मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरूद्वारे / संतोष श्रीवास्तव

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मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरूद्वारे मुम्बई की धार्मिक प्रवृत्ति के परिचायक हैं

मुम्बई में हर त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। होली, दीपवाली, ईद, क्रिसमस, गणेशोत्सव बाज़ारों की सजधज से ही पता लग जाते हैं। रथयात्रा जुहू स्थित इस्कॉन मंदिर से शुरू होकर जब मुम्बई की सड़कों पर निकलती है तो पूरा मुम्बई कृष्णमय हो जाता है। बिहार की छठ पूजा गिरगाँव चौपाटी और जुहू के तट पर हज़ारों की भीड़ में सम्पन्न होती है लेकिन छठ पूजा ने राजनीतिक रूप ले लिया है। वर्ली का बौद्ध मंदिर, यहूदियों के नेसेथ इलोहो, मागेन डेविड, मागेन इसीदिन, तिफरेथ इसराइल, शार हारमिन पूजा स्थल की प्राचीन अग्यारी, ईसाईयों का सेंट माइकल चर्च, बसीन के पुर्तगाली चर्च विभिन्न धर्मावलम्बियों के प्रार्थना स्थल हैं जहाँ हर कोई बेरोकटोक जा सकता है। धार्मिक एकता का ऐसा स्वरुप कहीं देखने नहीं मिलता।

जन्माष्टमी का त्यौहार देश भर में कृष्ण जन्म की स्मृति में मनाया जाता है। उसके दूसरे दिन यानी भादों की नवमी तिथि को पूरे महाराष्ट्र में 'गोविंदा आला' के रूप में मनाते हैं। ख़ासकर मुम्बई तो इस दिन ढोल नगाड़े और जश्न से गुलज़ार हो उठती है। इस दिन जश्न में भाग लेने वाले प्रत्येक लड़के को गोविंदा कहा जाता है। ये गोविंदा अपनी टोली के संग आकर मानव पिरामिड बनाते हैं और हवा में रस्सी के सहारे लटकी दही हंडी (मटकी) को अपने सिर की टक्कर से फोड़ते हैं। वैसेतो मुम्बई की हर गली, हर मोहल्ले में इस दिन दही हंडी लगाई जाती है लेकिन धीरे-धीरे इस त्यौहार ने कमर्शियल रूप ले लिया है और महीनों पहले गोविंदाओं को मानव पिरामिड पर संतुलन बनाए रखने की ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे कई मंडल खुल गये हैं। हर मंडल के गोविंदाओं की यूनीफॉर्म और फीस तय है। दही हंडी का मुख्य आकर्षण वर्ली का जांबोली मैदान है। जांबोली में जश्न के दौरान महिलाओं के बैठने के लिए अलग गैलरी बनाई जती है। सामाजिक कार्यकर्ता, व्यापारी, फ़िल्म और संगीत से जुड़े कलाकार यहाँ मेहमान के रूप में बुलाए जाते हैं और उनके द्वारा गोविंदाओं के लिए पुरस्कार घोषित किये जाते हैं। गोविंदाओं के बनाए घेरे केस्तर यानी घर जो नौ तक की संख्या में पहुँच जाते हैं... नौ घर तक पहुँचने वाले गोविंदाओं को पाँच लाख रुपए, फ्रिज, टेलीविज़न आदि इनाम घोषित किये जाते हैं। दही हंडी को स्पेन तक पहुँचा दिया है मुम्बई ने। स्पेनिश समूह कास्टलर्स डी विलाफ्रेंका... दस घर वाला मानव पिरामिड ठाणे में बना चुका है। अब तो महिला गोविंदा भी हैं। इनके मंडल का नाम गोरखनाथ महिला मंडल है जिसमें 150 महिलाएँ हैं।

मैं जुहू स्थित इस्कॉन के हरे रामा हरे कृष्णा मंदिर के प्रवेश द्वार पर हूँ। जुहू बीच की ठंडी, मदमाती हवाओं को लिए उतर आया था शाम का झुटपुटा। मंदिर भी सफेद आभा में मटमैला हो रहा था। चारों ओर सफेद पत्थर की जाली से घिरे मंदिर का प्रवेशद्वार पार करते ही एकाएक पैर थम गये। दाहिनी ओर लिखा था... "अपने जूते यहाँ उतारिए." नंगे पाँवों के नीचे फर्श फिसल रहा था। मेरी नज़रें मंदिर के कलश स्तंभ तक उठीं। लगा, जैसे कोई विदेशी होटल का नाम हो 'इस्कॉन' ... अपने तमामजि ज्ञासा भरे सवालों को लिए मैं मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़कर प्रांगण में निकल आई. सफेद-काले नमूनों का, शतरंज की बिसात जैसा प्रांगण का फर्श जहाँएक ओर चम्पा और एक ओर बेलपत्री के दरख़्त झूम रहे थे। मंदिर की छह सीढ़ियों को ऊँचा उठाता परकोटा... परकोटे के बीचों बीच तीन छतरियाँ। बीच वाली छतरी इस संस्था के संस्थापक आचार्य भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपादजी की थी। मैंने दाहिनी ओर से चलना शुरू किया। सबसे पहले कृष्ण और अर्जुन की महाभारत के आधार पर झाँकी थी। दूसरी नरसिंह भगवान की थी जो हिरण्यकश्य का वधकर रहे थे। तीसरी रामायण की पृष्ठभूमि को लेकर थी। फिर चैतन्य महाप्रभु और स्वामी नित्यानंद तथा गदाधर जी की मूर्ति थी जो शराबी भाई जगायमदाय का मार्गदर्शन कर रहे थे। पाँचवीं, छठवीं, सातवीं झाँकी क्रमशः भगवान पांडुरंग विट्ठल, स्वामी कार्तिकेय और व्यास तथा गणेशजी की थी। इन झाँकियों के बाद था मुख्य राधाकृष्ण मंदिर, जो बेहद सुंदर, सजीव और भव्य लग रहा था। सभी दर्शनार्थी खंभे के पास बैठे कृष्ण भक्त से आचमन प्रसाद ले रहे थे। मैंने भी लिया तभी साँसों में समा गई भुनते बेसन की सौंधी खुशबू। बायीं तरफ़ कुछ विदेशी स्त्रियाँ सफेद साड़ी पहने भारतीय-सी लगती लड्डू प्रसाद के पैकेट तैयार कर रही थीं। यहाँ से फिर झाँकियाँ शुरू होती हैं। शेषनाग की शैय्या पर क्षीरसागर में भगवान विष्णु शयन कर रहे हैं। लक्ष्मीजी पैर दबा रही हैं और नाभि से निकले कमल पर ब्रह्माजी विराजमान हैं। शिवजी का विषपान, अजामिल की आत्मा के लिए विष्णुदूतों और यमदूतों का आपस में युद्ध, भगवान श्रीकृष्ण की महारास लीला, आचार्य स्वामी प्रभुपाद का न्यूयॉर्क में प्रवचन और अंतिम झाँकी थी जो मनुष्य के जन्मसे मृत्यु तक की अवस्थाओं को दर्शा रही थी।

इस्कॉन की शुरुआत 1972 में ही हो गई थी। लेकिन इस मंदिर की स्थापना 1978 की जनवरी मकर संक्रांति के दिन हुई थी। मुम्बई, लॉसएंजेल्स, न्यूयॉर्क, मॉस्को, लंदन आदि स्थानों पर बल्कि पूरी दुनिया में 250 मंदिर और 200 केंद्र हैं। संस्था का उद्देश्य एकता और भाईचारे की भावना को जन-जन तक पहुँचाना है। कलियुग में मोक्ष का रास्ता नाम संकीर्तन और कृष्ण प्रसाद पाना है। यही महामंत्र है। मैं चकित थी। भगवानके राम, अल्लाह, प्रभु यीशु आदि कई रूप हैं। फिर कृष्ण को ही इन्होने क्यों चुना? जवाब जैसे मंदिर का कण-कण दे रहा हो... क्योंकि कृष्ण अपने आप में पूर्ण पुरुष हैं। वे सबसे ज़्यादा शक्ति सम्पन्न, खूबसूरत, विद्वान, दार्शनिक, मित्र, प्रेमी और सबसे अच्छे राजा थे। वे चौंसठ कलाओं से पूर्ण पुरुष थे फिर भी संसार से विरक्त थे। कृष्ण का नाम ही मोक्ष का मार्ग है।

'हरे कृष्ण फूड फॉर लाइफ़ इंटरनेशनल' नामक एक अलग विभाग है, जो करोड़ों व्यक्तियों को पौष्टिक भोजन हरे कृष्ण प्रसाद के रूप में सारे संसार में वितरित करता है। यह पूर्ण शाकाहारी भोजन है जो पौष्टिक पदार्थ सब्ज़ियों, अनाज, घी और मक्खन से तैयार किया जाता है। इस योजना का उद्घाटन श्रील कीर्तनानन्द स्वामी भक्तिपाद ने 25 मार्च 1984 को किया था। प्रसाद ग्रहण कर मैं मंदिर के पिछवाड़े आश्रम में गई जो कृष्ण भक्तों का आवास है। वहाँ छोटे-छोटे कई कमरे हैं। प्रत्येक कमरे में चार गृहस्थ रहते हैं। गृहस्थ नाम थोड़ा अटपटा लगा। सन्यासियों को गृहस्थी से क्या काम? पता चला विद्या-प्राप्ति के बाद कोई भी गृहस्थाश्रम में आ सकता है। वे सुख ऐश्वर्य की चीज़ोंसे सर्वथा परे हैं। उनका शारीरिक सम्बन्ध भी संतान प्राप्ति के उद्देश्य से होता है ताकि छोटे-छोटे हरि भक्तोंसे ये संसार शिशुमय हो जाए. इस्कॉन यानी 'इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्ण कांशसनेस।' जन्माष्टमी के बाद इस्कॉन का दूसरा बड़ा त्यौहार है

रथयात्रा। जो उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिर से लेकर पूरे विश्व के कृष्ण मंदिरों में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया से आरंभ होती है। आज से पाँच हज़ार साल पहले महाभारत के युद्ध के पश्चात कृष्ण, बलराम और सुभद्रा गोपियों से मिलने गये थे। उसी की झाँकी रथयात्रा में निकाली जाती है। सोने चाँदी से बने तीनों रथों को फूलों से सजाया जाता है। सबसे पहले कृष्ण का रथ, फिर सुभद्रा का रथ फिर बलराम का रथ। ढोल मजीरे बजाते हरे राम हरे कृष्णा गाते हुए जब कृष्ण भक्त रथ को घेर कर चलते हैं तो लगता है जैसे द्वापर युग आ गया। रथयात्रा की समाप्ति दशमी के दिन होती है और एकादशी के दिन भगवान क्षीर सागर में विश्राम के लिए चार महीने के लिए चले जाते हैं।

मंदिर से निकली तो मैं कृष्णमय थी।