लव इन यूथ फेस्ट / बायस्कोप / सुशोभित
सुशोभित
यूथ फेस्टिवल होता, यूनिवर्सिटी एंथम गाने के लिए गर्ल्स कॉलेज की वो छह लड़कियां स्टेज की ओर बढ़तीं - हरी साड़ियों में मोरनियों की तरह । सबकी नज़रें उन पर टिक जातीं, मेरी उनमें से उस एक पर।
लम्बी, पतली, किंचित सांवली । सलोनी रंगत, आंखों में खूब काजल, चुकंदर सरीखे जामुनी होंठों पर लाली, लम्बोतर चेहरा, तीखे नक़्श । उसका नाम था- पायल | वो उस ग्रुप की सबसे सुंदर लड़की नहीं थी, शायद सबसे अच्छी सिंगर भी नहीं थी, लेकिन उसमें एक खास आकर्षण था । मैं उससे बंधा रह जाता। और जब वो गाती तो उसको देखकर मन ही मन गुनगुनाने लगता - “हां तुम बिलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था...”
पहली बार जब मैंने यूथ फेस्ट में उसको देखा, तब मैं रिपोर्टर की हैसियत से हॉल में सबसे आगे की कुर्सियों पर बैठा था। जब वो स्टेज पर आई तो मैंने अपने फोटोग्राफर को इशारा किया। उसने आगे बढ़कर पूरे ग्रुप की तस्वीरें उतारीं। फंक्शन के बाद पार्टिसिपेंट्स के इंटरव्यू लिए गए। इसी सिलसिले में उससे भी बातें शुरू हुईं। तीन दिन का फ़ेस्टिवल जब ख़त्म हुआ तो मैंने उसे अपना नम्बर दिया और कहा, "कॉलेज में कभी कोई कल्चरल एक्टिविटी हो तो रिंग कर देना। मैं अपने पेपर के लिए ऐसे इवेंट्स कवर करता हूं ।” उसने कहा, “जी अच्छा ।" रियाज में पकी हुई मीठी आवाज़ |
फ़ोन नहीं आना था, सो नहीं आया। कई महीने बीते। एक दिन गर्ल्स कॉलेज के रोड पर सहेलियों के साथ जाती दिखी। मैं मोटरसाइकिल का हॉर्न बजाते हुए उसके पास रुका, और कहा - "हाय, कैसी हो तुम?" उसकी आंखें चमक गईं। मैं सोचने लगा, मेरे जाते ही साथ चल रहीं ये सब लड़कियां उससे कुरेदकर पूछेंगी कि कौन था वह ? और शायद इससे उसे गर्व ही होगा । “ओह सॉरी, वो आपका फोन नम्बर मुझसे गुम गया", उसने कहा । "कोई बात नहीं, आपका नम्बर दीजिए”, मैंने कहा और अपनी छोटी-सी नोटबुक खोल ली ।
उसने बोलना शुरू किया। मैंने नम्बर नोट किया, और उसके ऊपर नाम लिखा- “पायल।” “अच्छा, तो आपको मेरा नाम याद था ”, उसने कहा । मैंने उसकी आंखों में झांका, लेकिन ये जवाब अपने दिल में ही रख लिया कि- “भला कैसे भूल सकता हूं?" कई दिन बीते। फिर महीने । एक - दो बार औपचारिक बातें भर हुईं, लेकिन इससे ज़्यादा नहीं। एक साल हुआ तो फिर यूथ फेस्टिवल आया । इस बार वेस्टर्न जोन लेवल का फेस्ट था । फेस्टिवल से पहले रैली निकलना तय हुआ । रैली में मेजबान यूनिवर्सिटी को सबसे आगे चलना था । यह ज़िम्मेदारी भी उसके ग्रुप को सौंपी गई। मैं रैली में पहुंचा । दूर से उसे देखा । वो यूनिवर्सिटी का फ़्लैग लिए आगे-आगे चल रही थी । सालभर में कुछ नहीं बदला था। लेकिन उस दिन धूप बहुत तेज़ थी । उसका चेहरा तपकर ताम्बई हो गया था । मैंने मन ही मन कुछ सोचा और मोटरसाइकिल का एक्सीलेटर घुमा दिया । अगले चौराहे पर रुका। चिल्ड वॉटर की बोतलें ख़रीदीं। फिर गाड़ी पलटाई और रैली के सामने जाकर ब्रेक लगाया।
“इतनी देर से चल रही हो, गला सूख गया होगा”- मैंने कहा। वो सहसा मुझे देखकर झेंप गई। ग्रुप की दूसरी लड़कियां एक-दूसरे को ताकने लगीं। फिर सबने कहा, “हां हां, सच में ही बड़ी प्यास लगी है, पानी की ज़रूरत थी, थैंक यू सो मच।” सब रुककर पानी पीने लगे । वह भी । पीते-पीते उसने एक नज़र मुझको देखा पहली बार उस नज़र में आत्मीयता की एक झलक कौंध गई।
इस बार तीन दिन के जलसे में जैसे तीन साल की जान-पहचान उससे हो गई। पूरे-पूरे दिन साथ रहना | बाद उसके, जलसा ख़त्म हो गया, पर बातों के सिलसिलों का कोई अंत न था । गर्ल्स कॉलेज में जब-तब फंक्शन होते तो उस दिन मुंहदिखाई भी होती । जिससे रोज़ बातें होती हों, उसे छठे - छमासे देख सकना भी एक बड़ा सुख था । फिर एक दिन उसका फोन आया- “विश मी लक, मेरी जॉब लगी है। पता है क्या ? एक गर्ल्स स्कूल में म्यूजिक टीचर ।” मैंने कहा- "वॉव, तुम्हारे लिए इससे अच्छा क्या हो सकता था । आएम सो हैपी फॉर यू ।” कौन-सा स्कूल, किस तारीख को जॉइनिंग, किस समय पर ये तमाम मालूमात हासिल करके मैं बाज़ार गया और उसके लिए कुछ ले आया ।
नियत तारीख पर अपनी मोटरसाइकिल लेकर उसकी डगर पर आधे घंटे पहले से हाज़िर । तय समय से पंद्रह मिनट पहले वह दूर से साइकिल पर आती दिखलाई दी। मुझे देखकर चौंकी । “ अरे तुम यहां ?" मैंने जेब से एक डिबिया निकाली । वह काजल की डिबिया थी । कहा- “ दुनिया की सबसे प्यारी लड़की
की ज़िंदगी का यह एक ख़ास दिन है, उसकी पहली जॉब का पहला दिन, किसी की नज़र ना लग जाए, काजल का टीका लगा लो ।” वो खिलखिलाकर हंस दी, जैसे पंचम सुर में- “ पता है, तुम ना, पूरे पागल हो !” मैं चुपचाप मुस्कराता रहा ।
प्यार लहरों की तरह होता है, बारम्बार खुद को उलीच देना चाहता है । मैं भी किसी ना किसी बहाने उसको तोहफे देता रहता । कभी उसके पसंदीदा गानों की कैसेट, कभी यूथ फेस्टिवल में खींची तस्वीरों का कोलाज, कभी उसके लिए लिखी कविताओं की शृंखला | वो हर चीज़ मुस्कराकर स्वीकार करती । हर बार एक ही बात कहती- “तुम मुझे बहुत स्पेशल फील कराते हो ।" और तब मैं कहता- “तुम्हें नहीं पता, तुम कितनी स्पेशल हो ।”
ऐसे दो साल बीते। तीसरा साल, तीसरा यूथ फेस्टिवल । मेरे मन में उसके प्रति कोमल भावना थी, शायद वह अच्छी तरह जानती थी, लेकिन बात शब्दों में कही नहीं गई थी। फेस्टिवल के पहले दिन, सुबह ही मैंने तय किया कि आज कहना है। मैसेज करने की ही हिम्मत जुटाई। लिखा- “पायल, तीन साल में यह तीसरा फेस्टिवल है, लेकिन तुम्हारे साथ पूरी जिंदगी ही एक ऐसा जलसा होगी, जिसमें कभी कोई कंठ प्यास से नहीं सूखेगा, कभी किसी से किसी का नम्बर नहीं गुमेगा, और किसी को किसी की नज़र ना लगेगी । तुम उस ज़िंदगी में मेरी हिस्सेदार बनोगी ना?"
धड़कते दिल से मैसेज भेजा । मैसेज डिलीवर हुआ । तब जवाब का इंतज़ार शुरू हुआ। पांच मिनट, दस मिनट, पंद्रह मिनट । कोई जवाब नहीं आया । एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटे । फोन एक संगीन खामोशी ओढ़े रहा । क्या मुझसे कुछ भूल हुई, मैं कुछ गलत कह बैठा ? फेस्टिवल शुरू होने का समय हो गया, मैं पहुंचा। एन्थम शुरू हो चुका था । वो स्टेज पर थी और आंखें झुकाए गा रही थी। गाना ख़त्म हुआ। उसने पूरे हॉल में नज़रें घुमाईं। क्या वो मुझे खोज रही है? मैंने मन ही मन सोचा । उसकी आंख मुझ पर पड़ी, एक पल नज़र बंधी रही, फिर उसने मुंह फेर लिया। दिन ख़त्म हुआ, लेकिन वह खिंची-खिंची-सी रही। जल्दी घर लौट गई। दूसरे दिन आई नहीं । मेरा दिल डूब गया । तो क्या यह उसकी तरफ़ से ना है? अगर है, तो भी कम से कम कहना तो चाहिए, वो ऐसे चुप क्यों है? I तीसरा दिन। फेस्टिवल का आख़िरी दिन । बड़े सवेरे मेरे फोन की घंटी बजी। उसका नम्बर था । मेरा दिल धक्क से रह गया। फ़ोन उठाया। रूखे स्वर में कहा- “हां कहो ।” दूसरी तरफ से बड़ी कोमल - सी आवाज़ आई - " नाराज हो ना?” मैं चुप रहा। उसने कहा- “नहीं, नाराज नहीं, शायद बहुत ज़्यादा नाराज हो ?” मैंने कहा- "मालूम नहीं ।" उसने कहा- “मुझे माफ कर देना, लेकिन मैं समझ नहीं पाई कि कैसे रिएक्ट करूं। मुझे ऐसे चुप नहीं हो जाना था । पता है, तुम अच्छे हो, बहुत अच्छे हो, पर मैं ही तुम्हारे लायक नहीं । आई कभी भी इसके लिए राजी नहीं होंगी । और पापा तो इंटरकास्ट के बारे में सोच भी नहीं सकते। जो हो ही नहीं सकता, उसके बारे में सोचने से क्या फायदा?” मैं चुप रहा। उसने कहा- “कुछ कहोगे नहीं ।" मैंने कहा- “मेरे पास बहुत सारे शब्द हैं, लेकिन इस वक़्त एक भी काम का नहीं है ।" उसने कहा- “आज मेरी सोलो परफ़ॉर्मेंस है। तुम आओगे ना?" मैंने धीमे-से कहा, “हां।"
बुझे मन से वहां पहुंचा, जहां हर बार इतनी ललक से जाता था । सबसे आगे की सीट पर बैठा । एक-एक कर परफॉर्मेंस होती रहीं । फिर उसका नाम पुकारा गया। वो आई । मैं अपनी जगह पर धीरे-से खड़ा हुआ, और तालियां बजाकर उसका स्वागत किया । सब मुझे देखने लगे। उसने फ़िल्म "आनंद" का गाना गाया- “ना, जिया लागे ना ।" उसके गाने में बड़ी तन्मयता थी, जैसे वह आख़िरी बार कोई गीत गा रही हो । गाने में जब ये पंक्तियां आईं- “जीना भूले थे कहां याद नहीं, तुझको पाया है जहां, सांस फिर आई वहीं”, तो उसने मेरी तरफ़ देखा मैं अपलक उसे ताकता रहा । फिर उसने मेरे चेहरे से नज़र हटाए बिना अगली पंक्ति गाई - "ज़िंदगी तेरे सिवा हाये भाए ना ।"
मैंने उसे उसकी प्रतिभा के पूरे वैभव में देखा - जैसे कोई दूर के अलभ्य तारे को देखता हो । और वो मेरी तरफ़ टकटकी बांधे गहरे राग का गाना गाती रही- जैसे कोई किसी को बड़े प्यार से विदा कहता हो ।