रेत की मछली / कांता भारती / पृष्ठ 1
डॉ. धर्मवीर भारती की पहली पत्नी सुश्री कांता भारती ने तलाक के बाद वैवाहिक जीवन की मुश्किलों पर एक उपन्यास 'रेत की मछली' भी लिखा है। माना जाता है कि यह उनकी पीडाओं और अनुभूतियों की प्रस्तुति है।
धर्मवीर भारती का कालजयी उपन्यास गुनाहों का देवता पहली बार 1959 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास ने हिन्दी साहित्य में जो स्थान बनाया वह दूसरे किसी अन्य उपन्याय को न मिल सका। इस उपन्यास के पात्र चन्दर और सुधा को समूचे हिन्दी साहित्य ने अपने आस पास अनुभव किया।
कहा जाता है कि इस उपन्यास के नायक चंदर के रूप में धर्मवीर भारती ने स्वयं का चरित्र जिया है। श्री भारती की पत्नी रही कांता भारती ने इस उपन्यास के प्रकाशन के 16 वर्ष बाद 1975 एक उपन्याय लिखा रेत की मछली ......गोया कि कवियों का प्रिय शगल रहे किसी नवयौवना के सोलहवां वर्ष की भांति धर्मवीर भारती जी के गुनाहों के सोलहवे वर्ष को राह दिखाने का प्रयास किया गया हो। निःसन्देह यह उपन्यास स्त्री विमर्श के चुनिंदा पठनीय उपन्यासों में स्थान रखता है। जहां गुनाहों का देवता में किशोरावस्था से आरंभ हुये प्रेम के प्रस्फुटन के चलते किशोरवय लडकें लडकियों की ऐसी बाइबिल है जिसे पढकर वे तकिया पर सिर रखकर आंसू भी बहाते है और जब यही बच्चे जवान होकर प्रौढावस्था की ओर बढते हैं तो एक बार फिर इस बाइबिल को निकालकर पढते हैं और सोचते हैं कि उसे पहली बार पढकर वे क्यों रोये थे।
.....यह भावुक कर देने वाला उपन्यास है परन्तु गुनाहों के इस देवता के गुनाह वास्तव में कैसे थे इसे जानने के लिये कांता भारती की कृति रेत की मछली भी उन सभी पाठको ंद्वारा अनिवार्य रूप से पढी जानी चाहिये जिन्होंने गुनाहों का देवता को पढा है। निंसन्देह उपन्यास के शिल्प की दृष्ठि से यह गुनाहों के देवता की तुलना में काफी कमजोर कृति है परन्तु कहना न होगा कि यह गुनाहों के देवता का अविभाज्य पहलू अवश्य है और साथ ही महानता का मुखौटा पहने चंदर केे असली चेहरे को परत दर परत उधेडने वाला उपन्यास है।
मैं आजीवन तुम्हारे साथ खडा रहूंगा
नायक के द्वारा कहे गये इस वाक्यांश की अनुभूति को जब लेखिका नायिका के शब्दों में व्यक्त करती है तो वह भी लेखकीय धरातल पर धर्मवीर भारती के समानान्तर खडी मालूम देती है
मैं आजीवन तुम्हारे साथ खडा रहूंगा गिनती के ये कुछ शब्द जीवन की नयी परिभाषा होते हैं एक नया आश्वासन होते हैं यह उस दिन मैने जाना.....
घर तक का वह रास्ता न जाने कितना लंबा और अंधेरा महसूस हुआ । रह रह कर लगता जैसे कोई अनहोनी पीछा कर रही हो मैं तुम्हारे साथ खडा रहूंगा आजीवन शब्द गूंजते और में संयत होकर आगे चल पडती । उस लंबे रास्ते के साथ साथ मेरी यातना भी बढती जा बढ जा रही थी। मानसिक तनाव ने थोडी देर में ही मेरे रक्त में ज्वर फैला दिया था।
ऐक और उदाहरण देखें-
....कहकर वे कुर्सी से उठे और मेरी ओर आ गये । पहला आंसू शायद कठिनाई से निकलता है, किन्तु उसके बाद अंतिम आंसू कठिनाई से रूकता भी है। मैं रोती जा रही थी उन्होंने आतुर होकर मेरा सिर अपनी बाहों में दबा लिया । स्नेह पाकर अब मन खुलकर रो लेना चाहता था। ..
गुनाहों का देवता, वाकई भावुक कर देनेवाला उपन्यास है... लेकिन इस देवता के गुनाह कैसे थे... इसे जानने के लिए धर्मवीर भारती की पत्नी कांता भारती का उपन्यास रेत की मछली भी जरुर पढ़ना चाहिए... शिल्प की दृष्टि से रेत की मछली गुनाहों के देवता के बरअक्स बहुत कमतर है... लेकिन वो गुनाहों को जस्टीफाई करने की कोशिश करनेवाला नहीं, बल्कि महनता के मुखौटे के पीछे छिपे चेहरे को परत दर परत उधेड़ कर कलई खोलने वाला उपन्यास है..