माधवी / भाग 2 / खंड 1 / लमाबम कमल सिंह

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धीरेन्द्र सिंह का विस्मय

पूर्वी आकाश में सूर्योदय होने लगा। हैबोक् पर्वत की पूर्वी दिशा की तलहटी में बनी झील का सौन्दर्य असीम लग रहा था। बाल-सूर्य की किरणों में कमल प्रफुल्लित होने लगे थे। कल खिले कमलों के मुर्झा जाने से उनकी बिखरी पँखुरियाँ पानी पर तैर रही थीं। कमल के पत्तों पर चिपकी ओस की एक-दो, एक-दो बूँदें एक-दूसरे में मिल जाने से मोती की भाँति चमक रही थीं और उनका भार सहन न कर सकने के कारण कमल के पत्तों के झुकने से झील के पानी में गिरती जाती थीं। कमलों के अलावा अनेक प्रफुल्लित कुमुदिनियाँ! गुनगुनाते भ्रमरों का मकरन्द-पान! पर्वत पर से उड़कर आई ङानुथङ्गोङ् का झील में डुबकी लगाते हुए हँसी-खुशी शिकार करना! पहाड़ी कन्दरा से बहने वाले छोटे-छोटे झरनों का कल-कल स्वर के साथ झील के पानी में मिल जाना! इन सारे दृश्यों की रम्यता को बढ़ाते हुए कुछ दूरी पर ही एक युवक-युवती दक्षिण की ओर शेम्बाङ् (शेम्बाङ् : छोटे आकारवाला काले रंग का एक स्थानीय पक्षी विशेष, जो बहुत तेज उड़ता है) पक्षी की उड़ान की भाँति नाव खे रहे थे। पहले उनमें बिल्कुल बातें नहीं हो रही थीं। झील के मध्य पहुँचते ही युवक ने तलवार को नाव पर रखकर कुमुदिनी के डंठल को टुकड़ों में तोड़ते हुए कहा, “प्रिये, आज तुम्हारे मन की बात सही-सही जानना चाहता हूँ। अच्छीे तरह समझ लो, अगर सही-सही नहीं कहोगी तो कल से इस अकिंचन के पाँव तुम्हारे घर में नहीं पड़ेंगे।”

युवती, “पुरुषों की जबान विश्वसनीय नहीं होती। युवकों द्वारा सीधी-सादी युवतियों को अपने झूठे प्रेम-जाल मं फाँसकर फिर बीच में ही छोड़ दिए जाने के कारण उनके विपत्ति में पड़ने की घटनाएँ मैंने कई बार देखी हैं।”

युवक, “कुछेक लोगों के बुरे हो जाने से सभी लोग बुरे ही होंगे, ऐसी बात तो नहीं है। दूसरों के बारे में बोलना बेकार है; बस, मेरी बात का उत्तर दो।”

युवती, “मैं अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं बता सकूँगी।”

तब तो मैं नाव नहीं खेऊँगा' कहकर वह युवक नाव में पालथी मारते हुए सीटी बजाने लगा। सीटी बजाते-बजाते नाव पहाड़ के नजदीक तक आ गई। उसी समय युवती, “सही बात अगले जन्म में ही बताऊँगी” कह कर पानी में कूद गई। युवक ने पीछे मुड़कर देखा, तो नाव में वह नहीं थीं, और उसे रोक भी नहीं सका। भय, घबराहट और आश्चर्य के साथ युवक भी पानी में छलाँग लगाकर युवती को इधर-उधर खोजने लगा, किन्तु वह उसे कहीं नहीं मिल सकी। दूसरी ओर युवती डुबकी लगाए-लगाए कुछ दूर चली गई और पेड़-पौधों की ओट लेकर पहाड़ पर चढ़ गई और युवक के तमाशे को देखती रही, जो घबराहट के साथ रोनी सूरत लिए उसे ढूँढ़ रहा था| वह 'कितनी भी कोशिश करो, खोज नहीं पाओगे' कहते हुए भाग चली। जिसे वह पानी में ढूँढ़ रहा था, उसे पहाड़ पर पहुँची देखा तो युवक के आश्चर्य की सीमा न रही, सोचने लगा, “अजीब बावलापन है! जिसे पुरुष जात में जनम लेना चाहिए था, वह कैसे स्त्री-रूप में जन्मी! विश्वास ही नहीं होता कि इतने सुन्दर और नाजुक चेहरे के अन्दर यह बावलपान छिपा होगा! बावली है तो क्या, सोना है सोना! किन्तु विश्वास नहीं हो रहा कि इस जन्म में उसकी सहानुभूति की थोड़ी सी बूँदें पाकर प्रेमाग्नि में विदग्ध अपने हृदय को समझाया पाऊँगा। लगता है, प्रेम में पागल मनुष्य का स्वभाव ऐसा ही होता है। गुस्सा भी करे तो प्यारा लगता है, बुरी तरह डाँटे भी तो प्यारा लगता है-मीठी बातें करे तो और प्यारा गलता है। वहा! अजीब ही होता है!

यह युवती कुछ समय पहले पहाड़ के समीपवर्ती उद्यान में उरीरै के संग फूल चुनने वाली माधवी थी और युवक वीरेन् का ही सहपाठी था, नाम था धीरेन्द्र सिंह। उन दोनों के बीच पहले से प्रेम था, लेकिन युवती नारी-स्वभाव के वशीभूत प्रेम होते हुए भी नकार रही थी। कोई, प्रेम-देवता को इस प्रकार धोखे में डाले तो वह भी कभी-कभी बदला लिए बिना नहीं छोड़ता। पुराने जमाने में खम्बा ने अपनी प्रियतमा थोइबी की प्रेम-परीक्षा ली थी तो दोनों को ही प्राणों से हाथ धोने पड़े थे (मणिपुरी लोकगाथा 'ख्म्बा-थोइबी' में नायक खम्बा ने अपनी प्रेमिका-पत्नी थोइबी की प्रेम-परीक्षा पर-पुरुष की आवाज में रात के अँधेरे में दरवाजा खोलने को कहते हुए ली थी। यह एक छेड़छाड़ थी, किन्तु नायिका थोइबी ने खम्बा को पर-पुरुष समझ कर घर के अन्दर से ही छुरी फेंकी। छुरी लगने के कारण खम्बा की मृत्यु हो गई। जब थोइबी को पता चल कि उसके क्षरा फेंकी गई छुरी से खम्बा की मृत्यु हो गई है, तो उसने भी अपनी छाती में छुरी भोंक कर आत्महत्या कर ली)। कुछ वर्ष पहले किसी राजकुमार ने भी अपनी प्रमिका के प्रेम की परीक्षा ली थी तो प्रेमिका ने अपने प्राण त्याग दिए थे। ऐसे उदाहरण कभी-कभी मिल जाते हैं। सच तो यह है कि माधवी ने धीरेन् को अपने हृदय में पूरी तरह बसा रखा है।