मुम्बई की ख़ास रौनक थे यहाँ के शानदार बँगले / संतोष श्रीवास्तव

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वैसे तो मुम्बई जो किसी ज़माने में हरा भरा नदी, सरोवरऔर समँदर को अपने आगोश में समेटे पूरी दुनिया को आकर्षित करता था, अब विकास के जुनून में कंकरीट के जंगलों में बदलता जा रहा है। बहुमंज़िली इमारतें मॉल, मेट्रो और बढ़ती जनसंख्या इसकी पहचान बन गये हैं लेकिन पारसियों, मारवाड़ियों, पुर्तगालियों और अंग्रेज़ों के कुछ बँगले अब भी यदा कदा मुम्बई की रौनक कहे जा सकते हैं। हालाँकि कई बँगलों ने अब रूप भी बदल लिया है।

मझगाँव में सर जमशेदजी जीजीभॉय मेंशन अब सेल्स टैक्स ऑफ़िस हो गया है। भायखला की लवलेन में पुराने रईस प्रेमचंद रायचंद का 18वीं सदी का राजसी बँगला 'प्रेमोद्यान' जिसका मार्क ट्वेन ने अपने यात्रा संस्मरणों में उल्लेख किया है अब रेजिन पासीस कॉन्वेंट का बालिका अनाथालय हो गया है और हिल रोड बांद्रा का भल्ला हाउस स्कूल बन गया है। पैडर रोड का 'गुलशन महल' फ़िल्मी संग्रहालय है। टर्नर रोड का 'टेहमीटेरेस' , बोरीवली का 'गार्डनस्ट्रीट' , मढ़ मार्वे रोड का 'पूनावाला बंगलो' , 'नायर बंगलो' , 'कुमारविला' और 'बसीननेस्ट' में अब फ़िल्मों की शूटिंग होने लगी है। कई बँगले पुलिस और रेलवे अधिकारियों के आवास हैं।

अल्ट्रामाउंट रोड पर कई एकड़ में फैला पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक का 89 साल पुराने बंगले 'बम्बारसी' में रिचर्ड एट्नबरो की ऐतिहासिक फ़िल्म "गाँधी" की शूटिंग हुई थी। इस बँगले में 1926 में बनी सौर घड़ीहै जो आज भी सूर्य की स्थिति के साथ चलती समय बताती है। 1868 में निर्मित पीतल का विशाल घंटा जो किसी ज़माने में रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को गाड़ी छूटने की सूचना देता था और 1870 में बनी चाभी वाली पाँच फुट ऊँची पेन्डुलम घड़ी विशेष आकर्षण का केन्द्र है।

बांद्रा की पेरी क्रॉस रोड पर 1930 में बना बाग़ बगीचों से घिरा नीलवर्ण बंगला है 'पीस हैवेन' इसे इंग्लैंड के वैलेंटाइन ने अपनी खूबसूरत बीवी को शादी के तोहफ़े के रूप में दिया था। यही नहीं उन्नीसवीं सदी में जब मुम्बई का क्षितिज विक्टोरियन शैली की सरकारी इमारतों से भर रहा था, न्यू गोथिक डिज़ाइन के बहुत से विला और बंगले बने। कालचक्र में कुछ जीर्ण-शीर्ण हो गये और कुछ को कंक्रीट का जंगल निगल गया। बड़े-बड़े उद्योगपतियों टाटा, गोदरेज, रुइया, बिड़ला और अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ ख़ान जैसे सुपरस्टार्स के बंगले पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। लेकिन बाकी शहर गगनचुम्बी इमारतों के माचिस की डिब्बी जैसे फ्लैट्स में रहने को मज़बूर हैं। वह भी इतने महँगे कि शायद उस ज़माने में उतने महँगे दाम चुकाकर तो ये बँगले भी नहीं बने होंगे। मलाबार हिल, कफ़ परेड, मरीन ड्राइव, क्वींस रोड, कंबाला हिल, ब्रीच कैंडी, कोटा चीवाड़ी, माथार पैकेडी और उपनगरों में बांद्रा, सांताक्रुज़, बोरीवली, मालाड में ये बंगले दिखाई देते हैं।

शाहरुख़ ख़ान ने 'विला वियना' मात्र नौ करोड़ में ख़रीदकर उसे मन्नत नाम दिया। बांद्रा बैंड स्टैंड में समुद्र मुखी ये बंगला आकर्षण का केन्द्र है। शांत माहौल, ऊँचे-ऊँचे पैडिस्टल पर बने लिविंग हाउस की ओर जाती खुली, दोहरी व घुमावदार सीढ़ियाँ, मैनिक्योर्ड बागीचे, टेरेस गार्डन व आउट हाउस, लम्बे चौड़े संगमरमरी बरामदे, ऊँची सीलिंग, सजी सँवरी बालकनियाँ, टैरेस, ड्राइव वे, स्टैंड ग्लास, खिड़कियाँ, आर्च और कॉलम, पत्थर, कास्ट, आयरन और बर्मा टीक का बेहतरीन काम... मन्नत के क्या कहने?

मुम्बई में अमिताभ बच्चन के पाँच बंगले हैं लेकिन लोगों के आकर्षण का केन्द्र है जुहू स्थित 'प्रतीक्षा' और 'जलसा' । दस हज़ार वर्ग फीट में फैला 'जलसा' एक दो मंज़िला बंगला है। इसी के पीछे अपनी पोती आराध्या के लिए 60 करोड़ में नया बंगला बनवा रहे हैं अमिताभ बच्चन। आराध्या के बंगले में खेलने के लिए बगीचा और बड़ा-सा लिविंग रूम है जिसमें प्राकृतिक चीज़ों की भरमार है। ये बंगला जलसासे एक खूबसूरत मार्ग द्वारा जुड़ जाता है। उनका एक और बंगला है जुहू स्थित 'जनक' जहाँ वे मीडिया और मेहमानों से मिलते हैं।

बांद्रा के कार्टर रोड में 'आशीर्वाद' बंगले की पहचान अपने ज़माने के सुपर स्टार राजेश खन्ना से है जबकि पहले इसका नाम 'डिम्पल' था और ये राजेन्द्र कुमार का था। राजेश खन्ना की मृत्यु के बाद 'आशीर्वाद' को उद्योगपति शेट्टी ने ख़रीद लिया। पचास साल पुराने इस बंगले की जगह अब मल्टी स्टोरी इमारत बनेगी। 'आशीर्वाद' 6500 वर्ग फीट एरिया का है।

ट्रेज़ेडी किंग दिलीप कुमार और नाज़ुक सायरा बानो का बंगला 'दिलीप कुमार एंड सायरा हाउस' कहलाता है।

शिवाजी पार्क स्थित 'मेयर हाउस' नामक बंगला जिसमें मुम्बई के मेयर (महापौर) रहते थे को अब बाल ठाकरे स्मारक में तब्दील किया जा रहा है।

चौंकाने वाली सच्चाई ये है कि खुद को मीरा, दुर्गा, देवी कहने वाली और ये दावा करने वाली कि उनका ईश्वर से सीधे वार्तालाप होता है और जो पिछले सालों से समाचार चैनलों का मुख्य किरदार हैं ऐसी तथाकथित राधे माँ का मुम्बई के चीकूवाड़ी एरिया में स्थित महलों जैसा बंगला है जिसकी कीमत 250 करोड़ है।

मशहूर उद्योगपति और आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमेन कुमारमंगलम बिड़ला का मुम्बई के मलाबार में स्थित बंगला 'जटिया हाउस' जो कि समुद्र मुखी हैदो मंज़िला है। जिसे उन्होंने 425 करोड़ रुपयों में ख़रीदा था।

भले ही बेतरतीब इमारतों ने महानगर के सौंदर्य को फीका कर दिया है पर आज भी माउंट नैपियन, म्युनिसिपल कमिश्नर बंगलों जैसे बड़े बंगलों का ही नहीं भूलेश्वर, नल बाज़ार, कोटा ची वाड़ी के पुर्तगाली प्रभाव औरपुराने फैशन के बंगलों का सौंदर्य बरकरार है। बंगले के बेडरूम को सड़क से जोड़ने वाली लकड़ी की सीढ़ियाँ यहीं दिखेंगी। तीन सौ साल पुराने मझगाँव गाँवठन में गारे में गुड़ और चीनी डालकर बनाए गये माथेरपाखड़ी के बंगले आज भी उतने की मज़बूत हैं जितने उस ज़माने में थे जब यहाँ से लज़ीज़ आमों के टोकरे भरकर मुगल बादशाहों के दरबार में जाया करते थे।

खुली हवा, फूलों की छटा बिखेरते बगीचे चहारदीवारी से सटे फलों से लदे दरख़्त जिनकी शाखों पर दौड़ती गिलहरियाँ, चहचहाती चिड़ियाँ, कुहुकती कोयल, हरी घास के लॉन पर ख़रगोशों की उछलकूद... माथेरपाखड़ी के बंगले आज भी ऐसे दृश्यों से भरपूर हैं। कोटा ची वाड़ी में डेढ़ सौ साल पुराने भव्य दिव्य डॉयसहाउसकी जगह अबगगनचुम्बीइमारतहै। पहलेयहाँ65बंगलेथे, अब 17 बचे हैं। कमरशिलाइज़ेशन की वजह से बचे हुए बंगलों का भविष्य भी दाँव पर लगा है क्योंकि लगातार हो रहा निर्माण उनकी नींव को कमज़ोर कर रहा है।

बैंड स्टैंड में सूर्यास्त के सुरमई, नारंगी रंगों के मायाजाल में उलझे प्रेमी जोड़े दूर-दूर तक दिखाई दे जाते हैं। विदेशी पर्यटकों को बहुत लुभाता है बैंड-स्टैंड। मुम्बई की पहचान भेलपूरी, नारियल पानी और खारी सींग यानी नमकीन मूँगफली के स्टॉल या टोकरी में भरे बेचते लड़के पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। यहीं जॉगर्स पार्क है जहाँ सुबह शाम योगा करते, दौड़ते, घूमते, साईकल चलाते लोग परवाह भी नहीं करते कि उन्हीं के बीच साईकल चलाता आज का सुपर स्टार सलमान ख़ान भी है। समुद्री लहरों से टकराता बांद्रा फोर्ट आज भी अतीत को दोहराता है... खंडहर बता रहे हैं इमारत बुलंद थी... सत्रहवीं सदी का यह पुर्तगाली किला अब मात्र पत्थरों की ऊँची-ऊँची दीवारों, अहातों, मुँडेरों, बुर्जियों, बारादरी, झरोखे और विशाल द्वार का जीर्ण शीर्ण अवस्था में अपने अतीत की शानदार कहानी कहता नज़र आता है। पत्थरों की दीवारों पर बुर्जियों पर घास उग आई है। एक ओर अरब सागर और बाकी तीन ओर नारियल के पेड़, गगनचुम्बी इमारतें हैं फिर भी काले पत्थर के इस किले की भव्यता के आगे बौनी नज़र आती हैं।

मन्नत से माउंट मेरी चर्च की चढ़ाई शुरू होती है। जो समुद्र सतह से अस्सी फीट की ऊँचाई पर बना है। पहाड़ी अब दिखती नहीं क्योंकि अब वहाँ रहायशी घर आबाद हैं। पहले यह एरिया सुन्दरबन बांद्रा कहलाता था। ऊँचाईकी ओर जाती सड़क पर किनारे लगे दरख़्तों के फूल, जर्द पत्तों का कालीन बिछा रहता है। ऐसा लगता है जैसे किसी पहाड़ी शहर में आ गये हों। शांत, हरा भरा और समुद्री हवाओं से गूँजता सा। वहीं है चर्च जो सौ साल पुराना है। हालाँकि यह पुर्तगालियों द्वारा 1640 में स्थापित किया गया था। काफी समय तक यह एन्शियंट चर्च के नाम से जाना जाता रहा। 1761 में इसका पुनरुद्धार हुआ तब यह 'दि बसालिका ऑफ़ अवर लेडी ऑफ़ दि माउंटेन' नाम से जाना गया। लेकिन अब यह रोमन कैथलिक बसलिका यानी माउंट मेरी चर्च नाम से जाना जाता है। यह वर्जिन मेरी को समर्पित है। कहते हैं कोली मछुआरे को वर्जिन मेरी की मूर्ति समुद्र में तैरती नज़र आई थी जिसे उसने यहाँ लाकर स्थापित किया था। यह अंग्रेज़ी स्थापत्य का बेहतरीन नमूना है जिसको सीढ़ियाँ चढ़कर अंदर प्रवेश करते ही चर्च की भव्यता का एहसास होता है। ऊँची-ऊँची दीवारें और प्रार्थना गृह फ्रांसीसी सभ्यता का एहसास कराता है। सामने क्रॉस पर प्रभु यीशु और उन्हें दुलारती मदर मेरी। 8सितम्बर को वर्जिन मेरी का जन्मदिन मनाया जाता है जो पूरे एक हफ़्ते चलता है। इसे'बांद्रा फेयर' कहते हैं। हज़ारों लोगों की भीड़ से यह इलाका सप्ताह भर चहल पहल से भरा रहता है। मेले में तरह-तरह की चीज़ों के स्टॉल तो लगते ही हैं। विशेष तौर पर मानव अंगों की आकृति के आधार पर बनाई मोमबत्तियाँ मेले का आकर्षण रहती हैं। इन्हें ख़रीदकर श्रद्धालु सड़क के उस पार मदर मेरी की मूर्ति के सामने जलाते हैं। यह मूर्ति कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर ऊँचाई पर स्थित है। सीढ़ियाँ मूर्ति के दोनोंओर बनी हैं। एक तरफ़ से लोग चढ़ते हैं, दूसरी ओर से उतरते हैं। ऊँचाई से दिखते समँदर का खूबसूरत नज़ारा देखते ही बनता है। बाकी के दिनों में यह इलाका बेहद शांत रहता है।

बांद्रा में फादर एन्जिल चर्च और लिंकिंग रोड मार्केट भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। लिंकिंग रोड मार्केट शॉपिंग के लिए बहुत सारी वेरायटी और वाजिब दामों वाला बाज़ार माना जाता है ख़ास कर लेडीज़ कपड़े, जूलरी, सैंडिल आदि के लिए मशहूर है।