भाग 25 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

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हाजी मुराद को कस्बे के निकट ही रहने और कज्जा़कों के अनुरक्षण में घुड़सवारी पर जाने की अनुमति दी गई थी। नुखा़ में कज्जा़कों की आधी स्क्वैड्रन थी, जिसमें से दस या कुछ अधिक स्टॉफ-अफसरों के लिए बंटे हुए थे, और शेष को, यदि उन्हें तैनात किया जाता, जैसी कि उन्हें उम्मीद रहती थी, तो दस-दस के दलों में हर दूसरे दिन वे डयूटी पर होते थे। फलस्वरूप दस कज्जा़कों को पहले दिन तैनात किया गया था, और फिर यह निर्णय किया गया था कि हाजी मुराद के साथ पाँच को भेजा जाये, और हाजी मुराद से कहा गया था कि वह अपने सभी साथियों को अपने साथ लेकर न जाये।

लकिन 25 अप्रैल को हाजी मुराद सभी पाँचों के साथ बाहर गया। जिस समय हाजी मुराद अपने घोड़े पर सवार हो रहा था, कमाण्डिगं अफसर ने ध्यान दिया था कि सभी पाँचों अंगरक्षक हाजी मुराद के साथ जाने की तैयारी कर रहे थे। वह हाजी मुराद से बोला था कि उसे सभी को साथ ले जाने की अनुमति नहीं थी, लेकिन हाजी मुराद ने ऐसा प्रकट करते हुए कि उसने सुना नहीं, अपने घोड़े को चाबुक मारी थी, और कमाण्डिगं अफसर ने फिर आग्रह नहीं किया था। कज्जा़क वारण्ट आफीसर नजारोव के अधीन थे, जो सेण्ट जार्ज का 'क्रास' पहनता था। वह युवा, हट्टा-कट्टा और बेसिन-स्टाईल में कटे सुन्दर बालों वाला, राजधर्म विरोधी एक गरीब परिवार का सबसे बड़ा लड़का था। वह पितृहीन बड़ा हुआ था, और अपनी वृद्धा माँ, तीन बहनों और दो भाइयों का सहारा था।

“नजारोव, ध्यान रखना। उसके निकट रहना। ” कमउण्डिगं अफसर ने चीखकर कहा था।

“बहुत अच्छा, सर,” अपने कंधे पर अपनी राइफल संभालते हुए अपने बलिष्ठ पांगर खस्सी घोड़े को दौड़ाने के लिए रकाब पर चढ़ते हुए नजारोव ने उत्तर दिया था। चार कज्जा़क उसके पीछे चले थे। इनमें एक लंबा और दुबला फेरापोन्तोव था, जो एक भयानक चोर और शिकारी था---यह वही व्यक्ति था जिसने हमज़ालो को पाउडर बेचा था ; दूसरा स्वस्थ और तेज-तर्रार, इग्नातोव था। यह एक प्रौढ़ व्यक्ति था, जिसकी नौकरी के कम दिन शेष थे, और जो अपनी ताकत की शेखी बघारता रहता था ; तीसरा था एक तांतिया ( लंबू ) छोकरा, मिश्किन, जिस पर सभी हंसते रहते थे ; और था चमकीले बालों वाला, माँ-बाप का इकलौता बेटा, और सदैव स्नेही और खुशमिज़ाज रहनेवाला नौजवान पेत्राकोव।

वह धुंधभरी भोर थी। लेकिन नाश्ते के समय तक मौसम साफ हो गया था और सूर्य नयी कोपलों के पर्णसमूहों, तरुण अक्षत घास, अंखुआए मक्के और सड़क के बायीं ओर कलकलकर तेज बहते झरने पर चमकने लगा था। हाजी मुराद धीमी गति से चल रहा था। कज्जा़क और उसके अंगरक्षक उसके बिल्कुल निकट उसके पीछे चल रहे थे। वे छावनी से बाहर निकलकर सड़क के साथ-साथ टहलते हुए-से गये, जहाँ उन्हें अपने सिर पर टोकरी रखी महिलाएं, छकड़ों पर जाते हुए सैनिक और चीं-चां करती हुई जाती बैल-गाड़ियाँ मिलीं। जब हाजी मुराद ने डेढ़ मील की दूरी तय कर ली उसने अपने सफेद कबर्दियन घोड़े को एड़ देकर गति तेज की, जिससे उसके अंगरक्षकों को भी तेज दौड़ना पड़ा। कज्जा़क भी उसी गति से चलने लगे थे।

“उसके नीचे अच्छा घोड़ा है,” फेरापोन्तोव ने कहा, “यदि वह सदैव शत्रुतापूर्ण न रहा होता तो मैं उसे उससे ले लेता। “

“तुम शर्त लगा लो। तिफ्लिस में उस घोड़े की कीमत तीन सौ रूबल है। ”

“लेकिन मैं अपने घोड़े पर उसे पकड़ सकता हूं, “नजारोव ने कहा।

“निश्चय ही आप पकड़ सकते हैं। ”

हाजी मुराद अभी भी तेज गति से जा रहा था।

“हे ! इतनी तेज नहीं। गति कम करो !” पीछा करता हुआ, नजारोव चीखा।

हाजी मुराद ने चारों ओर देखा, कुछ बोला नहीं, और गति धीमी किये बिना उसी पोइयां गति में घोड़ा दौड़ाता रहा।

“सतर्क रहो, उन शैतानों के इरादे नेक नहीं हैं,” नजारोव बोला, “तुम देखो वे घोड़ों को चाबुक मार रहे हैं। ”

वे इसी प्रकार पहाड़ों की ओर आधा मील तक चलते रहे।

“मैं कहता हँ, ठहरो, ” नजारोव पुन: चीखा।

हाजी मुराद ने न ही उत्तर दिया अथवा न इधर-उधर देखा, बल्कि पोइयां गति से अपनी गति बढ़ाकर वह तेज गति से दौड़ने लगा था।

“मूर्ख, तुम भाग न पाओगे। ” नजारोव सावधान करता हुआ चीखा।

उसने अपने भारी-भरकम खस्सी घोड़े को चाबुक मारी, रकाब पर आगे की ओर झुका और पूरी गति से पीछा करता हुआ आगे बढ़ा।

आसमान साफ था। हवा अत्यंत सुखद थी और नजारोव शक्ति और ओजस्विता से इतना भरपूर था कि वह अपने सुन्दर शक्तिशाली घोड़े की पीठ पर एकाकार हो अकेले ही हाजी मुराद के पीछे सड़क पर उसके समानांतर तेजी से दौड़ने लगा था और किसी संकट की संभावना का विचार उसके दिमाग में नहीं आया था। वह इस बात से प्रसन्न था कि वह हर कदम पर हाजी मुराद के समीप पहुंचता जा रहा था और दूरी कम होती जा रही थी। जैसे ही उसका घोड़ा हाजी मुराद के समीप पंहुचा कज्जा़क के भारी-भरकम घोड़े की आवाज से हाजी मुराद ने अनुमान लगा लिया कि वह शीघ्र ही उस तक पहुंच जायेगा। उसने अपनी पिस्तौल अपने दाहिने हाथ में पकड़ ली और बांये हाथ से घोड़े की लगाम हल्के से पीछे की ओर खींचना प्रारंभ किया, क्योंकि घोड़ा अपने पीछे आती टॉपों की आवाज से भड़क उठा था।

“मैं कहता हँ, नहीं ...।” हाजी मुराद के लगभग बराबर पंहुचकर और लगाम से उसके घोड़े को पकड़ने के लिए एक हाथ बढ़ाते हुए नजारोव चीखा। लेकिन वह लगाम पकड़ पाता उससे पहले ही एक गोली सनसनायी थी।

“तुम क्या कर रहे हो? ” नजारोव चिल्लाया, और उसने अपनी छाती पकड़ ली।

“लड़को, उन्हें शूट कर दो” वह बोला, और घोड़े की काठी पर गिर पड़ा।

लेकिन कबालिइयों ने कज्जा़कों से पहले ही अपने हथियार बाहर निकाल लिए थे और उन्हें अपनी पिस्तौलों से मारने और अपनी तलवारों से उनके सिर काटने लगे थे। नजारोव अपने घोड़े की गर्दन पर लटका हुआ था और घोड़ा उसे उसके साथियों के पास ले गया था। इग्नातोव का घोड़ा, उसका पैर कुचलता हुआ उसके नीचे गिरा था। दो कबाइलियों ने अपनी तलवारें कसकर पकड़ीं थीं और घोड़ों से उतरे बिना ही उसका सिर और बाहें काट दीं थीं। पेत्राकोव अपने साथी की सहायता के लिए दौड़ा आया, लेकिन दो गोलियाँ, एक पीठ में और एक बगल में, उसके अन्दर जल उठीं थी। वह बोरे की भांति घोड़े से लुढ़क गया था।

मिश्किन ने अपना घोड़ा पीछे मोड़ा और छावनी की ओर सरपट दौड़ गया था। हनेफी और खान महोमा ने उसका पीछा किया था, लेकिन वह पहले ही दूर जा चुका था, और वे उसे पकड़ नहीं सके थे।

यह देखकर कि वे कज्जा़क को नहीं पकड़ सकते, हनेफी और खान-महोमा दूसरों के पास वापस लौट आये थे। हमज़ालो ने अपनी कटार से इग्नातोव को समाप्त कर दिया था और नजारोव को भी उसके घोड़े से गिराकर मार दिया था। खान-महोमा ने मृतकों से कारतूसों के बैग निकाल लिए थे। हनेफी नजारोव का घोड़ा लेना चाहता था, लेकिन हाजी मुराद वैसा न करने के लिए उस पर चीखा था, और सड़क पर चलने लगा था। उसके अनुयायी उसके पीछे सरपट दौड़ते हुए, नजारोव के घोड़े को पीट रहे थे, जो उनके पीछे दौड़ता आ रहा था। वे नुखा से दो मील से अधिक की दूरी पर धान के खेतो के बीच थे जब उन्हें किले से चेतावनी-देती हुई गोली की आवाज सुनाई दी थी।

पेत्राकोव पीठ के बल लेटा हुआ था। उसका पेट क्षत-विक्षत था। उसका युवा चेहरा आकाश की ओर उठा हुआ था, और पानी से बाहर निकली हुई मछली की भाँति हांफते हुए, उसने अपने जीवन की अंतिम सांस ली थी।

“ग्रेट स्कॉट, ईश्वर रक्षा करे, क्या मुसीबत है। ” हाजी मुराद के भाग निकलने का समाचार जब गैरिजन कमाण्डर को मिला, अपने सिर पर अपने हाथ रखकर वह चिल्ला उठा था।

“उन्होंने मुझे शर्मनाक स्थिति में डाल दिया। उन बदमाशों ने, उसे निकल जाने दिया। ” जब मिश्किन ने उसे समाचार दिया था, वह चीख उठा था।

सर्वत्र चेतावनी दे दी गई, और न केवल छावनी में जितने कज्जा़क थे, उन्हें पीछा करने के लिए भेज दिया गया, बल्कि मित्रभाव रखने वाले गांवों से जितने मिलिशिया लोगों को एकत्र किया जा सका उनको भी उनके साथ भेजा गया। हाजी मुराद को जीवित या मृत वापस लाने वाले व्यक्ति को एक हजार रूबल पुरस्कार की घोषणा की गई थी। हाजी मुराद और उसके साथियों के कज्जा़कों से अलग हो जाने के दो घण्टे बाद, दो सौ से ऊपर अश्वारोही पुलिस प्रधान के पीछे भगोड़ों को खोजने और पकड़ने के लिए सरपट दौड़ पड़े थे।

सड़क पर दो या तीन मील जाने के बाद, हाजी मुराद ने तेजी से हांफ रहे और पसीने से धूसर हो रहे अपने सफेद घोड़े की लगाम खींची थी, और रुक गया था। सड़क के दाहिनी और उसे घर और बेलार्जिक की मीनारें दिखाई दे रहे थे। बायीं ओर खेत थे, जिनके पार नदी दिखाई दे रही थी। यद्यपि पहाड़ों के लिए रास्ता दाहिनी ओर से जाता था। हाजी मुराद ने यह अनुमान लगाया कि उसका पीछा करने वाले उसके पीछे निश्चित ही दाहिनी ओर से जायेगें, इसलिए वह विपरीत दिशा में मुड़ गया। उसने सोचा कि वह उसी मार्ग से अलाजान को पार करेगा, मुख्य मार्ग पर आ जायेगा, जहाँ उसके होने की उम्मीद किसी को न होगी। उसी रास्ते जंगल में वह अधिकाधिक दूरी तय करेगा, फिर पुन: नदी पार करके पहाड़ों का रास्ता पकड़ेगा। यह निश्चय करके, वह बायीं ओर को मुड़ा था। लेकिन नदी तक पहुंचना उसके लिए असंभव सिद्ध हुआ था। धान के जिन खेतों के बीच से होकर उन्हें जाना था उनमें अभी-अभी पानी भरा गया था, जैसा कि प्राय: वसंत में होता था। वे खेत दलदल में परिवर्तित हो गये थे जिसमें घोड़े टखनों से ऊपर तक डूब गये थे। हाजी मुराद और उसके साथी सूखा स्थान पा जाने की उम्मीद में बायीं ओर फिर दाहिनी ओर मुड़े थे, लेकिन जिस खेत में वे थे उसमें बहुत अधिक पानी भरा गया था और खेत पानी में पूरी तरह डूबा हुआ था। घोड़ों ने भीषड़ कीचड़ में कार्क की-सी फकफक आवाज के साथ अपने धंसे पैरों को बाहर खींचा था, कुछ कदम आगे गये थे और हांफते हुए रुक गये थे।

वे इतने लंबे समय तक हाथ-पैर मारते रहे थे कि अंधेरा घिर आया था, और वे अभी तक नदी तक नहीं पहुंच पाये थे। बायीं ओर पत्तीदार झाड़ियों की एक द्वीपिका थी। हाजी मुराद ने उन झाड़ियों में जाने और रात तक वहाँ रुकने और अपने थके-मांदे घोड़ों को आराम देने का निर्णय किया था। झाड़ियों के पास पहुंचकर जब हाजी मुराद और उसके आदमी घोड़ों से उतरे, उनके घोड़े लंगड़ा रहे थे और उन्होंने उन्हें चरने के लिए छोड़ दिया था। उन लोगों ने कुछ ब्रेड और चीज खाया जो वे अपने साथ लेकर आये थे। युवा चाँद, जिसने चमकना शुरू किया था, अब पर्वतों के पीछे छुप गया था, और रात की कालिख फैल गयी थी। नुखा में बुलबुलें प्रचुरता में थीं, और दो इन झाड़ियों में भी थीं। हाजी मुराद और उसके आदमियों के झाड़ियों में चलने की आवाज से बुलबुलों ने गाना बंद कर दिया था। लेकिन जब आवाजें समाप्त हो गयीं थीं बुलबुलों ने कंपित स्वर में गाना और एक-दूसरे को बुलाना प्रारंभ कर दिया था। हाजी मुराद उनको सुनना नहीं टाल सका, क्योंकि वह रात की हर आवाज को सुनने के लिए जगा हुआ था।

उनका चहकना उसे हमज़त के विषय में गाने की याद दिला गया था, जिसे उसने पिछली रात तब सुना था जब वह पानी भरने गया था। अब किसी भी क्षण वह उसी स्थिति में हो सकता था जिसमें हमज़त ने अपने को पाया था। उसने सोचा सचमुच ऐसा ही होगा, और वह अचानक ही गंभीर हो गया था। उसने अपनी चादर बिछायी और नमाज अदा की। वह मुश्किल से नमाज समाप्त कर पाया था कि उसने झाड़ियों के निकट आती जा रही आवाजें सुनीं। यह बड़ी संख्या में घोड़ों के टॉपों की दलदल में छपछपाते हुए आगे बढ़ने की आवाजें थीं। तेज आंखों वाला खान-महोमा दौड़कर झाड़ियों के एक छोर की ओर गया था और अंधेरे में अश्वारोहियों और पदातियों की काली छायायें उसने देखीं थीं। हनेफी ने उतनी ही संख्या में दूसरी ओर देखा। मिलिशिया लोगों के साथ वह, जिले का मिलिटरी कमाण्डर, कार्गोनोव था।

“हाँ, हम हमज़त की भांति लड़ेगें, ” हाजी मुराद ने सोचा।

चेतावनी दिये जाने के बाद, कार्गानोव ने कज्जा़कों की एक कम्पनी और मिलीशिया लोगों के साथ तेजी से हाजी मुराद का पीछा किया था, लेकिन न तो वह उसे कहीं मिला था और न ही उसकी कोई खोज-खबर मिली थी। कार्गानोव हताश घर वापस जा रहा था जब शांयकाल के समय उसकी मुलाकात एक बूढ़े से हुई थी। उसने उससे पूछा था कि क्या उसने छ: घुड़सवारों को देखा था। बूढ़े ने उत्तर दिया कि उसने देखा था। उसने छ: घुड़सवारों को धान के खेत में गोल और गोल चक्कर काटते और फिर झुरमुट में प्रवेश करते हुए देखा था जहाँ वह जलावन एकत्रित कर रहा था। कार्गानोव बूढ़े को अपने साथ लेकर वापस मुड़ा था और जब उसने बंधे हुए घोड़े देखे तब उसका विश्वास दृढ़ हो गया कि हाजी मुराद वहीं था। जब उसने झुरमुट का घेरा डाला उससे पहले ही रात हो चुकी थी। हाजी मुराद को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए वह सुबह होने की प्रतीक्षा करने लगा था।

यह समझकर कि वह पूरी तरह से घिर चुका था, हाजी मुराद ने झाड़ियों के बीच एक पुरानी खाई ढूढ़ निकाली थी और उसमें ओट लेकर अपनी ताकत और गोला बारूद समाप्त होने तक शत्रु से लड़ने का उसने निश्चय किया था। उसने अपने साथियों को आवश्यक निर्देश दिये और खाई के ऊपर ओट तैयार करने का उन्हें आदेश दिया। उसके आदमियों ने शाखाएं काटकर और अपनी कटारों से मिट्टी खोदकर मुंडेर बनानी प्रारंभ कर दी थी। हाजी मुराद उनके साथ काम करता रहा था।

जैसे ही प्रकाश फैलने लगा मिलीशिया का स्क्वैड्रन कमाण्डर चलकर झुरमुट के निकट आया और चीखा :

“हे ! हाजी मुराद आत्म-समर्पण कर दो। हमारी संख्या बहुत है और तुम कुछ ही हो। ”

इसके उत्तर में खाई से धुंए का एक झकोरा प्रकट हुआ था, एक राइफल कड़की थी, और एक गोली एक मिलिशियामैन के घोड़े को लगी थी। घोड़ा उसके नीचे लड़खड़ाया और गिरने लगा था।

इस पर मिलिशिया लोगों की राइफलें झुरमुट के किनारे से चलने लगीं थीं। उनकी गोलियाँ सनसनाती और गूंजती हुईं, पत्तियों और शाखाओं से टकराती रहीं और मुंडेर पर गिरती रहीं, लेकिन उसके पीछे बैठे लोगों को लगीं नहीं। केवल हमज़ालो के घोड़े को, जो अलग बंधा हुआ था, गोली लगी थी। वह सिर में घायल हुआ था। वह गिरा नहीं, बल्कि उसने अपना बन्धन तुड़ा लिया था और झाड़ियों से टकराता हुआ दूसरे घोड़ों के पास तक गया था और ताजी घास पर खून बहाता हुआ गुड़ी-मुड़ी होकर उनके सामने ढह गया था। हाजी मुराद और उसके आदमी केवल तभी फायर करते थे जब कोई मिलीशिया आगे बढ़ता था, और शायद ही उनका कोई निशाना चूकता था।

तीन मिलिशिया लोग घायल हो गये थे, और मिलिशिया लोगों ने न केवल हाजी मुराद और उसके आदमियों पर आक्रमण करने से इंकार कर दिया था बल्कि वे उनसे दूर और दूर हटते चले गये थे और केवल फासले से बेतरतीबी से उन पर फायर करते रहे थे।

यह एक घण्टे से अधिक देर तक चला था। सूर्य वृक्षों के ऊपर मध्य आकाश में चमकने लगा था। हाजी मुराद सोच ही रहा था कि उन्हें घोड़ों पर सवार हो जाना चाहिए और नदी पार करने का प्रयास करना चाहिए कि तभी उन्हें नये विशाल सैन्य दल के आ पहुंचने का शोर सुनाई दिया था। अपने लगभग दो सौ आदमियों के साथ यह मख्तूलियन हाजी आगा था। हाजी आगा कभी हाजी मुराद का मित्र हुआ करता था और पहाड़ों में उसके साथ रहता था, लेकिन बाद में वह रूसियों की ओर चला गया था। उसके साथ, हाजी मुराद के शत्रु का पुत्र अहमद खाँ था। कर्गानोव की भांति हाजी आगा ने भी चीखकर हाजी मुराद को आत्म-समर्पण के लिए कहना प्रारंभ किया, लेकिन, पहले अवसर की भांति हाजी मुराद ने गोली चलाकर उत्तर दिया था।

“तलवारें, मेरे बच्चों ! “अपना हथियार निकालता हुआ, हाजी आगा चीखा था, और चिल्लाकर झाड़ियों में धावा बोलते हुए सैकड़ों लोगों की आवाजें उभरीं थीं।

मिलिशिया लोगों ने झाड़ियों में धावा बोल दिया था, लेकिन मुंडेर से अनेकों गोलियाँ लगातार गूंजने लगीं थीं। तीन आदमी गिर गये थे और आक्रमणकारी झुरमुट के किनारे रुक गये थे और वहीं से गोली वर्षा प्रारंभ कर दी थी। वे घबड़ाये हुए थे, इसलिए एक झाड़ी से दूसरी झाड़ी की ओर दौड़ते हुए वे मुंडेर के कुछ ही निकट पंहुच पाये थे। दौड़कर उस पार होने में कुछ सफल हुए, और कुछ हाजी मुराद और उसके लोगों की गोलियों का शिकार होकर गिर गये थे। हाजी मुराद बिना रुके फायर कर रहा था। हमज़ालो की शायद ही कोई गोली व्यर्थ गयी होगी और वह खुशी से चिल्ला उठता था जब वह देखता कि उसने सही निशाना लगाया था। कुर्बान खाईं के किनारे पर बैठा हुआ था और “अल्लाह हू, अल्लाह हू “गाता हुआ बिना उतावली के फायर कर रहा था, लेकिन उसकी गोली कभी ही किसी को लगती थी। एल्दार विकलता से पूरे समय कांपता हुआ अपनी कटार से शत्रु पर आक्रमण करना चाहता था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद फायर करता था और हाजी मुराद की ओर अनिस्चिततापूर्वक और निरंतर देख रहा था और मुंडेर पर झांक रहा था। सांवला हनेफी, अपनी आस्तीनें ऊपर चढ़ाये हुए, यहाँ भी सेवादारी का काम कर रहा था। हाजी मुराद और कुर्बान द्वारा दी गई गनों को वह लोड कर रहा था। वह सतर्कतापूर्वक चिकनाईयुक्त थैलियों में लिपटी गोलियों को लोहे की रैम रॉड से ठूंस रहा था और पाउडर-हार्न से प्राइमिगं पैन्स पर सूखा पाउडर डाल रहा था। खान-महोमा खाई में दूसरों की भाँति बैठा नहीं रहा था। वह खाईं से घोड़ों की ओर दौड़ गया था, और उन्हें एक सुरक्षित स्थान में ले गया था। वह निरंतर चीख रहा था और अपनी कोहनियों का सहारा लिए बिना फायर कर रहा था। वह पहला व्यक्ति था जो घायल हुआ था। एक गोली उसके गर्दन में लगी थी, और वह खून की फुहार छोड़ता और लानत भेजता हुआ, अपनी पीठ के बल धराशायी हो गया था। इसके पश्चात् हाजी मुराद घायल हुआ था। एक गोली उसका कंधा वेध गयी थी। उसने अपने टयूनिक से कुछ रूई नोची थी, घाव में उसे भरा था, और फायरिंग जारी रखी थी।

“तलवारों से उन पर हमला करो,” एल्दार ने तीसरी बार कहा।

वह शत्रुओं पर धावा बोलने को तैयार होकर, मुंडेर के ऊपर उछल गया था, लेकिन उसी क्षण एक गोली उसे लगी थी और वह लड़खड़ाया और पीछे हाजी मुराद के पैरों पर जा गिरा था। हाजी मुराद ने उस पर दृष्टि डाली। उसकी चौड़ी सुन्दर ऑंखों ने वेघकता और गंभीरतापूवक हाजी मुराद की ओर देखा था। उसका मुंह, बच्चों जैसे चित्रदर्शी उसके होंठ बिना खुले ऐंठ गये थे। हाजी मुराद ने उसके नीचे से अपना पैर खींचा था और निषाना लगाने का कार्य जारी रखा था। हनेफी मृत एल्दार पर झुका गया था और उसके जैकेट से अप्रयुक्त गोलियाँ निकालने लगा था। कुर्बान अभी भी गाना गाते हुए, धीरे-धीरे बंदूक लोड कर रहा था और निशाना लगा रहा था।

उनके शत्रु चीखते-चिल्लाते एक झाड़ी से दूसरी झाड़ी की ओर दौड़ते हुए निकट से निकटतर आते गये थे। एक और गोली हाजी मुराद के बायीं ओर आ लगी थी। वह खाईं में लेट गया था और उसने अपनी टयूनिक से रुई का दूसरा टुकड़ा खींचा था और घाव में भर दिया था। यह घाव घातक था, और उसने अनुभव किया कि वह मर रहा था। स्मृतियाँ और बिंब असामान्य तेजी से उसके मस्तिष्क में घूमने लगे थे। सबसे पहले उसे अपने सामने गंभीररूप से घायल अबू-नुसल-खाँ एक हाथ से अपने गाल को पकड़े हुए और कटार से अपने शत्रुओं पर धावा बोलते हुए दिखाई दिया, फिर उसे गोरा, धूर्त चेहरे वाला कमजोर, विवर्ण वोरोन्त्सोव दिखाई दिया और उसने उसकी कोमल आवाज सुनी ; फिर उसे अपना बेटा यूसुफ दिखाई पड़ा ; फिर अपनी पत्नी सोफिया, और फिर शमील का लाल दाढ़ी और संकुचित ऑंखों वाला निस्तेज चेहरा दिखाई दिया।

सभी स्मृतियाँ उसमें कोई भाव, करुणा, क्रोध अथवा न्यूनतम अभिलाषा जागृत किये बिना उसकी कल्पना में ही दिखाई दीं। इस समय उसके लिए जिसकी शुरुआत हुई थी उसकी तुलना में ये सभी लगभग नगण्य थीं। उसने अपनी अंतिम शक्ति संजोयी, मुंडेर से ऊपर उठा और ऊपर दौड़ रहे एक आदमी को निशाना साधकर गोली चला दी। वह आदमी गिर गया। फिर वह कठिनाई से चढ़कर दाहिनी ओर खाईं से बाहर आया और अपनी कटार लेकर, अधिक ही भचकता हुआ, अपने शत्रु की ओर बढ़ा था। अनेकों गोलियाँ सनसनाईं थीं। वह लड़खड़ाया और गिर गया था। अनेकों मिलिशिया लोग उल्लसित भाव से गिरे व्यक्ति की ओर तेजी से दौड़े थे। लेकिन उन्होंने महसूस किया कि लाश अचानक हिलने-डुलने लगी थी। पहले रक्त-रंजित, बिना टोपी का सफाचट सिर ऊपर उठा, फिर शरीर, फिर पेड़ को पकड़कर हाजी मुराद पूरी तरह उठ खड़ा हुआ था। उसने इतनी भयावहता से चारों ओर देखा था कि उस पर आक्रमण करने वाले रुक गये थे। लेकिन अचानक वह पेड़ से पीछे हटा, थरथराया, लड़खड़ाया और कटे भट-कटैया की भाँति मुंह के बल गिर पड़ा था, और स्पदंनहीन हो गया था।

वह हिला-डुला नहीं, लेकिन वह अभी भी चैतन्य था। उसके पास पहले पहुंचने वाले, हाजी आगा ने, जब कटार से उसके सिर पर वार किया, हाजी मुराद ने सोचा कि उसके सिर पर हथोड़े से प्रहार किया गया था, और वह नहीं समझ सका कि यह कौन कर रहा था, अथवा क्यों कर रहा था ! उसके शरीर से यह उसका अंतिम चेतना-संबन्ध था। वह और अधिक अनुभव नहीं कर सका, और उसके शत्रुओं ने क्या कुचला और क्या काटा उसके लिए अब कुछ भी सामान्य नहीं था। हाजी आगा ने लाश को पीठ की ओर पलट दिया, दो बार वार करके उसका सिर काटा और अपने पैर से सतर्कतापूर्वक, जिससे खून के धब्बे उसके जूतों में न लगें, सिर को लुढ़काता हुआ, दूर तक ले गया था। हाजी मुराद के गरदन की धमनियों से लाल लहू बह रहा था और काला लहू सिर से बहकर, घास को भिगो रहा था।

कार्गानोव, हाजी-आगा, अहमद-खाँ, और सभी मिलिशिया लोग हाजी मुराद और उसके आदमियों की लाशों के इर्द-गिर्द किसी ह्रिंस्र पशु के चारों ओर एकत्रित हुए शिकारियों की भाँति एकत्र हो गये थे (हनेफी, कुर्बान और हमज़ालो भी मर चुके थे ) और गन पाउडर के धुंए में खड़े होकर और प्रसन्नतापूर्वक गपशप करते हुए अपनी विजय का उत्सव मना रहे थे।

बुलबुलें, जो गोली-बारी के दौरान शांत हो गयी थीं, अब पुन: गाने लगी थीं। पहले एक ने बुल्कुल पास और फिर दूसरों ने दूर झुरमुट के अंत में गाना प्रारंभ कर दिया था।

यही वह मौत थी जो जुते खेत में कुचले भट-कटैय्या को देखकर मुझ्रे स्मरण हो आयी थी।