मुमताज महल का इयरिंग / रमेश बक्शी
सुबह की ठंडी हवा में वह ताजमहल के गुंबद को देख रहा था और फटे-से कपड़े पहने दो आदमी उसे घूर रहे थे। वे दोनों बातें करने लगे, 'लाख समझाया पर मानता ही नहीं है। अगर इसको अंग्रेजी नहीं आती होती तो ये कुछ नहीं कर सकता था।'
वह गुंबद की तरफ देखता हुआ यह सब सुन रहा था। धीरे से बोला, 'ताजमहल न तुम्हारा है न मेरा। अगर तुम्हें यही धंधा करना है और मुझे भी, तो ग्राहक बाँट लो।
'जाने दे बे', एक ने कहा, 'तू ही खुश रह। लेकिन याद रखना, किसी के पेट पर लात मार कर कोई भी खुश नहीं हो सकता।' इतने में ही दो यात्री आए और वे दोनों उनके साथ हो लिए। एक बोला, 'आइए, मैं ताज का सबसे खूबसूरत फूल आपको दिखाऊँ।' दूसरा बोला, 'आइए, मैं तलघर की कब्रें दिखा लाऊँ आपको।'
वह संगमरमर की बेंच पर बैठ गया। हलके रंग का पैंट और ढीली शर्ट पहने यह पूरा कलाकार लग रहा था। जब से आगरा आया है, दिन का अधिक-से-अधिक समय यहीं कटता है। कभी एक और कभी पाँच रुपयों की भी आमदनी हो जाती है। वह सोच रहा था - आया था कहीं छोटी-मोटी सरकारी नौकरी ढूँढ़ने और ताजमहल में ऐसा उलझा कि अब इसे छोड़ने को ही जी नहीं चाहता। जब पढ़ता था तो अपने-आप पर नाराज था कि उसने इतिहास क्यों लिया और अब खुश था कि इतिहास न लिया होता तो ताजमहल की संगमरमरी नौकरी कैसे मिलती। तभी वे दोनों लौट आए, खुश थे, इससे साफ दिख रहा था कि उन्हें यात्रियों से ताज की जानकारी के बदले एक-एक अठन्नी मिल गई है।
तभी एक लड़की लाल दरवाजे से ताज को अपने कैमरे में देखती दिखी। प्रकाश उठा और उसके पास आ खड़ा हुआ। बोला, 'यह एंगल ठीक नहीं है, साइड से लीजिए।' लड़की ने बात अनसुनी की। वह फिर बोला, 'देख रही हैं न सामने आप, ताजमहल की मरम्मत हो रही है। इस जगह से अगर फोटो लिया तो सारी नसैनियाँ इसमें आ जाएँगी।
लड़की बोली, 'यह तो मुश्किल हो गई। इसका मतलब ये कि ताजमहल का अच्छा फोटो मिल ही नहीं सकता।'
'यह लीजिए...' उसने अपनी जेब से निकालकर ताज का एक साफ-सुथरा फोटो दे दिया।
लड़की ने धन्यवाद दिया। वह उसके साथ-साथ चलने लगा। बोला, 'इस जगह ठहरिए जरा। इसी जगह खड़े हो कर खुश्चेव और बुल्गानिन ने ताज की रूसी भाषा में प्रशंसा की थी।'
लड़की इस जानकारी से खुश हुई। जब वह सीढ़ियाँ चढ़ रही थी, तो वह बोला, 'आज तक कोई भी इन संगमरमर की सीढ़ियों को गिन नहीं पाया।'
'क्या कारण है इसका? दिखती तो बहुत थोड़ी हैं।' लड़की ने धीरे से पूछा।
'कारण ये है कि इन सीढ़ियों पर चढ़ते, ऊपर निगाह रहती है। लगता है नजर ही नहीं, संगमरमर पर याददाश्त भी फिसल जाती है और इसी कारण गिनती लगाने वाला ऊपर की सुंदरता को देख कर संख्या भूल जाता है।' वह रटे-रटाए वाक्य बोल रहा था।
'ठहर जाइए अब, अपने सैंडिल उतार दीजिए।' उसने कहा, 'यह नियम, लोग कहते हैं, इसलिए बनाया गया है कि संगमरमर पर खरोंच न पड़े पर कारण कुछ और है...।'
'कौन-सा कारण?' लड़की' लड़की ने उत्सुकता से पूछा।
'वह नियम शाहजहाँ ने ही बनाया था। आप ही सोचिए कि जहाँ उसकी बेगम मुमताज भर-नींद में सोई हो वहाँ कोई जूते पहन कर कैसे जाए?' वह उसके साथ-साथ आगे बढ़ने लगा। पहले द्वार पर उसने दिखाया, 'यह लिखावट देखिए, कुरान की आयतें हैं। ऊपर तक लिखी हुई हैं। आप ही बताइए कि कौन-सी विशेषता है इसमें?'
'मुझे तो कोई विशेषता नहीं दिख रही है', लड़की ने सोच कर कहा।
'मैं बतलाता हूँ। देखिएगा, नीचे के अक्षर जितने बड़े हैं, ऊपर के अक्षर भी उतने ही बड़े दिख रहे हैं। साइंस का नियम है कि ऊपर की चीज छोटी दिखाई देती है। यही है इसके निर्माता का कमाल। ऊपर के अक्षर इस अंदाज से बड़े बनाए गए हैं कि वे आँखों के फोकस में नीचे वाले अक्षरों के बराबर ही दिखें।'
लड़की इस बात को सुन कर बहुत प्रभावित हुई। फिर उसने संगमरमर के फूल दिखाए। कहने लगा, 'ऊपर देखिए... और इस किनारे से अलग-अलग रंग के पत्थर गिनिए।'
लड़की ने गिनना शुरू किया पर चार पाँच गिनने के बाद ही सिर में चक्कर आने लगा। वह बोला, 'रहने दीजिए, यह बहुत मुश्किल काम है। मैं बतलाए देता हूँ, यहाँ कुल बीस तरह के पत्थर लगे हैं।'
'बीस?' लड़की ने आश्चर्य प्रकट किया।
'एक तवारीखी कागज से तो यह पता चला है कि शाहजहाँ सौ तरह के पत्थर इसमें लगवाना चाहता था। पर यही क्या कम किया उसने अपने शासन काल में। फरवरी 1628 में वह ताऊस पर बैठा और 1656 तक उस पर रहा।' वह कहता गया, 'यूँ तो उसने अट्ठाईस वर्षों में कई काम किए - बुंदेल राजपूतों के विद्रोह का दमन किया, खानजहाँ लोदी के छक्के छुड़ाए...।'
'पर सबसे बड़ा काम तो ताजमहल का निर्माण है।' लड़की ने उसके वाक्य को तोड़ कर कहा।
'बेशक! इसी जगह से चारों तरफ निगाह घुमाइए। मुझे तो ऐसा लगता है जैसे कोई तारों को छेड़ रहा है धीरे-धीरे। ओैर कहा भी तो गया है आर्किटेक्चर इज फ्रोजन म्यूजिक। क्या है ताजमहल? जमा हुआ संगीत ही तो है।'
लड़की की आँखें नहीं ठहर रही थीं। वह बोलता गया, आपको मालूम होगा कि मुमताज आसफखाँ की बेटी थी। पहले उसका नाम था अंजुमन बानू बेगम गजब की खूबसूरत थीं शाहजहाँ ने उसकी छाया को देख कर एक बार कहा था कि तुम चलती-फिरती जन्नत हो और तुम्हारी छाया में ही एक पूरा महल बन सकता है।'
'तो उसी सपने को शायद बादशाह ने पूरा किया?' लड़की ने प्रश्न किया।
...ऐसा ही समझ लीजिए। पर मुमताज ने मजाक में उस समय कहा था, मेरी छाया काली है तो महल भी काला ही होगा। शाहजहाँ ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया था पर मुझे लगता है जैसे गोरी मुमताज की गोरी छाया हो।
लड़की ने आश्चर्य से कहा, 'कितना बड़ा है! जाने कितना रुपया लगा होगा, जाने कितना समय लगा होगा?'
पचास लाख से ज्यादा रुपया खर्च हुआ है इस पर। 1632 से बनना शुरू हुआ और पूरा हुआ 1643 में, पूरे ग्यारह वर्षों में... ये फूल नहीं हैं अँगूठी में जड़े हुए नग हैं। टाइटनों ने बनाई इसकी डिजाइन और जौहरियों ने इसे पूरा किया।'
'आपको तो सारे डिटेल मालूम हैं...।' लड़की बोली।
'मेरे खानदान की पाँच पीढ़ियाँ यहाँ चक्कर काटते-काटते स्वर्ग चली गईं।' उसकी यह बात सुन लड़की बहुत खुश हुई। वह जगह-जगह रुक कर कहे गए वाक्य नोट कर लेती थी।
'मुझे तो लगता है कि जैसे सपनों के पत्थर और कल्पना की सीमेंट से इसे बनाया गया हो' उसने एक फूल की पंखुरियों पर उँगलियाँ घुमाईं और बोला, 'मुमताज ने चौदह बच्चों को जन्म दिया और 7 जून, 1631 को आखिरी साँस ली शाहजहाँ कितना रोया होगा उस दिन! फिर बुरहानपुर में दफना दिया गया पर बाद में वह कब्र आगरा ले आई गई। चलिए देखें...।'
वह लड़की उसके साथ-साथ नीचे उतर गई। बोली, 'बहुत अँधेरा है।' उसने मोमबत्ती जलाई और उसे आगे आने को कहा, देखिए ये हैं कब्रें। यहाँ पंद्रह सेकंड तक आवाज गूँजती है।'
लड़की कुछ बोली और अपनी आवाज की प्रतिध्वनि सुनती रही।
उसने कहा, 'शाहजहाँ इसी जगह खड़ा हो कर मुमताज को पुकारा करता था। ...एक बात और बताऊँ आपको। जब पहला पानी आगरा पर बरसता हे तो इस मकबरे पर एक बूँद आ टपकती है। पता नहीं यह सब कैसे होता है और यहीं एक बूँद पानी कैसे आ गिरता है! मैंने देखी है वह बूँद। ऐसे लगता है जैसे आँसू की एक बूँद हो। ...और इसी कब्र को देखते हुए रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि ताजमहल काल के गाल पर चमकती हुई आँसू की एक बूँद की तरह है।'
लड़की उसकी एक-एक बात ध्यान से सुन रही थी। वह उसे फिर पीछे की तरफ ले गया - 'देखिए, यह है जमुना। ताजमहल तो हर तरफ से सुंदर दिखता है। इसी जगह बैठकर साहिर लुधियानवी ने कहा था...'
लड़की ने उत्सुकता से पूछा, 'क्या?'
प्रकाश सुनाने लगा -
'यह चमनजार, यह जमना का किनारा, यह महल,
वह मुनक्कश दरोदीवार, यह महराब, यह ताक।
एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर,
हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक।'
लड़की सुनती रही और जब उसकी निगाह ऊँची मीनार पर ठहरी तो वह बोला, 'अब इनमें ताले पड़े हैं। कारण यह कि लोग ऊपर चढ़ कर आत्महत्या कर लेते हैं। अब तक बीसियों लोग अपने प्राण दे चुके हैं। और सच पूछो तो यह ताजमहल मौत की पूजा ही है। इस कोने पर आइए... बस यहीं खड़े हो कर सुमित्रानदंन पंत ने कहा था, 'हाय मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिक पूजन...'
लड़की एक-एक बात लिखती रही। वह एक कोने में चला गया। बोला, 'अच्छा, इस जगह से आप यह बताइए कि सामने दीवार पर जो साँप-जैसे कर्व बने हैं एक के ऊपर एक, उनमें से कितने तक आपके हाथ पहुँच सकते हैं। दो? चार? दस? बारह?'
लड़की ने अंदाज से कहा, 'मैं आठ कर्व छू सकती हूँ।'
वह हँसा और लड़की को दीवार के करीब ले गया। वह मुश्किल से पंजों पर खड़ी हो कर केवल दूसरा कर्व छू पाई। प्रकाश ने बतलाया, 'ये ही हैं ताजमहल की छोटी-छोटी विशेषताएँ। अच्छा, अब बताइए कि गुंबद के ऊपर का जो हिस्सा है, वह कितने फीट होगा?'
लड़की ने बतलाया, छह या सात फीट।'
'तो चलिए मेरे साथ। पास वाले मकबरे के फर्श पर इसका चित्र बना है।' उस चित्र को देख कर लड़की अचरज में डूब गई, वह कम-से-कम पंद्रह फीट था।
वह बोला, 'मैंने बतलाया न कि ये ही हैं यहाँ की विशेषताएँ।'
लड़की उसके साथ घंटों घूमी और जाते समय दस का एक नोट दे गई। उसको पहली बार किसी यात्री से दस रुपए मिले थे। उन दोनों हमपेशा ने देखा तो जलभुन गए। एक बोला, 'देख मेरे पेट को। बाबू के दोनों पाँव बने हैं इस पर।'
वह खुश था कि उसके पास रोजी है। खूब रुपया मिलता है। कोई छह महीने बाद एक दल आया। वही उसके साथ चला, 'देखिए ये सीढ़ियाँ, आज तक इन्हें कोई गिन नहीं पाया... मैं तो कहता हूँ कि यह मुमताज की गोरी छाया है... मुमताज ने 7 जून, 1631 को आखिरी साँस ली थी... यह है कब्र... आगरा पर बरसते पानी की पहली बूँद...।'
वह दल के लोगों को जोर से हँसते देख कर चुप हो गया। एक लड़के ने दुअन्नी निकाली और उसको देने लगा। वह बोला, 'यह दुअन्नी तुम्हारी मेहनत की है। पर हम उल्लू नहीं बन सकते।'
'भाई एक आना और दे दो। चाहे जो हो, इसकी स्मरण-शक्ति तो अच्छी है...।' दूसरे लड़के ने कहा।
'क्या मतलब है आपका?' उसने पूछा।
'मतलब ये कि इस किताब को आपने रट लिया है और इसीलिए हम आपको तीन आने दे रहे हैं।'
'कौन-सी किताब? कैसी किताब?' उसने देखा वह जो कुछ बोला करता था, वह सब उसमें लिखा था।
'तुम यह जानना चाहते हो कि किसने लिखी यह किताब, तो देख लो, इसमें उसकी तसवीर भी छपी है।' उस लड़के ने पन्ने पलट कर तसवीर दिखाई।
उसके ओठों पर खून, माथे पर पसीना और आँखों में गुस्सा छलक आया। यह उस लड़की की ही तसवीर थी जिसने छह महीने पहले उसे दस रुपए दिए थे। उसने देखा कि मेनगेट पर वह किताब हाथों-हाथ बिक रही थी।
वह संगमरमर की बैंच पर जा बैठा। वे दोनों हँसते हुए आए, 'और बोलो झूठ। और नई-नई बातें गढ़-गढ़ कर सुनाओ लोगों को।'
वह अपने पेट पर उस लड़की की लात महसूस कर रहा था। दुखी था कि अब वह सारी 'झूठ', जो वह यात्रियों को बनाने के लिए सुनाया करता था, उस लड़की की कलम से सच बन चुकी है।
वह सोचता रहा कि क्या करे? एक मित्र ने एक नौकरी भी बताई थी तो उसने 'ना' कह दिया था। बोला, 'जब तक ताजमहल की दीवारें कायम हैं, तब तक मुझे कोई नौकरी नहीं चाहिए।'
दो यात्री और आए, वह हिम्मत करके उनके साथ चलने लगा। सारी बातें बताईं। उनमें से एक ने जब उसको देने के लिए रुपया निकाला तो वे दोनों हमपेशा आ गए। वह किताब यात्री के हाथों में देते हुए बोले, 'केवल छह आने में। इस आदमी ने इसमें रट कर ही सब बातें सुनाई हैं।'
उसने सोचा कि अब दिन में आना बंद करें और रात को आया करें, केवल तब ही, जब रात चाँदनी हो। उस समय वे दो दुश्मन तो साथ न रहेंगे जो दिन में उसकी पोल (या उस लेखिका की) खोल दिया करते थे।
ताज पर चाँदनी का अभ्रक बरस रहा था। बीसियों यात्री ताज के चक्कर काट रहे थे। उस रात में वह भी यात्री की तरह ही था। एक बाबूजी इस समय भी अपना धंधा चला रहे थे। वे गुंबद की तरफ देखकर चिल्लाते, 'वह रहा!' और दुअन्नी ले कर एक चमकती हुई चीज गुंबद के संगमरमर पर दिखा देते। एक ने पूछा, 'यह क्या चीज है जो गुंबद के संगमरमर पर चमकती है?'
बाबूजी ने बतलाया, 'यह है मुमताज महल का इयरिंग। शाहजहाँ ने ऊपर गुंबद पर चाँदी की कील ठुकवा कर उसे लटकवा दिया था, वही इस तरह चमका करता है।'
वह भी मुमताज महल के इयरिंग को देखता रहा। उसे यह धंधा अधिक अच्छा लगा। इसके साथ ही उसे अपनी पत्नी याद आ गई जिसके लिए उसने सराफे से इयरिंग खरीदे थे। बड़ी कंजूस है वह, पेटी में रख छोड़ती हैं। भीड़ बढ़ती गई और वह घर लौट आया।
दूसरे दिन पूनम थी। मक्खन जैसे ताज पर दूध जैसी चाँदनी बरस रही थी। वे ही बाबूजी मुमताज के इयरिंग की चमक दिखा रहे थे। तभी वह जोर से चिल्लाया, 'वह गिरा!' भीड़ दौड़ी। चीज उसके हाथ में थी। वह कह रहा था, लीजिए, साहब! तीन-सौ साल से जो गुंबद पर लटका हुआ था वह नीचे आ गिरा। जी हाँ, देखिए, यह मुमताज महल का ही इयरिंग है, मोती बड़े हैं और कैसा चमक रहा है! इसी की चमक ऊपर से दिखाई देती थी...।'
वह सबसे एक-एक चवन्नी वसूल कर रहा था। करता क्यों नहीं, वह इसे अपना भाग्य समझ रहा था कि मुमताज महल का इयरिंग उसके हाथ में है। वे बाबूजी कहीं जा कर लेट गए थे।
देर रात तक वह सबको इयरिंग दिखाता रहा। जब वापस घर आ रहा था तो पीछे से किसी ने पुकारा, 'मिस्टर!'
उसने रुककर देखा, वे ही बाबूजी उसके करीब आ रहे थे। बोले, 'मुझे बड़ा अचरज हो रहा है कि यह ऊपर से टपका है।'
वह बोला, 'इसमें अचरज की क्या बात। यह इयरिंग तो ऊपर से ही टपका है और मुझे विश्वास है कि यह मुमताज महल का ही है।'
बाबूजी का चेहरा खिंच गया, 'लेकिन मेरे पेट पर लात मार रहे हो तुम। चलो, इसे थाने में जमा करवा दें। ताजमहल तो राष्ट्रीय निधि है। अगर पुलिस को पता लगा तो गिरफ्तार कर लिए जाओगे।'
जब वह इस धौंस में नहीं आया तो बाबूजी ने कहा, 'ठीक है प्यारे! मैं अभी थाने में खबर कर देता हूँ।' इतना कह कर बाबूजी थाने की तरफ बढ़े।
वह हिल गया। सोचने लगा - यह आदमी अपने पेट पर लात नहीं सहेगा। अजीब है यह धंधा! सभी अपने-अपने पेट पर एक-दूसरे की लात महसूस करते है। पुकारा उसने, 'बाबूजी!'
एक आवाज में ही वे लौट आए। वह बोला, 'इतनी-सी बात में क्या थाने जाने लगे। यह मुमताज महल का नहीं, मेरी बीबी का इयरिंग है। सोचिए तो, ताजमहल के गुंबद से कहीं इयरिंग टपकेगा, वहाँ हो, तब तो गिरे।'
बाबूजी अब मुसकरा दिए। उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले, 'ठीक कहा आपने। शाहजहाँ को कुत्ते ने काटा नहीं था भैया, जो वह ताजमहल के गुंबद पर चाँदी की कील ठोंकवा कर मुमताज महल का इयरिंग लटकवाता।'