वी. आई. पी. लोगों की पसंदीदा जगह मालाबार हिल / संतोष श्रीवास्तव

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गिरगाँव चौपाटी से मालाबार हिल की चढ़ाई बाबुलनाथ से शुरू होती है। व्हाईट हाउस, वालकेश्वर, बाणगंगा, राजभवन... राजभवन पहुँचकर मालाबार हिल का एक कोना समाप्त हो जाता है। चढ़ाई चढ़ते हुए लगता है मानो कोई पहाड़ी शहर हो। मुम्बई के उमस भरे मौसम से छुटकारा मिल जाता है और ताज़गी भरी ठंडक बदन को तरोताज़ा कर देती है। चढ़ाई चढ़ने के पहले दाहिने छोर पर स्थापित है वालकेश्वर मंदिर जिसका निर्माण 9वीं और 13वीं सदी के बीच सिल्हारा साम्राज्य द्वारा कराया गया था। मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही प्राचीन कला वैभव के दर्शन होते हैं। चारों ओर विभिन्न देवी देवताओं के मन्दिर और बीच में शीतल जल का तालाब। मंदिर के प्रांगण में कई स्थानों पर प्राचीन दीपस्तंभ इस स्थान के ऐश्वर्य और वैभव की कहानी सुनाते हैं। तालाब के चारों ओर कई पुरानी मूर्तियाँ हैं जिनमें कच्छप और शिवलिंग बहुत अधिक हैं। यहाँ पर जितने भी छोटे बड़े मंदिर हैं उनमें सबसे पुराना मंदिर वेंकटेश्वर बालाजी केमंदिर को माना जाता है। पेशवा काल में बने इस मंदिर में लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। वालकेश्वर मंदिर के निर्माण के साथ जो कथा जुड़ी है वह त्रेतायुग की है। जब श्रीराम सीताजी की खोज करते हुए यहाँ से गुज़रे थे तो उन्होंने सागर के किनारे शिव जी की पूजा करने के लिए लक्ष्मण से शिवलिंग लाने को कहा। लक्ष्मण को देर होती देख उन्होंने तट पर की बालू से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की। इसीलिए इस स्थान का नाम वालकेश्वर पड़ा। बाबुलनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग की महिमा अद्भुत है। जब वर्षा नहीं होती, सूखे जैसी स्थिति आ जाती है तो शिवलिंग को पूरा पानी में डुबो दिया जाता है और तब यकीनन वर्षा होती है।

पुर्तगालियों के शासनकाल में यह इलाका गझिन हरियाली भरा था। धूप में चमकती, झिलमिलाती बालू वाले खूबसूरत समुद्र तट थे और उन पर नारियल, सीताफलके पेड़ चिड़ियों से गुलज़ार रहते थे। इन पेड़ों के बीच से गुज़रती समुद्री हवा जैसे संगीत के सुरों से गुज़र रही हो, एक नशीलापन चहुँ ओर होता था। धीरे-धीरे मालाबार हिल के जंगल आबाद होते गये। और एक समृद्धशाली इलाक़ा बसता गया।

राजभवन मालाबार हिल की उतराई पर है। यह राजभवन सफेद चमकते स्फटिक के महल जैसा है। यहाँ बिना अनुमति प्रवेश वर्जित है। राज्यपाल जी का प्राईवेट समुद्र तट और पर्सनल हेलीपेड है। यहाँ की 'सूर्योदय गैलरी' और'देवी मंदिर' अब आम आदमी के लिए भी सुबह सवा छै: से आठ बजे तक के लिए खुल गया है। लेकिन एक बार में केवल दस लोग ही मरीन ड्राइव के समुद्र तट का आनंद ले सकते हैं वह भी वेबसाइटपर ऑनलाइन बुकिंग करा के.

घोर कंक्रीट जंगल में सघन दरख़्तों और बाग बगीचों की पचास एकड़ लहलहाती हरियाली वाला इतना खूबसूरत राजभवन... कि नज़रें हटती ही नहीं। इसकी राजसी शान ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर विदेशी राष्ट्र अध्यक्षों तक को अपना मुरीद बना लिया। 'जल भूषण' , 'जल चिंतन' , 'जल लक्षण' , 'जल विहार' , 'जल सभागृह' राजभवन में एक से बढ़कर एक भव्य विशाल नगीने हैं। जल भूषण राज्यपाल का घर और दफ़्तर है। जल सभागृह दरबार हॉल है जहाँ सरकार के शपथ ग्रहण और पुरस्कार समारोह हुआ करते हैं। जल विहार विदेशी राष्ट्र प्रमुखों व अन्य गणमान्य अतिथियोंके लिए आरक्षित है और जल लक्षण मुम्बई आने वाले अन्य देशों के राष्ट्रपतियों और जल चिंतन प्रधानमंत्रियों का आवास है। तीन ओर से समुद्र से घिरे इस राजभवन की 'सूर्योदय गैलरी' के लिए कहा गया है कि शायद ही अन्य देशों में इतना खूबसूरत सूर्योदय दिखता हो। यहाँ भारत के चुनिंदा तीन सौ कलाकारों ने बाँसुरी की स्वरलहरियों और समँदर से उठते हवा के ताज़े, शीतल झकोरों के बीच लो रेलिंग-सी फेंसिंग डेक पर खड़े होकर या योग चटाई पर बैठकर उगते सूरज को जब अपनी स्वरांजलि अर्पित की तो 'वाह वाह' से गूँज उठा माहौल। 1 सितंबर 2014 से जब से इस शानदार परिसर ने आम आदमी के लिए पट खोले हैं तब से मुम्बई को नया पर्यटन आकर्षण मिल गया है। सूर्योदय गैलरी की दीवारों को मध्यप्रदेश के आदिवासी चित्रकारों ने सजाया है। पास ही प्राचीन देवी मंदिर के दर्शन भी पर्यटक कर सकते हैं।

राजभवन के दरबार हॉल में मुझे तत्कालीन राज्यपाल एस. एम. कृष्णा के हाथों वसंतराव नाइक प्रतिष्ठान की ओर से वर्ष 2004 में साहित्य का लाइफ़ टाइम एचीव्हमेंटअवार्ड दिया गया था। तब मैंने राजभवनको पहली बार अंदर से देखा था। उस जनविहीन प्राइवेट समुद्र तट पर भी गई थी जो राजभवन केउद्यानकी सीढ़ियाँ उतारकर हैं। कुछ सफेद परों वाले परिंदे किनारे की लहरों पर कागज़ की नाव के समान तैर रहे थे। वह मेरे जीवन का अद्भुत क्षण था। दूसरी बार 2014 में उत्तराखंड के गवर्नर ने मुझे चाय पर आमंत्रित किया था। गवर्नर अज़ीज़ कुरैशी साहब को हम चार शायरों ने देर तक गज़लें सुनाईं थीं इसी राज भवन के विशेष मेहमान कक्ष में और मैंने उन्हें हेमंत की किताब 'मेरे रहते' भी भेंट की थी। मेरी ग़ज़लों पर राज्यपाल साहब के मुक़र्रर शब्द आज भी कानों में गूँजते हैं।

राजभवन से मालाबार हिल की चढ़ाई पर बाएँ तरफ़ बाणगंगा सरोवर है। जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में जाना जाता है। यह सरोवर हिन्दू धर्म की आस्था का केन्द्र है। किंवदंती है कि वनवास के दौरान सीताजी की खोज में श्री राम यहाँ आये थे और आसपास कहीं नदी या सरोवर न होने की वजह से लक्ष्मण ने धरती को अपने बाण से भेदकर जल की धार बहाई थी। इसकेजल में गंगाजल की तरह जड़ी बूटियों वाले गुण थे इसलिए इसे बाणगंगा कहते हैं। कितना आश्चर्य है कि वालकेश्वर समुद्र से घिरा है और वहाँ मीठे जल का सरोवर है! चौदहवीं सदी में इस सरोवर का जीर्णोद्धार हुआ और यह धार्मिक आस्थाकाकेन्द्र बन गया। श्रावण मास और पितृपक्ष में श्राद्ध आदि धार्मिक कार्यों से सरोवर गुलज़ार रहता है। इसके जल में रोहू मंगूर मछलियाँ, बत्तख और हंस तैरते नज़र आते हैं। बाणगंगाराजभवन से महज़ दस मिनट की दूरी पर है। इस इलाके में पचास से अधिक मंदिर, पुरानी इमारतें आदि पर्यटकों के आकर्षण स्थल हैं। बाणगंगा के पश्चिमी छोर परकाशी मठ के सातवें मठाधीश श्रीमत माधवेंद्र स्वामी और अठारवें मठाधीश श्रीमत वरादेंद्र तीर्थ स्वामी की महासमाधियाँ हैं। सन् 1775 में माधवेंद्र स्वामी ने यहाँ जलसमाधि ली थी। मुम्बई में गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों का यह सबसे पवित्र स्थान है।

बाणगंगा सरोवर से मालाबार हिल की चढ़ाई में रेखा भवन के पास बना जैन मंदिर इस समृद्धि शाली इलाके का पहला सोपान है। 1905 में बना प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का यह जैन मंदिर कला की अद्भुत मिसाल है। मंदिर की दीवार पर रंगीन कलाकृतियाँ हैं जिसमें 24 तीर्थंकरों के जीवन की झलकियाँ हैं। पहली मंज़िल पर काले संगमरमर से निर्मित भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा है और हिन्दुओं के विभिन्न प्लेनेट भी दर्शाये गये हैं। जैन मंदिर से हैंगिंग गार्डन तक चढ़ाई है। यह सारा इलाका हीरे के व्यापारियों, फ़िल्म कलाकारों और नेताओं के बँगलों, घरों से आबाद है। बीसवीं सदी के सातवें, आठवें दशक में यह इलाका जादुई एहसास-सा कराता था। इन बँगलों के बीच से चारों ओर से फेनिल लहरों वाला समुद्र दिखाई देता था। ऊँचाई से नीचे चट्टानों पर टूटती, बिखरती लहरें न जाने किस लोक में पहुँचा देती थीं। डबल डेकर बसें चलती थीं और लोगों की आवाजाही अधिक नहीं थी।

यहीं पारसियों का 'टॉवर ऑफ़ साइलेंस' है जहाँ पारसी शवों को गिद्धों के हवाले कर दिया जाता है। ताकि गिद्ध मृत शरीर को अपना भोजन बनालें। उनकी मान्यता है कि मृत शरीर भी किसी केकाम आना चाहिए.

पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मदअल न्ना का शानदार बँगला 'जिन्नाहाउस' भी यहीं है जो1930 में मालाबार हिल का महत्त्वपूर्ण स्थल था जहाँ जिन्ना से जुड़ी न जाने कितनी कहानियों ने जन्म लिया। उनकी पोती दीना वाडिया इस बँगले के मालिकाना हक के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में लम्बी लड़ाई लड़ रही है।

मुख्यमंत्री का खूबसूरत बँगला भी मालाबार हिल का आकर्षण है।