माधवी / भाग 2 / खंड 2 / लमाबम कमल सिंह

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दुख भरा सन्देश

यदि ऐसी इच्छा की जाए कि किसी की जानकारी किसी को न हो, किसी सन्देह को कोई न सुने, किसी चीज को कोई देख न ले, तो वह सब ज्यादा देर तक छिपाकर नहीं रखा जा सकता। विशेषकर, अध्ययनरत विद्यार्थी का अपने अभिभावकों की आँखों में धूल झोंक कर देव-दर्शन के बहाने व्यर्थ में इधर-उधर मटरगश्ती करना, मित्रों के साथ अध्ययन के बहाने इधर-उधर की फालतू बातें करना-यह सब जल्दी ही पकड़ में आ जाता है। वीरेन् के साथ भी ऐसा ही हुआ। उसके स्वभाव, चाल-चलन, घटी घटनाओं आदि का सारा विवरण उसके पिता के कानों तक पहुँच गया; इसलिए पिता ने उसके व्यवहार पर सन्देह की निगाह से गौर करना शुरू कर दिया। अध्ययन-कक्ष में जाकर देखा तो पाया कि अधिकांश पुस्तकों पर फफूँद जमी हुई थी। बीजगणित और गणित की कुछ पुस्तकें मेज के नीचे पड़ी थीं। शकुन्तला, कादम्बरी और शैक्सपियर के कुछ नाटकों की पुस्तकें उसके तकिए के नीचे सँभालकर रखी हुई पाई गईं। उसकी नोट-बुक में जगह-जगह प्रणय-संगीत सम्बन्धी छोटी-छोटी कविताएँ लिखी हुई थीं। पहले, परीक्षा में हर वर्ष प्रथम स्थान पाकर प्रथम पुरस्कार पाया करता था, इस बार उसे कुछ भी नहीं मिला। पहले अध्ययन-कक्ष में कोई अनपढ़ मित्र घुस जाए तो वह बहुत गुस्सा करता था, किन्तु अब तो ऐसे मित्रों के आने पर उनका सुस्वागत करते देखा गया। रसोई में भी थाली में परोसा खाना दो-तीन कौर खाने के बाद थोड़ा-सा पानी पीकर छोड़ देता था। यह सब देखने के बाद सनाख्वा को मालूम हो गया कि वीरेन् के स्वभाव में बदलाव आ गया है। वह सोचने लगा कि कहीं दूर परदेश में नहीं भेजा गया तो वीरेन् की शिक्षा अपूर्ण रह जाएगी और वह मँझधार में भटक जाएगा।

एक दिन वीरेन् अपने अध्ययन-कक्ष में अकेला बैठा, चोर की तरह बार-बार पीछे मुड़कर देखते हुए उरीरै को चिट्ठी लिख रहा था, उस समय उसके पिता ने अचानक आकर पूछा, “क्या लिख रहे हो?” वीरेन् ने उत्तर दिया, “मेरा एक मित्र कलकत्ते के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ रहा है, उसे एक चिट्ठी लिख रहा हूँ।” इस उत्तर का फायदा उठाकर पिता बोले, “यह तो बहुत अच्छी बात है कि तुम्हारा एक मित्र प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ रहा है, तुम कल ही कलकत्ता चले जाओ, तुम्हें वहीं पढ़ना है, इसके लिए तैयारियाँ पूरी करो।” यह कहकर वे तुरन्त बाहर चले गए। सुनते ही वीरेन् का सिर चकराने लगा। 'बच जाए', यह सोचकर दिए गए उत्तर का परिणाम ही गले का फन्दा बन गया। अकेला न बैठ सकने के कारण वहाँ से चुपचाप निकल गया।