माधवी / भाग 2 / खंड 10 / लमाबम कमल सिंह

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थम्बाल् का दुख

अभागिनी थम्बाल् का जीवन कैसा था? वह असीमित दुख में डूबी हुई भी पति के वापस आने की आशा में सारा दुख पीते हुए जी रही थी। फिर पति के-उसे पीछे छोड़ हृदय में कर्ज के दुख का ताप लिए अपनी लाड़ली बेटी की सूरत तक देखे बिना-मरने की खबर सुनी। इस दुख भरे संसार में हृदय की लाड़ली उरीरै को ही देखकर धनाभाव और पति-वियोग का सारा दुख सहते हुए किसी तरह अपने मन को समझा कर जी रही थी - और अब बेटी का भी कोई अता-पता नहीं - शत्रुओं ने उसकी हत्या कर दी या पानी में डूबकर मर गई। निर्बल, निराश्रय, इतने बड़े संसार में अपने किसी भी पक्षधर से वंचित थम्बाल् पिंजरे में बन्द गलगलिया की भाँति फड़फड़ाती रही। शत्रुओं ने भी चारों ओर से घेर लिया। उनकी कड़ी दृष्टि से बगीचे में उगी घास तक सूखने लगी। उनकी ईर्ष्या-युक्त साँसें गर्म हवा बनकर चलने लगीं! भुवन और उसका बाप थम्बाल् के कष्टों को देख ठहाका मारकर हँसने लगे। सर्प-दंश की दवा मिलती है, लेकिन बुरे लोगों के दंश की कोई दवा नहीं। जहर खा भी लिया हो, तो उगलने से ठीक हो जाता है, लेकिन बुरे लोगों के जाल में यदि एक बार फँस गए, तो उससे मुक्त होने का कोई उपाय नहीं बचता। पेट भरा हो तो बाघ भी आदमी को चोट नहीं पहुँचाता - लेकिन बुरा मनुष्य खाते, पीते, सोते समय भी दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए सोचता रहता है। थम्बाल्! किसे देखकर जिएगी? उसकी गोद से बेटी छीन ली गई, पति से बिछुड़ गई, चारों ओर शत्रु-ही-शत्रु; वह कैसे जीती रहेगी।

थम्बाल् दिन-प्रतिदिन निर्बल होती गई, बिस्तर पकड़ लिया। इतनी दुबली हो गई, जैसे हड्डियों के ढाँचे पर चमड़ी चढ़ी हो। अनवरत आँसू बहते रहने के कारण आँखों से दिखाई देना बन्द हो गया, बिस्तर पर अकेली इधर-उधर करवटें बदलने लगी। भुवन के बाप ने काँची के किसी भी व्यक्ति को उसके पास नहीं फटकने दिया। आह! यही तो है पैसे का बल!

काँचीवासियो! इतने निरीह हो गए हो? अपने स्वार्थ के कारण, बिस्तर से न उठ सकनेवाली थम्बाल् की ओर किसी ने आँख उठा कर भी नहीं देखा। भुवन के बाप से इतने डरे हुए हो?! काँचीवासियों, तुम ही नहीं, संसार के सभी लोग ऐसे ही धनवानों के पक्षधर होते हैं। गरीब का कौन होता है? शायद यह संसार ही सम्पन्न और धनवान लोगों का है! दीन-दुखियों को तो जीना ही नहीं चाहिए, ऐस दुख-दर्द कब तक देखते रहेंगे!