भाग 16 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

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निकोलस पाव्लोविच के आदेश का पालन करते हुए तुरंत जनवरी 1852 में चेचेन्या पर आक्रमण प्रारंभ कर दिया गया था।

आक्रमण के लिए जो सैन्य दल तैनात किये गये थे, उसमें इन्फैण्द्री की चार बटालियनें, कज्जाकों की दो टुकड़ियाँ और आठ तोपें थीं। सैन्य दल ने सड़क के रास्ते प्रस्थान किया। सैनिक दल के दोनों ओर चहबच्चों ( नालियों) में ऊंचे जूते, आधी लंबाई तक के कोट और फर की टोपियाँ पहने हुए, और कंधों पर अपनी रायफलें और कारतूस की पेटी में कारतूस रखे हुए बंदूकचियों की अटूट पंक्ति कदम-ताल करती चल रही थी। सदैव की भाँति, शत्रु की धरती पर सेना सख्त खामोशी का पालन कर रही थी। केवल कभी ही खाई में हिचकोले खाने से हिथयार खनखना उठते थे अथवा तोपखाने का कोई घोड़ा, खामोशी के आदेश को न समझ पाने के कारण, फनफना या हिनहिना उठता था, अथवा कोई क्रुद्ध कमाण्डर, अपने लोगों पर नियंत्रित, पर कर्कशस्वर में चीख उठता था कि पंक्ति अत्यधिक फैल गयी थी, या सैनिकदल से अधिक निकट अथवा अधिक दूर हो गयी थी। केवल एक बार पीछे की ओर मुड़े छोटे सीगोंवाली एक बकरी द्वारा सन्नाटा भंग हुआ था, जो चरवाहे द्वारा पीछा किये जाने पर छोटे कांटों के ढेर से बंदूकचियों और सेना दल के बीच कूद पड़ी थी। खूबसूरत, भयभीत जानवर सैनिक दल की ओर तेजी से दौड़ती, लंबी छलांगे लगाती, अपने आगे के पैरों को लहराती हुई, इतना निकट आ गई थी कि कुछ सैनिकों ने चीखते और हंसते हुए अपनी संगीनों से उसकी टांगों को बींध लेने की आशा में उसका पीछा किया था, लेकिन बकरी पीछे की ओर मुड़ी, पंक्ति से बाहर उछली और कुछ अश्वारोहियों और सेना के कुत्तों द्वारा पीछा किये जाने पर भी, किसी पंख लगे जीव की भाँति पहाड़ों की ओर उड़ भागी थी।

जाड़ा अभी भी था, लेकिन सूर्य ने ऊपर चढ़ना प्रारंभ कर दिया था, और जल्दी चल देने के कारण दोपहर के समय तक, सेना ने लगभग दस मील का सफ़र तय कर लिया था। सूर्य की किरणें गर्म, बत्कि उत्तप्त होने लगी थीं। संगीनों की ओर देखना कष्टप्रद हो रहा था और तोप के कांस्य फलक पर लगे चमकीले टुकड़े बीच-बीच में छोटे सूर्यों की भाँति चमक उठते थे।

उनके पीछे एक तेज बहाव वाली निर्मल पानी की नदी थी, सेना ने जिसे अभी - अभी पार किया था। उसके सामने छिछली घाटी में जुते खेत और चारागाह थे। जंगल से ढके रहस्यपूर्ण काले पहाड़ अभी भी दूर थे। काले पहाड़ों के पार दूसरी खड़ी चट्टानों की कतारें थीं ; और उत्तुंग क्षितिज पर सदा-मंत्रमुग्ध कर देने वाले, सदा-परिवर्तनशील हिम-पर्वत दिखाई दे रहे थे, जो रोशनी में हीरे की भाँति चमक कर रहे थे।

पाँचवीं कंपनी के सामने, काली सर्विस ड्रेस और फर की हैट पहने, अपने कंधे से तलवार लटकाये, हाल ही में रक्षक दल से स्थानांतरित होकर आया, लंबा, खूबसूरत अधिकारी बटलर चल रहा था। वह जीवन की खुशी और मृत्यु के खतरे, युद्ध की अभिलाषा और एक अकेली इच्छा द्वारा निर्देशित इस विशाल संसार में अपनी सहभागिता की चेतना को अनुभव कर रहा था। बटलर इस समय दूसरी बार युद्ध के लिए जा रहा था, और यह सोचकर वह उल्लसित था कि किसी भी क्षण उस पर फायर होगी, और कि वह तोप के गोले के नीचे अपना सिर नहीं झुकायेगा अथवा गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं देगा, बल्कि, जैसा कि उसने एक बार पहले किया था, अपना सिर ऊंचा उठाये हुए, अपनी मुस्कराती ऑंखों से आसपास अपने कॉमरेडों और अपने लोगों को देखेगा, और अत्यंत बेफिक्री से किसी अन्य विषय पर बात करेगा। सेना मुड़कर कुछ अच्छे रास्ते पर आ गयी थी और मक्के के ठुंठियाये खेतों के बीच कम इस्तेमाल में आयी पगडंडी पर आगे बढ़ती हुई जंगल के निकट पंहुच ही रही थी, कि किसी अदृश्य दिशा से एक तोप का गोला भंयकर आवाज के साथ ऊपर उड़ता हुआ आया था और सड़क के बगल में सैनिक दल के निकट, जमीन को जोतता हुआ-सा, मक्के के खेत में जा गिरा था।

“यह शुरूआत हो रही है,” बटलर ने अपने पड़ोसी से प्रसन्नतापूर्वक मुस्कराते हुए कहा।

इस शॉट के बाद ध्वज उठाये चेचेन घुड़सवारों की भारी भीड़ जंगल से प्रकट हुई थी। दल के बीच में बड़ा हरा ध्वज था। बूढ़े कम्पनी सार्जेण्ट मेजर ने, जो बहुत दूरदर्शी था, अल्प-दर्शी बटलर से कहा कि यह स्वयं शमील होना चाहिए। दल पहाड़ी से नीचे उतरा, दाहिनी ओर पास के दर्रे के शिखर पर पुन: प्रकट हुआ, और नीचे उतरना शुरू कर दिया। एक छोटे कद का जनरल गर्म काली 'सर्विस ड्रेस' और सफेद टॉप वाली फर की हैट पहने अपने घोड़े पर सवार बटलर की कम्पनी के पास आया और उसे उतरते घुड़सवारों के विपरीत दाहिनी ओर आगे बढ़ने का आदेश दिया। बटलर ने तेजी से अपनी टुकड़ी का बताई गई दिशा की ओर मार्गदर्शन किया, लेकिन वह दर्रे तक पहुंच पाता उससे पहले ही उसने अपने पीछे एक के बाद एक तोप के दो गोलों की आवाज सुनी। उसने आस-पास देखा - दोनों तोपों के ऊपर नीले धुंए के दो बादल उठे थे और दर्रे के समानांतर बहने लगे थे। दल को स्पष्टतया शत्रु के पास गोलंदाज फौज होने की अपेक्षा न थी। उसने प्रति आक्रमण शुरू कर दिया। बटलर की कम्पनी ने पीछे हटते हुए कबाइलियों पर फायरिगं जारी रखी। पूरी घाटी पाउडर के धुंए से भर गयी थी। घाटी के ऊपर केवल कबाइलियों को तेजी से पीछे हटते हुए और उनका पीछा करते कज्जाकों पर उन्हें फायर करते हुए ही देखा जा सकता था। सैनिक दल कबाइलियों का पीछा करता हुआ दूर तक चला गया। दूसरी घाटी की ढलान पर उन्हें एक गाँव नजर आया।

बटलर और उसकी कम्पनी कज्जाकों के पीछे दौड़ती हुई गाँव में प्रवेश कर गई थी। वहाँ एक भी निवासी नहीं था। सैनिकों को आनाज, भूसा और घरों को जलाने के आदेश दिये गये। तीखा धुंआ पूरे गाँव में फैल गया, और सैनिक धुंए में लगभग डूब-से गये थे। घरों में उन्हे जो कुछ भी मिला वे उसे जला रहे थे। मुख्यरूप से वे मुर्गियों को पकड़ और मार रहे थे जिन्हें कबाइली नहीं ले जा सके थे। अफसर धुंए से दूर बैठे, खा-पी रहे थे। सार्जेण्ट-मेजर उनके लिए एक पटरे पर मधुकोश ले आया था। चेचेन लोगों का कोई नामो-निशान नहीं था। दोपहर के कुछ बाद उन्हें लौटने का आदेश हुआ। टुकड़ियों को गाँव के बाहर पंक्तिबद्ध किया गया, और बटलर पीछे रक्षादल में रहा था। उन्होंने जैसे ही प्रस्थान किया, चेचेन कहीं से प्रकट हुए, और उन्होंने सैनिकों का पीछा किया, और छुपकर उनपर गोलयाँ दागने लगे थे।

सेना जब खुले मैदान में पहुंच गई, कबाइली पीछे हट गये थे। बटलर का कोई भी आदमी घायल नहीं हुआ था। वह प्रसन्नचित्त और प्रफुल्ल मानसिक स्थिति में लौट रहा था। उन्होंनें प्रात: के समय नदी पार की थी और मक्के के खेतों और चारागाहों में फैल गये थे। कम्पनी के गायक आगे बढ़ आये थे और उन्होंनें ऊंचे स्वर में गाना प्रारंभ कर दिया था। हवा नहीं चल रही थी। वायु मण्डल स्वच्छ, शुद्ध और इतना साफ था कि लगभग सौ मील दूर अवस्थित हिम शैल बिल्कुल निकट प्रतीत हो रहे थे। गायन जिससे प्रारंभ हुआ था गायकों के गाना समाप्त करने के बाद भी उन कदमों की धत-धब और हथियारों की खड़खड़ाहट मानो पार्श्व ध्वनि के रूप में तब भी निरंतर होती रही ही थी। बटलर की कम्पनी में जो गाना वे गा रहे थे उसे एक सैनिक ने रेजीमण्ट के सम्मान में लिखा था और नृत्यलय संयम के साथ उसे गाया गया था - “यहाँ हम चलें, यहाँ हम चलें, हे कमीनदारों !”

बटलर अपने कमाण्डर, मेजर पेत्रोव के साथ चल रहा था, जिसके साथ वह रहता था। वह इस बात से हार्दिक रूप से प्रसन्न था कि उसने रक्षक दल छोड़ने और काकेशस जाने का निर्णय किया था। रक्षक दल से उसके स्थानांतरण का प्रमुख कारण यह था कि पीटर्सबर्ग में उसने जुए में अपना पैसा उड़ा दिया था और उसके पास कुछ भी नहीं बचा था। उसे भय था कि यदि वह रक्षक दल में रुका रहा तो जुआ से संयम रखने में वह पर्याप्त समर्थ नहीं हो पायेगा, और हारने के लिए उसके पास अब कुछ नहीं बचा था। अब वह सब बीत चुका था, और यह एक भिन्न प्रकार का जीवन था, सुन्दर और उत्तेजक। इस समय वह अपनी बरबादी और न चुकाए गये कर्ज को भूल गया था।

काकेशस, युद्ध, सैनिक, अधिकारी --बहादुर, पियक्कड़ और भले स्वभाव वाले --- सभी उसे इतने आश्चर्यजनक प्रतीत होते थे कि कभी - कभी वह विश्वास नहीं कर पाता था कि धुंए से भरे कमरे में ताश के पत्तों को छूता और जुआ खेलता हुआ, महाजन से घृणा करता हुआ और अपने सिर में असह्य दर्द अनुभव करता हुआ वह पीटर्सबर्ग में नहीं, बल्कि यहाँ, इस आश्चर्यजनक प्रदेश में, बहादुर कज्जाकों के बीच में था।

“यहाँ हम चलें, यहॉ हम चलें, हे कमीनदारों !” उसके गायक गा रहे थे। संगीत के समय उसका घोड़ा प्रसन्नचित्त बना रहा था। कम्पनी की ताबीज पहनें, एक झबरा भूरा रेजोर्का नामक कुत्ता, बटलर की कम्पनी के आगे एक कमाण्डर की भाँति दौड़ रहा था। उसकी पूंछ ऊपर उठी हुई थी और उसकी मुद्रा विचारमग्न थी। बटलर अच्छे मनोभाव में, शांत और प्रसन्नचित्त था। उसके लिए युद्ध का अर्थ था कि वह भय त्याग दे और मृत्यु के खतरे को भूल जाये। इस प्रकार पुरस्कारों को अर्जित करे और अपने साथियों और रूसी मित्रों से सम्मान प्राप्त करे। दूसरी ओर, युद्ध के दौरान सैनिकों, अधिकारियों और कबाइलियों की मृत्यु और उनके घाव, उसकी कल्पना में कभी नहीं आए थे। युद्ध की अपनी काव्यात्मक कल्पना बनाए रखने के लिए, अनजाने वह मृत और घायलों को देखने से बचता रहा था। इस प्रकार उसने अनुमान लगाया था कि उसकी ओर तीन मारे गये थे और बारह घायल हुए थे। वह पीठ के बल पड़े एक शव के पास से गुजरा था, और केवल एक ऑंख से कुछ आश्चर्यजनक स्थिति में एक पीला हाथ और सिर पर गहरा लाल धब्बा देखा था और देखता ही रहा था। वह कबाइलियों को निर्भीक घुड़सवार मानता था जिनसे उसे अपनी रक्षा करनी थी।

“मेरे बच्चे, यह उचित है,” गीत के मध्यान्तर में मेजर बोला था। “यहाँ पीटर्सबर्ग की तरह बिल्कुल नहीं चलेगा। उचित पोशाक, अनुचित पोशाक, और वह सब अण्ड-बण्ड। हमने एक काम पूरा कर लिया है और अब हम घर जा रहे हैं। मोली मांस की कचौड़ियाँ, और सूप की एक अच्छी प्लेट परोसेगी। यही तो जिन्दगी है ! क्या यह नहीं है? ..... ठीक ! “

सूर्य चमकने लगा था । मेजर ने अपने पनपसंद गाने की मांग की।

मेजर अर्दली की बेटी के साथ पति और पत्नी की भाँति रहता था, जो पहले मोली के रूप में जानी जाती थी लेकिन अब वह मेरी द्मित्रीव्ना थी। मेरी द्मित्रीव्ना सुदर्शना, सुन्दर बालोंवाली, चकत्तेदार, तीस वर्षीीया महिला थी, जो नि:संतान थी। उसका अतीत जो भी था, इस समय वह मेजर की वफादार संगिनी थी। वह एक धाय की भाँति उसकी देखभाल किया करती थी, क्योंकि वह प्राय: बेहोश हो जाने की स्थिति तक शराब पीता था।

जब वे छावनी पहुंचे सब कुछ वैसा ही था जैसा मेजर ने पहले देखा था। मेरी द्मित्रीव्ना ने उसे और बटलर और सेना से आमन्त्रित दो और अधिकारियों को पौस्टिक, और रुचिकर डिनर परोसा था, और मेजर ने इतना अधिक खा-पी लिया था कि वह बोलने की क्षमता खो बैठा था और सोने चला गया था। बटलर, जो पर्याप्त थका हुआ था, लेकिन कुछ ही अधिक देशी ब्राण्डी लेकर वह संतुष्ट था। वह अपने कमरे में गया था और अपना हाथ अपने खूबसूरत घुंघराले बालों वाले सिर के नीचे रखकर, गहरी और स्वप्न-रहित निद्रा में डूबने से पहले वह कठिनाई से अपने कपड़े उतारने में सफल रहा था।