यश का शिकंजा / भाग 7 / यशवंत कोठारी
स्वामी असुरानंद के आश्रम को राजधानी में लाने और जमाने में रानाडे का विशेष योगदान रहा है। एक प्रांतीय कस्बे में रानाडे साधारण कार्यकर्ता थे, और असुरानंद ने नई-नई अपनी दुकान लगाई थी। लेकिन अजीब विलक्षण व्यक्तित्व था स्वामी असुरानंद का, लंबा-छरहरा व्यक्तित्व, विशाल भुजाएँ, उन्नत ललाट और भारी शोणित नयन। उपर से लंबी केशराशि और दाढ़ी। दूर से ही किसी सिद्ध पुरूप का भ्रम हो जाता। और इस भ्रम को उनकी वाक्पटुता बनाए रखती। रानाडे को उन्होंने अपनी तिकड़म से विधानसभा का टिकट दिला दिया, विपक्ष में जान-बूझकर एक कमजोर उम्मीदवार खड़ा किया गया। रानाडे का विस्तार मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक कर लिया। यदा-कदा वे लोग उनके आश्रम में पधारते और आश्रम तथा वहाँ की बालाओं को कृतार्थ करते। अपने बढ़ते प्रभाव के कारण ही स्वामी असुरानंद ने रानाडे को तीन वर्षों में ही उपमंत्री बनवा दिया। समय का चक्र चलता रहा। असुरानंद और रानाडे की मित्रता बढ़ती गई। रानाडे ने अपने विभाग की ओर से आश्रम हेतु योग की कक्षाएँ खुलवाई। योग सीखने हेतु प्रत्येक जिले में योग-केंद्र स्थापित कराए। इन केंद्रों का प्रांतीय संचालक स्वामी असुरानंद को बनाया गया।
धीरे-धीरे रानाडे ने असुरानंद की और असुरानंद ने रानाडे की महत्ता को स्वीकार कर लिया, और एक उपचुनाव की गाड़ी में बैठाकर रानाडे को असुरानंद राजधानी पहुँचा आए।
लगे हाथ वे भी राजधानी आ गए। देर सवेर यहीं आना था।
अब असुरानंद ने अपने पूरे पंख पसारे और घेरे में प्रधानमंत्री, विदेशी राजदूतों और अन्य संस्थाओं को लिया।
राजधानी में विदेश से जो भी आता, उसे भारतीय दर्शन, योग और संबंधित क्रियाओं हेतु असुरानंद का आश्रम दिखाया जाता।
आश्रम की छटा ही निराली होती। सर्वत्र हरी दूब, प्रकृति की शुद्ध हवा, वातानुकूलित कमरे और योग्य आंग्ल भाषा प्रवीणाएँ, जो देशी-विदेशी साहबों को मोह लेतीं। असुरानंद ने आश्रम के लिए एक बड़ी बिल्डिंग खड़ी कर ली; सरकारी, गैर-सरकारी और विदेशी पैसा ले लिया और अच्छी तरह से जम गए।
अपने प्रभाव से स्वामी असुरानंद ने शीघ्र ही रानाडे को मंत्री बनवा दिया। रानाडे ने संसद में अक्सर आश्रम पर होनेवाली बहसों और चर्चाओं के अवसर पर स्वामीजी को बचाया है।
रात्री के आठ बजे हैं। रानाडे ने अपनी कार का मुँह स्वामीजी के आश्रम की ओर किया।
उनकी कार को आता देख द्वारपाल अदब से हटा। एक बाला ने तेजी से आगे बढ़कर कार का दरवाजा खोला और रानाडे को बाहर निकलने में मदद दी। एक अन्य बाला ने अंदर जाकर स्वामीजी को ध्यानावस्था में ही सूचित किया। स्वामीजी ने ध्यान भंग कर उन्हें भीतर ही लाने को कहा। रानाडे कई गलियारे, छोटे-बड़े कमरे पार करके एक बड़े हॉल में दाखिल हुए। वहाँ से एक छोटे, वातानुकूलित, साउंडप्रूफ कमरे में गए। स्वामीजी ने स्वागत किया -
'बधाई! स्वागत!! अब तो आप उपप्रधानमंत्री हो।'
रानाडे ने चरण स्पर्श कर कृतज्ञता ज्ञापित की -
'सब आपका आशीर्वाद है, प्रभू! ...आपकी सलाह से ही सब कुछ संपन्न हुआ है।'
'वो तो ठीक है, लेकिन अब आगे क्या प्रोग्राम है?'
'आप सुझाइए! हम तो अनुयायी हैं।'
'अब तुम शक्ति और संगठन का पुनर्गठन करो ताकि यथासमय तुम अंतिम सीढ़ी चढ़ सको।' स्वामी बोले, 'याद रखो रानाडे, सत्ता केवल ताकत से आती है। गीता में भगवान कृप्ण ने, रामायण में राम ने, सभी ने सत्ता को बाहुबल से ही माना है।'
'जी हाँ...'
'अच्छा बोलो, क्या लोगे? आज बहुत दिनों बाद तुम आए हो, तुम्हारा स्वागत तो होना ही चाहिए?'
'कुछ भी चलेगा - विदेशी शराब और सुंदरी।' रानाडे बोले।
'वो तो खैर है ही! हम तुम्हारी आदतें जानते हैं।' और स्वामी तथा रानाडे ने सम्मिलित ठहाका लगाया।
'इस बार विदेश से शानदार ब्लू फिल्म आई है; कहो तो दिखाएँ।'
'नेकी और पूछ-पूछ? अवश्य? स्वामीजी ने एक बटन दबाया और पर्दे पर फिल्म चलने लगी। आठ मिलीमीटर की फिल्म के दृश्यों को देखकर रानाडे की तबियत खुश हो गई। फिल्म की समाप्ति पर रानाडे बोले -
'हाँ, विपक्ष के नेता रामास्वामी यहाँ आए थे?'
'पिछले शनिवार रात यहीं रुके, और जैसा तुमने कहा था, उनके फोटो फिल्म वगैरा बनवा लिए हैं। कहो तो दिखाएँ!'
'नहीं, फिर कभी देख लेंगे।'
'हाँ भाई, वह अनुदान की रकम अभी तक नहीं मिली।'
'कितनी थी?'
'पचास लाख।'
'ठीक है, मैं कल ही संबंधित विभाग को आदेश दे दूँगा। वैसे भी वित्त-वर्ष समाप्ति पर है।'
'अच्छा तो फिर तय रहा!' स्वामीजी मुस्कराए, 'तुम कमरा नं. 12 में आराम करो। वहाँ सब व्यवस्था हो जाएगी।'
रानाडे चल पड़े।
जब से रामास्वामी को अनुचरों ने यह बताया कि स्वामी असुरानंद ने उनके भी फोटो प्राप्त कर लिए हैं, तब से वे कसमसा रहे थे; लेकिन करें क्या? एक दो बार स्वामी से फोन पर बात करने की कोशिश की तो स्वामी असुरानंद मिले नहीं।
रामास्वामी किसी मौके की तलाश में थे, ताकि आश्रम और असुरानंद के खिलाफ बवंडर फैलाया जा सके।
अचानक आज उसे एक आइडिया सूझा। उसने कु. बाला को इस कार्य हेतु तैयार कर लिया, और एक प्रेस-कॉन्फरेंस में स्वामी असुरानंद द्वारा बाला से किए गए कथित बलात्कार की एक काल्पनिक कहानी गढ़कर सुना दी।
दूसरे दिन रानाडे के विपक्षी अखबारों ने नमक-मिर्च लगाकर बाला और स्वामी तथा आश्रम के विवरण फोटो सहित छापे। कुछ अखबारों ने राजधानी में व्याप्त सेक्स के व्यापार पर संपादकीय भी लिख दिए। वास्तव में बाला कुछ समय तक आश्रम में काम भी कर चुकी थी। अतः घटना को सत्य बनते ज्यादा देर नहीं लगी।
रानाडे इस आक्षेप से बौखला गए। लेकिन स्वामी असुरानंद वैसे ही शांत रहे, उन्हें कोई दुख या ग्लानि नहीं हुई। शांत मन से उन्होंने अपने ध्यान-कक्ष में ध्यान का आयोजन किया।
लंबे समय तक वे समाधिस्थ रहे। आश्रम का कार्य उन्होंने यथावत चालू रखा। पुलिस और प्रेस को उन्होंने सभी प्रकार का सहयोग दिया; लेकिन पुलिस कोई सुराग नहीं पा सकी, लौट गई। आश्रम में जो कुछ भी अनुचित था, सभी रात को ही हटा दिया गया था। इस कारण स्वामी निश्चित थे।
शाम हुई, रात हुई। आश्रम में आज उदासी अवश्य थी, लेकिन कार्य सब चल रहे थे।
वीरानी के इस माहौल में स्वामी असुरानंद ने अपने कुछ अनुचरों को गोपनीय आदेश दिए। दूसरे दिन अखबारों में सुर्खियाँ थीं -
'रामास्वामी की कोठी के बाहर बाला की रहस्यपूर्ण मृत्यु।'
'मृत्यु से पूर्व बाला ने असुरानंद को निर्दोष साबित कर दिया था।'
रामास्वामी इस घटना से बेहोश-से हो गए। आश्रम और स्वामी असुरानंद पूर्ववत जमे रहे।