ मृत्युदण्ड की व्यवस्था नहीं है, और उसे प्रारंभ करना मेरे लिए संभव नहीं है। अत: एक हजार लोगों द्वारा बारह बार कोड़े लगाये जायें। -- निकोलस। ” उसने अप्राकृतिक ढंग से बड़े अलंकारिक हस्ताक्षर किये।

निकोलस जानता था कि बारह हजार कोड़ों की मार से न केवल निश्चित और तड़पते हुए मृत्यु हो जानी थी, बल्कि यह अनावश्यक क्रूरता थी, क्योंकि पाँच हजार प्रहार किसी भी शक्तिशाली व्यक्ति को मारने के लिए पर्याप्त थे। लेकिन कठोरतम दण्ड देकर वह प्रमुदित था, और उसे यह सोचना सुखद लग रहा था कि “हमारे यहाँ मृत्युदण्ड की व्यवस्था नहीं है। ”

विद्यार्थी के विषय में निर्णय लिख लेने के बाद, उसने उसे चेर्नीशोव को पकड़ा दिया।

“वहाँ, “उसने इशारा करते हुए कहा, “इसे पढ़ लो। ”

चेर्नीशोव ने उसे पढ़ा और निर्णय की बुद्धिमानी पर विस्मित होते हुए सम्मानपूर्वक संकेत के रूप में सिर झुकाया।

“और सभी विद्यार्थियों को दण्ड के समय परेड मैदान में उपस्थित रहने के लिए बुलाओ। ” निकोलस ने आगे कहा।

“यह उनके लिए लाभकर होगा। मैं उस क्रान्तिकारी विचारधारा को नष्ट कर दूंगा और उसे जड़ से उखाड़ फेकूंगा।” उसने सोचा।

“बहुत अच्छा। ” क्षण भर के लिए चुप रहकर, और बालों के गुच्छ को सीधा करके, फिर काकेशस की रिपोर्ट पर लौटते हुए चेर्नीशोव ने कहा।

“और महामहिम, माइकल साइमन को लिखने के विषय में मेरे लिए आपका क्या आदेश है। ”

“चेचेन्या में घरों को ढहाने, सप्लाई नष्ट करने और आक्रमण द्वारा उनका विध्वंस करने की मेरी व्यवस्था का कठोरता से पालन किया जाये। ” निकोलस बोला।

“हाजी मुराद के विषय में आपका क्या आदेश है? “

“आप कहते हैं कि वोरोन्त्सोव ने लिखा है कि वह उसका इस्तेमाल काकेशस में करना चाहता है। ”

“क्या यह खतरनाक नहीं है? “निकोलस से नजरें बचाते हुए चेर्नीशोव बोला। ” मैं भयभीत हूं कि माइकल साइमन उस पर अत्यधिक विश्वास कर रहे हैं। ”

“तब, आप क्या सोचते हैं? “वोरोन्त्सोव के निर्णय पर चेर्नीशोव के अविश्वासपूर्ण आभिप्राय को भांप कर निकोलस ने कठोरतापूर्वक पूछा।

“मैंने विचार किया है कि उसे आंतरिक प्रदेश में भेजना अधिक सुरक्षित था। ”

“आपने विचार कर लिया है, “तिरस्कारपूर्ण ढंग से निकोलस बोला, “लेकिन मैं नहीं सोचता और मैं वोरोन्त्सोव से सहमत हूं। उसे ऐसा ही लिख दो। ”

“बहुत अच्छा। ” चेर्नीशोव बोला। वह उठ खड़ा हुआ और उसने प्रस्थान के लिए अनुमति ली।

दोल्गोरुकी ने भी जाने की अनुमति ली। पूरी मुलाकात के दौरान निकोलस को उत्तर में वह सेना की पुनर्नियुक्ति के विषय में केवल कुछ शब्द ही वह बोला था।

चेर्नीशोव के बाद अगला आने वाला व्यक्ति पश्चिमी कमान का गवर्नर जनरल बीबीकोव था, जो छुट्टी लेने के लिए आया था। निकोलस ने उसे विद्रोही किसानों के विरुद्ध कार्यवाई करने की स्वीकृति दी, जिन्होंनें प्राचीन धर्म मानने से इंकर कर दिया था, और उन सभी असहमत लोगों का कोर्ट मार्शल द्वारा न्याय करने का उसने उसे आदेश दिया। यह उन्हें कोड़े मारने के बराबर का दण्ड था। इसके अतिरिक्त, उसने उस समाचार पत्र के सम्पादक को सेना में अनिवार्यरूप से भर्ती करने का उसे आदेश दिया, जिसने कई हजार 'स्टेट-पीजेण्ट्स' का 'क्राउन पीजेण्ट्स' के रूप में पुनर्वर्गीकृत विवरण प्रकाशित किया था।

“मैं यह इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैं इसे आवश्यक समझता हूं” उसने कहा, “मैं इस विषय पर चर्चा किये जाने की अनुमति नहीं दूंगा। ”

बीबीकोव 'चूनिएट्स' (रोम से संबद्ध प्राचीन इसाई धर्म) और 'स्टेट-पीजेण्ट्स', जो एक मात्र स्वतंत्र लोग थे, के 'क्राउन-पीजेण्ट्स' के रूप में स्थानान्तरण के अन्याय, जिसका अर्थ था राजपरिवार की दासता, के विषय में निकोलस के निर्णय की क्रूरता को पूरी तरह से समझ गया था। लेकिन उसका विरोध करना संभव नहीं था। निकोलस के निर्णय से असहमति प्रकट करने का अर्थ होता महत्वपूर्ण पद खो देना जिसे प्राप्त करने में उसे चालीस वर्ष लगे थे और जिसका उपभोग वह अब कर रहा था। इसलिए आज्ञाकारी होने का संकेत देते हुए सम्राट की क्रूर, मूर्खतापूर्ण और घातक इच्छा के निष्पादन के लिए उसने विनम्रतापूर्वक अपना काला-धूसर सिर झुका दिया था।

निकोलस ने जब बीबीकोव को विदा कर दिया, भलीभाँति कर्तव्य निर्वाह करने के विचार से उसने अपने को पसार दिया, अपनी घड़ी पर नजर डाली और कपड़े बदलने चला गया। उसने सैनिक बैज, तमगों और फीतोंवाली यूनीफार्म पहनी और स्वागत कक्ष में प्रवेश कया, जहाँ यूनीफार्म में शताधिक पुरुष और घुटनों तक भड़कीले कपड़ों में स्त्रियाँ भयभीत-से उसके आने की प्रतीक्षा में अपने स्थानों पर खड़े थे।

प्रतीक्षारत लोगों के समक्ष वह जीवन्तता रहित भाव से आया। उसकी छाती सांस से फूल रही थी और पेट उसकी बेल्ट के दोनों ओर उभरा हुआ था। भय और चापलूसी से अपनी ओर मुड़नेवाले प्रत्येक आदर को अनुभव करता हुआ, अपने चेहरे पर वह अब और अधिक कृत्रिम और प्रफुल्लित भाव ले आया था। परिचित चेहरों को आकर्षक नजरों से, उसने याद किया कि वे कौन थे। वह रुका और उसने कुछ शब्द कभी रूसी में, तो कभी फ्रेंच में कहे, और ठण्डी, चमकदार-बेधक नजरों से उन्हें घूरते हुए उन लोगों की टिप्पणियाँ सुनीं।

जब निकोलस ने उन सभी से बधाइयाँ प्राप्त कर लीं, वह चर्च में चला गया। यहाँ उसके मंत्रियों के माध्यम से ईश्वर ने, निकोलस का स्वागत और गुणगान किया, जैसा कि आम आदमियों ने किया था, और उसने उन बधाइयों और गुणगानों को अपने प्राप्य की भाँति स्वीकार किया, हालांकि वे उसमें ऊब पैदा कर रही थीं। लेकिन यह सब सही और उचित भी था, क्योंकि पूरे संसार का कल्याण और प्रसन्नता उस पर निर्भर थी, और, हालांकि वह इससे थका हुआ था, उसने संसार के लिए अपना सहयोग देने से अस्वीकार नहीं किया था। जब प्रात:-कालीन प्रार्थना समाप्ति पर थी, एक तेजस्वी, शानदार ढंग से संवरेबालों वाला डीकन (उपयाजक ) “मेनी इयर्स” गाने लगा और गायक वृंद अपनी सुन्दर आवाज में उसके शब्दों को दोहराने लगे। निकोलस ने दृष्टि दौड़ायी और शानदार कंधोवाली नेलीदोवा को खिड़की के पास खड़ी देखा और उसकी स्वीकृति पर मुखौटा नृत्य समारोह में उस लड़की के साथ जाने का निश्चय किया।

जन समूह से मिलने के बाद वह साम्राज्ञी से मिलने गया और अपने पारिवारिक दायरे में, पत्नी और बच्चों से मजाक करते हुए उसने कुछ मिनट बिताए। फिर वह आश्र्रम के रास्ते न्यायालय मंत्री, वाल्कोन्स्की के पास गया, और बातचीत के दौरान उसने उसे स्वीडिश लड़की - कोपरवीन - की माँ के लिए वार्षिक पेंशन निर्धारित करने का अधिकार दिया। यहाँ से वह अपनी नियमित घुड़सवारी के लिए चला गया था।

उस दिन का रात्रिभोज 'हाल ऑफ पाम्पे' में आयोजित किया गया था। उसके छोटे पुत्रों के अतिरिक्त, निकोलस, और माइकल वहाँ थे। अतिथियों में बैरन लीवेन, काउण्ट जेवस्की, दोल्गारुकी, प्रशा का राजदूत और प्रशा के राजा का राजप्रासाद अधिकारी वहाँ थे।

सम्राट और साम्राज्ञी के आने की प्रतीक्षा करते समय, प्रशा के राजदूत और बैरन लीवेन ने पोलैण्ड से उसी समय प्राप्त व्याकुल करने वाले समाचार पर रोचक वार्तालाप प्रारंभ कर दी थी।

“पोलैण्ड और कोकेशस रूस के दो व्रण हैं। ” लीवेन ने कहा, “इनमें से प्रत्येक देश में हमारे एक लाख लोग होने चाहिए। ”

राजदूत ने झूठा आश्चर्य व्यक्त किया कि ऐसा होना चाहिए।

“आप कहते हैं, पोलैण्ड। ” वह बोला।

“ओह हाँ, उस समस्या को हमारे हाथों सौंप देना मेटर्निच की अत्यंत चतुराई भरी चाल थी। “

वार्तालाप के दौरान सिर हिलाते हुए और स्थिर मुस्कराहट के साथ साम्राज्ञी ने प्रवेश किया, और उनके आने के बाद निकोलस आया। रात्रिभोज के समय निकोलस ने हाजी मुराद के आत्म-समर्पण के विषय में बताया, और कहा कि काकेशियन युद्ध शीघ्र ही समाप्त हो जाना चाहिए। उसने अपनी उस व्यवस्था के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की जिसमें जंगल काटने और सैनिक चौकियाँ स्थापित करके कबाइलियों को बाहर आने के लिए विवश किया गया था।

निकोलस अपनी योजना की इस प्रकार प्रशंसा कर रहा था जो एक बार पुन: उसकी महान सैन्य योग्यता को प्रदर्शित कर रहा था. राजदूत ने प्रशा के राज्याधिकारी के साथ क्षणिक दृष्टि का आदान-प्रदान किया। उसके साथ वह उसी सुबह अपने को महान योजनाकार मानने की निकोलस की दुर्भाग्यपूर्ण कमजोरी के विषय में बातचीत कर रहा था.

रात्रिभोज के बाद निकोलस बैले के लिए गया, जहाँ तंग कपड़ों में सैकड़ों चुस्त महिलाएं घूम रही थीं। एक युवती ने विशेषरूप से उसे आकर्षित किया था। निकोलस ने नृत्य प्रशिक्षक को बुलाया था, उसे धन्यवाद दिया था और एक रत्नजटित अंगूठी उस लड़की देने का आदेश दिया था।

अगले दिन चेर्नीशोव से मुलाकात के दौरान निकोलस ने वोरोन्त्सोव को दिए अपने आदेश की पुष्टि की कि अब जबकि हाज़ी मुराद ने आत्म समर्पण कर दिया था, उसे चेचेन्या के चारों ओर सख्त घेराबंदी कर देनी चाहिए और तीव्रता से उसका विध्वंस करना चाहिए।

चेर्नीशोव ने तदनुसार वोरोन्त्सोव को लिख दिया था, और दूसरा दूत अपने घोड़ों को थकाता हुआ और अपने कोचवान के चेहरे पर मारता हुआ तिफ्लिस के लिए तीव्रगति से रवाना हो गया था।