मोहन मुक्त
जन्म | |
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उपनाम | Mohan Arya |
जन्म स्थान | गंगोलीहाट, पिथौरागढ़, उत्तराखण्ड, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
हिमालय दलित है, हम ख़त्म करेंगे ( दोनों कविता-संग्रह) | |
विविध | |
’हिमालय दलित है' मोहन मुक्त का पहला कविता संग्रह है । संग्रह की कविताएँ धधकते लावे की तरह हैं ।
यहाँ तक कि कवि की प्रेम कविताओं से भी एक आँच निकलती है । ऐसे लगता है कि कवि किसी ज्वालामुखी के दहाने पर बैठा है और ख़ुद उसके भीतर एक ज्वालामुखी धधक रहा है । जो कोई भी इस ज्वालामुखी से गुज़रेगा, इस ज्वालामुखी की धधकती आँच और ताप को महसूस करेगा । ये कविताएँ हिन्दी कविता की अब तक की परम्परागत सम्वेदना से भिन्न, चीज़ों को देखने का बिल्कुल ही नया विश्व दृष्टिकोण और इस सबको प्रस्तुत करने के लिए नए शिल्प और नई भाषा के लिए कवि की जद्दोजहद को सामने लाती हैं । कवि हिन्दी कविता के अब तक के सभी मुहावरों को उलट देता है । बिल्कुल नई दृष्टि और नए प्रतीक लेकर उपस्थित होता है, जिसके चलते इन कविताओं को हिन्दी कविता की अब तक प्रचलित किसी धारा में समाहित कर पाना मुश्किल है । 'हिमालय दलित है' के बाद मोहन मुक्त का कविता संग्रह ‘हम ख़त्म करेंगे’ प्रतिरोध की परम्परा का विस्तार है जो वर्चस्व की जड़ों को पहचानने और उखाड़ने की प्रक्रिया में गढ़ी गयी अभिव्यक्ति के रूप में सामने आया है। दमितों, वंचितों और ग़रीबों के जीवन के यथार्थ को अलग-अलग कोणों से कविता का रूप देकर कवि ने ठोस सच्चाई से अपना पक्ष रखा है। समस्त सत्ताओं का निषेध करती ये कविताएँ प्रत्येक इन्सान की स्वतन्त्रता की हिमायती हैं। उपेक्षित और उत्पीड़ित क़ौम जब अपनी बात कहने के लिए खड़ी होती है तो साहसिक और मज़बूत अभिव्यक्ति के प्रभाव से बचा नहीं जा सकता। यह कविता-संग्रह सम्पूर्णता में पहाड़ की सच्चाई और मैदान के उपजाऊपन का बयान है, जिसमें देशीयता और सार्वभामिकता साथ-साथ दिखती हैं। ध्वंस और निर्माण की भौतिक ज़रूरत को चिन्हित करती ये कविताएँ सत्ताधारियों द्वारा समस्त संसाधनों के साथ ही इनसानी दिमाग़ों पर की गई क़ब्ज़ेदारी का विरोध करती हैं। जिनको पढ़ते हुए कभी पानी की पारदर्शिता दिखती है तो कहीं आग की तपिश महसूस होने लगती है। अपने जीवन और समाज में देखे और भोगे गए गै़रबराबरी के व्यवहार को स्वर देकर कवि दुनिया से जो संवाद करना चाहता है वह मेहनतकश और शोषित के श्रम पर क़ब्ज़ा करने वाले परजीवियों की खि़लाफ़त है। अपनी तीखी भाषा, शैली और उद्बोधन में उत्पीड़ितों के स्वर में इज़ाफ़ा करती यह लेखनी स्थापित साहित्य के समक्ष चुनौती पेश कर रही है। मोहन यूँ तो विभेदीकृत समाज के कई पहलुओं पर लेखनी चलाते हैं। लेकिन जब वह स्त्री प्रश्नों को संबोधित करते हैं तो संवेदना और समानुभूति के स्तर पर स्त्री मन को अभिव्यक्त करने में सफल होते हैं। | |
जीवन परिचय | |
मोहन मुक्त / परिचय |