समुद्री सफर और व्यापार / नेहरू / प्रेमचंद

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फिनीशियन भी पुराने जमाने की एक सभ्य जाति थी। उसकी नस्ल भी वही थी जो यहूदियों और अरबों की है। वे खासकर एशिया माइनर के पश्चिमी किनारे पर रहते थे, जो आजकल का तुर्की है। उनके खास-खास शहर एकर, टायर और सिडोन भूमध्‍य समुद्र के किनारे पर थे। वे व्यापार के लिए लंबे सफर करने में मशहूर थे। वे भूमध्‍य समुद्र से होते हुए सीधे इंग्लैंड तक चले जाते थे। शायद वे हिंदुस्तान भी आए हों।

अब हमें दो बड़ी-बड़ी बातों की दिलचस्प शुरुआत का पता चलता है। समुद्री सफर और व्यापार। आजकल की तरह उस जमाने में अच्छे अगिनवोट और जहाज न थे। सबसे पहली नाव किसी दरख्त के तने को खोखला कर बनी होगी। इनके चलने के लिए डंडों से काम लिया जाता था और कभी-कभी हवा के जोर के लिए तिरपाल लगा देते थे। उस जमाने में समुद्र के सफर बहुत दिलचस्प और भयानक रहे होंगे। अरब सागर को एक छोटी-सी किश्ती पर, जो डंडों और पालों से चलती, तय करने का खयाल तो करो। उनमें चलने-फिरने के लिए बहुत कम जगह रहती होगी और हवा का एक हलका-सा झोंका भी उसे तले ऊपर कर देता है। अक्सर वह डूब भी जाती थी। खुले समुद्र में एक छोटी-सी किश्ती पर निकलना बहादुरों ही का काम था। उसमें बड़े-बड़े खतरे थे और उनमें बैठनेवाले आदमियों को महीनों तक जमीन के दर्शन न होते थे। अगर खाना कम पड़ जाता था तो उन्हें बीच समुद्र में कोई चीज न मिल सकती थी, जब तक कि वे किसी मछली या चिड़िया का शिकार न करें। समुद्र खतरों और जोखिम से भरा हुआ था। पुराने जमाने के मुसाफिरों को जो खतरे पेश आते थे उसका बहुत कुछ हाल किताबों में मौजूद है।

लेकिन इस जोखिम के होते हुए भी लोग समुद्री सफर करते थे। मुमकिन है कुछ लोग इसलिए सफर करते हों कि उन्हें बहादुरी के काम पसंद थे; लेकिन ज्यादातर लोग सोने और दौलत के लालच से सफर करते थे। वे व्यापार करने जाते थे; माल खरीदते थे और बेचते थे; और धन कमाते थे। व्यापार क्या है? आज तुम बड़ी-बड़ी दुकानें देखती हो और उनमें जा कर अपनी जरूरत की चीज खरीद लेना कितना सहज है। लेकिन क्या तुमने ध्‍यान दिया है कि जो चीजें तुम खरीदती हो वे आती कहाँ से हैं? तुम इलाहाबाद की एक दुकान में एक शाल खरीदती हो। वह कश्मीर से यहाँ तक सारा रास्ता तय करता हुआ आया होगा और ऊन कश्मीर और लद्दाख की पहाड़ियों में भेड़ों की खाल पर पैदा हुआ होगा। दाँत का मंजन जो तुम खरीदती हो शायद जहाज और रेलगाड़ियों पर होता हुआ अमरीका से आया हो। इसी तरह चीन, जापान, पेरिस या लंदन की बनी हुई चीजें भी मिल सकती हैं। विलायती कपड़े के एक छोटे-से टुकड़े को ले लो जो यहाँ बाजार में बिकता है। रुई पहले हिंदुस्तान में पैदा हुई और इंग्लैंड भेजी गई। एक बड़े कारखाने ने इसे खरीदा, साफ किया, उसका सूत बनाया और तब कपड़ा तैयार किया। यह कपड़ा फिर हिंदुस्तान आया और बाजार में बिकने लगा। बाजार में बिकने के पहले इसे लौटा-फेरी में कितने हजार मीलों का सफर करना पड़ा। यह नादानी की बात मालूम होती है कि हिंदुस्तान में पैदा होनेवाली रुई इतनी दूर इंग्लैंड भेजी जाए, वहाँ उसका कपड़ा बने और फिर हिंदुस्तान में आए। इसमें कितना वक्त, रुपया और मेहनत बरबाद हो जाती है। अगर रुई का कपड़ा हिंदुस्तान में ही बने तो वह जरूर ज्यादा सस्ता और अच्छा होगा। तुम जानती हो कि हम विलायती कपड़े नहीं खरीदते। हम खद्दर पहनते हैं क्योंकि जहाँ तक मुमकिन हो अपने मुल्क में पैदा होनेवाली चीजों को खरीदना अक्लमंदी की बात है। हम इसलिए भी खद्दर खरीदते और पहनते हैं कि उससे उन गरीब आदमियों की मदद होती है जो उसे कातते और बुनते हैं।

अब तुम्हें मालूम हो गया होगा कि आजकल व्यापार कितनी पेचीदा चीज है। बड़े-बड़े जहाज एक मुल्क का माल दूसरे देश को पहुँचाते रहते हैं। लेकिन पुराने जमाने में यह बात न थी।

जब हम पहले-पहल किसी एक जगह आबाद हुए तो हमें व्यापार करना बिल्कुल न आता था। आदमी को अपनी जरूरत की चीजें आप बनानी पड़ती थीं। यह सच है कि उस वक्त आदमी को बहुत चीजों की जरूरत न थी। जैसा तुमसे पहले कह चुका हूँ। उसके बाद जाति में काम बॉंटा जाने लगा। लोग तरह-तरह के काम करने लगे और तरह-तरह की चीजें बनाने लगे। कभी-कभी ऐसा होता होगा कि एक जाति के पास एक चीज ज्यादा होती होगी और दूसरी जाति के पास दूसरी चीज। इसलिए अपनी-अपनी चीजों को बदल लेना उनके लिए बिल्कुल सीधी बात थी। मिसाल के तौर पर एक जाति एक बोरे चने पर एक गाय देती होगी। उस जमाने में रुपया न था। चीजों का सिर्फ बदला होता था। इस तरह बदला शुरू हुआ। इसमें कभी-कभी दिक्‍कत पैदा होती होगी। एक बोरे चने या इसी तरह की किसी दूसरी चीज के लिए एक आदमी को एक गाय या दो भेड़ें ले जानी पड़ती होंगी लेकिन फिर भी व्यापार तरक्‍की करता रहा।

जब सोना और चाँदी निकलने लगा तो लोगों ने उसे व्यापार के लिए काम में लाना शुरू किया। उन्हें ले जाना ज्यादा आसान था। और धीरे-धीरे माल के बदले में सोने या चाँदी देने का रिवाज निकल पड़ा। जिस आदमी को पहले-पहल यह बात सूझी होगी वह बहुत होशियार होगा। सोने-चॉंदी के इस तरह काम में लाने से व्यापार करना बहुत आसान हो गया। लेकिन उस वक्त भी आजकल की तरह सिक्के न थे। सोना तराजू पर तौल कर दूसरे आदमी को दे दिया जाता था। उसके बहुत दिनों के बाद सिक्के का रिवाज हुआ और इससे व्यापार और बदले में और भी सुभीता हो गया। तब तौलने की जरूरत न रही क्योंकि सभी आदमी सिक्के की कीमत जानते थे। आजकल सब जगह सिक्के का रिवाज है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि निरा रुपया हमारे किसी काम का नहीं है। यह हमें अपनी जरूरत की दूसरी चीजों के लेने में मदद देता है। इससे चीजों का बदलना आसान हो जाता है। तुम्हें राजा मीदास का किस्सा याद होगा जिसके पास सोना तो बहुत था लेकिन खाने को कुछ नहीं। इसलिए रुपया बेकार है। जब तक हम उससे जरूरत की चीजें न खरीद लें।

मगर आजकल भी तुम्हें देहातों में ऐसे लोग मिलेंगे जो सचमुच चीजों का बदला करते हैं और दाम नहीं देते। लेकिन आम तौर पर रुपया काम में लाया जाता है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा सुभीता है। बाज नादान लोग समझते हैं कि रुपया खुद ही बहुत अच्छी चीज है और वह उसे खर्च करने के बदले बटोरते और गाड़ते हैं। इससे मालूम हो जाता है कि उन्हें यह नहीं मालूम है कि रुपए का रिवाज कैसे पड़ा और यह दरअसल क्या है।