संभोग से समाधि की ओर / ओशो / पृष्ठ 11

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जवानी की आग पैदा करो...
प्रवचन 11

भारत में युवा मन चाहिए

हिंदुस्तान की जवानी तमाशबीन है। हम देखते रहते हैं खड़े होकर, जीवन का जैसे कोई जुलूस जा रहा है। पैसिव, रुके हैं, देख रहें हैं; कुछ भी हो रहा है! सारे मुल्क में कुछ भी हो रहा है। शोषण हो रहा है, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! अन्याय हो रहा है जवान खड़ा हुआ देख रहा है। बेवकूफियाँ हो रही हैं, जवान खड़ा देख रहा है! बु‍द्धिहीन लोग देश को नेतृत्व दे रहे हैं, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! जड़ता धर्मगुरु बन कर बैठी है, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! सारे मुल्क के हितों को नष्ट किया जा रहा है और जवान खड़ा हुआ देख रहा है! यह कैसी जवानी है?

कुरूपता से लड़ना पड़ेगा, असौंदर्य से लड़ना पड़ेगा, शोषण से लड़ना पड़ेगा, जिंदगी को विकृत करने वाले तत्वों से लड़ना पड़ेगा, जिंदगी के खून के पीने वाले तत्वों से लड़ना पड़ेगा। तो आदमी जवान होता है। वह सागर की लहरों पर जीता है फिर। फिर तूफानों में जीता है। फिर आकाश में उसकी उड़ान होनी शुरू होती है। लेकिन क्या लड़ोगे तुम? व्यक्तिगत लड़ाई ही नहीं है कोई, सामूहिक लड़ाई की तो बात अलग है। कोई फाइट नहीं है। और बिना फाईट के बिना लड़ाई के जवानी निखरती नहीं। जवानी सदा लड़ती है और निखरती है। जितना लड़ती है उतना निखरती है। सुंदर के लिए सत्य के लिए, शिव के लिए जवानी जितनी लड़ती है, उतनी निखरती है। लेकिन क्या लड़ोगे?

तुम्हारे पिता आ जाएँगे, तुम्हारी गर्दन में रस्सी डाल कर कहेंगे- इस लड़की से विवाह कर लो! और तुम घोड़े पर बैठ जाओगे। तुम जवान हो? और तुम्हारे बाप जाकर कहेंगे कि दस हजार रुपए लेंगे इस लड़की से! और तुम मजे से गिनती करोगे कि दस हजार में स्कूटर खरीदें कि क्या करें? तुम जवान हो? ऐसी जवानी दो कोड़ी की जवानी। जिस लड़की को तुमने कभी चाहा नहीं, जिस लड़की को तुमने कभी प्रेम नहीं किया, जिस लड़के को तुमने कभी चाहा नहीं, जिस लड़के को तुमने कभी छुआ नहीं, उस लड़के से विवाह करने के लिए या उस लड़की से विवाह करने के लिए तुम पैसे के लिए राजी हो रहे हो? समाज की व्यवस्था के लिए राजी हो रहे हो? तो तुम जवान नहीं हो। तुम्हारी जिंदगी में कभी वे फूल नहीं खिलेंगे जो युवा मस्तिष्क जानता है। तुम कभी उन आकाश को नहीं छुओगे जो युवा मस्तिष्क छूता है। तुम हो ही नहीं; तुम मिट्टी के लोंदे हो, जिसको कहीं भी सरकाया जा रहा है और कहीं भी लिया जा रहा है। तुम चुपचाप मानते चले जा रहे हो कुछ भी! न तुम्हारे मन में संदेह, न जिज्ञासा है, न संघर्ष है, न पुकार है, न पूछ है, न इंक्वायरी है- कि यह क्या हो रहा है? कुछ भी हो रहा है, हम देख रहे हैं खड़े होकर! नहीं ऐसे नहीं जवानी पैदा होती है।


इसलिए दूसरा सूत्र में तुमसे कहता हूँ और वह यह कि जवानी संघर्ष से पैदा होती है। संघर्ष गलत के लिए भी हो सकता है, और तब जवानी कुरूप हो जाती है। संघर्ष बूरे के लिए भी हो सकता है, तब जवानी विकृत हो जाती है। संघर्ष अंधेरे के लिए भी हो सकता है, तब जवानी आत्मघात कर लेती है। लेकिन संघर्ष जब सत्य के लिए, सुंदर के लिए, श्रेष्ठ के लिए होता है, संघर्ष जब परमात्मा के लिए होता है, संघर्ष जब जीवन के लिए होता है, तब जवानी सुंदर, स्वस्थ्, सत्य होती चली जाती है।

हम जिसके लिए लड़ते हैं, वहीं हम हो जाते हैं। इसे ध्यान में रख लेना: हम जिसके लिए लड़ते हैं, अंतत: अंतत: हम वही हो जाते हैं। लड़ो सुंदर के लिए और तुम सुंदर हो जाओगे। लड़ो सत्य के लिए और तुम सत्य हो जाओगे। लड़ो श्रेष्ठ के लिए, और तुम श्रेष्ठ हो जाओगे। और मत लड़ो- तुम खड़े-खड़े सड़ोगे और मर जाओगे और कुछ भी नहीं होओगे। जिंदगी संघर्ष है और जिंदगी संघर्ष से ही पैदा होती है। फिर जैसा हम संघर्ष करते हैं, हम वैसे ही हो जाते हैं।

हिंदुस्तान में कोई लड़ाई नहीं है, कोई फाइट नहीं है! हिंदुस्तान के मन में कोई भी लड़ाई नहीं है! सब कुछ हो रहा है, अजीब हो रहा है। हम सब जानते हैं, देखते हैं- सब हो रहा है। और होने दे रहे हैं। अगर हिंदुस्तान की जवानी खड़ी हो जाए तो हिंदुस्तान में फिर ये सब नासमझियाँ नहीं हो सकती जो हो रही हैं। एक आवाज में टूट जाएगी। चूँकि जवानी नहीं है, इसलिए कुछ भी हो रहा है।

साभार: ओशो टाइम्स इंटरनेशनल 1 मई 1993