वो निश्छल हंसी / अशोक कुमार शुक्ला
"रस्मे उल्फत सिखा गया कोई दिल की दुनिया पे छा गया कोई."
...... एफ0एम0 बज रहा है और उस पर बेगम अख्तर की गायी हुई प्रसिद्ध गजल आ रही है- "रस्मे उल्फत सिखा गया कोई दिल की दुनिया पे छा गया कोई.." गजल सुनकर मन किशोरावस्था के किसी हिस्से की और भाग रहा है मगर मुझे तो सफ़र-ऐ-जिन्दगी का वो अगला हिस्सा लिखना है जिसमें मुझे क्लास का मानिटर बनने के लिए अयोग्य पाया गया था। आज विवेचना करता हूँ तो पाता हूँ कि क्लास का मानिटर न बनने की घटना ने मेरे अन्दर एक प्रकार के आक्रोश को जन्म दे दिया था.. मैं कक्षा के अनुशासन को बनाए रखने के सामान्य अनुदेशो की अवहेलना करने लगा था। क्लास मानिटर का मुख्य दायित्व कक्षा प्रारम्भ होने से पहले शिक्षक के लिए चाक और डस्तर की व्यवस्था करना और दो कक्षाओं के बीच कक्षा में अध्यापक न होने के दौरान बच्चों को चुप कराये रखने का होता था। क्लास मानिटर को यह अधिकार भी था कि वह कक्षा में शोर मचाने वाले बच्चो के नाम ब्लैक बोर्ड पर लिखता रहे। जब टीचर क्लास में आते तो उन बच्चों को जिनके नाम बोर्ड पर लिखे होते उन्हें बेंच पर हाथ ऊपर खडा कर खड़े कर देते थे। इस रूप में खडा होना किसी के लिए भी अपमान का विषय होता था। क्लास मानिटर के रूप में अपना चयन न हो पाने के बाद मुझे कक्षा में चुपके चुपके अव्यवस्था फैलाना अच्छा लगता था। इसके लिए दो पीरियड के बीच का वह समय सबसे मुफीद होता था जब कक्षा मानिटर के नियंत्रण में होती थी। ऐसे ही एक दिन विद्यालय की सामान्य प्रातःप्रार्थना के बाद कक्षाए प्रारम्भ हुई। पहला पीरियड और दुसरा पीरियड समाँप्त होने के बीच के समय का उपयोग मैंने मुह छिपाकर अजीब सी आवाज निकालने में किया। उस आवाज ने सबको आकर्षित किया । कोई जान नहीं पाया की वह आवाज मैंने की थी। आवाज इतनी हास्यास्पद थी कि समूची क्लास पुनः उसे सुनने की प्रतीक्षा करने लगी। इस बार पुनः मैंने चेहरा छुपाकर आवाज निकाली जिसे सुनकर पुरे कक्षा की हंसी छुट गयी। मजे की बात यह थी कि अब तक कोई जान नहीं पाया था कि वह आवाज मैंने निकाली थी। कक्षा की हंसी का दौर पूरा होता इसके पहले ही कक्षा में अध्यापक का प्रवेश हुआ और समूची क्लास गुडमार्निग सर कहकर खड़ी हो गयी परन्तु इस कक्षा की हंसी इतने जोर से गूंज चुकी थी कि गुरूजी ने अभिवादन का उत्तर दिए बगैर पूछा- " कौन है इस क्लास का मानिटर? क्यों शोर मचा रहे थे सब?" मानिटर डेविड अपराधियों की तरह खडा हो गया। उसने कक्षा के शोर मचने का कारण तो बता दिया लेकिन यह न बता सका कि वह आवाज किसने निकाली थी इसलिए मानिटर सहित पूरी कक्षा को हाथ ऊपर करके खड़े रहने की सजा सुनाई गयी। हालांकि मैं भी हाथ ऊँचे किये खडा था परन्तु मुझे पहचान न सकने की मानिटर की असफलता पर मन ही मन प्रसन्न था। इस हालात में खड़े हुए चन्द मिनट ही बीते थे कि सभी कक्षाओं को पुनःअसेम्म्बिली के लिए एकत्रित होने का निर्देश प्राप्त हुआ। यह निर्देश देने वाले वाले अनुचर की भाव भंगिमा गंभीर थी। बच्चों ने खुसी ख़ुशी अपने अपने बस्ते उठाये और असेम्बिली की और दौड़ पड़े। असेम्बिली में सभी अध्यापक अध्यापिकाए गभीर भावभंगिमा के साथ खड़े हुए। बच्चो में कुछ खुसफुसाहट आरम्भ हुई जिसे होंठो पर ऊँगली लगाकर इशारे से चुप कराया गया। विशेष प्रार्थना सभा आरम्भ हुयी। डेविड मैडम ने बोलना आरम्भ किया- "मेरे प्यारे ईसू मसीह! तू महान है! हम सब तेरी संतान है। तुझे अपनी संतानों में कुछ बहुत प्रिय होती हैं तो उन्हें अपने पास बुला लेता है और हमें शक्ति देता है की हम उसके बिछोह को सह सकें।आज फिर तूने अपनी उस संतान को अपने पास बुला लिया है जो तेरे साथ साथ हमें भी बहुत प्रिय थी....." यह कहते कहते डेविड मैडम का गला रुंध गया आगे की प्रार्थना रुंधे गले से रोते हुए पुरी की "....प्रभु यीशु..!.पिता के पास अपनी संतानों को अपने पास बुलाने का अधिकार होता है लेकिन हम सब की प्यारी और बड़ी मैम की बेटी "बेबी" को तूने जिस तरह अपने पास बुला लिया है...उससे हम सबको बहुत कष्ट है... ...उसकी माँ तो बस .....तेरे पास ही आना चाहती है....हम सब प्रार्थना करते है कि बड़ी मैम ......और उनके परिवार को ......वह ताकत दे कि वो इस पहाड़ जैसे दुःख से बाहर निकल सकें.....आमीन" मुझे याद है कि इस प्रार्थना को पूरा करने के दौरान डेविड मैम सचमुच रोने लगीं थीं।प्रार्थना के बाद सभी बच्चो को शान्ति के साथ दो मिनट का मौन रखते हुए चुपचाप अपना बस्ता उठाकर घर लौट जाना था। सभी लोगों ने मौन के लिए आँखे बंद कर ली। काफी देर तक ऐसी चुप्पी रही जिसे "पिन-ड्राप साइलेंस" कहते हैं तो मैंने एक आंख खोलकर हालत का जायजा लेना चाहा...सचमुच सबकी आँखे बंद थीं और हाथ जुड़े हुए...मैंने पुनः आंखे बंद ही की थी कि किसी बच्चे ने वैसी ही आवाज निकाली जिससे कक्षा में हंसी का फब्वारा फूट पडा था।अब मौन मुद्रा में भी वह हंसी दबकर विखरने को आतुर थी..कुछ क्षणों तक उसे दबाकर रखा गया ..अंततः वह किसी एक के मुह से फूट ही पड़ी...पुनः वही आवाज आयी तो...आधे से अधिक बच्चो की दबी हंसी अनुभव की जा सकती थी...खैर....किसी तरह मौन समाप्त हुआ। जिन बच्चों को चुपचाप बस्ता उठाकर निकल जाने की हिदायत थी वो छुट्टी मिलने की खुशी मनाते विद्यालय से बाहर निकल आये...। प्रभु के सच्चे अनुयायियों की तरह इन बच्चो पर बेबी के दुनिया से दूर प्रभु ईसु के पास चले जाने के दुःख का कोई भाव नहीं था...।