माधवी / भाग 3 / खंड 3 / लमाबम कमल सिंह

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चोरी पकड़ना

“यदि सूख जाए

फेंक दिया जाएगा विस्तृत मैदान में

परिमल और सुषमा

होगी व्यर्थ नष्ट।“

वीरेन् जब शिलङ् में ही था, तो एक दिन अकेला टहलने निकला। कल रात उसने स्वप्न में उरीरै को देखा था, वह एक फटी चादर ओढ़े पर्वतीय घाटी में अकेली रो रही थी, अचानक भुवन आकर उरीरै को पीटते हुए खींच कर ले जाने की कोशिश करने लगा, उरीरै वीरेन् को पुकार कर रोने लगी और शक्ति-भर अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। वीरेन् दौड़ते हुए पीछा करने का प्रयास कर रहा था, लेकिन उसमें स्फूर्ति नहीं थी। भुवन उरीरै को रुई के रोएँ की तरह ऊँचे शिखर की ओर ले जा रहा था। ऊँचे शिखर पर पहुँचने के बाद भुवन उरीरै को हाथ से पकड़कर “लो, अपनी यह प्रेमिका"- कहते हुए ऐसे फेंकने को हुआ, जैसे कोई कपड़ा फेंक रहा हो। उसी पल धीरेन् के “देर हो गई, उठो” कहते हुए जगाने से स्वप्न भंग हो गया। कल रात के इस स्वप्न की याद करके आज वीरेन् का मन बहुत व्याकुल था, उसने बार-बार सारे बीते हुए कार्यों के बारे में सोचना शुरू किया। निर्जन स्थान के सौन्दर्य को देखकर मन की व्यग्रता शान्त करने की इच्छा से पश्चिम दिशा में बिदन जल-प्रपात की ओर चला गया। थोड़े ऊँचे स्थान पर बैठ कर पहाड़ी झरने की तेज धारा का ऊँचे शिखर से नीचे वा-वा ध्वनि के साथ गिरना, तेज धारा के चट्टान पर पड़ते ही पानी की उड़ती बूँदों का पर्वत के नीचे कुहरे-सा दिखाई देना, उड़ती बूँदों द्वारा आस-पास के पहाड़ी क्षेत्र में उगनेवाली लता-बेलों, घास-पत्तों आदि को चमकाया जाना यह सब एकटक देखना शुरू किया, किन्तु ये दृश्य उसके मन की व्यग्रता शान्त नहीं कर सके। उसके मन को अत्यधिक दुख हुआ और सोचने लगा, “इस समय मेरे पास उरीरै बैठी होती, प्रेमालाप करते हुए साथ-साथ यह दृश्य देखते तो इसका सौन्दर्य सौ गुना बढ़ जाता! मेरे मन को मथ रहा अभाव और शून्यता उरीरै के अलावा कोई भी दूर नहीं कर सकता।” हमने सोचा था, वीरेन् उरीरै को भुला चुका है - वह कैसे भूल पाएगा? विदाई के समय उरीरै के प्रति उसका क्रोध छोटे बच्चे की खाना न खाने की जिद जैसा था। बिना झगड़ा किए प्रेम की चरम सीमा कभी नहीं आती, झगड़ा करके जिद, हठ और मान के बाद प्रेम अपनी चरम सीमा पर पहुँचता है। उरीरै के प्रति उसका क्रोध उसे विदा देकर भाग गया था। इसलिए वह उरीरै को कभी नहीं भुला सका। हे प्रणय! अफसोस! किसी के हृदय में अगर तुम प्रविष्ट हो गए, तो लाखों सुन्दर वस्तुएँ या दृश्य देखने पर भी उसके मन को कभी पूर्ण रूप से आनन्द नहीं होता। सदा अभाव का अनुभव होता रहता है। वीरेन् उरीरै के बारे में सोचते-सोचते शाम होने पर अपने आवास पर लौटा। तब तक धीरेन् टहल कर नहीं आया था। दीपक जला कर कमरे में अकेले बैठे हुए वीरेन् ने दूर रह गई उरीरै के बारे में बहुत सोचा चुपचाप बैठना शायद उसे अच्छा नहीं लगा, हाथ में कलम उठाई, चित्रकारी के तरह-तरह के रंग उठा लाया और कागज के एक ताव पर उरीरै को छोड़कर चले आने की उस रात का चित्र बनाना शुरू किया। पहले जलाशय और उसके पास वाले चम्पा का वृक्ष बनाया, उसके बाद आँगन के कोने में उगा हुआ मल्लिका का पौधा-खिले हुए सफेद पुष्प, एक-दो भ्रमरों का राग-पान, पूर्वी आकाश में शीतल चन्द्रमा का उदय--इन सबका चित्र बनाया, उसके बाद क्रोधित होकर शाशि के साथ मुँह मोड़कर उसका निकल आना अंकित हुआ| मल्लिका के पौधे के समीप उरीरै की चित्रित आकृति पर आँसू की एक बूँद गिर पड़ी। सोखता से आँसू पोंछ दिया, पोंछना पूरा भी नहीं हुआ, दो-एक बूँदें और गिर गईं, वह आँसू नहीं रोक सका। अपने आपको धिक्कारने लगा कि उसने उस निर्दोष लड़की पर क्यों क्रोध जताया था और शशि पर भी कि यह उस दिन इतना बुद्धू कैसे हो गया था। उसी समय “मित्र, किसका चित्र बना रहे हो” कहते हुए धीरेन् चुपचाप आकर पीछे से चित्रवाला कागज खींच ले गया। तब वीरेन् ने चौंकते हुए “शिलङ् का चित्र है, पूरा नहीं हुआ, अधूरा है” कहकर उस कागज के लिए छीना-झपटी की। जब धीरेन् ने उसे छोड़ा ही नहीं, तब लज्जित होने की आशंका से कागज को मूसकर फाड़ डाला। एक टुकड़ा धीरेन् लेकर भाग गया; दूर भागकर दियासलाई जलाकर देखा, तो उसमें एक लड़की का चेहरा पाया, जिस पर तिल था। शरीर का हिस्सा फाड़े हुए दूसरे हिस्से में चला गया था। उसके बाद धीरेन् ने पास आकर कहा, “तिल देखकर सारी बात समझ गया हूँ। मनुष्य विश्वसनीय नहीं होता, इतने दिनों से मित्र हूँ, अपने मन की बात मुझसे कभी नहीं बताई। जैसे पके आम के अन्दर छिपा कीड़ा सारे मीठे रस को चूस लेता है, वैसे ही प्रेम अन्दर छिपाकर रखने से तुम्हारा यह शरीर दिन-प्रतिदिन सूखता जा रहा है। छिपाने से कोई लाभ नहीं, अपना इतिहास सुनाओ।” तब वीरेन् ने लज्जावश, “मित्र, तुम तो इस प्रकार की बात कभी नहीं करते, कभी मैंने कहना शुरू किया भी तो तुमने आँखें फेर लीं, इसलिाए कभी नहीं बताया, बुरा मत मानो।” धीरेन् बोला, “आँखें फेरी हों या न फेरी हों, दिखाई दे या न दे, युवा हो तो मन में प्रेम की बात छुपाकर रखना स्वाभाविक है। व्यर्थ में बात लम्बी न करो, अपना इतिहास जल्दी सुनाओ।” वीरेन् ने विवश होकर “उधर एक शशि था तो इधर एक और शशि आ गया” कहते हुए अपना इतिहास रामायण बाँचने की भाँति सुनाना शुरू किया। पहली भेंट से लेकर देव-दर्शन के समय आए संकट, विदाई के समय की घटना आदि एक को भी छोड़े बिना एक-एक कर सुनाया। धीरेन् ने ध्यानपूर्वक सारी कहानी सुनी और कहानी का अन्त होने के पश्चात् कहा, “यदि समीक्षा की जाए तो तुम्हारा चरित्र मैतै साहित्य के पुराने जमाने के नोङ्बान् (नोङ्बान् : मणिपुरी लोक-गाथा 'खम्बा-थोइबी' का खलनायक! वह नायिका थोइबी को बहुत पसन्द करता था, लेकिन थोइबी उसे नफरत करती थी) से करीब-करीब मिलता है और उरीरै के चरित्र के साथ तुलना करने लायक कोई भी नारी मैतै साहित्य में नहीं मिलती; हाँ, बंग साहित्य की जुमेलिया (जुमेलिया : बंगला-साहित्य में जासूसी साहित्य सम्राट माने जानेवाले उपन्यासकार पाँचकड़ि दे के, 'मायावी,' 'मनोरमा' और 'मायाविनी' शीर्षक तीनों उपन्यासों की एक प्रमुख स्त्री-पात्र, जो उसके पति की मृत्यु के बाद उसे पकड़ने के लिए आए पुलिस अफसर के साथ एक बार सहवास करना चाहती है) से उसकी तुलना की जा सकती है।” तब वीरेन् ने हँसते हुए कहा, “एम.ए. पास हो न, समीक्षा में भी पारंगत हो गए हो। कहानी पूरी भी नहीं हुई और समीक्षा पहले ही आ गई। कहीं एक-दो पुस्तकें छप कर आ जाएँगी, तो खाना-पीना छोड़कर समीक्षा ही करते रहोगे।” धीरेन् बोला, “गुस्सा मत करो। हम पुरुष बिना प्रमाण बात नहीं कहते। अपनी समीक्षा का अचूक प्रमाण दे रहा हूँ।” यह कहते हुए एक चिट्ठी वीरेन् के हाथ में दे दी। वीरेन् ने पढ़ना शुरू किया, विवरण इस प्रकार था -

काँचीपुर

इङे्न् माह, दिनांक...........

(इङे्न् माह : मणिपुरी वर्ष का चौथा माह)

प्रिय मित्र,

उरीरै के लिए दुखी होना और उसे प्यार करना छोड़ दो। उरीरै ने तुम्हें पहचानने से भी इनकार कर दिया और उसके द्वारा मेरे प्रति प्रेम प्रकट करने के कारण मैंने उससे शादी करके उसे अपनी पत्नी बना लिया। मुझ पर बुरा मत मानना। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि तुम परीक्षा पास करके जल्दी लौट आओ। इति -

तुम्हारा प्रिय मित्र

श्री शशि कुमार सिंह

विश्वास न करके कि वह चिट्ठी सचमुच शशि ने भेजी है या किसी और ने, वीरेन् ने उस चिट्ठी को बार-बार पढ़ा; अन्ततः टेढ़े अक्षरों में लिखा शशि का नाम देखा तो क्रोधित होकर चिट्ठी को टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया। धीरेन् “मेरी बात सही है कि नहीं” कहकर खिलखिलाने लगा।