वो ख़ास दिन / अशोक कुमार शुक्ला
"माँ तुम सुला दो ना."
......कल का दिन ख़ास रूप से प्रेम के लिए परिभाषित किया हुआ दिन था सो मैंने भी अपने इस सफ़र में सीधे प्रेम की ओर छलांग लगा ली थी...पर क्या प्रेम वही होता है जिसका प्रदर्शन किया जा सके? मेरे विचार से प्रेम तो संवेदना का दूसरा नाम है....यदि हम दूसरों की वेदना अनुभव कर सके तो वह ही प्रेम है ....प्रेम स्वयं में कुछ भी नहीं है अपितु जीवन से जुडी ढेर सारी सकारात्मक प्रवृत्तियो की सहज अभिव्यक्ति है..इसकी परिभाषा नहीं की जा सकती...प्रेम को लोग अक्सर व्यक्तिगत मामले की तरह लेते है ....प्रेम से जुड़े सारे आयाम ही एकीकृत होकर जीवन की रचना करते हैं...और जीवन कभी भी एकपक्षीय नहीं होता...छोटी से छोटी परिघटना भी आपके अचेतन मस्तिष्क में प्रेम के अमूर्त स्वरूप की वायस बन सकती है ...उस दिन की शोक सभा की मस्ती के बाद जब जल्दी घर लौटा तो रास्ते में कई बार बेबी का ख़याल आता रहा। घर पहुंचा तो माँ ने पूछा- "क्या हुआ? आज जल्दी कैसे आ गए..?" "छुट्टी हो गयी ...वो प्रिंसिपल मैम हैं ना....उनकी बेटी मर गयी..इसीलिये छुट्टी हो गयी.." मैंने बताया "क्या..?" माँ ने आश्चर्य से पूछा... माँ का इस तरह आश्चर्यचकित होना मेरे बालमन के लिए सहज नहीं था...मुझे याद है उसके बाद माँ ने उससे जुड़ा समूचा वृतांत पूछा...मैंने क्रमवार सारी बाते बताई... माँ गौर से सुनती रही और अफ़सोस व्यक्त करते हुए ..".अरे राम अरे राम" का जाप जैसा करती रही..! माँ की भावभंगिमा देखकर मेरे भी अन्तः पटल पर बेबी अपना स्थान तलाशती रही.. रात को सोने चला तो सोचने लगा कि ऐसा क्यों हुआ?... माँ को इतना दुःख क्यों हुआ?...विद्यालय में आयोजित शोकसभा में जो बालक जल्दी छुट्टी हो जाने की मस्ती में चूर था वह रात के समय बिस्तर पर लेटा लेटा प्रभु ईशु के पास चली गयी बेबी के ख़याल से स्वयं को अलग ही नहीं कर पा रहा था...पलंग पर माँ के दोनों ओर हम दोनों भाई होते थे....माँ मेरी और पीठ कर लेटी थी और मैं कमरे की छत की ओर टुकुर टुकुर ताकता हुआ सोने की कोशिस कर रहा था। छत की और ताकती मेरी नजरों को जब माँ ने देखा तो पूछा- "क्यों नींद नहीं आ रही क्या...?" मैंने हामी में सर हिलाया और कहा- "माँ तुम सुला दो ना..." माँ ने छोटे भाई मनोज की और पीठ कर ली और मुझे सीने से लगाकर थपकी देने लगी... ....कुछ ही क्षणों में नींद आ गयी लेकिन मेरा विश्वास है की उस दिन नींद की परियां मुझे लेकर प्रभु ईसु के पास ही गयी होंगी...