मुम्बई की नाइट लाइफ़ / संतोष श्रीवास्तव
मुम्बई कभी सोती नहीं। उसकी नाइटलाइफ़ के बारे में यही कहा जाता है। मुझे याद आ रहाहै
'मुम्बई रात की बाहों में'। एथेना, लश, पॉइजन, वेलोसिटी, अजियानो, व्हाइट, इन्सोम्निया और इनिग्मा के डांस फ्लोर्स, कॉफ़ी शॉप्स और बार्स रात भर गुलज़ार रहते थे। इन्हीं में से तय किया जाता था पार्टी का कांसेप्ट, थीम्स। लेकिन आतंकी घटनाओं के कारण शहर जल्दी सोने लगा है। पार्टी का कांसेप्ट भी बदल गया है। उनकी जगह अब पब और रेव पार्टी ने ले ली है। शहर के परिदृश्य पर परेल जैसे नए हॉटस्पॉट्स उग आए. लोग अब पार्टी में केवल शराबखोरी और कैबरे के लिए नहीं, म्यूज़िक और सोशलाइज़िंग के लिए जाने लगे। उनकी इस ज़रुरत की पूर्ति की माइक नाइट्स और लाइव म्यूज़िक वेन्यूज़ ने। लेकिन पुरानी जगहों पर अब भी फ़िल्मी पार्टियाँ सुबह 5 बजे तक चलती हैं।
अब मुम्बई के ट्रेवलर्स रात के लिए विशेष पैकेज देते हैं जिसमें साइकल टूर्स बहुत लोकप्रिय है। दिन भर बसों, कारों, ट्रकों, ठेलागाड़ियों, ऑटो औरटैंकर्स, बाइक आदि वाहनों की ठेलमठेल में, आवाजाही में जोमुम्बई ढंग से साँस भी नहीं ले पाती वही रात को निखर उठती है। कोलाबा कॉज़वे से बांद्रा बैंडस्टैंड तक 20 किलोमीटर के इस टूर में शामिल युवा वर्ग का कहना है कि समुद्र से उठती हवाके मस्त झोंकों के बीच सुबह की भागमभाग में देखा शहर सुस्त रातों में बिल्कुल अलग ही दिखता है। अरब सागर की सरगोशियाँ ज़्यादा नटखट हो जाती हैं, दूर से आती लाँग ड्राइवके लिए निकली कारें रोशनी का पुंज लगतीहैं। ओह, मुम्बई कितनी जवान, कितनी हसीन नज़र आती है।
नाइट लाइफ़ का एक और रूप है। अक्सर नाइट शिफ़्ट में कार्यालयों में काम होता है। ऐसे में चाय की तलब अगर बेचैन करे तो अँधेरी पश्चिम में स्टेशन के बाहर खूब गाढ़ी, कड़क चाय मिल जायेगी साथ में स्पेशल भुर्जी पाँव भी। घाटकोपर के जे बी सागर का तवा पुलाव, गिरगाँव चौपाटी की भेल, कोलाबाके बड़े मियाँ, मरीन ड्राइव पर भारत डेरी एंड जूस सेंटर, क्राफर्ड मार्केट का जाफ़रान, मोहम्मद अली रोड का कबाब कीमा कई ऐसे ठिकाने हैं जहाँ नाइट शिफ़्ट वाले अपनी भूख शांत करते हैं। घाटकोपर में सँकरी खाऊ गली है जहाँ की फ्रेंकी हाथों हाथ बिक जाती है। बोरीवली की कल्पतरु लेन दाबेली, फनरिपब्लिक, अँधेरी की गली आलू के परांठे और छाछ और बांद्रा की गली सिगड़ी पंजाबी डिशेज़ के लिए मशहूर है। घाटकोपर की सिंधु वाड़ी वेजीटेरियन गुजराती और मारवाड़ियों की पसंद है। मालाड की खाऊ गली यहाँ की बी पी ओ और कॉल सेंटर्स इंडस्ट्री की खुराक है। ये खाऊ गलियाँ अमीर ग़रीब का फ़र्क़ नहींकरतीं, न ही मौसम इनके आड़े आता है। ऑपेराहाउस, जुहू, विले-पार्ले, अँधेरी, चर्चगेट, लोअर परेल हर जगह ऐसी खाऊ गलियाँ हैं। रेलवे स्टेशनों के पास होने से ज़ाहिर है उनके ज़्यादातर ग्राहक लोकल यात्री हैं पर मज़दूर, विद्यार्थी, ऑफ़िस और फैक्टरी एम्पलाईज़, बार गर्ल्स, सेक्स वर्कर्स भी हैं। जहाँ ये गलियाँ नहीं हैं वहाँ ठेलों और साइकल पर अंडा-भुर्जी, वडापाव, सैंडविच, पावभाजी, चायनीज़की चलती फिरती दुकानें हैं। मुम्बई-कर अपने दोस्तों और परिवार के साथ यहाँ आते हैं। वीकेंड्स की रौनक का पूछ नाही क्या? दरअसल खान-पान उद्योग मुम्बई का सबसे बड़ा रोज़गार दाता ही नहीं यहाँ की वास्तविक नाइट लाइफ़ का एक हिस्सा भी है। यहाँ के कुल एक लाख हॉकर्स में 40 प्रतिशत की जीविका यही है। मुम्बई में बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो रात का खाना बाहर ही खाते हैं।
फास्टफूड संस्कृति मुम्बई की ही देन है। हर मुम्बई कर को पैसा कमाने का जुनून है इसीलिए अन्य प्रदेशों से भी लोग मुम्बई का ही रुख करते हैं... दिन रात मेहनत... काम ही काम... थकना तो जानते ही नहीं। लंच का समय होते ही ऑफ़िसों से निकलकर पूरी मुम्बई फास्टफूड स्टॉलों को घेर लेती है। चायनीज़ भोजन जहाँ ज़रुरत बनता जा रहा है वहीं मज़दूरों के लिए झुणका भाखर केवल चार रुपए में उपलब्ध कराना मुम्बई की ही औकात है। मुम्बई हर प्रदेश के ज़ायकेदार खाने के लिए प्रसिद्ध है। पारसी धान-शाक, गुजराती थाली, मुस्लिम कबाब, राजस्थानी दालबाटी चूरमा, गोआनी बिंडालू, पंजाबी तंदूरी स्पेशल, मुग़लई स्पेशल, इटालियन, मैक्सिकन, थाईफूड, ओरियंटल फूड, सब कुछ सड़क के किनारे लगे स्टॉल्स से लेकर पंच सितारा होटल तक हर जगह मिलता है। हर बजट के लोगों के ज़ायके दार पसंदीदा व्यंजन खिलाना मुम्बई की ही ज़िद्द है। वैसे मुम्बई के स्ट्रीट फूड में भेलपूरी सबसे अधिक प्रसिद्ध है। कुछ रेस्तरां तो अपनी ख़ास डिशेज़ के लिए ही जाने जाते हैं। दादर का इंडस किचिन गोवानी और तंदूरी भोजन के लिए प्रसिद्ध है तो चर्नी रोड का गोल्डन स्टार गुजराती और राजस्थानी स्पेशल थाली के लिए, अँधेरी लोखंडवाला का ताल ग्रास स्पेशल मुग़लई लंच, डिनर के लिए, नाना चौक का गोल्डन क्राउन-सी फूड के लिए, चौपाटी का क्रीम सेंटर छोले भटूरे और हरी मटर की ज़ायकेदार गुझिया के लिए. चर्चगेट का स्टारटर्स एंड मोर बुफ़े लंच के लिए, ताड़देव का स्वाति स्नैक्स दाल ढोकली के लिए, कोलाबा का तेंदुलकर्स बैंगन के भरते के लिए, बाबुलनाथ का सोम पूरनपोली, कढ़ी और गट्टे की सब्ज़ी के लिए, गिरगाँव चौपाटी का क्रिस्टल राजमा, चावल और ख़ीरके लिए और चर्नी रोड का आइस्क्रीम सेंटर हाथ से बनी (हैंड मेड) कुल्फ़ी और अदरक की आइस्क्रीम के लिए लोगों की ज़बान पर चढ़ा है। आइस्क्रीम सेंटर का तो ये हाल है कि आभिजात्य वर्ग की कारें रात के एक बजे तक आइस्क्रीम के लिए लाइन लगाए रहती हैं... इनमें ज़्यादातर सेठ वर्ग (हीरे, चाँदी, सोने के व्यापारी जो रात 12 बजे घर लौटते हैं) या फ़िल्मी जगत की हस्तियाँ होती हैं जिनके लिए रात सोने का नाम नहीं बल्कि सड़कों पर मस्ती करने का नाम है। तभी तो कहते हैं मुम्बई कभी सोती नहीं। रात में मुम्बई के नूर के क्या कहने?