मुम्बई तेरे क्या कहने / संतोष श्रीवास्तव
मुम्बई बड़े दिलवाली है, सुनहले सपनों की खान है। सबको अपने मेंसमेट भी लेती है और सपनों को सच करने का रास्ता भी दिखाती है। मुम्बई ने न जाने कितने गाँवों को अपने में समेट लिया है जो आते तो ठाणे, अलीगढ़, डोंबीवली, कल्याण में हैं पर उनके सूत्र मुम्बई से जुड़े हैं। कुर्ला से आगे विद्याविहार, घाटकोपर, सानवाड़ा, विक्रोली, कांजुर मार्ग, भांडुप, मुलुंड, ठाणे, भिवंडी, नेरल, कर्जत और फिर इसतरफ़ नवी मुम्बई, वाशी, नेरुल, बेलापुर... इनको जोड़ता है ठाणे क्रीक, बृहन्मुम्बई. तीन तरफ लहराता सागर, जंगल (फॉरेस्टएरिया) किले, नेचरपार्क, निरंतर मुम्बई की ओर खिंचती ज़मीनें... चट्टानी हों या भुरभुरी... बिल्डर ख़रीदकर गगनचुम्बी इमारतें खड़ी कर रहे हैं जिनमें अथाह पैसे वालों का अपना 'डुप्ले' संसार है।
येऊर और पारसिक पहाड़ियों से घिरा मुम्बई का ठाणे जिला जिसके अंतर्गत अन्य गाँवों के अलावा विरार से दहिसर तक का इलाका आता है पहले मुम्बई का आवासीय उपनगर था। झीलों का शहर ठाणे बेहद खूबसूरत शहर है जिसके 150 वर्ग कि। मी। से एरिया में 35 झीलें हैं। ठाणे को पहले संघानक नाम से भी जाना जाता था। यह मुम्बई के उत्तर पूर्व में स्थित है। 24 लाख की आबादी वाला ठाणे सालसेटे द्वीप पर समुद्र तल से सात मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यही वह जगह है जहाँ मुम्बई ठाणे के बीच पहली रेल पटरी बिछाई गई और 16 अप्रैल 1853 को दोपहर 3.35 बजे ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे की पहली रेल बोरीबंदर से ठाणे के लिये रवाना हुई. यहाँ का ठाणे कोल पुल भारत का पहला रेल पुल है। 1863 में ठाणे को पहला नगर परिषद मिला।
ठाणे जिला वसई और ठाणे की खाड़ियों पर से होता हुआ मुख्य उपनगरों यानी मुम्बई की ओर दहिसर तक फैला है। ठाणे शहर में कई शिक्षण केन्द्र, स्कूल, कॉलेज औरअल्फ़ा अक़ादमीहै। यहाँ रसायन इंजीनियरिंगउत्पाद एवं वस्त्रका विशाल औद्योगिक केन्द्र भी है।
सभी झीलों में सबसे खूबसूरत मसुंदा झील है जिसके तट पर चिमाजी अप्पा द्वारा बनवाया गया कोपिनेश्वर मंदिर है जो 6 मंदिरों का समूह है। पाँच फीट ऊँचा शिवलिंग ब्रह्मा, राम, उत्तरेश्वर, शीतला देवी तथाकालिका देवी के मंदिर हैं। मसुंदाको स्थानीय लोगतलाव पल्ली कहते हैं। यहाँ नौका विहार और वॉटर गेम्सबहुत प्रचलित हैं। येऊर पहाड़ियों और नीलकंठ हाइट्स के बीच स्थित उनवन झील बहुत सुंदर है। हर-हर गंगे झरना भारत का सबसे बड़ा और कृत्रिम झरना है। गुज़रो तो हवाएँ बूँदों की सौगात देती हैं। अम्बरनाथ मंदिर हेमंदवा थी शैली में बना है। इतिहास प्रेमियों के लिए बेसिन फोर्ट और जवाहर पैलेस है। पहाड़ी की चोटी पर मुम्ब्रा देवी मंदिर है जिसे 17वीं सदी में यहाँ के मूल निवासी (आदिवासी भी और मछुआरे भी) कोली और आगरियों ने बनवाया। पहले यहाँ गाँव था अब ठाणे शहर ने इस गाँव का रंगरूप बदल डाला। इस पहाड़ी का नाम पारसी हिल है। पारसी हिल पर 210 मीटर की ऊँचाई पर यह मंदिर बना है। ट्रेकिंग करते हुए जाने में आसपास की खूबसूरत प्रकृति रोमाँचित करती है।
ठाणे क्रीक में पानी खूबसूरती से गिरते हुए मानो लेट-सा गया है। किनारों पर चिड़ियों के झुंड शोर मचाते हुए फुदकते हमें प्रकृति के करीब ले जाते हैं। आधुनिक सुविधाएँ भले ही शरीर को आराम दें पर खुशी तो प्रकृति में उतरने से ही मिलती है।
घोड़बंदर फोर्ट जिसे पुर्तगालियों ने बनवाया, ये ऊरपहाड़ियों से घिरा जंगल जहाँ जंगली जानवरों के झुंड विचरण करते हैं, संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान, ये सब ठाणे जिले के रुचिकर पर्यटन स्थल हैं। यहाँ के सूरज वॉटर पार्क ने अपनी खूबसूरती की वजह से पाँच बार लिम्का बुक में नाम दर्ज़ कराया और कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते। इस वॉटर पार्क को मुचला मैजिक लैंड प्राइवेट लिमिटेड ने बनवाया। इसका डिज़ाइन व्हाइट वॉटर वेस्ट इंडस्ट्रीज़ ऑफ़ कनाडा ने तैयार किया। यह 1992 में बनकर तैयार हुआ।
ठाणे में टीकूजी नीवाड़ी है। जो एम्यूज़मेन्ट, रिक्रिएशन और थीम पार्क है। विशाल परिसर में फैला यह पार्क बहुउद्देशीय है। मसलन यहाँ रिसॉर्ट, पार्टीहॉल, शादी के लिए हॉल, हर तरह के व्यंजन के सुस्वाद रेस्तरां भी हैं, वॉटर पार्क भी है। ड्रायऔर वेट राइड्स हैं और जंगल और गाँव भी साकार हुआ है। बैलगाड़ी है। खाट पर दरी बिछी है जो अमराई में और चीकू, अमरुद के उद्यान में आराम से बैठकर ताज़ी हवा में बातें करने को आमंत्रित करती है। शिवजी के भक्तों के लिए शिव मंदिर है। जंगल में नज़रें घुमायेंगे या चहलकदमी करेंगे तो कहीं भागते हिरन, शेर मिलेंगे पर असली का आभास देते सब नकली। नकलीपन में भी वे पर्यटकों को तो लुभा ही लेते हैं।
जो टीकूजी नी वाड़ी तक पहुँच जाते हैं वे फिर कल्याण के पास चोखी ढाणी जाना नहीं भूलते। हालाँकि ये इलाका मुम्बई में नहीं आता पर मुम्बई का अपना मिजाज है। न वह दूरियाँ देखती है, न थकती है। चरैवेति के सिद्धांत का पालन करने वाली मुम्बई हमेशा चलती रहती है। चोखी ढाणी राजस्थानी थीम पर बना एक ऐसा स्थान है जिसकी प्रेरणा जयपुर स्थित चोखीढाणी से ली गई है। बहुत बड़े परिसर में राजस्थानी गाँवसा बसा है। गेट से प्रवेश टिकट लेकर अंदर पहुँचकर मुझे लगा जैसे मैं राजस्थान भ्रमण पर हूँ। कुछ लोग ऊँट पर सवारी कर रहे थे, ऊँट दौड़ रहा था ज़मीन पर बिछी रेत पर। एक जगह कुम्हार अपना चक्र चलाकर मिट्टी के बर्तनों का डिमाँस्ट्रेशन दे रहा था। कहीं दस बारह साल का लड़का पतली पाइप पर चढ़कर करतब दिखा रहा था, कहीं राजस्थानी नृत्य करते युवा थे तो कहीं घूमर नृत्य और सिर पर 7 या 9 घड़े रखकर नाचती राजस्थानी महिलाएँ। थीम के अनुसार कच्चे घरों की दीवार पर चित्र उकेरे हुए. ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी फ़िल्मी लोकेशन पर हूँ और यह पूरा सैट, सरंजाम शूटिंग के लिए तैयार किया है। पूरी राजस्थानी संस्कृति वहाँ ठहर गई थी।
पुरुषों को सिर पर पगड़ी बाँधकर आसनी पर बैठा कर सामने रखी चौकी पर छप्पन भोजन परोसे जा रहे थे। राजस्थानी घाघरा और ज़ेवर पहन कर मैंने भी पारम्परिक तरीके से बेहद स्वादिष्ट भोजन किया। भोजन के बादपानभी... कुल्फ़ी भी। ठेठ राजस्थानी स्वाद की कुल्फ़ी थी जैसी मैंने झुँझुनू में खाई थी।
पूरा परिसर राजस्थानी गीतों से गूँज रहा था। मुम्बई आने वाला हर पर्यटक चोखीढाणी ज़रूर आता है। विदेशी पर्यटक ऊँट पर सवारी करना बहुत पसंद करते हैं।