माधवी / भाग 2 / खंड 9 / लमाबम कमल सिंह

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रक्षा

उरीरै का देर रात्रि में घर से बाहर निकलना, कोकिल का पीछा करना, उसका स्वगत कथन, वीरेन् के प्रति उसका अपार प्रेम-यह सब देखते और सुनते एक व्यक्ति मिट्टी की दीवार की ओट में खड़ा था। उरीरै को कोकिल पकड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ते देख, उस व्यक्ति के मन को अत्यधिक प्रसन्नता हुई। वह व्यक्ति चुपचाप, उरीरै के नीचे उतर आने पर 'पेड़ पर चढ़ने वाली लड़की', 'प्रेतनी की तरह रात्रि में घूमने वाली लड़की' आदि शब्दों में मजाक करने और चिढ़ाने के लिए तैयार था। किन्तु वृक्ष से नीचे उतरने के बदले उरीरै को जलाशय के बीचोंबीच गिरते देखा, तो तमाशे का वह दर्शक तुरन्त जलाशय में कूद पड़ा और तैरते हुए वहाँ तक गया, जहाँ उरीरै गिर पड़ी थी। तब तक उरीरै करीब-करीब डूब चुकी थी। उस व्यक्ति ने एक हाथ से उरीरै का हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ की सहायता से पानी में तैरते हुए उसे बाहर खींचने लगा! किन्तु कब तक इस प्रकार खींचता? आदमी के कद से भी गहरा, बड़ा-सा जलाशय था। थक जाने पर थोड़ी देर पैर टिकाकर खड़े रहने की जगह भी नहीं थी-किनारा भी बहुत दूर था। पहले उरीरै अकेली पानी पीती थी, अब वे दोनों ही पानी पीने लगे और कुछ-कुछ डूबने भी शुरू हो गए। “मर भी जाऊँ, लेकिन उरीरै को नहीं छोडूँगा” यह सोचकर उस व्यक्ति ने उरीरै को नहीं छोड़ा। अन्ततः खूब पानी पीने के कारण दोनों चेतना-शून्य हो गए और अलग-अलग डूबने-उतराने लगे। यह व्यक्ति कोई और नहीं, वीरेन् का अन्तरंग मित्र शशि था! वीरेन् की आज्ञानुसार वह उरीरै का ध्यान रखता आया था।

यह सोचकर कि उरीरै कहीं छिप गई है, डाकू-दल उसे खोजते हुए जलाशय के पास आया तो उन्होंने दो व्यक्तियों को डूबते-उतराते पानी पीते तैरते हुए देखा। अपने सरदार की आज्ञानुसार डाकुओं ने जलाशय के किनारे पर पड़े हुए वृक्ष के एक बड़े लट्ठे को जलाशय में गिरा दिया, और उसी के सहारे एक-एक करके उतरकर दोनों को ऊपर खींच लाए। ऊपर पहुँचने के बाद यह जानने पर कि उन दोनों में से एक उरीरै है, एक डाकू बोला, “शायद छिपने की कोई जगह न मिली हो, सर्दी के मौसम में रात में जलाशय के बीच छिपने का क्या परिणाम निकला?” दूसरे ने उत्तर दिया, “यह लड़की क्या जानती होगी, कुबुद्धि इस युवक की होगी, उसे इसका दंड भुगतना पड़ेगा।” यह कहते हुए शशि को ढाटा बाँध दिया, उसे अपने कपड़े पहना दिए और 'मरना है तो मरने दो' कहकर जलाशय के किनारे ही छोड़ दिया। वे उरीरै को लेकर काँची के जंगल के भीतर चले गए और सूखे पत्ते इकट्ठे करके जलाते हुए उसे तपाया। विभिन्न उपायों के सहारे उरीरै कुछ-कुछ होश में आ गई। जब उरीरै को होश आया, तब गरीब माँ द्वारा पली होने पर भी इकलौती होने के नाते रूठते हुए अपना दुख-दर्द प्रकट करके रोते-चीखते उसने इधर-उधर देखा तो पाया-वहाँ उसके रूठनेवाला घर नहीं था, घनी झाड़ियोंवाली जगह थी-जिससे रूठती थी, वहाँ वह माँ नहीं थी, छद्मवेशी दरिन्दे चारों ओर से घेरे हुए थे। उसे याद नहीं आई कि वह कैसे वहाँ पहुँची। डाकुओं के बीच छद्मवेशी भुवन को देखते ही यह सोचकर कि उसके आदेश से ही यह दुर्घटना हुई होगी, वह सारा भय त्यागकर पैर के नीचे आए साँप की भाँति फुफकारने लगी। कुछ देर तक गुस्सा करने के बाद यह ख्याल आते ही कि “मेरे पीछे, निर्बल माँ के सिवाय कोई भी नहीं, गुस्सा करने से कोई फायदा नहीं होगा” उसने अपने को शान्त किया और कोमल स्वर में पूछा, “मुझ अबला को इन घनी झाड़ियों के बीच क्यों लाए हो?” भुवन ने उत्तर दिया, “कमल जैसी प्रतीत होने वाली है प्रियतमा! जब तुम जलाशय में डूबकर अजगर के मुँह में समाकर मरने वाली थीं, तब मैंने प्राणों की परवाह किए बगैर तुम्हें पानी से निकालकर बचाया। अब अपनी सारी धन-सम्पत्ति, सोना-चाँदी, रुपया-पैसा, नौकर-चाकर, सब तुम्हें सौंप दूँगा, प्रतिदिन पुष्पमाला के रूप में अपना प्रेम तुम्हें पहनाऊँगा, पहले का समस्त क्रोध त्यागकर मुझसे प्रेम करो।” यह सुनते ही उरीरै बोली, “भुवन भैया, मुझे पानी से न निकालकर यूँ ही मरने देते, तो मेरे दुख-भरे जीवन को जल्दी समाप्त करने के लिए मेरी आत्मा तुम्हारा यश गाती या मुझे पानी से निकालकर मेरी अभागिनी माँ को सौंप देते, तो हम गरीब माँ-बेटी, अहसान न चुका सकने पर भी ईश्वर से तुम्हारे मंगल के लिए प्रार्थना करतीं। अब मुझे चाहने के कारण तुम मुझे पानी में से निकालकर इस वन में लाए हो, लेकिन जब तक इस जगत में सूर्य ओर चाँद रहेंगे, तब तक तुम मेरे हृदय को कभी नहीं पा सकोगे। मुझे जल्दी छोड़ दो, मैं अपनी घबराई माँ के पास चली जाऊँगी।” यह सुनते ही भुवन क्रोधित होकर बोला, “मेरी बात चुपचाप मान जाओगी तो तुम्हारी खैर होगी, वर्ना तुम्हें बाँधकर डाल दूँगा, तरह-तरह से सताऊँगा, धूप में सुखाऊँगा, गिद्ध और कौवे जैसे मांसाहारी पक्षियों की खुराक बना दूँगा, जीते जी तुम्हारी चमड़ी उतरवाकर जूते बनवाऊँगा।” यह सुनते ही उरीरै भी सिंहनी की भाँति गरजकर बोली, “चोर कहीं के! यह जानते हुए भी कि तुमसे भी बढ़कर कोई है, मुझे पकड़ते हो? तुम सोचते हो, मृत्यु के डर से मैं अपना हृदय बदल लूँगी! तुम तो फूल की डाली पर लिपटने वाले साँप हो! पके फल के अन्दर के कीड़े हो! तुम्हारे मन में दया की एक बूँद भी नहीं! तुम सचमुच एक प्रणयी होते तो समझ लेते कि प्रेम के मार्ग में मृत्यु पुष्पों की डोली पर बैठने के समान है। अगर तुममें साहस हो, तो मुझे इस बन्धन से मुक्त करो, एक-एक तलवार लेकर प्रेम की परीक्षा हो जाए।” तब भुवन के “यह अब तक सीधी नहीं हुई है” कहकर संकेत करते ही डाकुओं ने उरीरै के हाथ-पैर बाँध दिए। उरीरै निरुपाय होकर घर पर छूट गई माँ और मरे हुए पिता को पुकारते हुए जोर से रो पड़ी और बार-बार सारे दुख को हरने वाले श्रीमधुसूदन का नाम लेने लगी।

उसी समय बाल बिखराए, जीभ फैलाए कन्धे पर तलवार रखे रणचंडी भैरवी जैसी लगनेवाली एक युवती, “अच्छा, आज तो ठहरो, तुम लोग जरा रूको” कहते हुए उसी ओर भागते हुए आई। पहले से ही लोगों का विश्वास था कि उस जगह हियाङ् अथौबा (हियाङ् अथौबा : पिशाच, जो लोगों को परेशान करता है। ऐस अनुमान किया जाता है कि कभी-कभी यह लोगों की हत्या तक कर देता है, अतः इसका नाम लेते ही लोगों के मन में डर पैदा हो जाता है) निकलता है, इसलिए लोग उधर नहीं जाते थे। भुवन का दल युवती को हियाङ् अथौबा समझकर भाग गया। देवी स्वरूप उस युवती ने तुरन्त उरीरै के बन्धन खोल दिए और “उरीरै, तुम एक सप्ताह इस वन में रहकर भगवान की आराधना करो, सप्ताह पूरा होते ही हम दोनों फिर मिलेंगी और तब तुम्हारा सारा दुख दूर हो जाएगा” कहकर भविष्य की आशा दिखाते हुए बिजली की कौंध की भाँति एकाएक उसी वन में खो गई।

सुबह होने पर जब उरीरै की माँ पगली-सी बाहर भागकर आई, तब काले पकड़े पहने, ढाटा बाँधे एक युवक को जलाशय के किनारे लेटे देख उसके पास जाकर, “मेरी बेटी दो, मेरी बेटी ला दो” कहते हुए लोट-पोट होकर रोने लगी। उस समय शशि को कुछ-कुछ होश आ गया था। वह बड़ी मुश्किल से उठकर बैठा। उसने उरीरै का रात में अकेली बाहर निकलकर चम्पा के पेड़ पर चढ़ना, पेड़ पर से पानी में गिरना, उसके द्वारा बचाने का प्रयास करना, उन दोनों का पानी में डूबना-यह सब क्रम से कह सुनाया। उसके बाद यह भी बताया कि कैसे जलाशय के किनारे पर पहुँचा, कैसे उसका वेश बदल दिया गया, उरीरै मर गई या जीवित है, यह सब उसे कुछ भी मालूम नहीं था और यह सब उसे स्वप्न तथा प्रेतनी के प्रभाव जैसा लगा। एक-एक, दो-दो करके वहाँ भीड़ जुट गई। बहुत सारे लाल पगड़ीवाले भी आ पहुँचे। यह सोचकर कि अगर शशि की बात सही है, तो उरीरै का शव जलाशय में मिलना चाहिए, बहुत खोज की गई, किन्तु नहीं मिला। इस घटना को सुननेवाले सभी लोग अचम्भित हो गए और कोई भी इस रहस्य की गुत्थी को नहीं सुलझा सका। इस सन्देह के आधार पर कि शशि (उरीरै की माँ के कथनानुसार) उन हत्यारों में से एक है, पुलिस ने उसे तब तक के लिए जेल भेज दिया, जब तक असली हत्यारे का पता न चल जाए। अफसोस! इस जगत में निरपराध को भी कभी-कभी इस प्रकार की बेइज्जती और हार का सामना करना पड़ता है! शशि “मैं स्वप्न-प्रताड़ता का शिकार हूँ, कब टूटेगा यह स्वप्न” कहकर बड़बड़ाते हुए जेल चला गया।

यह अभागा युवक, इस गुप्त सूचना पर कि उस रात उरीरै को उठा लिया जाने वाला है, चुपचाप उसे बचाने की कोशिश करने आया था। पुलिसवालों की बेअक्ली के कारण अपराधी के बदले निरपराध को पकड़ कर उसकी कितनी बेइज्जती की गई और उसे कितना भारी दंड भोगना पड़ा!