मुम्बई का भूलेश्वरजहाँ का उषाकाल सुबह-ए-बनारस से कम नहीं / संतोष श्रीवास्तव

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ब्राह्ममुहूर्त में यानी चार बजे से ही भूलेश्वर में फूलों से लदे ट्रक फूलों की दुकानों पर उँडलना शुरू हो जाते हैं। हवाओं में भक्तों की आस्थाके स्वर मुखरित होते हैं और शंखनाद और घंटानाद राहगीरों को पलभर ठिठका देता है। कारोबारी महानगरी के दक्षिण में सैंकड़ों सालों से बसा यह जो भूलेश्वर इलाका है यहाँ सौ से भी ज़्यादा मंदिर हैं। और उससे भी कहीं अधिक भक्तों की भीड़। भूलेश्वर मंदिर में शंकरजी विराजमान हैं। यह मंदिर तीन सौ साल पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर नगाड़ा खाना है जहाँ भोर होते ही नगाड़े और शहनाई की जुगलबंदी शुरू हो जाती थी... अब घंटे और शंख बजाते हैं। माधवबाग में राधाकृष्ण का मंदिर है। नवरात्रि में यहाँ नौ दिनों तक लगातार यज्ञ होता है। माधवबाग से पांजरापोल की तरफ़ जाने पर भव्य जैन मंदिर है। पांजरापोल में भगवान कृष्ण हैं और गौशाला भी जहाँ भक्त गौ माता को हरी घास, लाबसी के लड्डू, गुड़ चना खिलाते हैं। राम मंदिर, समुद्री माता का मंदिर अब धरोहर मंदिर का दर्ज़ा पा चुका है।

150 साल पुराना बड़ा जगदीश मंदिर आज भी मुम्बई में भगवान जगन्नाथ के गिने चुने मंदिरों में से एक है। पंचमुखीहनुमानजी के इस मंदिर में हर शनिवार भगवान शनिको तेल चढ़ाने की परम्परा है। श्री कृष्ण प्रणामी मंदिरमें भगवान कृष्ण के चरणों की पूजा होती है। भूलेश्वरके बड़े मंदिर परिसरों के अलावा लक्ष्मीनारायण मंदिर भव्य और आलीशान है। जलारामबप्पामंदिर के अलावा भूलेश्वर में और भी कई प्रसिद्ध मंदिर हैं।

मुम्बई और यहाँ के मूल निवासियों की अधिष्ठात्री देवी मुंबा का मंदिर शताब्दियों से एक दूसरे के पूरक हैं। भूलेश्वरऔर जवेरी बाज़ार की कुंभ के मेले जैसी भीड़ के बीच मुख्य शहर की सबसे घनी आबादी में प्रतिष्ठित है मुम्बादेवी का मंदिर। मुम्बा देवी नाम संस्कृत के महा अंबा से निकला जिनकी पूजा मुम्बई के मूल निवासी कोली व आगरी आराध्य देवी के रूप में पिछले छै: सौ सालों से पहले बोरीवली और अब भूलेश्वरमें करते आ रहे हैं। सिर पर चाँदी का मुकुट, नाक में नथुनी, गले में स्वर्णहार, साड़ी में लिपटी, गेंदेके फूलों से सजी वेदी पर विराजमान चमकदार लाल बालुई पत्थर मेंगढ़ी साढ़े तीन फुट ऊँची मुम्बादेवी की तेजस्वी प्रतिमा की सबसे बड़ी विशेषता है उनका दिव्य मुख और विशाल नयन। सन्मुख है सिंह जो देवी की सवारी है। एक तरफ़ मोर पर अन्नपूर्णा देवी विराजमान हैं। मुख्य द्वार पर संगीत वाद्य बजाते साधुओं की मूर्तियाँ हैं। मुख्य परिसर में गणेश, हनुमान और अन्य देवी देवता विराजमान हैं। चूँकि मुम्बादेवी शहर के चार मंदिरों में से एक हैं जिस पर आतंकवादी हमले का ख़तरा मँडराया करता है इसलिए यहाँ कड़ी सुरक्षा के बंदोबस्त हैं। मंदिर के गर्भगृह में मुम्बादेवी ने आसपास के समुद्र का पाटा जाना और पूरे इलाके के भूगोल और कलेवर को बदलते देखा है। वे साक्षी हैं बोरीबंदर के विक्टोरिया टर्मिनस के निर्माण की जहाँ भूलेश्वर में स्थानांतरित होने से पहले उनका मंदिर हुआ करता था। यह 1675 की बात है जब मुम्बई सात द्वीपों में बसा होता था।

मुंबा देवी के चारों ओर सोने चाँदी जवाहरात की दुकानें हैं। यह बाज़ार ज़वेरी बाज़ार के नाम से जाना जाता है। यहाँ किसी भी दुकान में आँख मूँदकर सौदा किया जा सकता है। सोने-चाँदी मेंज़रा भी मिलावट आज तक नहींपकड़ी गई. जिनके पास दुकानें नहीं हैंवे हथेलियों में हीरा, मोती, पन्नालिए खड़े रहते हैं और बिना किसी लिखित बिल के केवल ज़बान की शान में ये बिज़नेस चलता है। यहाँ मुस्लिम धर्म स्थल जमा मस्जिद भी है जो टैंक के ऊपर बनी मेहराब पर सुशोभित है।

मुम्बई में अन्य धार्मिक उत्सवों की तरह क्रिसमस भी अपने पूरे जोशो-जश्न से लबरेज रहता है। चैपल, चर्च, कैथेड्रल की शोभा देखते ही बनती है। मुम्बई को देश की चर्च राजधानी भी कहा जाता है। कुछ चर्च तो चार सौ साल सेभी ज़्यादा पुराने हैं। कुल 136 (एक सौ छत्तीस) चर्चों में से जो सबसे पुराने चर्च हैं वे पोर्चुगीज़ और ईसाई मिशनरियों के द्वारा बनवाये गये हैं। सबसे ज़्यादा चर्च ब्रिटिश शासनकाल में बने हैं।

हार्निमल सर्कल स्थित पश्चिम भारत का सबसे पुरानाएग्लिकन चर्च और गोथिक शैली के सुंदर फव्वारे व स्टेंड ग्लास की ऊँची खिडकियों वाला सेंट थॉमस कैथेड्रल गोथिक आर्ट की सबसे खूबसूरत मिसाल है। इसी चर्च की वजह से चर्चगेट नाम रखा गया। चर्च के अंदर प्रथम बिशप सर फ्रेडरिक लेविस मेटलैंड तथा कैप्टन निकोलस हार्डिंग की प्रतिमा तथा स्मारक है। ब्रिटिशकाल के कई ऐतिहासिक दस्तावेज भी यहाँ मौजूद हैं।

भूलेश्वर में बने कैथेड्रल का स्थान लेने वाला मुम्बई का दूसरा कैथेड्रल कोलाबा में है। ये मुम्बई के आर्चडॉयसिस का मुख्यालय और आर्कबिशप का घर भी है। यहाँ तीनों पोपों द्वारा भेंट की गई घंटियाँ, स्टोल और वाद्ययंत्र रखे हैं। चर्च ऑफ़ सेंट जॉन दि इवेंगलिस्ट चर्च कोलाबा में है जिसे अफगान युद्ध में मारे गये योद्धाओं की स्मृति में बनाया गया है। नियो गोथिक शैली में बना यह चर्च अपने शुरूआती दिनों में हॉर्बर में प्रवेश करने वाले पोतों के लिए इस बात का सूचक था कि मुंबई आ गया है।

सेंटएंड्रूज़ चर्च 400 साल पुराना बांद्रा स्थित चर्च है जिसके निर्माण में कोलियों ने भरपूर योगदान किया। अम्बोली स्थित सेंट ब्लेज़ चर्च भी चार सौ साल पुराना है। माहिम का खूबसूरत चर्च विक्टोरिया चर्चतो 450 सालसे भी पुराना चर्च है। माहिम में ही सेंट माइकल चर्च है जो सबसे पुरानी पुर्तगाली इमारतों में से एक है। बांद्रा स्थित माउंट मेरी चर्च की वर्जिन मेरी की प्रतिमा यहीं रखी हुई है। 27 जून 2008 को जीसस क्राइस्ट के चित्र से 'खून बहने' की कहानी ने पूरे मुम्बई को चकित करदिया था।

चर्च ऑफ़ ऑवर लेडी ऑफ साल्वेशन या पोर्चुगीज़ चर्च के नाम से मशहूर दादर स्थित चर्च 15 वीं सदी कापुर्तगालियों द्वारा बनवाया चर्च है। सेंटपीटर्स चर्च बांद्रा में है। बोरीवली में चर्च ऑफ़ इमैकुलेट कंसेप्शन फादर एंटोनियो डो पोर्टो नामक ईसाई मिशनरी ने बनवाया था। एक ज़माने में यहाँ रॉयल कॉलेज और ईसाई मठ भी था। बोरीवली की प्रख्यात मंडपेश्वर गुफाएँ इसके ताबे में थीं जो अब संरक्षक स्मारक घोषित कर दी गई हैं।

आई आई टी पवई के सामने पहाड़ी पर होली ट्रिनिटी चर्च है। लेकिन मराठों के हमलों से अब वह खण्डहर होगया है। कहते हैं मूल चर्च विहार झील में समा गया है।

भायखला में बेहद खूबसूरत चर्च है क्राइस्ट चर्च जो नियो क्लासिकल श्रेणी का है। इसके अलावा ग्रांट रोड में 146 साल पुराना इमैनुएल चर्च, उमरखाड़ी में मशहूर सेंट जोसेफ़ चर्च है। ये सब मुम्बई के प्रख्यात चर्च हैं। कुर्लामेंहोली क्रॉस चर्च भी 15 वीं सदी का है।

मरोल में सेंट जॉन इवेंगलिस्ट की जीसस क्राइस्ट, मदरमेरी और सेंट जॉन इवेंगलिस्ट की खूबसूरत मूर्तियों की वजह से मशहूर है यह चर्च। कोलाबा कॉजवे के पाससुन्दरसा, छोटा-सा चर्च वेसेलियन मेथडिस्ट चर्च है। नगीनदास मास्टर रोड पर मुंबई का एकमात्र आर्मीनियन चर्च सेंट पीटर्स चर्च है। सैक्रेड हार्ट चर्च चैपल के रूप में वर्ली के कोली मछुआरों द्वारा बनाया गया। मझगाँव में सेंट ऐंस चर्च गिरजाघर के नाम से जाना जाता है। मालाड पश्चिम में ऑवर लेडी ऑफ़ लूडर्स ऑफ़ ऑर्लेम चर्च, वकोला में सेंट एंथोनी चर्च तथा फोर्ट में सेंट एंड्रूज़ ऐंड कोलंबाज़ चर्च है जो रिनुएशन के बाद बहुत शानदार हो गया है। ग्लोरिया चर्च मुम्बई के विशालतम और प्राचीनतम चर्चों में से एक है जो भायखला में है।

कोलाबा में अफ़गान चर्च है जो गोथिक कला का बेहतरीन नमूना है। यह चर्च 1844 में उन ब्रिटिश सैनिकों कीस्मृति में बना था जो 1443 के सिंध अफगान अभियानोंमें मारे गये थे। यह चर्च प्रोटेस्टेन्ट मतावलंबियों का है। चर्च की मीनार इतनी ऊँची है कि देखते ही सिर चकरा जाए. यह मीनार मुम्बई हार्बर जाने वाले जहाजों को रास्ता दिखाती है। चर्च को पार करते ही एक भव्यता का एहसास होता है। दीवारों पर शिलाएँ हैं जिन पर अफगान युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के नाम लिखे हैं। डोरिक स्टाइल में बने स्तंभ मन मोह लेते हैं। चर्च की जादुई खूबसूरती देखते ही बनती है। प्रार्थना हॉल में प्रवेश करते ही ढेरों मोमबत्तियों की लौ देख प्रार्थना के लिए हाथ जुड़ जाते हैं। एक ज़माने में यहाँ अंग्रेज़ों के बँगले हुआ करते थे जिन्हें सिक बँगलों के नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश अफ़सर इन बँगलों में आराम और समन्दर के तट पर ताज़ी हवा और धूप के लिए आया करते थे। आज इन्हीं बँगलों की जगह आई एन एस अश्विनी अस्पताल की स्थापना की गई है। जीवन में तमाम दुरूह परिस्थितियों से गुज़रता हुआ इंसान हमेशा ईश्वर को याद रखे यह खूबसूरत अफगान चर्च शायद यही भूमिका अदा करता है।

ठाणे के प्राचीन चर्चों में कई चर्च चार सौ साल से भी पहले के हैं। सेंट जोज़ेफ़ चर्च वसई में ऐतिहासिक चर्च के रूप में जाना जाता है। ठाणे में सेंट जॉन दि बैप्टिस्ट चर्च, काशीमीरा में पुर्तगाली चर्च सेंट जेरोम पोखरण रोड पर स्थित पुर्तगाली चर्च ऑवर लेडी ऑफ़ मर्सी चर्च, डोंगरी उत्तन ऑवर लेडी ऑफ़ बेथलेहम चर्च। ये सारे चर्च सदियों बाद भी अपने स्थापत्य से लोगों को लुभाते हैं।

चर्चों के ऐसे खूबसूरत स्थापत्य और रखरखाव ने मुम्बई को विश्वविख्यात कर दिया है। सदियों पुराने और नए, ऐतिहासिक और पुरातात्विक हर दृष्टि में ये खरे उतरते हैं। वास्तुशैली भी कई प्रकार की और अद्भुत जैसे गोथिक, नियो क्लासिकल आदि। प्रोटेस्टेंट, केथोलिक और मेथडिस्ट चर्च इनके प्रकार हैं। कई चर्च तो स्कूल, कॉलेजसे भी सम्बद्ध हैं। कई के बड़े-बड़े कैंपसऔर लचीली घास वाले मैदान हैं जो कंक्रीट का जंगल हो चुकी मुम्बई में ऐसे लगते हैं जैसे रेगिस्तान में नखलिस्तान। मकबरे और संगमरमरी फलक इन चर्चों की ऐतिहासिकता का परिचय देते हैं। स्टेंड ग्लास, टाइलफ्लोरिंग, पत्थरों और कास्ट आयरन केस्तंभ, लकड़ी के आल्टर्स, फर्नीचर, स्क्रीन, पियानो, वाद्ययंत्रों आदि की वजह से ये चर्च खूबसूरत बन पड़े हैं। इनमें लगे विशाल घंटे काँसे और लेड के बने हैं... कुछ का वज़न तो एक हज़ार किलो तक है और कीमत बीस लाख रुपए तक। इनमें कई घंटे दूसरे देशों से आये धार्मिक और राजनीतिक मेहमानों ने उपहार या दान में दिये हैं। इन घंटों के मेंटनेंस का बहुत अधिक ख़र्च आने के कारण कई चर्चों में अब इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग का इंतज़ाम करा लिया है।