लंदन के स्थापत्य का आभास कराता चर्चगेट / संतोष श्रीवास्तव
मुम्बईका दूसरा बड़ा स्टेशन है चर्चगेट जो पश्चिम रेलवे टर्मिनस है। इसकी इमारत भी अँग्रेज़ी स्थापत्य की है। बल्कि चर्चगेट से मंत्रालय, नरीमनपॉइन्ट, युनिवर्सिटी रोड में जितने भी स्थापत्य हैं, उन्हें देखकर लगता है जैसे हम लंदन आ गये हों। चर्चगेट से मंत्रालय तक की खूबसूरत सड़क पर किनारे लगे वृक्षों से मौसम के फूल झरा करते हैं और सड़क पर गुलमोहर, अमलतास के फूलों का कालीन-सा बिछा रहता है। वही सड़क जब बायें मुड़ती है तो आता है आकाशवाणी केन्द्र जहाँ 17 वर्ष की आयु से अब तक मेरी कहानियाँ, परिचर्चाएँ, नाटक आदि प्रसारित होते रहते हैं। शुरू के दिनों में हेमाँगिनी रानाडे 'नारीजगत' कार्यक्रम की प्रमुख थीं। तब आज की तरह प्रोग्राम रिकॉर्ड नहीं किये जाते थे बल्कि लाइव होते थे। प्रोग्राम के दिन साँताक्रुज से चर्चगेट तक सुबह ग्यारह बजे की ख़चाखच भरी लोकल ट्रेन से आने में अक्सर लेट हो जाती थी। कार्यक्रम की समाप्ति पर हेमाँगिनी जी की प्यार भरी डाँट, पीठ पर एक दो मुक्के और फिर चाय... उनके रिटायरमेंट के बाद न वैसी आत्मीयता मिली न माहौल...
चर्चगेट की शानदार इमारत, खूबसूरत बुर्जियाँ गोथिक शैली की हैं। चर्चगेट से मंत्रालय, नरीमन पॉइंट, युनिवर्सिटी रोड की तमाम इमारतोंपर अँग्रेज़ी स्थापत्य की मोहर लगी है। वानखेड़े स्टेडियम जहाँ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच होते हैं विशाल दीर्घा वाला है। चर्चगेट स्टेशन के दाहिने तरफ़ के गेट सेबाहर निकलने पर छोटे-छोटे कई रास्ते समंदर से लगी मुख्य सड़क पर जाकर खुलते हैं। इन रास्तों को नंबर से पहचाना जाता है। पहली गली, दूसरी गली। यहीं सिंड्रहम कॉलेज है, पोस्ट ऑफ़िस है, इंडियन मर्चेंट चैंबर है जहाँ राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक कला एवं बिज़नेस गोष्ठियाँ होती हैं बल्कि बिज़नेस मीटिंगका तो यह केन्द्र ही है। यूनिवर्सिटी क्लब भी यहीं है। इन सारी जगहों पर साहित्यिक आयोजन होते हैं। मेरे पहले कथा संग्रह 'बहकेबसंत तुम' पर मुझे महाराष्ट्र साहित्य अक़ादमी का मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार सिंघम कॉलेज में ही मिला था। इंडियन मर्चेंट चैम्बर और यूनिवर्सिटी क्लब में हमने हेमंत फाउंडेशन के पुरस्कार समारोह भी आयोजित किये हैं। वहीं यूनिवर्सिटी गेस्ट हाउस भी है जहाँ समारोह में बाहर से आये साहित्यकारों की हम ठहरने की व्यवस्था भी करते थे। इंडियन मर्चेंट चैम्बर में मुझे भव्य समारोह में 'प्रियदर्शिनी साहित्य अकादमी' पुरस्कार महाराष्ट्र के वित्त मंत्री जयंत पाटिल के हाथों प्रदान किया गया था।
समँदर की ओर खुलने वाली गलियों में एक आवास इस्मत चुग़ताई का था। इस्मत आपा का घर लेखकों का अड्डा था जहाँ वे अपने शानदार सफेद बालों वाले भव्य व्यक्तित्व के कारण आपा नाम से पुकारी जाती थीं। उन दिनों मुम्बईकी हवाओं में कला और साहित्य का नशा था। निश्चय ही वह साहित्य का मुम्बई के लिए स्वर्ण युग था।
चर्चगेट से नरीमन पॉइंट की ओर जाने पर सचिवालय, जिमखाना, वर्ल्डट्रेड सेंटर, बेक बे, होरिजन व्यू (क्षितिज) महिला विकास मंडल, टाटा मेडिकल रिसर्च सेंटर, इंडियन कैंसर सोसाइटी आदि महत्त्वपूर्ण केन्द्र हैं। चर्चगेट से बस एक सड़क की दूरी पर एशियाटिक शॉपिंग सेंटर है जो ख़ासकर धनाढ्यवर्ग की महँगी पसंद का केन्द्र है। सामने ही ईरोज़ आर्ट डेको शैली की खूबसूरत इमारत वाला सिनेमागृह है। मंत्रालय की ओर जाने वाली सड़क अपनी तमाम सहसड़कों पर खूबसूरत इमारतों कोलिए राह दिखाती है। के. सी. कॉलेज, बॉम्बे कॉलेज ऑफ़ जर्नलिज़्म, के. सी. लॉ कॉलेज, मैनेजमेंट स्टडी कॉलेज, राम महल, मोतीमहल, मंत्रालय, आकाशवाणी, आमदार निवास, एम एल ए क्वार्टर्स आदि... और इन सबके बीच भागती दौड़ती मुम्बई की ज़िन्दग़ी। मुम्बई वर्किंग क्लास का शहर माना जाता है। अपनी तमाम मुश्किलों को झेलते फुटपाथ पर सोते, जागते आख़िर हर तबके का आदमी इसमें समा ही जाता है। लंच का समय होते ही चर्चगेट से मंत्रालय तक की सड़कों पर जहाँ एक ओर रसना और सम्राट जैसे महँगे होटलों में एक कुर्सी तक ख़ाली नहीं मिलती वहीं केले की टोकरियाँ मिनटों में ख़ाली हो जाती हैं। यहाँ केले बेचने वाले लखपति होते देखे गए हैं।
बीसवीं सदी में दक्षिण मुम्बई के क्षितिज पर राजाबाई क्लॉक टॉवर अपनी विशेष अहमियत रखता था। जैसे ही कोई हार्बर में प्रवेश करता उसे दूर से ही इस टॉवर (घंटाघर) से निकलती आवाज़ सुनाई देती। पास जाने पर वह स्पष्ट हो जाती तब सुनाई पड़ता ब्रिटिश कालीन। रूल ब्रिटेनिया, गॉड सेव द किंग, होम! स्वीट होम और ए हंडला सिम्फ़नी का तीव्र नाद। हर चार घंटे पर टॉवर से नई ट्यूनसुनाई देती थी। आज हर पंद्रह मिनट में नई ट्यून बजाने वाले लंदन के प्रख्यात बिगबेन ही इसके जनक थे। हूबहू लंदन के बिगबेन क्लॉक टॉवर जैसा यह राजाबाई क्लॉक टॉवर चर्चगेट के ऐन सामने है जिसे ब्रिटिश सर स्कॉट ने 1874 से 78 के बीच तैयार किया। यह यहाँ का लैंडमार्क है। बिगबेनने 16 तरह की ट्यून इसमें रिकॉर्ड की थीं जो हर चार घंटे में बजती थीं।
राजाबाई टॉवर 280 फीट ऊँचा है। मुम्बई विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी और रीडिंग रूम को समेटे राजाबाई टॉवर सुरम्य विश्रांत सौंदर्य का मालिक है। पहली मंज़िल से 15 फुट की ऊँचाई और उससे भी ऊँचे टॉवर के स्तंभों में पोरबंदर पत्थरों में उत्कीर्ण पश्चिमी भारत के विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों की आठ फुट ऊँची प्रतिमाएँ और परफेक्ट वेंटिलेशन, पश्चिमी छोर के उत्तर-दक्षिणी ओरियंटेशन की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसके रखरखाव में इतनी एहतियात बरती जाती है मानो ये कल ही बनकर तैयार हुआ है। सीढ़ियों पर चढ़ते हुए इमारत की धड़कनें सुनाई देती हैं जो उसकी जीवंतता का साक्ष्य है। मानो वह हर भागते दौड़ते मुसाफ़िर से पूछ रहा हो... 'तुम्हारी साँसों में तूफ़ान-सा क्यों है? और तुम इतने परेशान से क्यों हो?'
विशाल प्रांगण में स्थापित मुम्बई विश्वविद्यालय का मुख्य परिसर अब कालीना चला गया है। अब यहाँ लाइब्रेरी, दीक्षान्त सभागृह और प्रशासकीय कार्यालय है। मुम्बई विश्वविद्यालय इमारत 1857 में निर्मित हुई थी। यह भारत के तीन महत्त्वपूर्ण विश्वविद्यालयों में से एक है। यहाँ 22 हज़ार वर्गमीटर में विभिन्न शालाएँ हैं और 84 हज़ार वर्गमीटर में प्रयोगशालाएँ हैं। दो पोस्ट ग्रेजुएट सेंटर, 354 एफिलेटेड कॉलेज और 36 डिपार्टमेंट हैं। कई प्रोफेशनल कोर्स यहाँ चलाए जाते हैं। सुंदर लैंड स्केप वाले उद्यान जिनमें ऊँचे-ऊँचे खूबसूरत दरख़्त, फूल, क्रोटन... मानो खुशबू का साम्राज्य हो और सर कावसजी जहाँगीर और दिग्गज इंजीनियर थॉमस ऑरमिस्टन की प्रतिमाएँ भी वहाँ स्थापित हैं। लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर चढ़ते ही बेंचमार्क दिखेगा। तल मंज़िल में सेंट्रल हॉल, एक तरफ़ दो कमरे और वेस्टिब्यूल टाइप की सीढियाँ हैं। घुमावदार सीढ़ियों की खिड़कियों पर मनमोहक स्टेंड ग्लास लगे हैं जिनसे छनकर आती रोशनी अध्ययन का माहौल रचती हैं। और इस माहौल को एकरस बनाती है सर जॉर्ज बर्डवुड, सर बार्टल फ्रेरे, जेम्स गिब्स, डॉजॉन विल्सन, होमर और शेक्सपीयर की प्रतिमाएँ। लाइब्रेरी के इंटीरियर पत्थर के मेहराबदार बरामदे, टीकवुड (शीशम) कीलम्बी-लम्बी रीडिंग टेबुलें और बर्मी टीकवुड की सीलिंग को देखकर पर्यटक ठगे से रह जाते हैं। लाइब्रेरीमें संस्कृत, मराठी, अरबी और फ़ारसी की पांडुलिपियाँ और दुर्लभ पुस्तकों का भंडार है। संदर्भग्रंथों और शोध सामग्रियों का भी अच्छा संग्रह है।
दीक्षांत सभागृह में क़दम रखते ही मुझे याद आ गया जब मैंने बी. एड। किया था तो इसी सभागृह में मुझे डिग्री प्रदान की गई थी। 13वीं सदी की फ्रेंच शैली की सजावट, भव्य स्थापत्य, उत्तरी छोर परजोडियॉक के 12 प्रतीक चिह्न, गोलाकार खिड़कियाँ जो स्टैंड ग्लास से मढ़ी हैं... तीनओर शानदार गैलरियाँ, 104 फुट लम्बा और 63 फुट ऊँचा सभागृह भव्यता का एहसास कराता है कि हम जिन परीक्षाओं से गुज़रकर आए हैं उसका मूल्यांकन यहीं होगा।
राजाबाई टॉवर के इस नामकरण की मातृभक्ति से भरी अद्भुत दास्तान है। पहला भारतीय स्टॉक ब्रोकर कहलाने वाले उस ज़माने के रईस प्रेमचंद्र रायचंद्रने इसकी नींव 1 मार्च 1869 को यह सोचकर रखी थी कि जैन धर्मावलंबी नेत्रहीन उनकी माँ का सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर लेने का नियम खंडित न हो जाए. वे जब तक जीवित रहीं उन्हें राजाबाई टॉवर सूर्यास्त होने का अलार्म देता रहा और उन्हें वक़्त पूछने के लिए किसी की मदद नहीं लेनी पड़ी।
चर्चगेट से मुम्बई विश्वविद्यालय जाने के लिए शॉर्टकट के रूप में जाना जाता है ओवल मैदान। एक ओर 19वीं सदी की विक्टोरियन गोथिक स्थापत्य की सम्मोहक कलात्मकता, दूसरी ओर मरीन ड्राइव तक फैली 1930 के दशक की रॉट आयरन बालकनियों वालीसुंदर'आर्ट डेको' इमारतों का विस्तार लिये ओवल मैदान परिसर मियामी के बाद विश्व में अकेला स्थान है जो इन दुर्लभ इमारतों से सुसज्जित है। 1860में एस्प्लेनेडेडको आज़ाद मैदान, क्रॉस मैदान, कूपरेज़ मैदान और ओवल मैदान में बाँट दिया गया था। ओवल मैदान अंग्रेज़ ऑफ़ीसरोंके क्रिकेट खेलने का पसंदीदा स्थान हुआ करता था। उस समय भी यान हर उम्र के लोग चहलक़दमी करने आते थे और अब तो हर रविवार को पाँच हज़ार से ज़्यादा लोग यहाँ आते हैं। 22 एकड़ ज़मीन पर बीचोंबीच चीड़ के छायादार पेड़ों पटा मख़मली ओवल और इसके दोनों ओर फ्लोर फाउंटेन, -सी टी ओ, राजाबाई टॉवर, मुम्बई विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी, विश्वविद्यालय परिसर, पब्लिक वर्क्स ऑफ़िसेज़, भीखाजी बहरामवेल, पश्चिम रेल का मुख्यालय, ओल्ड एडमिरलिटी, आर्क बिशप हाउस, ओल्ड सेक्रेटेरिएट, होली नेम चर्च, बॉम्बे हाईकोर्ट, कोर्ट कॉम्प्लेक्स, मैजेस्टिक होटल जैसी विक्टोरियन गोथिक स्थापत्य की शाही इमारतें तथा होरमुसजी दिनशा, गोपालकृष्ण गोखले, डी. ई. वाच्छा, महादेव, गोविंद रॉनाडे, सरजे. जीजीभाय, सोराबजी बंगाली और डॉ. बी. आर आंबेडकर की प्रतिमाएँ। इंप्रेस कोर्ट जैसी आर्ट डेको शैली की इमारतें भी जिनका सौंदर्य दूर से ही ललचाता है। अब तो यहाँ जॉगिंग कोर्स भी बन गया है। किसी ज़माने में ओवल मैदान में घुड़सवारी और वॉकिंग ट्रैक हुआ करता था जिसके चारों ओर खंभों की चारदीवारी थी। मैदान के दक्षिणी छोर में हॉर्स राइडिंग ट्रैक पर आठ आने में घोड़े पर ट्रैक का चक्कर लगाने मिल जाता था। इसे'रॉटन रो' कहते थे जो किंग्सरोड का अपभ्रंश था। आज जहाँ ताज वेलिंग्टन म्यूज़ियम है, वहाँ घुड़साल हुआ करती थी जहाँ एमेचर राइटर्सक्लब के प्रशिक्षित ट्रेनर घुड़सवारी सिखाया करते थे। ओवल को अब विश्व धरोहर का दर्ज़ा मिल गया है।
एक ज़माना था जब फ़िल्मों के साथ-साथ सट्टे और मटके का भी क्रेज़ था। दिन भर खून पसीना एक कर कमाई हुई रकम सट्टे या मटके में थोड़ी बहुत अवश्य लगाई जाती थी। रतन खत्री मटके के व्यापारी का नाम था। चर्चगेट और बेलार्ड स्ट्रीट के कारोबारी इलाकों में देर रात तक काम करने वाले क्लर्क और अफ़सर भी मटके के क्रेज़ से अछूते नहीं थे। अब दलाल स्ट्रीट का शेयर मार्केट मटके की जगह ले चुका है। शेयर्स में भारी रक़म लगाकर मध्यवर्ग अपनी गाढ़ी कमाई स्वाहा करता जा रहा है। पर लत है कि छूटती नहीं। आँखें सूचकांक के चढ़ते गिरते अंकों पर टिकी रहती हैं।