मुम्बई के खूबसूरत समुद्र तट / संतोष श्रीवास्तव
मुम्बई के खूबसूरत समुद्र तट, जहाँ समुद्र बतियाता है हमसे
जब भी वर्ली-सी लिंक से गुज़रती हूँ लगता है समँदर मेरा हमसफ़र है। नजाने मुझसे कहाँ-कहाँ की सैर करा देता है। न जाने कितने तटों पर बैठाकर अपनी लहरों से मुझे छूता है, बतियाता है। मानो कह रहा हो... मैं तुम्हारी हँसी में समा जाना चाहता हूँ। हवा की तरह भर जाना चाहता हूँ तुममें। उड़ा देना चाहता हूँ तुममें जमा दुख-पीड़ा... मैं अचकचा जाती हूँ। याद आता है जुहू सागर तट जो मेरे मुम्बई आगमन का पहला साक्षी है। मुझे जुहू सागर के हृदय में समाता सूरज का नारंगी गोला देखना था। केवल पंद्रह मिनट बाकी थे सूर्यास्त के और टैक्सी ट्रैफ़िक खुलने की बाट जोह रही थी। और मानो समँदर पुकार उठा कि जैसे खिंची चली गई मैं... जल्दी-जल्दी रेतीले तट पर पहुँची कि पूरा क्षितिज सुनहला, नारंगी, सलेटी रंगों से सराबोर हो उठा। धीरेधीरे सूरज विशाल सागर की बाँहों में समा गया। मुम्बई में सागर के इस प्रथम दर्शन ने मुझे लुभा लिया... दूर-दूर तक फैले तट पर झूमते नारियल वृक्ष... इक्का दुक्का घोड़ों में सागर से होड़ लेने घुड़सवारी करते अमीरज़ादे या पर्यटक... भेलपूरी, नारियल पानी, खारी सींग (मूँगफली) चना की टोकरी गलेसे लटकाये लड़के... और इस सबके बीच रेत पर तरह-तरह की कलाकृतियाँ रचता कलाकार... मेरे देखते ही देखते उसने रेत पर राधाकृष्ण को उकेर कर जीवंत किया। ओह... लाजवाब... लगताजैसे कृष्ण अभी राधे-राधे पुकार पड़ेंगे। मुम्बई की यह रेत कला अद्भुत है।
मालाड के करीब है अक्सा बीच। पामवृक्षों की यकसां कतार को छू-छू कर हवा सन्नाटे को चीरती मुझे भी मानो संग-संग बहा ले जाने को आतुर थी। निर्जन तट पर सागर की गरजती लहरें टकरातीं तो लगता न जाने कौन-सा इतिहास सुना डालने को आतुर हैं। सैलानी सिर्फ़ तट पर चहलकदमी कर रहे थे, कोई तैर नहीं रहा था। मनचली लहरों का आक्रामक रवैया तैराकों के कदम वापिस लौटा रहा था। अक्सा से मड आयलैंड की ओर चलने पर तीन-चार किलोमीटर के बादएक छोटी-सी पहाड़ी है जिससे नीचे उतरते ही खूबसूरत एरंगल तट है। अक्सा जैसा ही निर्जन। इक्का दुक्का सैलानियों के अलावा तट पर भागते केकड़ों और सागर लहरों की ही हलचल थी। यहाँ पाँच सौ वर्ष पुराने किले के खंडहर हैं जिनकाइतिहास समय की परतों के नीचे दबा पड़ा है। बम्बई का हर तट दूसरे तट से मेल नहीं खाता। एरंगल तट से चार कि।मी। की दूरी पार कर मड जेट्टी की ओर चलने परमड चर्च दिखाई देता है। चर्च के सामने ही मड बीच है। यहाँ हरियाली बहुतअधिक है। जिससेयहाँ की शोभा द्विगणित है। यहाँ पेड़ों के बीच टेंट बने हैं। मन तो था कि इन टेंट्स में एक दो रातें गुज़ारी जाएँ और अर्धरात्रि के समँदर का निराला रूप देखा जाए पर समय नहीं था। अगर वहाँ रूकती तो एक अलग अनुभूति का आभास होता।
मालाड से ही मार्वे आकर और फिर फेरी से उस पार पहुँचकर ताँगे से मनोरी और गोराई बीच तक की सैर एक अद्भुत सफ़र है। गोराई पहुँच कर लगा जैसे समय पीछे लौट गया हो जब नगर आबाद नहीं हुए थे और जब बम्बई सिर्फ़ मछुआरों की थी। मछली की तेज़ गंध ने आभास दिला दिया था कि यह सम्पूर्ण इलाका मात्र मछुआरों का है। रास्ते के दोनों ओर बाँस से बँधी रस्सियों पर कतार से सूखती मछलियाँ। आगे चलकर तट पर कैसुआरिना के लम्बे-लम्बे वृक्ष और पाम वृक्षों की सघनता मन मोह रही थी। यहाँ तैरना जोखिम भरा है। सागर काफी दूर तक सपाट दिखाई देता है। गहराई और उथलापन पता नहीं चलता।
मनोरी सागर तट मछुआरों की बस्ती से हटकर है। यहाँ बने कॉटेज मन मोह लेते हैं। सागर किनारे रात बिताने की चाह इन कॉटेजों में और भी रोमेंटिक हो जाती है। निर्जन रात में सागर कुछ कहता-सा जान पड़ता है। सदियों से सागर अपने अंदर कितनी कहानियाँ समेटे बह रहा है, कितनी घटनाओं का साक्षी है वह।
अब बम्बई और भी विस्तृत होता जा रहा है। जो गाँव उपनगर पहले अपना अलग अस्तित्व रखते थे अब वे भी बम्बई में समाते जा रहे हैं। ऐसा ही खूबसूरत और अनछुआ सागर तट है दहाणु। यहाँ आकर बुक शील्ड और क्रिस्टोफ़र एटकिन का ब्लूलैगन आँखों के सामने से फ़िल्म की रील की तरह गुज़र जाता है। गहरी भरी रेत पानी की सतह के क़रीब कुछ सख़्त-सी है। ऐसा लगता है जैसे रेत की घाटी पहाड़ से पानी तक उतर गई हो। रेतीला फिसलन जैसी आकृति का कटाव जिस परसमंदर की फेन भरी लहरें आकर टकरा-टकरा जाती हैं। पीछे की ओर कैसुआरिना और मेन्ग्रोव्ज़ की उठी हुई जड़ों वाले पेड़ों के झुरमुट से गुज़रती हवा समुद्री संगीत सुनाती है। बेहद खूबसूरत है दहाणु... विरार से कुछ ही दूरी पर स्थित दहाणु चीकुओंके लिए प्रसिद्ध है। चीकू के बड़े-बड़े बगीचे, आम और किवी के फॉर्म हाउस हैं। ये फॉर्म हाउस धनाढ्य वर्ग, उद्योगपति और फ़िल्मी हस्तियों के हैं। चीकू के विशाल उद्यान में टेंट हाउस में रात बिताना और डाकबंगले और रेस्टॉरेंट में जाकर ज़ायक़ेदार, लज़ीज़ भोजन करना कुछ देर के लिए भुला देता है कि बम्बई आपाधापी भरा शहर है। सुबह उठकर दूर-दूर तक फैले सफ़ेद बालू के सागर तट पर घूमना बहुत अच्छा लगता है। विण्ड सर्फिंग के लिए यह एक आदर्श स्थान है क्योंकि यहाँ हवा का बहाव पचास से साठ कि। मी। प्रतिघण्टा रहता है। वैसे सर्फिंग के लिए अपना उपकरण हो तो यहीं उत्तर में घोलवाड़ तट तक मज़े से विन्ड सर्फिंग की जा सकती है।
दहाणु पारसियों की काफी पुरानी बस्ती के रूप में प्रसिद्ध है। 1400 वर्ष पहले जो सबसे पहला पारसी जोरस्टियुम परिवार यहाँ आकर बसा था उसके अवशेष अब भी वरासद हिल्स की गुफ़ा में पवित्र अग्नि के रूप में हैं।
अलीबाग, नाम सुनकर लगा था जैसे किसी मुस्लिम शासक द्वारा बनवाया कोई बाग होगा लेकिन यह भी एक समुद्र तट ही है। दूर-दूर तक फैले तट पर कैसुआरिना और नारियल के दरख़्त समुद्री हवाओं से अठखेलियाँ कर रहे थे। यहाँ अली बाग नामक एक किला है जिसके आसपास चट्टानें ही चट्टानें हैं। समुद्र के बीच में कोलाबा फोर्ट है। जब समुद्र में ज्वार रहता है तो कोलाबा फोर्ट पानी के बीच जहाज-सा तैरता नज़र आता है लेकिन हम तो पैदल चल कर गये थे क्योंकि तब समुद्र में भाटा था, लहरें पीछे लौट गई थीं। पिछले तीन सौ वर्षों से यह फोर्ट समुद्र की लहरों के नमकीन थपेड़े झेल रहा है फिर भी इसका आधार स्तंभ जैसे का तैसा है। अंदर मंदिर भी है जिसमें गणपति, महादेव और मारुति की मूर्तियाँ हैं। मुख्य भूमि पर हीरा कोट किला है इसे 1782 में मराठा सरदार आंग्रे ने बनवाया था। अब यहाँ कारावास है। जिसका ऐतिहासिक महत्त्व है।
अलीबाग से आठ कि। मी। उत्तर की ओर किहिम समुद्र तट है। यह समुद्र तट लम्बी समुद्र रेखा के लिए प्रसिद्ध है। सफेद रेत और लाल मिट्टी के बीच कैसुआरिना के दरख़्त और मेन्ग्रोव्ज़ के झुरमुट मन मोह लेते हैं। किहिम आकर लगा जैसे यहाँ के माहौल में मंत्रमुग्ध करने और जीने के लिए भरपूर जोश भरने की अद्भुत कला है। समुद्र तट पर नारियल के पेड़ों के बीच टेन्ट बने हैं। लगता है जैसे सैनिकों ने पड़ाव डाला हो। आधुनिक सुविधाओं से युक्त इन टेन्टों में प्रकृति के नज़दीक खूबसूरत पलों को गुज़ारना अपने आप में एक बेहतरीन दिन रात होगी, निश्चय ही।
किहिम के समीप ही कणकेश्वर हिल है। पत्थर की 750 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, भगवान शिव के प्राचीन मंदिर तक जाने के लिए.
बंबई तीन ओर से समुद्र तटों से घिरा महानगर है। मुख्य हिस्सों से थोड़ी दूरी पर है मुरुड का पाम वृक्षों से आच्छादित समुद्र तट। विशाल जलराशि के ऐन बीचों बीच किला है जो जंजीरा किला कहलाता है। यह सत्रहवीं शताब्दी में बना था और हमेशा अपराजेय रहा। किले तक पहुँचने के लिए हमनेराजपुरीसे बोट ली थी। न जाने कैसे बनाया गया होगा समुद्र के बीच यह किला। मुरुड तट पर कहीं-कहींबेतरतीब फैली चट्टानें भी हैं जो कुछ ही हिस्सों में हैं। बाकी जगहों से लोग आराम से तैराकी, गोताखोरी कर रहे थे। मुरुडके नज़दीक नवाब का महल, दत्त मंदिर खासा किला दर्शनीयहैं।
मुम्बई के आसपास के क्षेत्रों में ढेरों समुद्र तट हैं और ख़ासियत ये कि एक समुद्र तट दूसरे समुद्र तट से बिल्कुल अलहदा है। मुम्बई से 60 कि। मी। के फासले पर बेसिन समुद्र तट है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ ऐतिहासिकऔर धार्मिक संगम स्थलहै। कुछ तो ऐसे अनछुए तट हैं जहाँ पहुँचकर प्रकृति से सीधा साक्षात्कार होता है। उन्हीं में से एक है गणपति पूल तट। तट के किनारों की मिट्टी लाल है जिसमें उगी हरियाली मन मोह लेती है। सुबह शाम सूरज की रोशनी से नहाया यह तट नारियल और सुपारी के वृक्षों और भी अनेक प्रकार के वृक्षों से घिरा बेहद आकर्षक लगता है। किनारे की मिट्टी लाल है पर पूरे तट पर बिखरी चाँदी-सी रेत है जो सूरज की किरणों में झिलमिलाती रहती है। ऐसी ही सफेद रेत और बेहद साफ़ पानी वाला सागर तट है "हरनाइ तट" ... तट पर पाम वृक्ष हवा में झूमते रहते हैं। तट के उत्तर में हरनाइकिला है। किले की हर ईंट, हर पत्थर यहाँ शासन करने वाले महान राजाओं का गरिमामय वर्णन कहते से लगते हैं।
मुम्बई के उत्तर पश्चिम में अद्भुत विशेषता वाला एक तट 'माधद्वीप तट' है। इसकी विशेषता है यहाँ की ग्रामीण पृष्ठभूमि जो उन बंगलों से एकदम विपरीत है जो यहाँ कतार में दिखलाई देते हैं। श्रीवर्धन हरि हरेश्वर तट की विशेषता है यहाँ की ठंडी हवाएँ जो इसकी नरम रेत पर घूमते हुए मन को तरोताज़ा कर देती हैं। यहाँ का सागर आमंत्रण देता-सा लगता है। यहाँ पेशवा स्मारक और हरिहरेश्वर मंदिर तो देखने लायक हैही साथ ही यहाँ स्टॉलों पर कई किस्म के व्यंजन भी मिलते हैं।
तर्करली तट तो मानो पूरी पृथ्वी का ही अनछुआ तट है। यहाँ की सुंदरता भी अद्भुत, अछूती है। सागर चमकदार नीले पानी वाला है। कतारबद्ध पेड़ों से घिरा संकरा और लम्बा तट है। यहाँ भाटा आने पर 20 फीट की गहराई तक समुद्र दिखलाई देता है।
तैराकी के लिए प्रसिद्ध है वेलनेश्वर तट जहाँ शिवमंदिर भी है और सफेद बालू से भरे तट पर नारियल के पेड़ हैं।
जुहू तट के उत्तर में वरसोवा तट है। इसी तट पर मछुआरों की नौका में बैठकर सागर की उत्ताल तरंगों पर डोलती नौका में किसी तरह संतुलन बनाकर मैंने अपने पति के अस्थिपुष्प विसर्जित किये थे।
वेंगुरला, मालवान तट भी सफेद रेत वाले सागर तट हैं। यहाँ देवी सतेरी मंदिर और रामेश्वर मंदिर हैं। तटपर काजू, नारियल, कटहल, आमके पेड़ हैं। इन सब तटों में मुम्बईवासी और पर्यटक कम ही जाते हैं... ज़्यादातर दादर बीच, माहिम बीच, वर्ली बीच, मार्वे बीच, मानेरी बीच, गोराई बीच पर ही पर्यटकों की भीड़रहती है। ये सारे प्रदूषण से मुक्त शांत समुद्री तट हैं। अक़्सर चाँदनी रात में यहाँ खूब पार्टियाँ होती हैं।